
युवा शक्ति का आह्वान
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साथियों आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं यह देश और युवाओं के लिए स्वर्णिम युग है। वो इसलिए कि देश में इस समय लगभग ६० प्रतिशत आबादी युवा है, जो आने वाले समय में देश की दशा एवं दिशा के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहे है। ऐसे महत्त्वपूर्ण एवं दुर्लभ क्षण में आवश्यकता है वर्तमान पीढ़ी को सशक्त एवं समर्थ बनाने की। समर्थ एवं सशक्त बनाने की प्रक्रिया में सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है उनके आत्मबल, मनोबल को मजबूत बनाना ऊँचा उठाना, विजय इसी सदगुरु के आधार पर मिलेगी और आत्मबल को ऊँचा उठाने के लिए चाहिए आध्यात्मिक चिन्तन अर्थात् सकारात्मक सोच।
इसी चिन्तन को आधार बनाकर गायत्री परिवार द्वारा संचालित विश्व का एकमात्र अनूठा विश्वविद्यालय देव संस्कृति विश्व विद्यालय शांतिकुंज हरिद्वार में स्थापित है जहाँ भारतीय संस्कृति को आधार बनाकर नालन्दा एवं तक्षशिला के समान राष्ट्रीय चिन्तन से ओत- प्रोत युवाओं की फौज खड़ी की जा रही है। राष्ट्र के लिए यह शुभ लक्षण है कि इस विश्व विद्यालय में प्रवेश लेने हेतु न सिर्फ गायत्री परिवार से जुड़े हुये युवा रुचि दिखा रहे हैं बल्कि अन्य क्षेत्र के युवा भी बड़ी संख्या में प्रवेश लेकर देव संस्कृति के प्रति समर्पित हो रहे हैं।
ये युवा विश्वविद्यालय से निकलकर देश के विभिन्न क्षेत्रों में युवाओं के बीच पहुँचकर उन्हें राष्ट्रीय कर्तव्य के प्रति भाव जागृत कर रहे हैं। कहावत है कि लोहा लोहे को काटता है, हम उम्र की बात को व्यक्ति अधिक गहराई से सुनता है, इसीलिए आज यदि युवा पीढ़ी को दिशा देना है तो सुलझे हुये युवा ही दे सकते है। गायत्री परिवार के प्रमुख एवं युवाओं के प्रेरणास्रोत श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या भाई साहब कहते हैं कि विगत में हुई सभी आन्दोलनों का सूत्रधार युवा ही था, तो क्यों न आज एक आन्दोलन युवाओं के लिए ही किया जाए।
युवा आन्दोलन के चार सूत्र है :-
१ स्वस्थ युवा -- सशक्त राष्ट्र,
२. शालीन युवा -- श्रेष्ठ राष्ट्र,
३. स्वावलम्बी युवा -- सम्पन्न राष्ट्र,
४. सेवा भावी युवा -- सुखी राष्ट्र।
स्वावलम्बी युवा :-
छोटे- मोटे कार्यों के माध्यम से अपने अन्दर श्रम करने की प्रवृत्ति को जागृत करना ही स्वालम्बन है। मनुष्य के तीन मूलभूत आवश्यकताएँ है- रोटी, कपड़ा और मकान। इसकी प्राप्ति के लिए हर युवा को स्वावलम्बी बनना आवश्यक है। पर विडम्बना है कि अनपढ़ श्रम करके अर्थोपार्जन कर लेता है, परन्तु एक पढ़ा लिखा युवक शिक्षित बेरोजगार रहता है, क्योंकि वे श्रम करना नहीं चाहता है।
किसी महापुरुष ने ठीक ही कहा है कि युवाओं को रोजगार के अवसर तलाशने के बजाय जीवन के मकसद तलाशना चाहिए यदि मकसद के हिसाब से श्रम करें तो सफलता निश्चित है। जो युवा जहाँ है जिस स्थिति में है वहीं से स्वावलम्बी बन सकता है और आगे बढ़ सकता है।
आज की युवा पीढ़ी यदि उपरोक्त सूत्रों को आधार बना ले तो युवा शक्ति को राष्ट्र शक्ति बनने से कोई रोक नहीं सकता। समस्या यह नहीं है कि युवाओं में ताकत नहीं है, समस्या यह है कि वे अपने आप को पहचान नहीं पा रहे हैं।
एक घटना है कि एक बार जंगल में शेर का बच्चा बिछुड़ गया, उधर से भेड़ों का झुंड चला आ रहा था वह बच्चा भी भेड़ों के साथ हो गया, उन्हीं के साथ रहते हुए बड़ा हुआ। कुछ दिन पश्चात् उस जंगल में शेर आया, शेर की दहाड़ सुनकर भेंड़ भागने लगे, शेर का व बच्चा भी भागने लगा, शेर ने देख लिया उसे पकड़ा और उसे तालाब के पास ले गया, अपनी और उसकी परछाई दिखाया और उसे विश्वास दिलाया कि वह शेर का बच्चा है भेंड़ का नहीं और उसे अपने साथ ले गया।
ठीक इसी प्रकार से हम है और दीनहीन हालत में जहाँ- तहाँ समय काट रहें हैं। साथियों वास्तव में हममें वह अदम्य साहस और ऊर्जा भरी पड़ी है जिसका नियोजन कर हम अपने घर परिवार ही नहीं बल्कि इस वसुन्धरा को चमका सकते हैं और ये दायित्व हमारा है इसे हमें करना ही है। युग ऋषि के संकल्प को पूरा करने का यही उपयुक्त समय है। क्या करें,
आज के युवाओं की संवेदना को जागृत करें, यदि युवाओं की संवेदना जाग गई तो युवा वकील की नजरें पैसों पर न होकर पीड़ितों को न्याय दिलाने में होगा, डाक्टरों की अन्तर्भावना संवेदित हो गई तो कितनी ही कराहटें मुस्कराहटों में बदलेगी। विद्यार्थी जो ज्ञान की साधना करते हैं, कितनों को ज्ञान बाँटते नजर आएँगे। संवेदनशील धनपति युवा के सामने कोई विद्यार्थी धन के अभाव में पढ़ने से वंचित नहीं रह पाएगा। संवेदना के जागृत होने पर कोई बहन दहेज के नाम जिंदा नहीं जलाई जाएगी। इस संवेदना को जागृत करने का बीड़ा उठाना है। क्योंकि इस पुनीत कार्य को करने हेतु ही आपका जन्म हुआ है और आप इस समय युवावस्था को प्राप्त हुए है।
अतः इस देश के समस्त युवा साथियों का हम आह्वान करते है कि महाकाल की पुकार को, हिमालयवासी ऋषि सत्ताओं की भावनाओं को सुनते हुए, समय की मांग को समझते हुए, आज का श्रेष्ठ धर्म का पालन करते हुए आज ही अपनी जिम्मेदारी तक करें, कार्य का निर्धारण करें और संकल्प करें कि -बदलेगी बदलेंगी निश्चय दुनिया बदलेगी, कल नहीं ये आज ही दुनिया बदलेगी।
इसी चिन्तन को आधार बनाकर गायत्री परिवार द्वारा संचालित विश्व का एकमात्र अनूठा विश्वविद्यालय देव संस्कृति विश्व विद्यालय शांतिकुंज हरिद्वार में स्थापित है जहाँ भारतीय संस्कृति को आधार बनाकर नालन्दा एवं तक्षशिला के समान राष्ट्रीय चिन्तन से ओत- प्रोत युवाओं की फौज खड़ी की जा रही है। राष्ट्र के लिए यह शुभ लक्षण है कि इस विश्व विद्यालय में प्रवेश लेने हेतु न सिर्फ गायत्री परिवार से जुड़े हुये युवा रुचि दिखा रहे हैं बल्कि अन्य क्षेत्र के युवा भी बड़ी संख्या में प्रवेश लेकर देव संस्कृति के प्रति समर्पित हो रहे हैं।
ये युवा विश्वविद्यालय से निकलकर देश के विभिन्न क्षेत्रों में युवाओं के बीच पहुँचकर उन्हें राष्ट्रीय कर्तव्य के प्रति भाव जागृत कर रहे हैं। कहावत है कि लोहा लोहे को काटता है, हम उम्र की बात को व्यक्ति अधिक गहराई से सुनता है, इसीलिए आज यदि युवा पीढ़ी को दिशा देना है तो सुलझे हुये युवा ही दे सकते है। गायत्री परिवार के प्रमुख एवं युवाओं के प्रेरणास्रोत श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या भाई साहब कहते हैं कि विगत में हुई सभी आन्दोलनों का सूत्रधार युवा ही था, तो क्यों न आज एक आन्दोलन युवाओं के लिए ही किया जाए।
युवा आन्दोलन के चार सूत्र है :-
१ स्वस्थ युवा -- सशक्त राष्ट्र,
२. शालीन युवा -- श्रेष्ठ राष्ट्र,
३. स्वावलम्बी युवा -- सम्पन्न राष्ट्र,
४. सेवा भावी युवा -- सुखी राष्ट्र।
स्वावलम्बी युवा :-
छोटे- मोटे कार्यों के माध्यम से अपने अन्दर श्रम करने की प्रवृत्ति को जागृत करना ही स्वालम्बन है। मनुष्य के तीन मूलभूत आवश्यकताएँ है- रोटी, कपड़ा और मकान। इसकी प्राप्ति के लिए हर युवा को स्वावलम्बी बनना आवश्यक है। पर विडम्बना है कि अनपढ़ श्रम करके अर्थोपार्जन कर लेता है, परन्तु एक पढ़ा लिखा युवक शिक्षित बेरोजगार रहता है, क्योंकि वे श्रम करना नहीं चाहता है।
किसी महापुरुष ने ठीक ही कहा है कि युवाओं को रोजगार के अवसर तलाशने के बजाय जीवन के मकसद तलाशना चाहिए यदि मकसद के हिसाब से श्रम करें तो सफलता निश्चित है। जो युवा जहाँ है जिस स्थिति में है वहीं से स्वावलम्बी बन सकता है और आगे बढ़ सकता है।
आज की युवा पीढ़ी यदि उपरोक्त सूत्रों को आधार बना ले तो युवा शक्ति को राष्ट्र शक्ति बनने से कोई रोक नहीं सकता। समस्या यह नहीं है कि युवाओं में ताकत नहीं है, समस्या यह है कि वे अपने आप को पहचान नहीं पा रहे हैं।
एक घटना है कि एक बार जंगल में शेर का बच्चा बिछुड़ गया, उधर से भेड़ों का झुंड चला आ रहा था वह बच्चा भी भेड़ों के साथ हो गया, उन्हीं के साथ रहते हुए बड़ा हुआ। कुछ दिन पश्चात् उस जंगल में शेर आया, शेर की दहाड़ सुनकर भेंड़ भागने लगे, शेर का व बच्चा भी भागने लगा, शेर ने देख लिया उसे पकड़ा और उसे तालाब के पास ले गया, अपनी और उसकी परछाई दिखाया और उसे विश्वास दिलाया कि वह शेर का बच्चा है भेंड़ का नहीं और उसे अपने साथ ले गया।
ठीक इसी प्रकार से हम है और दीनहीन हालत में जहाँ- तहाँ समय काट रहें हैं। साथियों वास्तव में हममें वह अदम्य साहस और ऊर्जा भरी पड़ी है जिसका नियोजन कर हम अपने घर परिवार ही नहीं बल्कि इस वसुन्धरा को चमका सकते हैं और ये दायित्व हमारा है इसे हमें करना ही है। युग ऋषि के संकल्प को पूरा करने का यही उपयुक्त समय है। क्या करें,
आज के युवाओं की संवेदना को जागृत करें, यदि युवाओं की संवेदना जाग गई तो युवा वकील की नजरें पैसों पर न होकर पीड़ितों को न्याय दिलाने में होगा, डाक्टरों की अन्तर्भावना संवेदित हो गई तो कितनी ही कराहटें मुस्कराहटों में बदलेगी। विद्यार्थी जो ज्ञान की साधना करते हैं, कितनों को ज्ञान बाँटते नजर आएँगे। संवेदनशील धनपति युवा के सामने कोई विद्यार्थी धन के अभाव में पढ़ने से वंचित नहीं रह पाएगा। संवेदना के जागृत होने पर कोई बहन दहेज के नाम जिंदा नहीं जलाई जाएगी। इस संवेदना को जागृत करने का बीड़ा उठाना है। क्योंकि इस पुनीत कार्य को करने हेतु ही आपका जन्म हुआ है और आप इस समय युवावस्था को प्राप्त हुए है।
अतः इस देश के समस्त युवा साथियों का हम आह्वान करते है कि महाकाल की पुकार को, हिमालयवासी ऋषि सत्ताओं की भावनाओं को सुनते हुए, समय की मांग को समझते हुए, आज का श्रेष्ठ धर्म का पालन करते हुए आज ही अपनी जिम्मेदारी तक करें, कार्य का निर्धारण करें और संकल्प करें कि -बदलेगी बदलेंगी निश्चय दुनिया बदलेगी, कल नहीं ये आज ही दुनिया बदलेगी।