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Books - व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर

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Language: HINDI
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गायत्री का महाविज्ञान

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व्याख्यान का उद्देश्य :-

१. गायत्री का महात्म्य, ऋषियों ,, वैज्ञानिकों व महापुरुषों के विचारों एवं प्रयोगों से अवगत हों।
२. गायत्री मन्त्र का शरीर मन व बुद्धि पर प्रभाव समझ में आए।
३. गायत्री प्रतिमा का दर्शन समझ में आए।
४. गायत्री मन्त्र का जप व लेखन करने का संकल्प जागे।

व्याख्यान क्रम :-

          बताइये जीवन के लिए सबसे आवश्यक तत्व क्या है? (जवाब मिलेगा -- भोजन, हवा, पानी) इसके अलावा बताइये? मित्रों। जैसे स्थूल शरीर के लिए सबसे अनिवार्य चीज हवा है, वैसे ही जीवन को सुखी बनाने के लिए सबसे आवश्यक चीज सद्बुद्धि है। इसी को विवेकशीलता, प्रज्ञा कहते हैं। इसी को अध्यात्मिक भाषा में गायत्री कहते हैं।

          गायत्री उस बुद्धि का नाम है, जो अच्छे गुण एवं कल्याणकारी तत्वों से भरी होती है। उसकी प्रेरणा से मनुष्य का शरीर और मस्तिष्क ऐसे रास्ते पर चलता है कि कदम- कदम पर कल्याण के दर्शन होते हैं। हर कदम पर आनन्द का संचार होता है। दुर्बुद्धि के कारण नारकीय जीवन जीने वालों के लिए गायत्री एक प्रकाश है, एक सच्चा सहारा है जो उनकी सद्बुद्धि को जागकर इस दलदल से उबारता है। गायत्री उनके प्राणों की रक्षा करता है वो जीवन में सुख शान्ति और आनन्द के द्वार खोल देता है।

          इस तरह गायत्री कोई देवी- देवता या कल्पना नहीं है बल्कि परमात्मा की इच्छाशक्ति है जो मनुष्य में सद्बुद्धि के रूप में प्रकट होकर उसके जीवन को सार्थक एवं सफल बनाती है। अब आइए जानें कि गायत्री क्या है?

          १. गयान् प्रणान् त्रायते सा गायत्री :- (ऐतरेय ब्राह्मण) -- गय अर्थात् प्राण, त्री अर्थात् त्राण करने वाली, तारने वाली। प्राण का त्राण करने वाली शक्ति गायत्री है। इस तरह गायत्री प्राण विद्या है। यह प्राणशक्ति का अभिवर्द्धन करती है। ९६ पौंड के गाँधी जी जब अपनी स्वाभाविक चाल से पैदल चलते थे नौजवान उनके पीछे दौड़ लगाते थे। यह प्राण शक्ति का कमाल है।

          २. गीयते तत्व मनया गायत्रीति :- (शंकराचार्य भाष्य) -- जिस विवेक बुद्धि -- ऋतम्भरा प्रज्ञा से वास्तविकता का ज्ञान होता है वह गायत्री है।
          ३. गायत्री इदम् सर्वम् :- (नृसिंहपूर्वकतापनीयोपनिषद्) -- यह समस्त जो कुछ भी है गायत्री है

          ४. गायत्री अध्यात्मिक त्रिवेणी है :- भारतीय संस्कृति में त्रिक् का विशेष महत्व है। सत्- चित, ब्रह्मा- विष्णु, सरस्वती- लक्ष्मी, सतोगुण- रजोगुण, धरती- आकाश, चिन्तन- चरित्र, गुण- कर्म, गंगा- यमुना आदि।

          ५. गायत्री महाविद्या है :- गायत्री अनेक विद्याओं का समुच्चय है। ‘‘विद्या वह है जो जितनी खर्च की जाय वह उतनी ही बढ़ती जाती है।’’ बाकी भौतिक धन तो खर्च करने पर चूकता जाता है। गायत्री महाविद्या जीवात्मा को पशुता के बन्धन से मुक्त करती है।

          ६. गायत्री मन्त्रविद्या है :- मननात् प्राणात् इति मन्त्रः। मन्त्र से विचार मिलता है। मन्त्र के जप के साथ उसके अथ पर भी विचार या भावना की जाय तो आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ता है। गायत्री सद्बुद्धि का मन्त्र है इसमें परमात्मा से श्रेष्ठ निर्मल पवित्र बुद्धि की कामना की गई है।

          मन्त्रविद्या के वैज्ञानिक जानते हैं कि मुँह से जो भी शब्द निकलते है उनका उच्चारण कण्ठ, तालू, मूर्धा, ओष्ठ, दन्त, जिह्वामूल आदि मुख के विभिन्न अंगों द्वारा होता है। इस उच्चारण काल में मुख के जिन भागों तक फैलते हैं। इस फैलाव क्षेत्र में कई ग्रन्थियाँ होती है जिन पर उन उच्चारणों को दबाव पड़ता है। जिन लोगों की कुछ खास शब्द अशुद्ध या रुक- रुककर निकलते हैं, इसी को हकलाना या तुतलाना कहते हैं। शरीर में अनेक छोटी- बड़ी, दृश्य- अदृश्य ग्रन्थियाँ होती हैं। योगीजन जानते हैं कि उन कोषों में कोई विशेष शक्ति भण्डार छिपा रहता है। सुषुम्ना से जुड़े हुए छः शक्ति केन्द्र प्रसिद्ध है, ऐसी अगणित ग्रन्थियाँ शरीर में है। विविध शब्दों के उच्चारण इन विविध ग्रंथियों पर डालता है और इसके प्रभाव से उन ग्रन्थियों को शक्ति भण्डार जागृत होता है। मन्त्रों को गठन इसी आधार पर हुआ है। गायत्री मन्त्र में २४ अक्षर हैं। इसका सम्बन्ध शरीर में स्थित ऐसी २४ शक्ति केन्द्रों से है जो जागृत होने पर सद्बुद्धि प्रकाशक शक्तियों को सतेज करती है (चित्र दिखाएँ)। गायत्री मंत्र के उच्चारण से सूक्ष्म शरीर के २४ शक्ति केन्द्र झंकृत होते हैं और उससे एक ऐसी स्वरलहरी उत्पन्न होती है जिसका प्रभाव अदृश्य जगत के महत्त्वपूर्ण तत्वों पर पड़ता है। यह प्रभाव ही गायत्री साधना के चमत्कारी प्रभाव का कारण है इस प्रकार गायत्री मन्त्र के जप का प्रभाव पूर्णतः वैज्ञानिक है। जब साधक श्रद्धा और विश्वास के साथ आराधना करता है तो शब्द विज्ञान और आत्म सम्बन्ध दोनों की महत्ता से संयुक्त गायत्री का प्रभाव और भी अधिक बढ़ जाता है।

          ७. गायत्री की कामधेनु है :- पुराणों में उल्लेख है कि स्वर्गलोक में देवताओं के पास कामधेनु गौ है, वह अमृतोपम दूध देती है जिसे पीकर देवता सदा प्रसन्न सन्तुष्ट, सुसम्पन्न रहते हैं। मनुष्य भी भूलोक में उसी प्रकार आनन्दित रह सकता है यदि उसके कष्टों को निवारण हो जाए। गायत्री मनुष्य के सभी कष्टों को समाधान कर देती है।

          ८. गायत्री कल्पवृक्ष है :- गायत्री मनुष्यों के सभी भौतिक और आध्यात्मिक कामनाओं की पूर्ति कर देती है। गायत्री मन्त्र के जप अनुष्ठान से मानव मात्र के सभी सन्ताप, अभाव, अज्ञान, आशक्ति दूर हो जाती हैं। मन्त्र में निहित प्रेरणा ही कल्पवृक्ष जैसा चमत्कार करती है।

           ९. गायत्री पारस है :- जैसे सामान्य लोहा पारस से छू जाने पर सोना बन जाता है वैसे ही गायत्री रूपी पारस से स्पर्श पाकर दोष दुर्गुणों से युक्त मानव देवतुल्य बन जाता है।

           १०. गायत्री अमृत है :- गायत्री रूपी अमृत का पयपान कर मनुष्य भवबन्धनों से मुक्त हो जाता है। अपने देवतुल्य स्वभाव संस्कार एवं अपने शानदार व्यक्तित्व, चरित्र व कर्मों से संसार में अमरता को प्राप्त करता है।

         ११. गायत्री ब्रह्मास्त्र है :- जहाँ कोई दवा काम नहीं करती, संकटों या समस्याओं के समाधान के लिए कोई उपाय नहीं सूझता ऐसे समय में गायत्री मंत्र की साधना ब्रह्मास्त्र का काम करती है।

          १२. गायत्री वेदमाता है :- वेद कहते हैं ज्ञान को। चारों प्रकार के वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद चैतन्य शक्ति के ही स्फुरण हैं, जिसे सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा जी ने उत्पन्न किया था और जिसे शास्त्रकारों ने गायत्री नाम से सम्बोधित किया। इस प्रकार के वेदों की माता गायत्री हुई। इसी कारण उसे वेदमाता कहा जाता है। यह समस्त ज्ञान और विज्ञान की जननी है। गायत्री मन्त्र के आराधना से वेदों का दिव्य ज्ञान प्राप्त होता है। महर्षि विश्वामित्र ने कहा है -- ‘‘गायत्री के समान चारों वेदों में मन्त्र नहीं, सम्पूर्ण वेद, यज्ञ, तप गायत्री मन्त्र की एक कला के समान भी नहीं है।’’

          १३. गायत्री वेदमाता है :- यह साधक को दिव्य गुणों से युक्त बनाती है। अन्यों की तुलना में गायत्री साधना करने वाला व्यक्ति सामान्य व कम पढ़ा लिखा होकर भी गुण कर्म स्वभाव में उच्च होता है। और आत्म सम्बन्ध दोनों की महत्ता से संयुक्त गायत्री का प्रभाव और भी अधिक बढ़ जाता है।

         १४. गायत्री विश्वमाता है :- गायत्री साधना से सम्पूर्ण समाज संसार के प्रति परिवार का भाव आ जाता है। साधक विश्व को अपना मानने लगता है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना प्रबल होती जाती है। गायत्री ही आदिमन्त्र, बीजमन्त्र है। इसी कारण ऋषियों, महापुरुषों एवं वैज्ञानिकों ने एक स्वर से इसकी महिमा का गान किया है।

          महापुरुषों द्वारा गायत्री मन्त्र का गान :-

१. महर्षि वेदव्यास का कथन है कि ‘‘जिस प्रकार पुष्प का सार मधु, दूध का सार घृत है उसी प्रकार समस्त वेदों को सार गायत्री है।’’

२. स्वामी विवेकानन्द के अनुसार :- ‘‘जिस पर परमात्मा प्रसन्न होते हैं उसे सद्बुद्धि प्रदान करते हैं। गायत्री सद्बुद्धि का मन्त्र है इसलिए उसे मन्त्रों का मुकुटमणि कहा है।’’

३. जगद्गुरु शंकराचार्य के अनुसार :- ‘‘गायत्री आदिमन्त्र है इसकी महिमा का गान मनुष्य के सामर्थ्य से बाहर है। जीवन लक्ष्य को पाने की समझ जिस बुद्धि से प्राप्त होती है, उसकी प्रेरणा गायत्री द्वारा होती है।’’

४. आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने कहा है -- ‘‘गायत्री सबसे श्रेष्ठ मन्त्र, वेदों का मूल, गुरुमन्त्र है। आदिकाल में सभी ऋषि मुनि इसी का जप किया करते थे।’’


 

    गायत्री मन्त्र का भावार्थ :-

उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपने अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

          गायत्री माता की प्रतिमा का दर्शन :-
 
 गायत्री माता की प्रतिमा पर ध्यान देने पर मिलने वाली प्रेरणा --
१. कन्या रूप में माता की सुन्दर सौम्य मूरत :- हे मनुष्य! नारी मात्र को मेरे ही स्वरूप में जानकर उनके आदर का भाव रखो।
२. हंस की सवारी :- हे मनुष्य! उचित अनुचित में भेद करने की विवेक- बुद्धि जागृत कर।
३. कमण्डल :- हे मनुष्य! सत्कर्म कर। अपने अन्दर पात्रता विकसित कर, जिससे कि अनुदान- वरदान ठहर सकें।
४. वेद :- हे मनुष्य! अपने जीवन के रहस्य व कर्तव्य को जानने के लिए ज्ञान का सहारा लेकर सद्बुद्धि को विकसित कर। स्वाध्याय कर।
५. कमल का आसन :- हे मनुष्य! संसार रूपी दलदल में रहकर भी अपने सतोगुणी व्यक्तित्व का विकास कर। कमल की भांति रह।
६. रत्न जड़ित मुकुट :- हे मनुष्य! अपने मस्तिष्क में शुभ श्रेष्ठ विचारों को ही धारण कर।
७. सूर्य भगवान :- हे मनुष्य! सूर्य (सविता) के तेज, प्राण, प्रकाश को धारण कर। प्रखर, तेजस्वी, प्राणवान बन।

गायत्री उपासना से लाभ :-

          गायत्री साधना से साधारण और विशिष्ट श्रेणी के अनेक प्रयोजनों की सिद्धि होती है। जो कम संसार के किसी अन्य मन्त्र से नहीं हो सकता, वह निश्चित रूप से गायत्री मन्त्र द्वारा हो सकता है।
१. बुद्धि तीव्र होती है, एकाग्रता का विकास होता है।
२. सद्गुणों में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। दोष दुर्गुणों में कमी आने लगती है।         कुसंस्कार छटने लगता है।
३. जीभ का चटोरापन, दुर्व्यसन, कामेन्द्रिय उत्तेजना आदि संयमित होने लगती है, ब्रह्मचर्य में मन लगता है।
४. दिनचर्या में स्वच्छता, सुव्यवस्था और श्रम के प्रति रुचि जागने लगती है।
५. विद्यार्थियों को पढ़ाई में मन लगता है।
६. बुरी संगत, नशा, आलस्य, प्रमाद आदि छूटने लगते हैं।
७. मन में उत्साह, प्रसन्नता एवं श्रेष्ठ कार्यों व विचारों के प्रति लगाव बढ़ाता जाता है।
८. आपत्तियों का निवारण होता है।

          सांसारिक प्रयोजनों के लिए जैसे -- रोग निवारण, बुद्धि वृद्धि, राजकीय सफलता, दरिद्रता का नाश, सुसन्तति की प्राप्ति, शत्रुता का संहार, भूतबाधा की शांति, दूसरों को प्रभावित करना, रक्षा कवच, बुरे मुहूर्त आदि के लिए विशेष अनुष्ठान किया जाना आवश्यक होता है।
          अतः उन सभी मनुष्यों को गायत्री मन्त्र की जप साधना या लेखन साधना अवश्य करनी चाहिए जिन्हें सांसारिक उपलब्धियों एवं आत्मिक उन्नति की आकांक्षा हो। (यहाँ महात्मा आनन्द की कहानी सुनाएँ) यदि अभीष्ट फल न भी मिले तो गायत्री साधना कभी निष्फल नहीं जाती। उससे दूसरे प्रकार के लाभ मिल जाते हैं। (यहाँ माधवाचार्य की कहानी सुनाएँ)

          गायत्री साधना का स्त्री व पुरुष दोनों को समान अधिकार है। वैदिक काल में अनेक मन्त्रदृष्टा ऋषिकाएं हुई हैं। गार्गी, मैत्रेयी, कात्यायनी, यमी, शची, अपाला, घेषा, विश्ववारा, इला, भारती देवी आदि गायत्री साधना व वेदाध्ययन के लिए प्रसिद्ध रही हैं। जो स्त्री गायत्री साधना करती है उनकी गृहस्थी सुन्दर सुव्यवस्थित, सन्तानें सुसंस्कृत होती है। पति, परिवार आदि उसके अनुकूल बन जाते हैं।

         गायत्री मन्त्र के जप के ही समान मन्त्रलेखन साधना भी अतिफलदायी होती है। गायत्री मंत्र लेखन के समय हाथ, आँखें, मस्तिष्क एवं सभी चित्तवृत्तियाँ एकाग्र हो जाती हैं क्योंकि लिखने का कार्य एकाग्रता चाहता है। कहा गया है -- ‘‘हवन से मन्त्र में प्राण आते हैं, जप से मन्त्र जागृत होता है, और लिखने से मंत्र की शक्ति आत्मा में प्रकाशित होती है। श्रद्धापूर्वक यदि शुद्ध मन्त्र लेखन किया जाए तो उसका प्रभाव जप से दस गुना अधिक होता है’’

(गायत्री मन्त्र जप की पद्धति में माला लेकर समझाएँ एवं लेखन की विधि मन्त्रलेखन पुस्तिका दिखाकर बताएँ।)

     प्रश्रोत्तरी :-

१. गायत्री को पारस क्यों कहा गया है?
२. गायत्री मन्त्र में कितने अक्षर होते हैं? गिनकर बताएँ।
३. गायत्री मन्त्र का जप या लेखन करने से क्या- क्या लाभ होते हैं? कोई पांच बताएँ।
४. क्या आप नियमित गायत्री मंत्र का जप या लेखन करेंगे? यदि हां तो कितनी संख्या में?
५. गायत्री मन्त्र को शुद्ध व सस्वर उच्चारण करके बताएँ।
६. गायत्री माता की प्रतिमा से आपको क्या- क्या प्रेरणा मिलती है?
७. क्या गायत्री मन्त्र केवल हिन्दुओं का है? यदि नहीं तो कैसे समझाएँ?

    सन्दर्भ ग्रन्थ :-

१. गायत्री महाविज्ञान।
२. गायत्री मन्त्र का महाविज्ञान।

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