
दुर्गंध फैलाता है मनुष्य
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मित्रो! यह बदबू का टोकरा है। कहीं ऐसा न हो कि इसकी वास्तविकता का पता चल जाए इसलिए इसके ऊपर लीपा-पोती करते रहते हैं। गंदी जगहों पर फिनायल डालते रहते हैं, जिसकी गंध की वजह से बदबू दब जाती है। फिनायल डालने का यही मतलब है ना? हाँ साहब! यही मतलब है और बेटे! यह जो सेंट लगाते रहते हैं, यह किसलिए लगाते हैं? इसलिए कि इस शरीर से चौबीस घंटे जो बदबू निकलती रहती है, उस बदबू का किसी को पता न चले और यह बदबू खुशबू में चली जाए। अच्छा तो आप चालाकी कर रहे थे? बिलकुल, हमारा और कोई मतलब ही नहीं था, नहीं तो हम सेंट क्यों लगाते? हम सुपरलक्स क्यों लगाते? हम तो इसीलिए लगाते थे कि चौबीसों घंटे यह जो बदबू निकलती रहती है, इसे किसी तरह से दबाएँ तो सही, और लोगों को पता न चले, मालूम न पड़े। साँस में से बदबू आती है, इसलिए पान खाते हैं। इलायची चबाते रहते हैं और बहुत सी चीजें चबाते रहते हैं, क्योंकि हमारे मुँह में से बदबू निकलती रहती है, जिसकी किसी तरीके से रोक-थाम हो जाए। अच्छा, अब मैं समझ गया। चौबीसों घंटे बदबू उगलने वाला इनसान सारी की सारी हवा में कितनी गंदगी फैलाता होगा। अगर कभी आप बैठें और गणित के हिसाब से देखें कि हर क्षण इन सारे के सारे सूराखों से, जिसमें पसीने के सूराख भी शामिल हैं, कितनी सारी बदबू निकलती है और आदमी अपनी संपूर्ण जिंदगी में कितनी सारी बदबू निकाल देता है।