• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • हमारा निर्णय और परिजनों का असमंजस
    • सूक्ष्मीकरण साधना के तथ्य एवं औचित्य
    • प्रचण्ड सूक्ष्म शक्ति का जागरण
    • टालना ही होगा तीसरा विश्वयुद्ध
    • मूर्धन्यों को झकझोरने वाला भगीरथ पुरुषार्थ
    • दार्शनिकों-वैज्ञानिकों की दिशा बदलनी ही होगी
    • ऋषि-मनीषी के रूप में हमारी परोक्ष भूमिका
    • युग परिवर्त्तन-नियन्ता का सुनिश्चित आश्वासन
    • सत्पात्रों को हमारे वर्चस का बल मिलेगा
    • जाग्रत् आत्माओं से भाव भरा आग्रह
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • हमारा निर्णय और परिजनों का असमंजस
    • सूक्ष्मीकरण साधना के तथ्य एवं औचित्य
    • प्रचण्ड सूक्ष्म शक्ति का जागरण
    • टालना ही होगा तीसरा विश्वयुद्ध
    • मूर्धन्यों को झकझोरने वाला भगीरथ पुरुषार्थ
    • दार्शनिकों-वैज्ञानिकों की दिशा बदलनी ही होगी
    • ऋषि-मनीषी के रूप में हमारी परोक्ष भूमिका
    • युग परिवर्त्तन-नियन्ता का सुनिश्चित आश्वासन
    • सत्पात्रों को हमारे वर्चस का बल मिलेगा
    • जाग्रत् आत्माओं से भाव भरा आग्रह
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - युगऋषि की सूक्ष्मीकरण साधना

Media: TEXT
Language: EN
TEXT


हमारा निर्णय और परिजनों का असमंजस

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


2 Last
[महापुरुष शरीर में रहते हुए भी आत्म भाव में प्रतिष्ठित रहते हैं। स्वयं को आत्मा रूप में कर्त्ता तथा शरीर को उपकरण भर मानते हैं। संत तुलसीदास जी ने भी मनुष्य शरीर को ‘साधन धाम मोक्ष कर द्वार’ कहा है। आत्मा अपना कर्म कौशल इसी के माध्यम से प्रकट कर पाती है। अस्तु, मोह ग्रस्तों के लिए यह शरीर जीवात्मा के पतन का कारण बन जाता है, तो योग युक्तों के लिए वही अत्यंत उपयोगी साधन उपकरण बन जाता है। युगऋषि यहाँ इसी योग दृष्टि के अनुसार आत्मा एवं शरीर के शाश्वत सम्बन्धों पर प्रकाश डाल रहे हैं।]
        शरीर और आत्मा का चोली दामन जैसा साथ है। आत्मा को इसमें रहने का स्वेच्छा से आकर्षण होता है। इसलिए गर्भनिवास, मृत्यु कष्ट जैसी अनेकों यातनाएँ सहते और आये दिन संघर्ष करने का कष्ट सहते हुए भी वह उसी में बार- बार निवास करने के लिए मचलती है। कहने को जन्म- मरण की व्यथा पर क्षोभ प्रकट करते हुए भी विज्ञजन इसी को धारण करने के लिए लौट पड़ते हैं। कितने ही जीवन मुक्त इसके लिए बाधित किये जाते हैं। भगवान् के पार्षद सदा रिजर्व फोर्स के रूप में उनके समीप ही नहीं बैठे रहते, वरन् समय की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए समय- समय पर मार्गदर्शकों की भूमिका निभाने के लिए लौटते हैं। आत्मा अमर है, अदृश्य है, तो भी उसका परिचय इस शरीर से ही मिलता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण वह आत्मा को परम प्रिय है। उसे सजाने, सुविधाओं के अम्बार लगाने में वह चूकता भी नहीं। यहाँ तक कि कुकर्मी होकर भावी दुष्परिणामों को जानते हुए भी उसे सन्तोष देने, प्रसन्न करने के लिए वैसा ही कुछ करता है, जैसा कि स्नेह दुलार भरे अभिभावक अपने इकलौते बेटे की मनमर्जी- हठधर्मी पूरी करने के लिए करते रहते हैं। संक्षेप में यही है शरीर और आत्मा का मध्यवर्ती सम्पर्क सूत्र और सघन सहयोग का सार संक्षेप।

[सैद्धान्तिक रूप में आत्मा और काया के सम्बन्धों का सार संक्षेप प्रस्तुत करने के बाद ऋषि स्वयं को आत्मा के रूप में अनुभव करते हुए अपने तथा अपने शरीर के तालमेल पर प्रकाश डालते हैं तथा इस अनन्य सहयोगी के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करते हैं।]
        अपने को भी यह शरीर लेकर जन्मना पड़ा और जो कुछ भी भला- बुरा बन पड़ा है, सो इसी के माध्यम से सम्पन्न किया है। इसे निरोग और दीर्घजीवी रखने के लिए ईमानदारी और सतर्कता के साथ प्रयत्न किया है। सदा इसे स्रष्टा की अमानत माना और उसमें सन्निहित क्षमताओं को उभारते हुए श्रेष्ठतम सदुपयोग का ध्यान रखा है। आत्मोत्कर्ष और लोकमंगल के निमित्त जो प्रयास बन पड़े हैं, उनके पीछे प्रेरणा तो चेतना में से ही उभरी है, पर श्रम तो शरीर को ही करना पड़ा है।

        इसलिए इस अनन्य सेवक और परम सहयोगी शरीर के प्रति हमारा घनिष्ठ मैत्री भाव है। इसके प्रति असीम स्नेह और सम्मान भी। इसे सार्थक और श्रेयाधिकारी बनाने के लिए कुछ उठा नहीं रखा है। जीवन को निरर्थक मानने, उसे भारभूत समझने की भूल कभी भी नहीं की। मल- मूत्र की गठरी इसे कोई भी क्यों न कहता रहे, झंझटों से निपटने के लिए मरने की प्रतीक्षा अन्य कोई भले ही करता रहे, पर अपने मन में ऐसे विचार कभी भी नहीं उठे। न मरने की जल्दी पड़ी और न इसे भार- भूत समझकर ऐसे ही खीजते- खिजाते दिन गुजारे। समय के एक- एक क्षण का सदुपयोग करने की बात हर समय ध्यान में रही। सोचा जाता रहा कि स्रष्टा की सर्वोत्तम कलाकृति का अनुदान मिला है, तो इसी जीवन का श्रेष्ठतम सदुपयोग क्यों न कर लिया जाय। गिनी हुई साँसें मिली हैं। इनका सदुपयोग करने में ही बुद्धिमानी है। जब बुद्धि मिल ही गई, तो जीवन की हर इकाई का, हर साँस का श्रेष्ठतम प्रयोग करने में क्यों चूका जाय? यही चिंतन सिर पर सदा छाया रहा, फलतः समय कदाचित् ही कभी निरर्थक गया हो। शरीर को नित्यकर्म और आवश्यक क्षणिक विश्राम के उपरान्त कदाचित् ही कभी खाली रहने दिया गया हो। इसका सन्तोष है।
        यों जन्म कितने ही लिये हैं एवं अभी कितने ही और लेने पड़ेंगे, पर जहाँ तक स्मरण आता है, इतने लम्बे समय तक- इतनी समझदारी के साथ अन्य शरीरों का इतना महत्त्वपूर्ण सदुपयोग नहीं बन पड़ा। ऐसी दशा में कृतज्ञता का तकाजा है कि मात्र रूखी रोटी खाकर उतना कठिन सेवा धर्म निबाहने वाले का भरा- पूरा अहसान माना जाय और उसे सदा- सर्वदा साथ रखने और काम देने- काम लेने के बहाने मैत्री धर्म का लम्बे समय तक निर्वाह किया जाय।

        इस स्थिर विचारधारा के रहते हुए हमें इन दिनों कुछ ऐसे कदम उठाने पड़ रहे हैं, जो उपर्युक्त प्रतिपादन से लगभग ठीक उलटे पड़ते हैं। नये निर्धारणों के अनुसार अब इस शरीर का लोकोपयोगी प्रयोग घटते- घटते समाप्त हो जायेगा और वह नित्य कर्म जैसे कुछ सीमित कार्यों में ही प्रयुक्त होता दीख पड़ेगा। लोकोपयोगी सेवा कार्यों में निरंतर संलग्न रहने का अभ्यस्त शरीर भविष्य में निष्क्रिय जैसी स्थिति में समय गुजारे, इसमें औरों को आश्चर्य और अपनों को असमंजस हो सकता है। इसमें समाज को उपयोगी सेवा कार्यों से वंचित होना पड़ेगा और जन कल्याण की दृष्टि से अभी बहुत कुछ करने की जो स्थिति थी, उसमें कमी पड़ सकती है। कम से कम प्रत्यक्षतः तो स्पष्ट ही ऐसा दीखता है।

        अब तक जो बन पड़ा है शरीर से ही बना है। अस्तु, सहज ही यह आशा की जा सकती है कि भविष्य में भी जब तक यह काम देगा, पिछले दिनों जैसे ही महत्त्वपूर्ण काम करेगा। परिपक्वता बढ़ जाने के कारण यों आशा तो और अधिक की जा सकती है। इतने उपयोगी शरीर तंत्र को इतने आड़े समय में इस प्रकार स्वेच्छापूर्वक जाम कर दिया जाय, यह सामान्य रीति से समझ में आने वाली बात नहीं है।

        ईश्वरेच्छा से तो कुछ भी हो सकता है। मरण सभी का निश्चित है। कभी कोई पक्षाघात आदि से भी असमर्थ हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में सन्तोष कर लिया जाता और विधि का विधान समझकर किसी प्रकार मन समझा लिया जाता है। संसार चक्र ऐसा ही है, जिसमें कभी किसी के बिना काम नहीं रुका। अवतार, ऋषि, देव, मानव इस धरती पर आये और बड़े महत्त्वपूर्ण कार्य करते रहे, पर जब चले गये, तो कुछ समय तक ही उनका अभाव खटका। बाद में ढर्रा अपने ढंग से चलने लगा। किसी के रहने, न रहने से इतनी बड़ी दुनिया का गतिचक्र रुकता नहीं है; पर यह होता है विवशतापूर्वक। जाने वाले बुलाये गये हैं। अपने आप मैदान छोड़ने वालों को पलायनवादी कहा और धिक्कारा जाता है। मिलिटरी में तो ऐसे समर्थ सेवारतों के भाग खड़े होने पर कोर्ट- मार्शल तक होता है। यह बातें अपने ध्यान में न रही हों, सो बात नहीं। फिर क्या कारण हुआ कि गतिविधियाँ जाम करने का निश्चय बन पड़ा? इस नये निश्चय में कई पक्षों की कई प्रकार की हानियाँ दृष्टिगोचर हो सकती हैं।
2 Last


Other Version of this book



युगऋषि की सूक्ष्मीकरण साधना
Type: TEXT
Language: EN
...


Releted Books


Articles of Books

  • हमारा निर्णय और परिजनों का असमंजस
  • सूक्ष्मीकरण साधना के तथ्य एवं औचित्य
  • प्रचण्ड सूक्ष्म शक्ति का जागरण
  • टालना ही होगा तीसरा विश्वयुद्ध
  • मूर्धन्यों को झकझोरने वाला भगीरथ पुरुषार्थ
  • दार्शनिकों-वैज्ञानिकों की दिशा बदलनी ही होगी
  • ऋषि-मनीषी के रूप में हमारी परोक्ष भूमिका
  • युग परिवर्त्तन-नियन्ता का सुनिश्चित आश्वासन
  • सत्पात्रों को हमारे वर्चस का बल मिलेगा
  • जाग्रत् आत्माओं से भाव भरा आग्रह
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj