
कलंक-कालिमा धुल सके
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समस्या भावनात्मक है। मनुष्य ने दुर्गति अपनाई और दुर्गति न्यौत बुलाई है। इसके लिए परिमार्जन प्रयत्न ऐसे चाहिए कि जो प्रत्यक्ष रूप से लोकमानस का परिष्कार कर सकने वाले सत्प्रवृत्ति संवर्धन प्रयासों को अग्रगामी बना सकें। साथ ही अदृश्य जगत् से देवत्व की शक्तियों की अनुकम्पाएँ भी अर्जित कर सकें। द्रौपदी की पुकार पर भगवान् दौड़े आये थे। प्रह्लाद का रुदन भगवान् तक पहुँचा था। सशक्त आत्माओं का दबाव भगवान् को भी बाधित कर सकता है। शबरी को दर्शन देने और यश बढ़ाने के लिए स्वयं ही भगवान् पहुँचे थे। उदाहरणों में भक्त की पात्रता ही सब कुछ थी। उसी में दैवी अनुकम्पा उत्पन्न करने की क्षमता होती है।
प्रस्तुत एकान्तवास के नाम से समझा गया कदम वस्तुतः ऐसी विशिष्ट तपश्चर्या का एक स्वरूप है, जो ऋद्धि- सिद्धियों की प्राप्ति के लिए उलटे प्रवाह को उलटकर सीधा करने के लिए उठाया गया है।
प्रस्तुत एकान्तवास के नाम से समझा गया कदम वस्तुतः ऐसी विशिष्ट तपश्चर्या का एक स्वरूप है, जो ऋद्धि- सिद्धियों की प्राप्ति के लिए उलटे प्रवाह को उलटकर सीधा करने के लिए उठाया गया है।