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दुबई में आध्यात्मिक ऊर्जा का महोत्सव – दीपयज्ञ एवं ज्योति कलश पूजन
गायत्री परिवार द्वारा आयोजित दीपयज्ञ कार्यक्रम में देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी एवं गायत्री विद्यापीठ की चेयरपर्सन आदरणीय शेफाली पंड्या जी की गरिमामयी उपस्थिति में श्रद्धालुजन एकत्र हुए। एवं इस कार्यक्रम में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हुआ और समाज के उत्थान का नवसंकल्प लिया गया।
आदरणीया शेफाली पंड्या जी ने अपने प्रेरणादायक उद्बोधन में परम वंदनीया माताजी के त्यागमय जीवन की झलक प्रस्तुत की और युग निर्माण मिशन की महत्ता को मार्मिक प्रसंगों के माध्यम से समझाया। उन्होंने कहा – “गुरुदेव-माताजी ने प्रेम की डोर से सबको एक सूत्र में बांधा है।”
आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी ने भी गायत्री परिवार के सदस्यों, युवाओं तथा विशिष्ट अतिथियों से आत्मीय संवाद करते हुए 2026 में आने वाले अखंड दीपक के 100 वर्ष और परम वंदनीया माताजी की जन्मशताब्दी के महत्त्व को रेखांकित किया। साथ ही कलश यात्रा का विस्तार से वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि आगामी 3 माह तक प्रत्येक 15 दिन में दीपयज्ञ द्वारा यह यात्रा UAE के ओमान, दुबई, शारजाह, आबू धाबी, अजमान आदि क्षेत्रों में आगे बढ़ेगी। एवं यूएई के घर घर में यह कलशयात्रा पहुंचेगी।
कार्यक्रम में भारतीय संस्कृति पर आधारित मनोहारी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने सभी के हृदयों को भावविभोर कर दिया। साथ ही UAE में एक GCC ज़ोन बनाने का प्रस्ताव भी सामने आया, जिस पर विस्तार से चर्चा हुई। कार्यक्रम के अंत में प्रश्नोत्तर सत्र में डॉ. पंड्या जी ने उपस्थितजनों की जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए कहा: “हर व्यक्ति को आत्मविकास और समाज सेवा से जुड़ना ही सच्चे आध्यात्म का मार्ग है।”
यह आयोजन केवल एक यज्ञ नहीं, समाज में नवचेतना का दीप प्रज्वलन था।











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गुरुदेव का प्रथम बुलावा— पग-पग पर परीक्षा:—
पूरा एक वर्ष होने भी न पाया था कि बेतार का तार हमारे अंतराल में हिमालय का निमंत्रण ले आया। चल पड़ने का बुलावा आ गया। उत्सुकता तो रहती थी, पर जल्दी नहीं थी। जो नहीं देखा है, उसे देखने की उत्कंठा एवं जो अनुभव हस्तगत नहीं हुआ है, उसे उपलब्ध करने की आकांक्षा ही थी। साथ ही ऐसे मौसम में, जिसमें दूसरे लोग उधर जाते नहीं, ठंड, आहार, सुनसान, हिंस्र जंतुओं का सामना पड़ने जैसे कई भय भी मन में उपज उठते, पर अंततः विजय प्रगति की हुई। साहस जीता। संचित कुसंस्कारों में से एक अनजाना डर भी था। यह भी था कि सुरक्षित रहा जाए और सुविधापूर्वक जिया जाए, जबकि घर की परिस्थितियाँ ऐसी ही थीं। दोनों के बीच कौरव-पांडवों की लड़ाई जैसा महाभारत चला, पर यह सब 24 घंटे से अधिक न टिका। ठीक दूसरे दिन हम यात्रा के लिए चल दिए। परिवार को प्रयोजन की सूचना दे दी। विपरीत सलाह देने वाले भी चुप रहे। वे जानते थे कि इसके निश्चय बदलते नहीं।
कड़ी परीक्षा देना और बढ़िया वाला पुरस्कार पाना, यही सिलसिला हमारे जीवन में चलता रहा है। पुरस्कार के साथ अगला बड़ा कदम उठाने का प्रोत्साहन भी। हमारे मत्स्यावतार का यही क्रम चलता आया है।
प्रथम बार हिमालय जाना हुआ, तो वह प्रथम सत्संग था। हिमालय दूर से तो पहले भी देखा था, पर वहाँ रहने पर किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, इसकी पूर्व जानकारी कुछ भी नहीं थी। वह अनुभव प्रथम बार ही हुआ। संदेश आने पर चलने की तैयारी की। मात्र देवप्रयाग से उत्तरकाशी तक उन दिनों सड़क और मोटर की व्यवस्था थी। इसके बाद तो पूरा रास्ता पैदल का ही था । ऋषिकेश से देवप्रयाग भी पैदल यात्रा करनी होती थी। सामान कितना लेकर चलना चाहिए, जो कंधे और पीठ पर लादा जा सके, इसका अनुभव न था। सो कुछ ज्यादा ही ले लिया। लादकर चलना पड़ा, तो प्रतीत हुआ कि यह भारी है। उतना हमारे जैसा पैदल यात्री लेकर न चल सकेगा। सो सामर्थ्य से बाहर की वस्तुएँ रास्ते में अन्य यात्रियों को बाँटते हुए केवल उतना रहने दिया, जो अपने से चल सकता था एवं उपयोगी भी था।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य

गायत्री परिवार के आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी ने अपने दुबई प्रवास के दूसरे दिन बिजनेस बे क्षेत्र में निवासरत जयपुर निवासी श्री निखिल एवं श्रीमती प्रियंका अग्रवाल के निवास पर सौजन्य भेंट की। इस आत्मीय मुलाक़ात के दौरान श्रद्धा एवं संस्कृति से परिपूर्ण वातावरण में एक नवजात शिशु के नामकरण संस्कार का आयोजन भी सम्पन्न हुआ, जिसमें शिशु का नाम “यतेंद्र” रखा गया।
इस अवसर पर कई विशिष्टजन उपस्थित रहे, जिनमें कस्टर जे टावर से श्री रोहन रावल, मीडोज़ से श्री सुधीर जी, श्रीमती अल्पना, तथा रोन्ली लिमिटेड के मटेरियल हेड श्री राजेश पटेल प्रमुख हैं।
साथ ही, श्री रोहन अग्रवाल (कॉर्डिनेटर एवं मैनेजिंग पार्टनर, कैनरी आयलैंड प्रॉपर्टीज़) एवं नेहा जेटवानी के निवास पर आयोजित प्राणिक हीलिंग ग्रुप को भी डॉ. पंड्या जी ने संबोधित किया।
मिशन के समर्पित कार्यकर्ता ए.पी. श्रीवास्तव जी के निवास पर भी अनेक परिवारों से आत्मीय संवाद एवं परिचय हुआ।
इस अवसर पर डॉ. पंड्या जी ने उपस्थित सभी श्रद्धालुओं को गायत्री परिवार के शताब्दी वर्ष 2026 के पावन संकल्पों में सहभागी बनने का आह्वान किया। उन्होंने बताया कि पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के विचारों को जन-जन तक पहुँचाना ही युग निर्माण का सच्चा प्रयास है।





आज आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी की प्रेरणादायी उपस्थिति में दुबई के इंडिया क्लब में एक विशेष संगोष्ठी का आयोजन हुआ।
उन्होंने ”जीवन – आशीर्वाद या अभिशाप?” विषय पर एक सार्थक एवं प्रभावशाली प्रस्तुति दी, जिसने सभी श्रोताओं को गहराई से सोचने पर विवश कर दिया।
इस अवसर पर इस दौरान प्रबुद्ध इंडियन पीपल फार्म (IPF) राजस्थान काउंसिल (PF), IPF युवा, IPF काउंसिल एंड चेप्टर, फ्रेंड ऑफ इंडिया (FOI), राजस्थान बिजनेस एंड प्रोफेशनल ग्रुप (RBRG), एक्टिविटी अकाउंट्स ऑफ़ इंडिया इंटरनेशनल ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन, विश्वकर्मा बिजनेस एंड प्रोफेशनल ग्रुप (RBPG), धी इंस्टिट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड अकाउंट ऑफ़ इंडिया (ICAI), जैन इंटरनेशनल ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (JITO), विश्वकर्मा बिजनेस एंड प्रोफेशनल ग्रुप (VBPG), एवम टैक्सेशन सोसायटी सोशल एवं कल्चरल, और पत्रकारिता जैसे क्षेत्रों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।और अन्य व्यावसायिक, सांस्कृतिक व मीडिया क्षेत्र से जुड़े गणमान्य प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
डॉ. पंड्या जी ने गायत्री परिवार की वैश्विक गतिविधियाँ और शताब्दी वर्ष 2026 के दिव्य संदेश को साझा किया, जिससे सभी अतिथि विशेष रूप से प्रेरित हुए।
इस आयोजन ने दुबई में बसे भारतीय समुदाय को नई चेतना, सकारात्मक सोच और आत्मविकास की दिशा में एक नई ऊर्जा प्रदान की।











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रेडियो मिर्ची और अन्य प्रमुख अरबी रेडियो चैनलों के लाइव साक्षात्कार में डॉ. चिन्मय पंड्या जी ने युग निर्माण मिशन, देव संस्कृति विश्वविद्यालय की वैश्विक भूमिका, और संस्कार आधारित शिक्षा पर अपने सारगर्भित विचार साझा किए।
इस संवाद के माध्यम से उन्होंने बताया कि कैसे सकारात्मक विचारों और मूल्यों को मीडिया के विभिन्न माध्यमों से जन-जन तक पहुंचाया जा सकता है। यह साक्षात्कार निश्चित रूप से अखिल विश्व गायत्री परिवार की विचारधारा और कार्यों को वैश्विक स्तर पर पहुँचाने की दिशा में एक प्रभावशाली कदम है।
कार्यक्रम के उपरांत, डॉ. साहब ने रेडियो मिर्ची के म्यूजिक मैनेजर श्री संचारी मुखर्जी एवं अरबी चैनल के जनरल मैनेजर व डायरेक्टर श्री शेखर जी को परम पूज्य गुरुदेव का साहित्य भेंट स्वरूप प्रदान किया।
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आज रेडियो मिर्ची और अन्य प्रमुख अरबी रेडियो चैनलों के लाइव साक्षात्कार में डॉ. चिन्मय पंड्या जी ने युग निर्माण मिशन, देव संस्कृति विश्वविद्यालय की वैश्विक भूमिका, और संस्कार आधारित शिक्षा पर अपने सारगर्भित विचार साझा किए।
इस संवाद के माध्यम से उन्होंने बताया कि कैसे सकारात्मक विचारों और मूल्यों को मीडिया के विभिन्न माध्यमों से जन-जन तक पहुंचाया जा सकता है। यह साक्षात्कार निश्चित रूप से अखिल विश्व गायत्री परिवार की विचारधारा और कार्यों को वैश्विक स्तर पर पहुँचाने की दिशा में एक प्रभावशाली कदम है।
कार्यक्रम के उपरांत, डॉ. साहब ने रेडियो मिर्ची के म्यूजिक मैनेजर श्री संचारी मुखर्जी एवं अरबी चैनल के जनरल मैनेजर व डायरेक्टर श्री शेखर जी को परम पूज्य गुरुदेव का साहित्य भेंट स्वरूप प्रदान किया।
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भाइयों, 60 वर्ष के करीब होने को आते हैं, गायत्री परिवार के साथ हमारे संबंध हुए, आप अपनी बात कहते रहे, हम अपनी बात कहते रहे, कैसे मजे-मजे में 60 वर्ष बीत गए। हमारे और आपकी एक नई बात हुई, नई बात हुई यह कि हमारा और आपका एक तरीके से संबंध विच्छेद हो गया। संबंध विच्छेद कैसे नहीं, संबंध विच्छेद नहीं हुआ है, ऐसा हो गया कि आपका और हमारा मिलना-जुलना संभव नहीं है। बातचीत भी आप हमसे नहीं कर सकेंगे और हम आपसे भी नहीं कर सकेंगे। मिलना-जुलना भी संभव नहीं है, ना आप हमारी शक्ल देखेंगे, ना आपकी शक्ल हम देख पाएंगे।
अब हमारे सामने मजबूरी आ गई है, इस मजबूरी की वजह से हमको यह करना पड़ा है। जैसे कि हमने आपको निवेदन किया, अब हमारी और आपकी बातचीत का सिलसिला खत्म, मिलने-जुलने का सिलसिला खत्म। प्यार-मोहब्बत का सिलसिला नहीं, प्यार-मोहब्बत का सिलसिला खत्म नहीं हो सकता, केवल मिलने-जुलने का सिलसिला खत्म हो जाएगा।
अब यह मिलने-जुलने के सिलसिले में आपको यह ख्याल आया हो, शायद कि बात क्या हुई, क्या कारण हुआ। कई आदमी होते हैं जो काम करने से अपना जी चुराते हैं, मिलने-जुलने से भी जी चुराते हैं, पलायनवादी उनको कहते हैं, भगोड़े उनको कहते हैं, आलसी उनको कहते हैं। हम वैसे नहीं हैं, हम पलायनवादी नहीं हैं।

उचित यही है कि अशिष्टता के खरपतवारों को निरन्तर उखाड़ते रहा जाय ताकि गृह उद्यान के बहुमूल्य वृक्षों के पनपने में भारी व्यवधान उत्पन्न करने वाली आदतों का प्रश्रय मिलने ही न पावे। परिवार के वरिष्ठ लोगों को शिष्टाचार पालन में स्वयं को आगे रहना ही चाहिए साथ ही अन्य सदस्यों की समय-समय पर उनकी छोटी-मोटी भूलों को समझाते रहना चाहिए और उन्हें छोड़ने का अनुरोध करना चाहिए यह कार्य स्नेह, सौजन्य एवं सद्गुण का गहरा पुण्य लगाकर ही ठीक तरह सम्पन्न किया जा सकता है। झिड़की, डाँट-डपट मार-पीट गाली-गलौज निन्दा, उपहास -व्यंग जैसे उपायों से गलती सुधरती नहीं वरन् और भी अधिक बढ़ती है। उल्टी प्रतिक्रिया होती है।
और गलती करने वाला इसी बात पर अड़ जाता है। घर या बाहर कि किसी भी व्यक्ति, कभी भी गलती बताने और सुधारने की बात करनी हो तो फूँक-फूँक कर कदम धरना चाहिए कि कहीं सामने वाले के अहम् को चोट न लगे, वह अपना अपमान अनुभव करते हुए अपने स्नेह सद्भाव का स्मरण दिलाना चाहिए और उसे लाँछन लगाने निकालने की दृष्टि से नहीं वरन् अधिक सुसंस्कृत बनाने वाली सत्प्रवृत्तियों को अपनाने पर अधिक उज्ज्वल भविष्य बनाने की सम्भावना का प्रसंग प्रस्तुत करना चाहिए। उसी बात को दोष दर्शन के रूप में कह कर भर्त्सना की जा सकती है और उसी पथ्य को गुण अभिवर्धन के साथ जुड़े हुये प्रस्तुत किया जा सकता है। इनमें से पहला तरीका गलत और दूसरा सही है। यदि दूसरा तरीका अपनाया जाय तो परिवार के छोटे-बड़े सभी सदस्य उस सुधार चर्चा को ध्यान पूर्वक सुनेंगे और अपनी कठिनाई सफाई बताते हुये बहुत हद तक सुधार के लिये तैयार हो जायेंगे।
परिवार के प्रत्येक वयस्क एवं समझदार व्यक्ति को अपने स्वभाव में शिष्टाचार के नियमों का कूट-कूटकर समावेश करना चाहिए। यह सर्वोत्तम तरीका है, जिसके आधार पर घर के प्रत्येक सदस्य को सभ्य एवं सुसंस्कृत बनाया जा सकता है। धर के बड़े लोग यदि इस कसौटी पर खरे उतरे तो फिर अन्य सब लोगों को वैसे ही अनुकरण की प्रेरणा मिलती रहेगी। यदि ऐसा वातावरण हो तो भी प्रत्येक वयस्क, अवयस्क, नर-नारी को यह प्रयत्न करना चाहिए कि उसके स्वभाव में सभ्यता के सभी पक्षों का समावेश होता चले। वस्तुतः यही सबसे बड़ी सम्पत्ति है जिसके आधार पर मनुष्य ऊँचे उठते और आगे बढ़ते है।
साथियों का सहयोग, सविचार लिये बिना कोई व्यक्ति एकाकी कदाचित ही कुछ कहने लायक प्रगति कर सकता है। दूसरों की सहायता बिना हँसी-खुशी भी स्थिर नहीं रह सकती। कष्टों और कठिनाइयों में दूसरों का सहारा चाहिये ही। यह सब जुटा सकना उस ही के लिये ठीक है जो अपने मधुर स्वर से दूसरों को प्रभावित एवं आकर्षित कर सकता है। ऐसा सजीव चुम्बकीय शिष्टाचार में ही समर्पित रहता है।
घर में गरीबी हो या अमीरी इसका चलता है, चले भी तो उससे किसी को क्या लेना देना हो सकता है। पर यदि सभ्यता की पूँजी पास में है तो उस सुसंस्कृत परिवार के सदस्य प्रत्येक आगन्तुक पर सम्पर्क में आने वाले पर गहरी छाप छोड़ेंगे और उसकी भी यही आकांक्षा जगायेंगे कि हे भगवान्! और न सही तो हमारे परिवार को भी इतना सभ्य बना दें जैसा कि अमुक व्यक्ति को देखकर आयें है। शालीन परिवारों के साथ लेन-देन चलन-व्यवहार ब्याह-शादी करने में हर किसी को प्रसन्नता होती है हर कोई उन्हें सम्मान देता हैं और सहयोग भी। अध्यात्म का पहला पाठ है सभ्यता का अपने आप से, अपने घर से शुभारम्भ, सभ्य, सुसंस्कृत बनायें, फिर औरों को उपदेश दें।
समाप्त
अखण्ड ज्योति 1995 अगस्त पृष्ठ 30
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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गुरुदेव का प्रथम बुलावा— पग-पग पर परीक्षा:—
गुरुदेव द्वारा हिमालय बुलावे की बात मत्स्यावतार जैसी बढ़ती चली गई। पुराण की कथा है कि ब्रह्मा जी के कमंडलु में कहीं से एक मछली का बच्चा आ गया। हथेली में आचमन के लिए कमंडलु लिया, तो वह देखते-देखते हथेली भर लंबी हो गई। ब्रह्मा जी ने उसे घड़े में डाल दिया। क्षण भर में वह उससे भी दूनी हो गई, तो ब्रह्माजी ने उसे पास के तालाब में डाल दिया। उसमें भी वह समाई नहीं, तब उसे समुद्र तक पहुँचाया गया। देखते-देखते उसने पूरे समुद्र को आच्छादित कर लिया, तब ब्रह्मा जी को बोध हुआ। उस छोटी-सी मछली में अवतार होने की बात जानी; स्तुति की और आदेश माँगा। बात पूरी होने पर मत्स्यावतार अंतर्ध्यान हो गए और जिस कार्य के लिए वे प्रकट हुए थे, वह कार्य सुचारु रूप से संपन्न हो गया।
हमारे साथ भी घटनाक्रम ठीक इसी प्रकार चले हैं। आध्यात्मिक जीवन वहाँ से आरंभ हुआ था, जहाँ कि गुरुदेव ने परोक्ष रूप से महामना जी से गुरुदीक्षा दिलवाई थी; यज्ञोपवीत पहनाया था और गायत्री मंत्र की नियमित उपासना करने का विधि-विधान बताया था। छोटी उम्र थी, पर उसे पत्थर की लकीर की तरह माना और विधिवत् निबाहा। कोई दिन ऐसा नहीं बीता, जिसमें नागा हुई हो। साधना नहीं, तो भोजन नहीं। इस सिद्धांत को अपनाया। वह आज तक ठीक चला है और विश्वास है कि जीवन के अंतिम दिन तक यह निश्चित रूप से निभेगा।
इसके बाद गुरुदेव का प्रकाश रूप से साक्षात्कार हुआ। उनने आत्मा को ब्राह्मण बनाने के निमित्त 24 वर्ष की गायत्री पुरश्चरण-साधना बताई। वह भी ठीक समय पर पूरी हुई। इस बीच में बैटरी चार्ज कराने के लिए— परीक्षा देने के लिए बार-बार हिमालय आने का आदेश मिला; साथ ही हर यात्रा में एक-एक वर्ष या उससे कम दुर्गम हिमालय में ही रहने के निर्देश भी। वह क्रम भी ठीक प्रकार चला और परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर नया उत्तरदायित्व भी कंधे पर लदा। इतना ही नहीं, उसका निर्वाह करने के लिए अनुदान भी मिला, ताकि दुबला बच्चा लड़खड़ा न जाए। जहाँ गड़बड़ाने की स्थिति आई, वहीं मार्गदर्शक ने गोदी में उठा लिया।

अनादि काल की, प्राचीन काल की भारतीय परंपरा और भारतीय संस्कृति का नवीनतम संस्करण — हम अपने ढंग से, अपने युग की आवश्यकता अनुसार, अपने ज़माने के व्यक्ति की अक्ल को देखते हुए, अपने समय की परिस्थितियों को देखते हुए, अपने समय के उदाहरणों को प्रस्तुत करते हुए — जिस तरह से प्रत्येक स्मृति का हमने अपने-अपने समय पर कहा है, 24 स्मृतियों की हमने व्याख्या की है।
आप पढ़ लीजिए, पढ़ लीजिए — संविधान हमारे देश में 24 बार, 24 बार बने हैं।
पहली बार संविधान मनु का है।
मनु ने पहला, सबसे पहला दुनिया का मनुष्य जाति के लिए संविधान बनाया — मनुस्मृति के रूप में।
बदलते चले गए, बदलते चले गए, बदलते चले गए।
अंतिम जो है, इस समय का संविधान जो आजकल लागू होता है — यह याज्ञवल्क्य स्मृति है।
याज्ञवल्क्य स्मृति का टीका — यह हमारे वकीलों को पढ़ाया जाता है।
कानून में पढ़ाया जाता है — दाय भाग और उत्तराधिकार भाग।
हिंदू का सारा का सारा कानून उस पर टिका हुआ है।
काहे पर?
याज्ञवल्क्य स्मृति के ऊपर।
यह स्मृति आज की है।
हाँ, पुराने ज़माने की स्मृति — वह स्मृति, बेटे, पुरानी हो गई।
वह तो हो गई आउट ऑफ डेट।
तो उसको अपमान करेंगे?
मारेंगे बेटे?
मारेंगे कैसे?
यह हमारे पिता का चित्र है।
यह हमारे बाबा का चित्र है।
यह हमारे परबाबा का चित्र है — जिसको हम अपमानित नहीं होने दे सकते।
उन्होंने अपने ज़माने में कोई बात कही होगी।
पर पत्थर की लकीर उन्होंने नहीं कही।
यह नहीं कहा कि यही विधान हमेशा चलेगा।
बदल दिया हमने विधान।
और अब हम याज्ञवल्क्य स्मृति का विधान चलाते हैं।
मित्रों, आज के युग के अनुरूप, आज के व्यक्ति के अनुरूप, आज की समस्याओं के अनुरूप, आज की आवश्यकता के अनुरूप —
हम उन प्राचीनतम, प्राचीनतम दो धाराओं का, जिनको हम गंगा-यमुना कह सकते हैं —
ब्रह्म और क्षत्र, ब्रह्मविद्या और ब्रह्मतेज — इन दोनों के समन्वयात्मक प्रभाव और शैली के हिसाब से,
हम यह शिक्षण की नई धारा प्रवाहित करते हैं।
नया संगम शुरू करते हैं,
नया समन्वय शुरू करते हैं — ब्रह्मवर्चस के रूप में,
जिसको कि आप अगले दिनों और भी विकसित रूप में देखेंगे।