मन—बुद्धि—चित्त अहंकार का परिष्कार (भाग १)
संसार की हर वस्तु नाशवान है—मनुष्य का शरीर भी। किन्तु इन नाश होने वाली वस्तुओं में मनुष्य-जीवन सबसे अधिक मूल्यवान् वस्तु है। संसार की हर वस्तु का अपना-अपना कुछ उपयोग है। उपयोगिता के आधार पर नगण्य वस्तु का भी मूल्य बढ़ जाता है। जो पेड़ जंगल में सूख जाता है। वह वर्षा के पानी में भीग-भीगकर एक दिन गलकर नष्ट हो जाता है। उसका कुछ भी मूल्याँकन नहीं हो पाता। किन्तु जब वही सूखा वृक्ष इधन बनकर उपयोगी हो जाता है तब उसका मूल्य बढ़ जाता है। लोग उसे जंगल से काटकर बाजार में बेचते हैं। जरूरत मन्द खरीद ले जाते और घरों में ठीक से रखते हैं। यदि उसी वृक्ष को और अधिक उपयोगिता का अवसर मिल जाता है तो उसका मूल्य,महत्व और भी बढ़ जाता है। अलमारी शहतीर, कपाट, मेज, कुर्सी अथवा इसी प्रकार की उपयोगिता में आकर उसी सूखे वृक्ष का मूल्य बहुत बढ़ जाता है।
जो वस्तु किसी प्रकार के सुविधा-साधन अथवा सौंदर्य-सुख बढ़ाने में जितनी सहायक होती है वह उतनी ही उपयोगी मानी जा सकती है और उसी उपयोगिता के आधार पर उसका मूल्य बढ़ जाता है।
मानव-शरीर संसार की बहुत महत्वपूर्ण तथा चरम उपयोगिता की वस्तु है। इसके आधार पर संसार में बड़े-बड़े विलक्षण कार्य किये जाते हैं। इसी के सदुपयोग से मनुष्य धन, मान, पद, प्रतिष्ठा, यश, ऐश्वर्य और यहाँ तक कि मुक्ति-मोक्ष का अमृत पद प्राप्त कर लेता है। संसार की सारी सुन्दरता, सभ्यता, संस्कृति, साहित्य एवं साधना इसी शरीर के आधार पर ही सम्भव होती तभी है। किन्तु यह सम्भव होती है जब मनुष्य सत्कर्मों द्वारा शरीर का सदुपयोग करता है।
मानव-शरीर के मूल्य एवं महत्व की अभिव्यक्ति इसकी सदुपयोगिता के पुण्य से ही होती है। वैसे यह पंचभौतिक शरीर भी मिट्टी है। एक दिन नष्ट होकर मिट्टी में मिल जायेगा। इसके परमाणु बिखर जायेंगे, पाँचों तत्व अपने विराट रूप में मिल जायेंगे। फिर यह चलती-फिरती हँसती-बोलती और काम-काज करने वाली तस्वीर कभी देखी न जा सकेगी। इसीलिए बुद्धिमान जीवन के अणु क्षण का सदुपयोग करके नश्वर शरीर के नष्ट हो जाने पर भी अविनश्वर होकर वर्तमान रहते हैं।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति नवम्बर 1961 पृष्ठ 8
Recent Post
आत्मचिंतन के क्षण
इस दानशील देश में हमें पहले प्रकार के दान के लिए अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान के विस्तार के लिए साहसपूर्वक अग्रसर होना होगा! और यह ज्ञान-विस्तार भारत की सीमा में ही आबद्ध नहीं रहेगा, इसका विस्तार तो सार...
आत्मचिंतन के क्षण
शरीर से सत्कर्म करते हुए, मन में सद्भावनाओं की धारण करते हुए जो कुछ भी काम मनुष्य करता है वे सब आत्मसन्तोष उत्पन्न करते हैं। सफलता की प्रसन्नता क्षणिक है, पर सन्मार्ग पर कर्तव्य पालन का जो आत्म-सन्...
आत्मचिंतन के क्षण
सब लोग सुखी तो होना चाहते हैं, परंतु उसके लिए परिश्रम नहीं करना चाहते। यह तो न्याय की बात है, कि बिना कर्म किए फल मिलता नहीं। यदि आप उत्तम फल चाहते हैं तो पुरुषार्थ तो अवश्य ही करना होगा। यदि भोजन ...
आत्मचिंतन के क्षण
कठिनाइयों से, प्रतिकूलताओं से घिरे होने पर भी जीवन का वास्तविक प्रयोजन समझने वाले व्यक्ति कभी निराश नहीं होते, वे हर प्रकार की परिस्थितियों में अपने लक्ष्य से ही प्रेरणा प्राप्त करते तथा श्रेष्ठता ...
आत्मचिंतन के क्षण
मानसिक शुद्धि, पवित्रता एवं एकाग्रता पर आधारित है, जिसका मन जितना पवित्र और शुद्ध होगा, उसके सकंल्प उतने ही बलवान् एवं प्रभावशाली होंगे। सन्त- महात्माओं के शाप, वरदान की चमत्कारी घटनाएँ उनकी मन की ...
आत्मचिंतन के क्षण
राष्ट्रपिता का मन्तव्य हर स्त्री- पुरुष जिन्दा रहने के लिए शरीर श्रम करें। मनुष्य को अपनी बुद्धि की शक्ति का उपयोग आजीविका या उससे भी ज्यादा प्राप्त करने के लिए ही नहीं, बल्कि सेवा के लिए, परोपकार ...
आत्मचिंतन के क्षण
शरीर, मन और बुद्धि तीनों में ही काम शक्ति क्रियाशील है। शौर्य, साहस पराक्रम, जीवट, उत्साह और उमंग उसकी ही विभिन्न भौतिक विशेषताएँ हैं। उत्कृष्ट विचारणाएँ उदात्त भाव सम्वेदनाएँ काम की आध्यात्मिक विश...
आत्मचिंतन के क्षण
भाग्यवाद एवं ईश्वर की इच्छा से सब कुछ होता है- जैसी मान्यताएँ विपत्ति में असंतुलित न होने एवं संपत्ति में अहंकारी न होने के लिए एक मानसिक उपचार मात्र हैं। हर समय इन मान्यताओं का उपयोग अध्यात्म की आ...
आत्मचिंतन के क्षण
हम प्रथकतावादी न बनें। व्यक्तिगत बड़प्पन के फेर में न पड़ें। अपनी अलग से प्रतिभा चमकाने का झंझट मोल न लें। समूह के अंग बनकर रहें। सबकी उन्नति में अपनी उन्नति देखें और सबके सुख में अपना सुख खोजें। यह ...
आत्मचिंतन के क्षण
साधना का तात्पर्य है, अपने आप के कुसंस्कारों, दोष- दुर्गुणें का परिशोधन, परिमार्जन और उसके स्थान पर सज्जनता, सदाशयता का संस्थापन। आमतौर से अपने दोष- दुर्गुण सूझ नहीं पड़ते। यह कार्य विवेक बुद्धि को ...