आत्मचिंतन के क्षण
खेद का विषय है कि आज के युग में भाषा विज्ञान का जितना विकास हुआ है, वाणी को प्रभावशाली वैज्ञानिक रूप देने में जितना अन्वेषण हुआ है, उतना ही वाणी का व्यभिचार बढ़ गया है। आजकल शब्द ज्ञान के स्रोत न रहकर वाणी विलास, तथाकथित वाक्चातुरी या छल दूसरों को उल्लू बनाने का साधन बनते जा रहे हैं। सच को झूठ और झूठ को सच बनाने के लिए किया जाने वाला शब्दों का जोड़ वाणी व्यभिचार नहीं तो क्या है?
मौलिक चिंतन के लिए-स्वतंत्र विचारों की साधना के लिए सबसे आवश्यक और महत्त्वपूर्ण जो बात है वह यह कि अपनी अंतरात्मा की वाणी सुनें। हमारी आत्मा निरन्तर बोलती है, कहती है, हमें परामर्श देती है। उसे सुनने का यदि हम प्रयत्न करें तो कोई कारण नहीं कि हम अपनी समस्याओं और शंकाओं का समाधान न कर सकें, हम अपना मार्ग न ढूँढ सकें।
किसी भी बात का समाज में प्रचार करने के लिए पहले उसे अपने जीवन में अपनाना आवश्यक है। समाज के अगुवा लोग जैसा आचरण करते हैं, उसका अनुकरण दूसरे लोग करते हैं। सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक कार्यकर्त्ता और नेता लोग जब अपने प्रत्यक्ष आचरण और उदाहरण के द्वारा जनता को चरित्र निर्माण का मार्ग दिखायेंगे तो वह दिन दूर नहीं होगा, जब भ्रष्टाचार हमारे समाज से दूर हट जाएगा।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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