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Magazine - Year 1940 - Version 2

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सार्वभौम धर्म

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(आचार्य टी. एन. अप्पा, बंगलौर)

यह एक सचाई है कि मनुष्य जीवन की रीढ़ धर्म है। धर्म के बिना मनुष्य, मनुष्य नहीं रह सकता। धर्म तत्व को यदि अपने जीवन में से निकाल डालें तो हम इतने भयंकर प्राणी हो जावें जितने सिंह, व्याघ्र, सर्पादि सहस्रों वर्षों में भी नहीं हो सकते। क्योंकि संसार के हिंसक जीवों की बुद्धि का विकास इतना नहीं हुआ है। मानवी बुद्धि के सामने यदि अधर्म ही एक वस्तु रह जाय तो भूतल अग्नि की सी दाहकता ग्रहण करले और सुख शान्ति नामक वस्तु इसे स्वप्न में भी उपलब्ध न हो सकें।

संसार में असंख्य मजहब दिखाई पड़ते हैं यह सब सच्चे धर्म की धुँधली तस्वीरें हैं। सब की धुरी सत्य के किसी अंश पर टिकी हुई है, परन्तु फिर भी उनमें से कोई पूर्ण सत्य तक नहीं पहुँच सका है। सभी अधूरे और अपूर्ण हैं। यदि ऐसा न होता तो एक धर्म को ग्रहण करके लोग पूर्ण संतुष्ट हो सकते थे। वर्तमान मजहबों में से किसी से भी लोग सन्तुष्ट नहीं है और उसके अनुयायी दिन प्रतिदिन विद्रोही होते जाते हैं। सच तो यह है मनुष्य का दिन प्रतिदिन विकास होता जा रहा है और साथ ही साथ सत्य, हित, सौंदर्य एवं आनन्द की इच्छा तीव्र होती जाती है। इस युग में पुराने जमाने की बैलगाड़ी भद्दी मालूम होती है और उसके स्थान पर साइकल, मोटर, रेल, जहाज आदि यन्त्रों का उपयोग बढ़ता जाता है। इसी प्रकार धर्म के नाम पर प्रसारित हुए मजहबों की स्थिति में भी परिवर्तन हो रहा है। इतने मजहबों के बढ़ जाने का कारण यह है कि जैसे जैसे बुद्धि और विचारों में परिवर्तन पैदा हुआ वैसे ही वैसे सामाजिक व्यवस्था एवं परिस्थितियों में लौट फेर हुआ, तदनुसार पुराने मजहब अनुपयुक्त जँचने लगे और आवश्यकता ने नये मजहबों को जन्म दिया। हेर फेर का यह क्रम आज भी जारी है। यह शताब्दी विज्ञान का युग है। वैज्ञानिक अन्वेषणों ने हमारी जीवन धारा को ही बदल दिया है। तब क्या मजहब उससे अछूते रह सकते हैं। साइंस ने प्राचीन किम्वदंतियों का तिरस्कार और बहिष्कार कर दिया है। मजहबों के विरुद्ध हर एक दिल में एक हलका सा प्रतिद्वन्दी खड़ा हो गया है। रूस-पृथ्वी के पाँचवें भाग से तो उसे देश निकाला ही दे दिया गया है। अगणित संगठित आन्दोलन मजहबों के विरुद्ध प्रचार कर रहे हैं। समाज भय के कारण खुले रूप में किसी को कुछ कहने का साहस भले ही न हो पर सन्देह और अविश्वास का कोई अंश मन में अवश्य छुपा होगा। समाज शास्त्र और मानस शास्त्र के वर्तमान आचार्यों का मत है कि मजहबों पर जितनी अश्रद्धा इस समय फैली हुई है उतनी पहले कभी नहीं थी।

यहाँ एक प्रश्न आता है कि ‘फिर साम्प्रदायिक दंगे क्यों होते हैं? इस संबंध में एक लाट पादरी का मत है कि विशुद्ध साम्प्रदायिक दंगों का अस्तित्व मिट गया है। भारत वर्ष में मन्दिर मस्जिद और राम रहीम के नाम पर दंगों को भी साम्प्रदायिक नहीं मानना चाहिए। इसके पीछे राजनैतिक स्वार्थ छिपे होते हैं। महात्मा गान्धी का मत है कि भारतवर्ष का राजनैतिक आकाश साफ होते ही साम्प्रदायिक दंगों का अस्तित्व मिट जायगा।

मजहबों पर अविश्वास बढ़ते जाने के कारण संसार के समस्त पुजारी और मठाधीश चिन्तित हो रहे हैं। विचारक लोग समस्या की गम्भीरता को स्वीकार करते हैं। योरोप का प्रसिद्ध श्वेतांग चतुर्वेदी ब्राह्मण प्रो. मैक्समूलर अपनी पुस्तक में लिखता है कि संसार के सबसे बड़े मजहब बौद्ध, ईसाई, हिन्दू और मुसलमान है। साइंस की तरक्की से इन चारों की आन्तरिक दीवार बड़ी कमजोर हो गई हैं और इनके भीतर एक तरह की खलबली मच गई है।।

ईसाई मत के अनुयायी आजकल अधिक उन्नतिशील समझे जाते हैं। वे अपने पंथ को अधिक वैज्ञानिक, उदार और सत्य प्रमाणित करते है तथापि मजहबों पर अविश्वास की समस्या उनके सामने भी उग्र रूप से खड़ी हुई है। उस वर्ष पादरी कान्फ्रेंस में लंदन के राज पुरोहित ने कहा था- समस्त योरोप में नवीन सभ्यता और ईसाई मत में घोर युद्ध चल रहा है। लोगों का विश्वास पूजा विधान तथा कथा वार्ता पर से उठता जाता है और इंग्लैण्ड की अधिकांश जनता अपने मजहब की कुछ भी परवाह नहीं करती। पादरी ह्यूज सीसल का कथन है कि चारों ओर ईमान पर से विश्वास उठ रहा है और लोगों की शंकाएँ बढ़ती जाती हैं। फादर गिरनारल्ड कहते हैं- संसार के इतिहास में धर्म पर इतनी अश्रद्धा किसी समय नहीं हुई। विज्ञान ने इस अविश्वास को और भी बढ़ा दिया है। पादरी विलसन कहते हैं- लोग भय और लापरवाही के कारण अपने मनोगत भावों को प्रकट नहीं करते किन्तु वे भीतर यह मानते हैं कि धार्मिक विधान ढ़कोसला मात्र हैं। राबर्ट विलिचफोर्ड ने लिखा है- धर्म पुस्तकों के अन्दर अन्य जातियों के साथ भ्रातृ भाव रखने की नहीं वरन् घृणा करने की शिक्षा है। किसी खास जाति को ही ईश्वर की प्यारी कहना और उसी के साथ पक्षपात करने पर विश्वास करना परमात्मा के नाम पर कलंग पोतना और उसकी बेइज्जती करना है। डाक्टर वेल्स का कथन है- लोग अब किसी मजहब को स्वार्थ के कारण ग्रहण किये रहते हैं न कि धर्म की इच्छा से। शिक्षित पुरुष धर्म पुस्तकों को ईश्वर की वाणी नहीं मानते वरन् सिद्ध करते हैं कि ये किताबें मनुष्यों की लिखी हुई हैं, और उनके वे सब दोष मौजूद हैं जो आदमी में हो सकते हैं।।

उपरोक्त सम्मतियाँ केवल ईसाई मन पर ही लागू नहीं होती वरन् सभी मतों पर घटित होती हैं। सर्वत्र एक ही विचार धारा बह रही है। मौलवी मुहम्मद जरीफ अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि- आश्चर्य की बात है कि संसार में अब तक ऐसे लोग हैं जो खुदा, फिरश्तों, जिलात्, कयामत, हिसाब, मीजान और हूरों को मानते हैं। स्वामी दयानन्द ने एक स्थान पर लिखा है भारतवर्ष में धर्म स्त्रियों की कृपा से ही टिका हुआ है। हिन्दू धर्म के लिए सम्मतियाँ इकट्ठी करने की जरूरत नहीं। किसी भी धर्म स्थान और पुरोहित से जाकर पूछिये वह शपथ पूर्वक यह साक्षी देगा कि धर्म का दिन दिन ह्रास होता जा रहा है और लोगों की आस्था पूजा पत्री, धर्म विधान एवं कर्मकाण्ड पर से उठती जा रही है। पुजारियों को दूसरे पेशे अख्तियार करना और मन्दिरों का खण्डहर होते जाना इसी सच्चाई की गम्भीर और विश्वस्त गवाहियाँ हैं।

इस प्रश्न पर आधी शताब्दी से विचार हो रहा है और एक ऐसे सार्वभौम धर्म की आवश्यकता अनुभव की जा रही है। जिसकी छाया में हर देश ओर हर जाति का मनुष्य बिना भेदभाव के बैठ सके और शान्ति एवं सन्तोष उपलब्ध कर सके। इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध पत्र इंगलिश मैन के विचार मनन करने योग्य हैं वह लिखता है- यह सिद्ध करना तो आसान है कि अमुक मजहब झूठा है। लेकिन इससे काम नहीं चलेगा। मनुष्य जीवन के लिए धर्म की नितान्त आवश्यकता है बिना उसके किसी भी प्रकार काम नहीं चल सकता। इसलिए हमें एक सार्वभौम धर्म को प्रकाश में लाना होगा जिससे विश्व बन्धुत्व फैलाया जा सके और उद्विग्न मनुष्यों के हृदयों को शान्ति प्राप्त हो सके। अब आगे का रचनात्मक कार्य होना चाहिए। मरे हुए मजहबों को कोड़े लगाना ठीक नहीं क्योंकि मरते को मारना शूरता नहीं निर्दयता है। उन्हें अपनी अन्तिम साँसे लेने देने में कोई बाधा नहीं देनी चाहिए, वरन् सहानुभूति और आदर पूर्वक उनसे कहना चाहिए- आज आप बेकार हैं, फिर भी एक समय आपकी आवश्यकता थी और अपने समय में आपके द्वारा हमारे समाज की बड़ी सेवा हुई थी।

सार्वभौम धर्म वही हो सकता है जिसका उल्लेख भगवान मनु ने धर्म के दश लक्षण बताते हुए किया ह और यम नियमों में जिसका निचोड़ योगाचार्य महर्षि पातंजलि ने रख दिया हैं। अगले अंक में उन पर विस्तृत प्रकाश डाला जायेगा।

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