• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • खबरदार! अन्य मत करना!
    • सभी पाठकों से आवश्यक सूचना
    • कृतज्ञता प्रकाशन
    • आपके कल्याण की बात!
    • ब्रजभारती
    • मुरझाये कुसुम के प्रति
    • रणक्षेत्र की पुकार
    • शक्ति की उपासना
    • शक्ति बिना मुक्ति नहीं
    • जिओ और जीने दो
    • कुफ्र के खिलाफ जहाद करो
    • अन्याय का विरोध
    • दुष्टता का नाश हो
    • अहिंसा और हिंसा
    • अन्यायी की पराजय
    • धर्म युद्ध-महान तप
    • दुष्टों पर दया मत करो
    • गुरु की सीख
    • बन्दी की वेदना
    • बन्दी की वेदना
    • दुर्बलता का पातक
    • पतित की आकाँक्षा
    • पतित की आकाँक्षा
    • अन्याय का निवारण
    • इस ढोंग से क्या फायदा?
    • न्याय का पालन
    • नीच और ऊंच की पहचान
    • जैसा बीज वैसा फल
    • वृद्धा की कुपित आत्मा
    • न्याय जीवन का प्रथम सोपान
    • दुष्टों से प्रेम, दुष्टता से युद्ध
    • ईसप की नीति शिक्षा
    • VigyapanSuchana
    • (ले. श्री स्वर्ण सहोदर)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login





Magazine - Year 1942 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


अन्यायी की पराजय

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 14 16 Last
हेमकूट राज्य के राजकुमार जीमूत बाहन अपने मित्रों के साथ समुद्र तट पर भ्रमण करते हुए गोकर्ण पर्वत पर पहुँचे। उन्होंने गुफाओं के निकट अस्थियों के बड़े बड़े ढेर लगे देखे तो अपने मित्र मित्रावसु से पूछा कि यह हड्डियों के ढेर किस प्रकार लगे हुए हैं। मित्रावसु ने उत्तर दिया- राजकुमार! यह ढेर निर्दोष नागों की अस्थियों के है। गरुड़ की नाग वंश से पुरानी शत्रुता है, वे अपने बल के अभिमान में आकर दोषी या निर्दोष किसी नाग को पावे, उसका ही काम तमाम कर देते हैं। नाग निर्बल हैं, गरुड़ की शक्ति बढ़ी हुई है। बेचारे नाग गरुड़ के मुकाबले में ठहर नहीं पाते। इसलिए उन्होंने सब समझौता कर लिया है। बारी-बारी प्रतिदिन एक नाग गरुड़ के द्वारा वध होने के लिए इस पर आता है। और अपने प्राण देकर उनकी कोप ज्वाला को शान्त करता है।

जीमूत बाहन बड़े दयालु थे। दया से उनका हृदय ओतप्रोत था। निरपराध नागों का इस प्रकार दमन होता सुनकर इनका जी पिघल गया और करुणा से आँखें भर आई। राजकुमार के पास गरुड़ को परास्त करने की शक्ति न थी। फिर भी उनका क्षत्रिय अन्तःकरण अन्याय को सहन न कर सका। उसने निश्चय किया कि अन्याय के विरुद्ध अपने प्राण दे दूँगा। शास्त्र कहता है कि अन्याय से युद्ध करो। धर्म युद्ध में कभी पराजय नहीं होती, यदि अन्यायी को परास्त किया तो कीर्ति मिलती है। और स्वयं परास्त हुए तो स्वर्ग मिलता है। यह सोचकर राजकुमार ने निश्चय कर लिया कि नागों का पक्ष लेते हुए गरुड़ से धर्मयुद्ध करूंगा।

नाग माता विलाप कर रही थी कि हाय मेरे इकलौते बेटे शंखचूड़ को आज गरुड़ की कोप ज्वाला में अपना प्राण देना होगा। बेटे को छाती से चिपटाकर वह मर्म भेदी करुणा क्रन्दन कर रही थी, जिसे सुन-सुन कर जीमूत बाहन का कलेजा फटा जा था। राजकुमार ने निकट आकर कहा माता आपका विलाप मुझ से नहीं सुना जाता। आपके शंखचूड़ को बचाने के लिए मैं अपना प्राण देने को तैयार हूँ। आप अपने बेटे को अपने पास आनन्द से रखिए, आज मैं गरुड़ के अत्याचार का भोजन बनूँगा।

नाग माता अपने पुत्र के बदले में दूसरे के पुत्र को मरना स्वीकार करने के लिए किसी प्रकार तैयार न हुई। उसने स्पष्ट कह दिया हे दयालु नवयुवक, मैं मोहग्रस्त होकर इतनी स्वार्थान्ध नहीं हो गई हूँ कि शंखचूड़ के बदले तुम्हारे प्राण जाना स्वीकार करूंगी। मेरा पुत्र अपना कर्तव्य पालन करने से पीछे न हटेगा शंखचूड़ माता की पदरज सिरपर धरकर उठा और गोकर्ण पर्वत की प्रदक्षिणा देकर नियत स्थान के लिए चल दिया। जीमूत बाहन ने यह अच्छा अवसर देखा। नाग वेश बना कर शंखचूड़ से पहले ही गरुड़ के स्थान पर पहुंच गये। गरुड़ ने तुरन्त उस पर आक्रमण किया और अंग विदीर्ण करने लगे। लेकिन गरुड़ को आश्चर्य हुआ कि निर्बल नाग जैसे अपने कष्ट के समय धैर्य खोकर बुरी तरह रोते चिल्लाते हैं। वैसे यह आज का नाग क्यों नहीं चिल्लाता। गरुड़ जानते थे कि विपत्ति के समय धैर्य न खोने वाले और कष्ट आने पर विचलित न होने वाले वीर जिस जाति में पैदा हो जाते हैं। उस पर कोई बलवान अधिक समय तक अत्याचार नहीं कर सकता। आशंका से गरुड़ का मन भयभीत हो गया वे आज के शिकार को उलट कर देखने लगें।

इतने में शंखचूड़ आ पहुंचा। उसने अपने स्थान पर किसी दूसरे को देख कर पुकारा -अरे, अरे यह क्या अनर्थ हो गया। मेरी जगह उसी उपकारी के प्राण चले गये। गरुड़ बड़े असमंजस में पड़े, उन्होंने ध्यानपूर्वक देखा तो प्रतीत हुआ कि हेमकूट राज्य के महात्मा राज कुमार जीमूत बाहन ने दयार्द्र होकर परोपकार में अपने प्राण दे दिये।

महात्मा जीमूत बाहन का मृत शरीर भूमि पर पड़ा हुआ था, शंखचूड़ की आँखें बरस रही थी गरुड़ के कलेजे में हजार-हजार बिच्छू काटने की पीड़ा होने लगी। विश्व में ऐसी विभूतियाँ हैं, जो दूसरों की भलाई के लिए अपने प्राण दे देते हैं। एक मैं हूँ जो तुच्छ सी शत्रुता के कारण अनेक निर्दोषों का वध करता हूँ। गरुड़ खड़े न रह सके, पापी के सामने जब उसका वास्तविक चित्र आता है। जब वह आत्म निरीक्षण करता है। तो उसके पैर काँपने लगते हैं। गरुड़ आत्मधिक्कार की प्रताड़ना से व्याकुल होकर शिर धुनने लगे।

उन्होंने जीमूत बाहन का रक्त हाथ में लिया और पूर्वाभिमुख होकर सूर्य को साक्षी देते हुए प्रतिक्षा की कि भविष्य में अहंकार के वशीभूत होकर अन्याय करने पर उतारू न हूँगा। उस दिन से उन्होंने नागों के साथ अपना सारा बैर विरोध त्याग दिया।

जीमूत बाहन का मृत शरीर धूलि में लोट रहा था, परन्तु यथार्थ में यह उनका विजय सिंहासन था पुराना पापी गरुड़ मर गया था, शरीर वही था, पर अब उसमें परिवर्तित गरुड़ की पवित्र आत्मा निवास करने लगी थी।

First 14 16 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • खबरदार! अन्य मत करना!
  • सभी पाठकों से आवश्यक सूचना
  • कृतज्ञता प्रकाशन
  • आपके कल्याण की बात!
  • ब्रजभारती
  • मुरझाये कुसुम के प्रति
  • रणक्षेत्र की पुकार
  • शक्ति की उपासना
  • शक्ति बिना मुक्ति नहीं
  • जिओ और जीने दो
  • कुफ्र के खिलाफ जहाद करो
  • अन्याय का विरोध
  • दुष्टता का नाश हो
  • अहिंसा और हिंसा
  • अन्यायी की पराजय
  • धर्म युद्ध-महान तप
  • दुष्टों पर दया मत करो
  • गुरु की सीख
  • बन्दी की वेदना
  • बन्दी की वेदना
  • दुर्बलता का पातक
  • पतित की आकाँक्षा
  • पतित की आकाँक्षा
  • अन्याय का निवारण
  • इस ढोंग से क्या फायदा?
  • न्याय का पालन
  • नीच और ऊंच की पहचान
  • जैसा बीज वैसा फल
  • वृद्धा की कुपित आत्मा
  • न्याय जीवन का प्रथम सोपान
  • दुष्टों से प्रेम, दुष्टता से युद्ध
  • ईसप की नीति शिक्षा
  • VigyapanSuchana
  • (ले. श्री स्वर्ण सहोदर)
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj