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Magazine - Year 1942 - Version 2

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अन्याय का निवारण

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यह भली प्रकार समझ लेना चाहिए कि न्याय की रक्षा शक्ति द्वारा ही हो सकती हैं। अन्याय तम से उत्पन्न होता है और तम सब से अधम तत्व होने के कारण प्रायः उच्च आध्यात्मिक प्रेरणाओं से प्रभावित नहीं होता। उसे दण्ड का भय ही काबू में रख सकता है। पशुओं से प्रार्थना करना बेकार है, वे न तो उसे समझ सकते हैं और न उस पर ध्यान दे सकते हैं। क्षमा को उत्तम धर्म कहा है, पर क्षमा तो यही कही जा सकती है जो बलवान व्यक्ति निर्बल पर करता है। असल में वह क्षमा भी एक प्रकार का दंड ही है। अपराध करने पर यदि बलवान, दंड नहीं देता, तो भी निर्बल के मन पर एक प्रहार होता है, जो शारीरिक चोट की अपेक्षा अधिक कारगर होता है। किन्तु यदि कोई निर्बल व्यक्ति बलवान आततायी को क्षमा करे तो वह केवल एक ठट्ठा की बात होगी। यह क्षमा कुछ नहीं अपनी अशक्ता को छिपाने का एक थोथा बहाना है। इस क्षमा का किसी पर कुछ असर नहीं हो सकता और न उसे धर्म ही कहा जा सकता है।

प्राणियों के अन्दर छिपी हुई पशुता के कारण अन्याय की सृष्टि होती है। इस पशुता पर नियंत्रण शक्ति द्वारा ही हो सकता है। हो सकता है कि आप अहिंसा धर्म के कट्टर अनुयायी हो और किसी को दंड देना पसन्द न करते हो, पर वह अहिंसा धर्म भी बल के द्वारा ही पालन हो सकता है। अशक्तता को छिपाने के लिये यदि अहिंसा का बहाना ढूँढ़ा जाय तो वह आत्मवंचना ही हो सकती है। बलवान व्यक्ति ही अहिंसक कहे जावेंगे। उनकी अहिंसा इसलिये सफल हो जाती है कि उनके पास शक्ति का स्त्रोत भरा पड़ा है। विरोधी को उसका भय रहता है कि कहीं इसका उपयोग मेरे ऊपर हो गया तो नष्ट हो जाऊँगा। शरीर बल, बुद्धि बल, सहायक बल, धनबल, आदि को देखकर विरोधी लोग अपने आप काँप जाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि सामने वाले में ताकत भरी हुई है, उसका एक झटका भर मुझे होश में ला सकता है। इसीलिए बलवान व्यक्ति कई बार शक्ति का बिलकुल प्रयोग न करके अहिंसक बना रहता है। बिना बल प्रयोग के भी उसके बहुत से कार्य सिद्ध हो जाते हैं। लाठी न मारने पर भी लाठी को हाथ में देख कर पशु को भय बना रहता है और उसके प्रदर्शन मात्र से डर कर ठीक रास्ते पर चलता है।

संसार त्रिगुणमय है। इसमें पाप, अधर्म और अन्याय भी रहता है। जब तक तम तत्व है तब तक पशुता और उससे उत्पन्न होने वाला अन्याय भी रहेगा। उसका जरा मूल से नाश नहीं किया जा सकता है, उसके कुप्रभाव से बचने का प्रबन्ध किया जा सकता है। शीत को मिटा देना कठिन है, परन्तु वस्त्र और अग्नि की सहायता से उसके कुप्रभाव से बचना आसान है। ग्रीष्म के जलते हुए ताप को शीतल नहीं किया जा सकता, पर छाया, जूता, छाता, पंखा आदि की सहायता से उसकी प्रचंडता से बचना सुलभ है। संसार में अन्याय को दूर भगा देना आसान है। संसार में बड़े-बड़े सिंह, व्याघ्र, सर्प पड़े हुए हैं, तो भी हम लोग इसके शिकार होने से बचे रहते हैं। इसी प्रकार अन्याय से बचे रहना संभव है, भले ही वह दुनिया में पूर्ण रूप से नष्ट न हो।

अशक्तता कमजोरी स्वयं वह पदार्थ है जिसके आस-पास कहीं न कहीं से अन्याय आ ही बैठता है। मिठाई के पास मक्खियाँ और चींटियां कहीं न कहीं से आ ही जाती हैं। मुर्दे का माँस देखते ही सुदूर आकाश में उड़ते हुए चील, कौए नीचे उतर आते हैं। इस प्रकार जहाँ कमजोरी होती वहाँ खून पीने के लिए दुष्टता हजार कोस से आ धमकेगी। भेड़ की ऊन काटने के लिए किसी न किसी गड़रिये की कैंची जरूर चलेगी।

हिंसक, चोर, लुटेरे, लुच्चे, गुण्डे, ठग और ढोंगियों को उत्पन्न करने वाली जननी ‘कमजोरी’ है। यह बात समझ लीजिये, अच्छी तरह गाँठ बाँध लीजिये, मस्तिष्क के आखिरी पर्दे पर लिख लीजिए कि अन्याय कमजोरी के कारण होता है।” आप बीमार हैं, बुद्धिहीन हैं, निर्धन हैं, अपमानित हैं, अछूत हैं, गुलाम हैं, विपत्तियों के मारे हैं, सताये हुए हैं, तो इस का एक मात्र कारण यह है कि आप कमजोर हैं।

‘कमजोरी’ एक बड़ा भारी गुनाह है। यही असली ब्रह्महत्या है। ब्रह्म हत्यारों को नाना प्रकार के नरकों में सड़ने के प्रमाण शास्त्रों में लिखे हुए हैं। आपको जो भी दण्ड मिल रहे हैं, जो भी दुख प्राप्त हो रहे हैं, वह सब निर्बलता के कारण हैं। निर्बलताएं जब तक हटाई न जायगी, तब तक किसी भी उपाय से कष्टों से निवृत्ति नहीं मिल सकती। कोई कृपापूर्वक उन कष्टों का निवारण भी कर दे, तो भी दूसरे क्षण दूसरे प्रकार का कष्ट आकर सताने लगेगा।

आप चाहते हैं कि हमारे साथ न्याय हो दूसरों के साथ न्याय हो। सताया जाना, बेईमानी और जोर जुल्म का बोलबाला न रहे। आपकी इच्छा पूरी हो सकती है, बशर्ते कि ‘शक्ति के उपासक बन जावें बलवान होने का प्रयत्न करें, निर्बलता जैसे-जैसे दूर होती जायेगा। फिनायल छिड़कते ही मक्खियों की भिनभिनाहट गायब हो जाती है, अपने में शक्ति का आविर्भाव होते ही दुष्टता पलायन करने लगेगी।

यदि आप शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कष्टों से पीड़ित हैं, तो इधर-उधर मत झाँकिये। कोई देवी-देवता, संत-महन्त, ग्रह नक्षत्र आपकी सहायता तब तक नहीं कर सकता, जब तक कि आप अपनी सहायता के लिए खुद ही अपने पाँवों पर न उठ खड़े हों। कष्टों का निवारण एक ही प्रकार से हो सकता है कि बलवान बनने में लग जावें। आप अपने शरीर को सुदृढ़ बनाइए मन को बलवान कीजिए, अच्छी आदतों को संपत्ति की तरह इकट्ठी कीजिए संगठन, एकता और मैत्री भाव बढ़ाइए। इस प्रकार दिन-दिन बल बढ़ता जायगा। मत सोचिए कि आप साधनहीन, अकेले ओर असहाय हैं, इसलिए कि आप साधनहीन, अकेले और असहाय हैं, इसलिए सशक्त कैसे बन सकेंगे। आपके अन्दर सर्वशक्तिमान आत्मा बैठा हुआ है। उठिए आत्मा को पहचानिए, शक्तिमान बनने की प्रतीक्षा कीजिए और बल की उपासना में लग जाइए। ईश्वर आपको सर्वतोमुखी उन्नति प्रदान करेगा और उसके तेज से अन्याय रूपी अन्धकार दूर भाग जायगा।

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