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Magazine - Year 1943 - Version 2

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गम्भीर दृष्टि का महत्व

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हम जितना कुछ पढ़ते, देखते या सुनते हैं उसमें से बहुत कम भाग ग्रहण करते हैं। यदि हमारी ग्राहक-शक्ति तीव्र हो तो साधारण परिस्थिति में भी जीवन को उच्च बना सकते हैं। जो घटनाएं प्रति-दिन हमारे साथ घटित होती हैं या जो कुछ बातें अनुभव में आती हैं, उनको जरा गहरी दृष्टि से देखने की आदत डालें तो बहुत सी नई बातें मालूम होती हैं। यों हर बात पर गहरी दृष्टि नहीं डाली जा सकती क्योंकि ऐसा करने से मस्तिष्क को अधिक थकान आवेगी। हास्य, मनोरंजन, पापपूर्ण और व्यर्थ की बातों पर अधिक ध्यान देना व्यर्थ है, इनमें शक्ति का अपव्यय होगा और बुरा असर भी पड़ सकता है। इसलिए जो विषय प्रिय हो, जिसमें विशेष ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा हो, जो अपना लक्ष स्थिर किया हो, उसमें विशेष योग्यता प्राप्त करने के लिए सदा दत्त-चित्त रहो। मान लो कि तुम बलवान होना चाहते हो तो शारीरिक बल सम्बन्धी जो उपदेश, उदाहरण, घटनाएं या अनुभव देखो, उनमें विशेष रूप से चित्त लगाओ और गंभीरतापूर्वक विचार करो कि इसमें क्या बात हानिकारक और क्या उपयोगी है। हम क्या भूल कर रहे हैं। और किन नियम का पालन करने से लाभ उठा सकते हैं। इस प्रकार यदि प्रति-दिन कुछ सोच विचार करते रहें तो बहुत लाभ होगा। गंभीरता के साथ किया हुआ विचार कभी व्यर्थ नहीं जाता। वह विचारों से विश्वास में आता है और विश्वास से अनुभव में परिणत हो जाता है। यह अनुभव यदि क्रिया में आ जाये या आदत बन जाये तो जीवन उच्च कोटि का बन जाता हैं। गौतम बुद्ध ने एक मृतक और बुड्ढे को सड़क पर निकलते हुए देखा और उन्होंने गंभीरता पूर्वक विचार किया एवं उसको अपने जीवन पर घटाया कि मुझे भी इसी तरह वृद्ध होना तथा मरना है तो उनमें एक नवीन ही अनुभव की चेतना प्रवाहित होने लगी। मुझे ऐसी दुर्दशा से बचना चाहिए। इस समस्या को सुलझाते हुए जब वह अनुभव क्रिया-रूप में परिणत हुआ तो वे संन्यास लेकर वन को चले गये। वन में जब वह क्रिया परिपक्व होकर आदत के रूप में आ गई तो वे प्रखर तपस्वी सिद्ध हुए और अपने जीवन को महान बना सके।

जब हम हलकी दृष्टि से किसी बात को देखते हैं तो वह महत्वपूर्ण होते हुए भी तुच्छ प्रतीत होती है और उसमें कुछ विशेषता नहीं मालूम होती। सैंकड़ों ज्ञानमय प्रवचन सुनते हैं पर उन्हें सुनकर भी अनसुना कर देते हैं- इस कान से लेकर उस कान से निकाल देते हैं। फलस्वरूप संग्रहणी के रोगों की तरह किसी प्रयत्न से कुछ लाभ नहीं होता। अतिसार के बीमार को कैसा ही मोहनभोग खिलाओ, उसका पेट उसमें से रस ग्रहण न करेगा और ज्यों का त्यों टट्टी के रास्ते निकाल देगा। उस भार को वहन करने का कष्ट उठाना ही लाभ मिलेगा इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं। कई सज्जन आत्मिक उन्नति के लिए धर्म पुस्तकें पढ़ते रहते हैं और भजन-पूजा करते-करते भी बहुत समय व्यतीत कर देते हैं पर उनकी वास्तविक उन्नति कुछ नहीं होती। जहाँ थे वहीं बने रहते हैं या उल्टा दंभ और सीख जाते हैं। इसका कारण यही है कि वे अपने काम को यों ही-हलके विचार से करते रहते हैं। कई विद्यार्थी बहुत कोशिश करते हैं घंटों पढ़ते या रटते हैं पर वे पूरी शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते और परीक्षा में फेल हो जाते हैं। उनकी पढ़ाई बाहरी मन से ज्यों-त्यों करके हुई समझनी चाहिए। यदि वे अपने विषय की एक-एक पंक्ति पर ध्यान दें और उसको अच्छी तरह समझकर हृदयंगम करते चलें तो कुशाग्र बुद्धि न होते हुए भी आशातीत सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

किसी विषय पर गंभीरता पूर्वक विचार करने के लिए उसके मानस चित्र बनाना बहुत ही उपयोगी है। मान लो कि तुम्हें एक दुकान खोलनी है। अब उसके मानस चित्र बनाओ। किस बाजार में ग्राहक अधिक आते हैं? इस प्रश्न के उत्तर के साथ जब सब बाजारों पर कल्पना दृष्टि को दौड़ाओंगे तो तुम्हें पता चल जायेगा कि अमुक बाजार में ग्राहकों की अधिक भीड़ रहती है। किस वस्तु की दुकान रखना लाभदायक है? इस प्रश्न के उत्तर में अनेक कल्पना चित्र सामने आवेंगे। उनमें से जो तुम्हें रुचिकर प्रतीत हो चुन लो। इसी प्रकार कैसी वस्तुएं रखनी? उन्हें कहाँ से सस्ता लाना? किस भाव चना? इन सब बातों के लिए बाजार में अनेक चित्रों की कल्पना करनी पड़ेगी और उनमें से ही अपने लिए सुविधाजनक चुनाव करना पड़ेगा। यदि तुम विद्यार्थी हो और प्लासी की लड़ाई का इतिहास याद कर रहे हो, तो उस घटना की कल्पना करते हुए उसका मानस चित्र कुछ देर तक देखो। बस, अब यह चित्र तुम्हारे मस्तिष्क में गहरा अंकित हो जायेगा और फिर उसे आसानी से न भूल सकोगे। इस प्रकार के मानस चित्र बनाने से किसी बात को गम्भीरतापूर्वक विचारने में बड़ी सहायता मिलती है।

गम्भीर दृष्टि से देखना और उसका मानसिक चित्र बनाते हुए विचार करना एक प्रकार का बहुत अच्छा मानसिक व्यायाम है जिससे बुद्धि तीव्र होती है और विचार-शक्ति को प्रोत्साहन मिलता है।

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