
जीवन पहेली
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(रचयिता - श्री रतन कुमार जी)
मजा जलने में भी है, यदि यूँ जलकर निखर उठूँ मैं।
या तो मिट ही जाऊं, या हीरा सा दमकूँ अगर उठूँ मैं॥
आग लगी हो- पर उसके कण -कण में महा-तेज छाया हो।
जो मुझको ज्योतिर्मय कर दे, जो मुझमें जौहर लाया हो॥
मस्ती से लहरा कर चिर- परिचित चरणों पर निखर उठूँ मैं।
बड़ा मजा जलने में भी है, यदि यूँ जलकर निखर उठूँ मैं॥
यह जगती बेशक दुःख में डूबी है और विषाद -भरी है।
बन्धन के घेरे में खेल रहे हैं, क्रूर समय-प्रहरी है॥
यहाँ वायु आहों से निर्मित, पानी आँसू का संचय है।
आखिर व्यथा है पृथ्वी शव स्थान, सार से शून्य निलय है॥
यहाँ पराजय का रोना क्या, और न जय आह्लाद- करी हैं।
यह जगती बेशक दुःख में डूबी है और विषाद भरी है॥
इसलिये जीना भी सुन्दर, इसलिये मरना भी सुन्दर।
चहल -पहल भी सुन्दर है, आँसू से जी भरना भी सुन्दर॥
और शिकायत किसी तरह की है बिल्कुल फिजूल बेमतलब।
बुरे- भले की स्थिति ही क्यों हो, जब परिचालित बन्दी हैं सब।
करने दो जो जिसको भाये; मना करें हम खुद किस बल पर?
इसीलिये जीना भी सुन्दर, इसीलिये मरना भी सुन्दर॥
आकर्षण पावन विभूति है, नहीं दोष है, नहीं बला है।
वे सोचे-समझे-बूझे-पन का लुट जाना मधुर कला है
जिसने प्यार बिखेरा हो, जिसने प्राणों पर प्यार बसाया-
उसके चरण चूम तर जायें वे, जिनको कुछ प्यार न आया॥
विमल प्यार का एक घूँट ही जग का सबसे बड़ा भला है।
आकर्षण पावन विभूति है, नहीं दोष है, नहीं बला है॥
आज समझ पाया हूँ, दुनिया में रहना आसान नहीं है।
जीवन एक तपस्या हैं, जिसका कोई वरदान नहीं है।
दैन्य क्लेश से पूर्ण, और वैभव में पाप बीज होते हैं,
जग विडम्बना-नद, जिसमें हँसते-रोते खाते गोते हैं।
लाचारी हैं जीता हूँ, गो जीने का अरमान नहीं है।
आज समझ पाया हूँ, दुनिया में रहना आसान नहीं हैं॥
*समाप्त*