
पहले दो तब मिलेगा।
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(श्री मंगल चंद भण्डारी ‘मंगल’ हि.सा.वि. अजमेर)
संसार का यह अचल नियम कितना सत्य है कि “पहले दो तब मिलेगा” पेट में पहले भोजन पहुँचाया जाता है तब वह हमें रक्त जैसी अमूल्य वस्तु प्रदान करता है, घड़ी में पहले चाबी दी जाती है तब वह हमें ठीक समय देती है, कुंए में पहले बर्तन डालते हैं तब उसमें पानी आता है, दान देने वाले पहले देते हैं तब यश और कीर्ति के भागी बनते हैं, ब्याज खाने वाले पहले रकम देते हैं तब उन्हें ब्याज की कौड़ियाँ मिलती हैं, चक्की में पहले गेहूँ डालते हैं, तब आटा मिलता है, किसान पहले बीज बोता है तब उसे कई गुना मिलता है, व्यापारी पहले माल खरीदने में अपनी रकम लगाता है तब वह मुनाफा पाता है, पेड़ों को देखिये पहले वे बिना किसी आनाकानी के मीठे फल और पत्ते देते हैं तब उसकी जगह नये पत्ते और फल प्राप्त करते हैं, बिजली का पहले बटन दबाते हैं तब प्रकाश मिलता है, समुद्र पहले बादलों को अपना जल देता है तब उसे इन्द्र कई गुना वापिस लौटा देता है, पहले किसी की सेवा करते हैं तब वह हमें कुछ देता है, किसी के हृदय पर शासन करने के लिए पहले अपना हृदय देना पड़ता है तब उसका हृदय प्राप्त कर सकते हैं, संसार की किसी जड़ चेतन वस्तु को लीजिये “पहले देने पर ही मिलेगा” यहाँ तक कि मन्द बुद्धि पशु जाति को ही लीजिये कुत्ते को रोटी और प्यार देने पर ही वह आपकी आज्ञा का पालन कर सकेगा, अन्यथा काट खाने को दौड़ेगा। भोले भाले अज्ञान बालक का हृदय भी देखिये पहले वह गेंद बिना किसी संकोच के धरती पर फेंक देता है लेकिन उस गेंद को धरती अपने पास नहीं रखती है बल्कि बालक को ही वापस लौटा देती है।
कथा-