
अभियाचन
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(रचियता- श्री जनार्दन पाँडेय शास्त्री)
हे भगवान! महान बनूँ मैं।
दुःख आकर मुझ से टकरावें।
गिर कर चूर-चूर हो जावें॥
अविचल अटल रहूँ दृढ़ होकर-
प्रभु ऐसा चट्टान बनूँ मैं।
हे भगवान! महान बनूँ मैं ॥1॥
उन्नत हो नभ में लहराऊं।
मानव के जग में फहराऊं॥
शुचिता अरु मानवता का-
ऐसा अमिट निशान बनूँ मैं॥
हे भगवान! महान बनूँ मैं ॥ 2॥
जगमग ज्योति-अखण्ड जगा लूँ।
भूले पथ के पथिक बुला लूँ॥
हो जाऊं मार्ग-दर्शक जग का-
ऋषियों की सन्तान बनूँ मैं।
हे भगवान! महान बनूँ मैं ॥3॥
मैं सत्य सुधा का पान करूं।
मैं प्रेमी बन सम्मान करूं॥
मैं न्यायी न्याय विधान करूं-
फिर जीवन का अभिमान बनूँ मैं।
हे भगवान! महान बनूँ मैं ॥4॥
तेरी करुणा का ध्यान करूं।
प्रतिक्षण तेरा आह्वान करूं॥
हो जाऊं तन्मय तुझ में-तब-
तेरे कर का वरदान बनूँ मैं।
हे भगवान! महान बनूँ मैं ॥5॥