
ञ्जशश्चद्बष् द्बह्य द्वद्बह्यह्यद्बठ्ठद्द द्बठ्ठ श्चड्डद्दद्ग
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मैस्मेरिज्म और हिप्नोटिज्म एक ही चीज के दो नाम हैं। किन्तु इनके अर्थ और प्रयोग में भिन्नत्व परिलक्षित होता है। मैस्मेरिज्म का अर्थ ‘प्राण प्रयोग‘ और हिप्नोटिज्म को ‘मोहिनी विद्या’ कहते हैं। मैस्मेरिज्म के प्रयोग में हाथ की सभी उँगलियों को स्थिर और दृष्टि को शाँत रखना पड़ता है। तब सफलता लाई जा सकती है। जब कि हिप्नोटिज्म में तर्जनी मात्र से रोगी को निद्रा वश किया जा सकता है। इस विद्या का संसार में कुल 150 वर्ष से प्रचार हुआ है। परन्तु यथार्थ में इसका आधार प्राचीन भारत का योग विद्या ही है, जो संसार की यावतीय आश्चर्यमय विद्याओं की जननी है आर्य और उनके वंशज योग विद्या के पूर्ण जानकार थे। अतः योग का मूल स्थान भारतवर्ष ही हो सकता है। भारत से यह विद्या पहिले अरबस्तान और बाद में ईरान, यूवान, मिसर और रोम आदि में प्रचलित हुई और कालान्तर में संसार के कोने कोने में प्रचारित हो गयी।
विषय की तह तक पहुँचने के लिये यदि यह कहा जाए कि आज के सुधरे हुये नाम मैस्मेरिज्म को हमारे पूर्वज अपने समय में योग के रूप में जानते थे तो भी कोई हानि नहीं होगी। क्योंकि मैस्मेरिज्म और हिप्नोटिज्म देखा जाय तो योग विद्या ही अंग है। संसार के धर्म शास्त्रों में सन्त, महात्मा, समर्थ पुरुष और पैगम्बर आदि के जो चमत्कार हम पढ़ा करते हैं, वह एक मात्र योगिक चमत्कार के ही द्योतक हैं। देखने और अनुभव करने वालों ने कभी उन्हें जादू, कभी योग और कभी मैस्मेरिज्म कहकर प्रसिद्ध किया है। हमारे अनेकानेक सन्त, महात्मा, योग रूपी मैस्मेरिज्म जानते आये हैं और इसकी सहायता से समय-समय पर हाथ के स्पर्श के द्वारा उन्होंने कठिन से कठिन रोग के रोगियों को रोग मुक्त किया है। आज भी ऐसी घटनाएं बराबर होती रहती हैं और हिन्दू धर्म शास्त्र तथा धार्मिक इतिहास में तो इसके असंख्य उदाहरण भरे पड़े हैं। बाइबिल में क्राइस्ट के हाथ से सैकड़ों रोगियों के रोग मुक्त होने और अन्धचक्षु को पुनः आँखें प्राप्त होने के जो दृष्टान्त आये हैं, वे भी इसी विद्या का समर्थन कराते है। पारसी समाज के पैगम्बर जरधुस्त भी इस विद्या से भली भाँति परिचित थे। हिन्दू इतिहास के सैंकड़ों उदाहरणों में भस्मासुर के एक उदाहरण को ही हम लें तो उस पर से योग और मैस्मेरिज्म का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध सिद्ध होने में कोई शंका नहीं रह जाती। भस्मासुर ने तपस्या पूर्वक शिवजी से यह वरदान प्राप्त किया था कि वह जिस पर हाथ रखे वह तत्काल भस्म हो जाए। फलतः हजारों निर्दोष मनुष्य भस्मासुर के इस उत्पात से भस्मीभूत हो गये और दैवी शक्ति सम्पन्न देवता तक त्राहि-त्राहि पुकारने लगे। तब विष्णु भगवान ने देवों को अभय वचन देकर भस्मासुर संहार के लिये मोहिनी रूप धारण किया और अपने हाथ पावों की कलामय क्रिया से नृत्य करने लगे। इधर भस्मासुर ने भी मोहिनी रूपधारी विष्णु की नृत्य क्रिया का अनुकरण किया और ज्यों ही उसने अपने सिर पर हाथ रखा कि वह खुद सदैव के लिये भस्म हो गया। इस पर से यह स्पष्ट है कि मैस्मेरिज्म और हिप्नोटिज्म योग साधना के ही अंग हैं और उनका मूल स्थान भारतवर्ष ही है। हिमालय के अनेक सिद्ध महात्माओं और तिब्बत के लामाओं की विचित्र बातें तो आज भी देखी सुनी जा रही हैं। इस तरह साधक और अभ्यार्थी के पक्ष में क्या योग, क्या जादू, क्या आग में चलकर वहाँ के विज्ञानाचार्यों को आश्चर्य विमुग्ध कर दिया था। इसी एक योगी द्वारा आँख में पट्टी बाँधकर क्रिकेट आदि के खेल खेलने को भारतीय करामातों का भी प्रदर्शन हुआ था। भारतीय बाजीगरी के अद्भुत खेलों के सम्बन्ध में पश्चिमी देशों के निवासी पूर्ण विश्वास रखते हैं और इसके लिये उन के यहाँ नाना प्रकार की खोजें जारी हैं। कहने का तात्पर्य यह कि मैस्मेरिज्म या हिप्नोटिज्म किसी भी अवस्था में नवीन विद्या नहीं कही जा सकती, जब कि संसार प्रसिद्ध आश्चर्यमयी विद्याओं की जननी योग साधना का पहिले से ही आस्तित्व कायम है।
जो लोग इस प्रकार के चमत्कारों का प्रदर्शन करते हैं, उनके प्रति दर्शकों में और संशय उत्पन्न हो आता है। महात्मा गौतम बुद्ध के ज्ञान के अनुसार ये चमत्कार तीन प्रकार के होते हैं- (1) गुप्त चमत्कार (2) प्रगट चमत्कार और (3) ज्ञान शक्ति से उत्पन्न (बौद्धिक चमत्कार) गुप्त चमत्कारों में एक व्यक्ति सिद्धि द्वारा गुप्त शक्तिओं का धारी होता है। उदाहरण स्वरूप एक से अनेक हो जाना, अनेक से एक हो जाना, अदृश्य हो जाना, दीवाल दुर्ग किलों पर्वतों में वायु वेग से प्रवेश करना और लौटना, इसी तरह जल में प्रवेश करना और जमीन पर निकलना, हवा में उड़ना, सूर्य, चन्द्र की सीमा को स्पर्श करना इत्यादि ये सब प्रथम श्रेणी के योगिक चमत्कारों में आते है और इस भाँति के सैंकड़ों दृष्टान्त हमारे इतिहास तथा धर्म ग्रन्थों में मौजूद हैं। दूसरे प्रकार के प्रगट चमत्कारों में एक व्यक्ति दूसरों के अन्तःकरण में प्रवेश करके उनकी विचार धारा जान सकता हैं और यह चमत्कारी सिद्धि हम आज भी कई साधु−संतों में पाते हैं। परन्तु ब्राह्मीभूत महात्मा बुद्ध ने इसे महान चमत्कार की आख्या नहीं दी। उन्होंने बौद्धिक मार्ग का परित्याग करने है।
मैस्मेरिज्म को जादू नहीं कहा जा सकता क्यों कि यह शुद्ध अर्थ में योग क्रिया सिद्धि है। जादू दो प्रकार का होता है (1) सफेद जादू (2) काला जादू। सफेद जादू में योग की क्रिया है पर काले जादू में कोपक दुष्टात्मा की शक्ति विद्यमान है। अतएव, जादू और मैस्मेरिज्म एक अर्थ में नहीं लिये जा सकते। मैस्मेरिज्म में कठिन रोगों के रोगियों को रोग मुक्त करने की विधि मुख्य है और इस विधि को क्रमशः तीन भागों में विभाजित किया गया है। (3) औषधि (Medicine), (2) शस्त्र। क्रिया (Surgern) (3) पवित्र मन्त्र (Occult Seceret) इस पवित्र मन्त्रों के प्रयोग को प्राचीन योगिक प्रयोग ही कहा जा सकता है। मैस्मेरिज्म में उपर्युक्त विधि के अनुसार नाना प्रकार के रोग और व्याधियाँ दूर होती है जब कि हिप्नोटिज्म चित्त को भ्रम में डालकर सूचनाओं के अनुसार मनुष्य की चित् शक्ति को अपने लिंग शरीर में घुसाया करता है। इसकी मुख्य 6 अवस्थाएं (1) तन्द्रा (2) निद्रा, (3) प्रगाढ़ सुषुप्ति, (4) अनुवृत्ति (5) दिव्य दृष्टि (6) प्रत्यंग दृष्टि। इन छः अवस्थाओं में पहली तीन प्रकार की अवस्थाएं स्वाभाविक रूप से सर्वत्र दिखायी देती हैं। इसके बाद की पांचवीं और छठी अवस्थाओं में भूत, भविष्य, और वर्तमान सम्बन्धी हर एक बात का पूरा पूरा उत्तर मिल सकता है। अमेरिका में लोग अपराधी को पकड़ने के लिये आज दिन इसी मैस्मेरिज्म का प्रयोग कर रहे है। अन्तिम अवस्था को समाधि रूप में जाना जा सकता है और वह अवस्था केवल पवित्र से पवित्र शरीर को ही प्राप्त होती है। विचारों की पवित्रता और उच्च भावना से यह शक्ति उत्पन्न होकर पीत रक्त की छाया रूप से प्रकाशित हो उठती है। यह छाया मनुष्य के चारित्रिक गुण पर आधारित है अनेक धर्म शास्त्र और विज्ञान भी इस का समर्थन करते है। फ्रांस के विज्ञान विशारदों की शोध के अनुसार मनुष्य शरीर में से एक रसदार पदार्थ रूपी विद्युति प्रवाह होना रहता है और दुष्ट हृदयों से वह दुर्गन्ध रूप तथा सज्जनों के शरीर से सुगन्ध रूप होकर बह रहा है। यह प्रवाह एक से दूसरे शरीर में प्रवेश कर सकता है।
इससे सिद्ध नहीं होगा कि एक मात्र इस शक्ति के ऊपर मैस्मरेज्म की आधार शिला रखी गई है। इस शक्ति के प्रयोग से कोई भी व्यक्ति वायु में उड़ सकता है। रोगों का निराकरण कर सकता है आदि-आदि। इस प्रकार के मानसिक प्रवाह को हमारे शास्त्रों में अंग्रेजी में “(्नह्वह्ड्ड)” कह कर घोषित किया गया है। अस्तु,
यह आश्चर्यजनक विद्या किसी को अल्पाभ्यास क्षण में प्राप्त नहीं हो सकती। इसको जीतने के लिये आत्म विश्वास, दृढ़ इच्छा शक्ति, दृढ़ संकल्प परमार्थ बुद्धि, बेधक दृष्टि स्वस्थ शरीर, प्रखण्ड अर्थ शुद्ध आहार विहार और शान्त चित्त होना आवश्यक है। इसके बाद अभ्यास क्षेत्र में प्रवेश कर और सफलता पाने के लिये यह भी प्रयोजनीय है नित्य ब्रह्म मुहूर्त में उठो। शान्त कमरे में प्रविष्ट कर एकाग्रता से ध्यान करो। किसी वस्तु विशेष एकाग्र दृष्टि डालने का साधन करो, सूर्यदेव को दृष्टि से देखो- इससे ही आंखों में कुर्स मकना सी पैदा होती है। किसी पवित्र मूर्ति का ध्यान करो इसमें चित्त स्थिर न हो तो एक सफेद कागज लेकर उसमें पेन्सिल से गोल और काले चिन्ह बना कर उन्हें गिनने का अभ्यास करो। इस रीति से नित्य 5 मिनट, 10 मिनट और बाद में इस नियम के लिये ज्यादा समय देने का अभ्यास करो। साथ साथ मन को सन्तोष देते रहो कि मेरी आँखों में पवित्रता है, ज्ञान तन्तु सबल और दृढ़ हैं और मेरी आंखों में दूसरों को काबू में रखने का विलक्षण प्रभाव है। मैं सर्वथा निर्भय हूँ दूसरों पर सत्ता कायम करने के लिये मुझमें मानसिक और शारीरिक बल की पूर्णता हैं। ऐसी नियमित भावना और अभ्यास करने से एक न एक दिन हम अपने आप मैस्मेरिज्म के तत्व को पहुँच सकते हैं। इसके अतिरिक्त एक दूसरा मार्ग भी है और इसे दीर्घ श्वास खींचने की क्रिया कहते हैं। यह हमारे प्राणायाम से मिलता जुलता मार्ग है यह प्रयोग गृह की अपेक्षा एकान्त स्थल में करने से शीघ्र और अधिक सफलतादायी सिद्ध होता है। क्योंकि यहाँ आकर्षण शक्ति और एकाग्रता सरलता से स्फूरित हो जाती हैं। परन्तु आज के मैस्मेरिज्म जानने वाले सब के सब लोग सिद्ध पुरुष नहीं हो सकते। क्योंकि उनमें उपर्युक्त गुणों का सर्वथा अभाव रहता है। बहुत से तो लालचवश मैस्मेरिज्म को धन पैदा करने का साधन बनाने में लगे हुए हैं और बहुत से इसके द्वारा दूसरों को कष्ट पहुँचाने और नीचा दिखाने का उपाय करते पाये जाते हैं। कई एक इस के अधकचरे ज्ञान के बल पर भीख कमाने में लगे हुये है। अतः इन लोगों से इस विद्या की जानकारी प्राप्त करने का स्वप्न देखना सर्वथा भ्रम पूर्ण है इस विषय के ज्ञान की हर भाषा में एक से एक बढ़ कर अलग-अलग पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। अतः इसके अभ्यार्थियों को पहिले उन पुस्तकों का अध्ययन करके मूल विषय की सम्पूर्ण अभिज्ञता प्राप्त करना चाहिए।
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