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Magazine - Year 1944 - Version 2

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Language: HINDI
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पाचन क्रिया को ठीक रखिए।

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जान विक्टर हेमन ने अपनी रोग मुक्ति की चर्चा करते हुए बताया है कि वह अपनी जिन्दगी से नाउम्मीद हो चुके थे। आये दिन नए-नए तर्ज की बीमारियाँ पैदा होती थी। इंजेक्शन लगवाते-लगवाते उनका जिस्म छलनी हो गया था। सारी पैतृक सम्पत्ति को डॉक्टर लोग चाट चुके थे, इस पर भी कुछ लाभ न था। हालत दिन पर दिन गिरती गई यहाँ तक कि चारपाई पर से उठकर चलना फिरना उनके लिए दूभर हो गया। ऐसी दशा में एक दिन पड़े-पड़े उन्हें विचार आया कि पाचन क्रिया के ठीक न होने से मेरी यह दुर्दशा हुई। यदि किसी प्रकार मेरा पेट सुधर जाए तो मैं मृत्यु के मुख में से निकल सकता हूँ। मृत्यु का भय और जीवन का लोभ दोनों ने उन्हें असाधारण साहस प्रदान किया और वे सारी दिलचस्पी तथा बुद्धिमानी के साथ पेट को सुधारने में लग गये। उन्होंने एनिमा द्वारा पेट को साफ करना, उपवास, व्यायाम और उचित आहार इन चार नियमों को अपनाया और अपने आप अपनी समझ से अपनी चिकित्सा करते रहे। परिणाम यह हुआ कि दिन-दिन उनकी हालत सुधरती गई और कुछ ही समय में वे पूर्णतया निरोग और स्वस्थ हो गये थे। जीवन से निराश और मृत्यु की घड़ियाँ गिनने वाले व्यक्ति ने नया जीवन प्राप्त किया। बीमारियों से छुटकारा पाने के पश्चात् जान हेमन ने लम्बा दीर्घ जीवन प्राप्त किया जब तक वे जिये फिर कभी वे बीमार न पड़े। अमेरिका के श्री सानफोर्ड वेनिट के अनुभव भी ऐसे ही हैं। उनने भी पेट की पाचन क्रिया का सुधार करके 72 वर्ष की आयु में तरुण अवस्था जैसा अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त किया था। अमेरिका का वर्तमान राष्ट्रपति रुजवेल्ट का स्वास्थ्य एक बार इतना बिगड़ गया था वे चलने फिरने से भी लाचार हो गये थे, हाथ पैरों ने उनका साथ देना छोड़ दिया था। दवा दारु के उपाय जब बिलकुल कुछ काम न आए तो उन्होंने प्राकृतिक नियमों का सहारा लेकर अपने स्वास्थ्य को सुधारने का स्वयं प्रयत्न किया। उस प्रयत्न में उन्हें पूरी सफलता भी प्राप्त हुई। गत नौ वर्ष से लगातार वे राष्ट्रपति के महत्त्वपूर्ण पद का संचालन कर रहे हैं, कार्य भार उन पर बहुत अधिक रहता है फिर भी उनके स्वास्थ्य में कुछ गिरावट नहीं आती वरन् तरक्की ही होती जाती है।

कहने का तात्पर्य यह है कि यदि प्रयत्न किया जाए तो शरीर को ऐसा बनाया जा सकता है कि रोग का घर न रहकर निरोग और सतेज बन जावे। कमजोरी, निस्तेजता, दुर्बलता, गिरावट को दूर हटाया जाना सरल है। क्योंकि यह सब दोष प्रकृति के विरुद्ध आचरण करने के ऊपर अवलम्बित हैं। यदि अपने खान-पान, रहन-सहन और आचार-विचारों को अप्राकृतिक बनने से रोके रहें और संयम तथा सदाचारपूर्ण नीति के अनुसार अपना कार्यक्रम रखें तो स्वास्थ्य को स्थिर रखना बहुत ही आसान साबित होगा। मोटा, तगड़ा, हृष्ट पुष्ट, माँसल, पहलवान बनना प्रयत्न साध्य है, इसके लिए विशेष रूप से विशेष कार्यक्रम को अपनाने की आवश्यकता होती है परन्तु काम चलाऊ स्वास्थ्य कायम रखना-बीमारियों से मुक्त रहना-तो नितान्त सुगम है।

कब्ज-क्या है? इस प्रश्न के उत्तर में यों कहा जा सकता है कि पेट के साथ बेइंसाफी करने का एक मजबूत सबूत है। जुल्म और बेइंसाफी करने वाले अपराधियों को सरकार सजा देती है। कानून का शासन इसलिए कायम है कि कोई बलवान आदमी किसी कमजोर के साथ ज्यादती न करने पावे। ईश्वर के कानून भी ऐसे ही हैं बेचारा पेट कुछ कह सुन नहीं सकता इसलिए उस की बेबसी का नाजायज फायदा उठाकर आप उस के साथ बेइंसाफी करें, शक्ति से अधिक काम उसके ऊपर लादें तो बड़ी सरकारी अदालत से-कुदरत की कचहरी से आपको सजा मिलेगी। इस सजा को ही बीमारी कहा जाता है। कुदरत की अदालत में झूठा इंसाफ नहीं होता-अगर आप प्राकृतिक नियमों को न तोड़ें तो यह हो नहीं सकता कि कोई बीमारी आपको सतावे। धर्मात्मा पुरुष को जेल पुलिस या अदालत का कुछ डर नहीं होता, इसी प्रकार जो लोग अपने आहार विहार में धर्म का, औचित्य का, ध्यान रखते हैं उन्हें रोगों का शिकार नहीं बनना पड़ता।

पेट का शरीर में प्रमुख स्थान है। यह इंजन है जिसमें सारे कारखाने को चलाने लायक ताकत बनती है। यदि इंजन ही खराब हो जाए तो कारखाने की दूसरी मशीनें अच्छी होने पर भी बेकार साबित होंगी। टंकी में पानी भरा हो तो सब नलों में पानी पहुँचता रहेगा, किन्तु यदि टंकी ही खाली हो जाए या रुक जाए तो नल भी बन्द हो जाएँगे। जिस प्रकार बिजली घर में तरह तरह के यंत्रों को चलाने और प्रकाश उत्पन्न करने की शक्ति पैदा होती है उसी प्रकार पेट में पाचन क्रिया द्वारा रक्त की उत्पत्ति होती है और उस रक्त से देह का हर एक कल पुर्जा चलता है। यदि पेट में खराबी है तो सारी देह खराब हो जाएगी, यदि पाचन क्रिया ठीक है तो सब कुछ ठीक रहेगा। इसलिए स्वास्थ्य को अच्छा रखने और बीमारियों से बचे रहने की जिन की इच्छा है उन्हें भली प्रकार समझ लेना चाहिए कि उनकी इच्छा पूर्ति का सर्वोपरि, सर्वप्रधान, मार्ग यह है कि अपने पेट को ठीक रखें, पाचन क्रिया को सुव्यवस्थित रखने पर पूरा पूरा ध्यान दें। इस सच्चाई को समझ लेना और तदनुकूल आचरण करना स्वास्थ्य प्राप्त करने का राज पथ है। जब तक मनुष्य दवा दारु की ओर ताकता है, खाद्य पदार्थों की फेहरिस्त में अटकता है तब तक समझना चाहिए कि वह वास्तविकता से दूर है। जब पेट की सफाई और सुव्यवस्था पर ध्यान दिया जाने लगे तब समझना चाहिये कि ठीक रास्ता मिल गया, दरवाजे की कुँजी को प्राप्त कर लिया। स्मरण रखिये आरोग्य का घर पेट है।

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