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Magazine - Year 1944 - Version 2

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व्यक्तिगत सफलता के आध्यात्मिक सूत्र

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प्रो. रामचरणजी महेन्द्र एम. ए. डी. लिट्.

अमेरिका के एक अत्यन्त सफल व्यापारी से एक बार उसकी सफलता का रहस्य पूछा गया। उसने उत्तर दिया-”मैं प्रत्येक दिन आरम्भ करने से पूर्व रात्रि में ही दस ऐसी आवश्यक बातें अपनी डायरी में लिख लेता हूँ जो मेरी अन्तःप्रेरणा मुझे निर्देश करती है, फिर दूसरे दिन प्रातःकाल से ही उन्हें पूर्ण करने पर जुट जाता हूँ और चाहे कुछ भी हो उन्हें पूर्ण कर ही डालता हूँ।” उत्तर पर गम्भीरता से सोचो। विचार करो। इस व्यक्ति की सफलता का रहस्य है दिव्य विचार तथा उनको क्रियात्मक रूप प्रदान करना (क्रद्बद्दद्धह्ल ह्लद्धशह्वद्दद्धह्ल श्चद्यह्वह्य ह्द्बद्दद्धह्ल ड्डष्ह्लद्बशठ्ठ) वह सर्वप्रथम उद्देश्य निश्चित कर लेता था और फिर उसकी सिद्धि में प्राणप्रण से जुट जाता था। निश्चय और दृढ़ता ही ने उसे सफल बनाया था।

हम बहुत सा समय व्यर्थ नष्ट कर देते हैं क्योंकि हम निश्चय नहीं कर पाते कि अमुक समय क्या करें। यदि हमारे पास पहिले से ही बाकायदा बना बनाया प्रोग्राम हो तो सिर्फ क्रम और व्यवस्था के कारण अपना अधिकाँश समय बचा सकते हैं। जितना अवकाश तुम्हारे हाथ में हैं उसका ब्यौरा ठीक इसी प्रकार रखो जिस प्रकार अपने रुपये पैसे का हिसाब रखते हो। यदि मन को नियत समय पर एक एक विषय पर ही लगाया जाए तो वह बहुत कुछ कर सकता है किन्तु यदि चंचलतापूर्वक कभी यह तो कभी वह किया जाए तो कुछ भी हाथ नहीं आता। आप भी अपने जीवन की स्थिति के अनुसार अपने समय को क्यों नहीं बाँट लेते।

विचारों की सूची-

कभी-2 हमारे मन में अत्यन्त पवित्र विचार उठते हैं। ऐसी बहुत सी अच्छी बातें मन में आ जाती हैं जिन से अत्यन्त लाभ की सम्भावना है। एक ऐसी डायरी बनाओ जिस में तुम ये नये-2 विचार लिखते रहो। तुम अपनी स्मरणशक्ति पर ही पूरा विश्वास न कर लो। संभव है तुम एक समय पर कोई उत्कृष्ट बात भूल जाओ। तुम इन शुभ विचारों को विस्मृत कर सकते हो। कहीं खो न जाएँ इसकी पूर्ण व्यवस्था करनी होगी। विचारों की इस लतिका में नित्य प्रति स्मरण करो। प्रारम्भ से अन्त तक श्रद्धापूर्वक पढ़ जाया करो। विचारों की यह लतिका तुम्हें स्मरण कराती रहेगी कि कौन-2 कार्य तुम्हें कर डालने हैं।

कार्ड पर लिखकर टाँग लो-

ऐसी बहुत सी बातें हैं जो तुम आज ही पूर्ण नहीं कर सकते। उनके लिये यथेष्ट समय चाहिए। तुम अभी नहीं तो इन बातों को महीने पन्द्रह दिन में पूर्ण करने की बात सोचा करते हो। सप्ताह और मास हो जाते हैं और कालान्तर में ये दिव्य भावनाएँ लुप्त हो जाती हैं। मेरे एक मित्र बार-बार कई महत्त्वपूर्ण कार्यों में चूक गये। वे उन्हें करना चाहते थे किन्तु बार बार स्थगित करते रहे। यदि कोई उनसे उन बातों को करने के लिये कहता रहता तो संभव है वे सब कुछ सम्पन्न कर जाते। मैंने उन्हें बताया है कि आप इन कामों को एक कार्ड पर लिखकर दीवार के उस हिस्से में टाँग दीजिये जहाँ आप अधिक देर तक बैठते हैं। स्थान ऐसा हो जहाँ आप की दृष्टि पड़ ही जाए ओर आप के नेत्र उसी बात पर जाकर टिकें। इस कार्ड से उन्हें आशातीत लाभ पहुँचा है। वे उससे बहुत डरते हैं। और प्रायः जो बात कार्ड पर एक बार लिख डालते हैं उसे पूर्ण कर ही डालते हैं। मैं प्रायः यही करता हूँ। कार्ड नहीं मिलता तो चाक, कोयला या पेंसिल से दीवार पर लिख डालता हूँ। फिर वे कार्ड पूर्ण हो ही जाते हैं। यह कार्ड हमारी इच्छा को उत्तेजना देकर सामर्थ्यशील बना देता है।

शीशे पर चिपकालो-

शीशे में अपना मुख देखने का शौक प्रायः प्रत्येक स्त्री पुरुष को होता है। डेलकार्नेगी अपनी पुस्तक (How to win Friends and Influence people) में लिखते हैं कि मेरे स्वर्ण सूत्रों को किताब से काटकर अपने शीशे के एक कोने में चिपका लो। लोगों को अपने विचारानुकूल बनाने की 12 रीतियों का वर्णन इस प्रकार करते हैं- 1-बहस मत करो। 2-दूसरों की बात का आदर करो, उसे कभी झूठा न बताओ। 3-अपनी भूल को फौरन स्वीकार कर लो। 4-वार्ता मित्रता के ढंग से शुरू करो। 5-इस तरह बातें करो कि जिससे दूसरा व्यक्ति तुम्हारी बातों को मंजूर करता चले। 6-दूसरों को ज्यादा बातें करने का मौका दो। 7-दूसरों को यह अनुभव कराओ कि सूझ उन्हीं की है। 8-दूसरे के दृष्टिकोण से देखने की चेष्टा करो। 9-दूसरों के विचारों और इच्छाओं का ध्यान रखो। 10-दूसरे के उच्च विचारों को जागृत करो। 11-अपने विचारों का जादू चलाओ। 12-शर्त मारो। लेखक की सम्मति है कि इन तमाम बातों को पुस्तक से काटकर शीशे पर चिपका लो।

मेज का दराज साफ करो-

एक अमेरिकन आत्म संयमी ने एक अपूर्व रीति निकाली है। वह सब अच्छी-2 बातें कागज के भिन्न भिन्न टुकड़ों पर लिखकर अपनी मेज की दराज में डालता जाता था। जो भी सुन्दर पुस्तक पढ़ता उसके उत्कृष्ट स्थल, नवीन समस्याएँ, महत्वपूर्ण सूत्र, अच्छी-2 बातें लिखकर इन टुकड़ों को अपनी मेज के दराज में डालता जाता था। प्रातः काल उठकर उन तमाम टुकड़ों को मेज पर फैला लेता और फिर एक के ऊपर एक जमाता। उन्हें ध्यान पूर्वक देखता। कंजूस जैसे अपने पैसे-2 की परवाह करता है उसी प्रकार वह उन्हें देखता। थोड़ी देर उन पर मन एकाग्र करता और पुनः उन्हें रख देता। तुम भी नित्य प्रति दिन यह कार्य कर सकते हो। इसके द्वारा तुम अपने स्वभाव, विचारों और आदर्शों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन कर लोगे।

सफल व्यक्ति का अध्ययन करो-

यदि तुम्हें कोई सफल व्यक्ति मिल जाय तो उस से मित्रता स्थापित करने का प्रयत्न करो। उसे यह स्पष्ट करो कि जिस से तुम बातें कर रहे हो वह कुछ महत्त्व रखता है। मित्रता स्थापित करने का सब से सरल उपाय यह है कि तुम उस से सलाह लो, उसके सामने अपने आप को नीचा दिखाओ, उसे उपदेश देने की उत्तेजना दो, उसकी सच्ची प्रशंसा करो, उसकी कोई पुस्तक पढ़ने के लिये माँग लो। उससे सफलता के विषय में पूछते जाओ। तुम्हारे प्रश्न सच्चे हों, उसे तुम्हारे ऊपर दया आ जाए तो अवश्य ही वह तुम्हें बहुत कुछ बता देगा। एक आकर्षक व्यक्ति के संपर्क में रहकर साधारण व्यक्ति भी कुछ चुम्बकीय शक्तियाँ प्राप्त कर लेता है।

अपने प्रिय हीरो की जीवनी पढ़ो-

उपनिषदों में कहा है कि ज्ञान की प्राप्ति कुछ कुछ स्वयंवर के ढंग से होती है। आत्मा जिसका वरण करती है उसी के समान अपना रूप प्रकट करती है। कवि की प्रतिभा स्वयं उसी को चुनती है जो उसे सब से प्रिय है। यही नियम आत्म संस्कार के लिये भी सत्य है। जिस महान् व्यक्ति का व्यक्तित्व तुम्हें सब से प्रिय है उसकी जीवनी को बार बार पढ़ो, अध्ययन करो, उस पर गम्भीरतापूर्वक विचार करो, उस में तन्मय हो जाओ-चाहे वह कोई सैनिक, तत्त्ववेत्ता, दार्शनिक या लेखक कोई भी क्यों न हो। हम सब थोड़ी बहुत मात्रा में अपने प्रिय व्यक्तियों के पुजारी (Hero worshipper) होते हैं। हमारा आचरण भी उन्हीं जैसा हो जाता है। महान व्यक्ति पुकार पुकार कर हमसे कह रहे हैं कि अध्यवसाय के बिना कुछ नहीं हो सकता। वही राजनीतिज्ञ की बुद्धि है, विजयी का अस्त्र है और विद्वान का बल है।

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