
मृत्यु की घड़ी
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(श्री रजेश, दीवा हमीद पुर)
है वियोग-योग का नियोग दुःखदा महा।
सर्व लोक मध्य आज शोक-सिंधु-सा बहा॥
(1)
थी कली जहाँ कभी सुभूमि-मध्य शोभिता।
हा! बनी वहीं किसी महान् व्यक्ति की चिता॥
वस्तु-वस्तु में प्रत्यक्ष मृत्यु है सुभासिता।
है अवण्य आप की प्रवंचना परम् पिता॥
देख जीव को सुखी प्रभो तुम्हें हुई स्पृहा।
है वियोग-योग का नियोग दुःखदा महा॥
(2)
सृष्टि में अप्राप्य है दशा सदैव एक-सी।
पंक में विलुप्त है प्रफुल्ल पुष्प की हँसी॥
जो बसी सुनेत्र-मध्य मूर्तिमान प्यार-सी।
है वही विभूति हाय! शेष अल्प क्षार-सी॥
‘विश्व है विनाशवान्’ सत्य वाक्य है कहा।
है वियोग-योग का नियोग दुःखदा महा॥
(3)
क्यों न भस्म हो शरीर अग्नि आप जी उठी।
रो उठा मनुष्य-वर्ग, एक हूक-सी उठी॥
सृष्टि आदि काल से सदैव ही गिरी, उठी।
व्यर्थ शोक-हर्ष है, बुरी गिरी, भली उठी॥
दैव का दिया सभी सदैव जीव ने सहा।
है वियोग-योग का नियोग दुःखदा महा॥
(4)
विश्व-वन्द्य-नीति वद्ध विश्व कृत्य कृत्य है।
कौन वस्तु है यहाँ कि जो सदा अमर्त्य है॥
विश्व में सदैव एक मृत्यु-आधिपत्य है।
व्यर्थ है विमोह-मोह, ‘राम नाम सत्य है॥’
आज गूँज वायु में अखंड शब्द है रहा।
है वियोग-योग का नियोग दुःखदा महा॥
*समाप्त*