
‘यही तो वह स्थान है’
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उत्तरी इंग्लैण्ड में चेस्टरफील्ड डॉर्वीशायर नामक एक सुसम्पन्न नगरी है। वहाँ से पाँच छह मील की दूरी पर ‘हार्डविकहल’ नामक एक उपनगर है। इसमें हार्डविक वंश के धनी मानी जमींदारों का निवास है। इन जमींदारों में कई लखपती कई करोड़पती हैं। वैसे तो वे सभी लोग लक्ष्मी के कृपा पात्र हैं। यह डाईनिक हाल वहाँ के ड्यूक ने प्रचुर संपत्ति खर्च करके सन् 1584 के लगभग बनवाया था। सम्राट वैरोनेट के वंशधारी ये जमींदार बड़ी-2 जागीरों के स्वामी थे और ऐश्वर्य का जीवन बिताने के निमित्त इस अप्सरा पुरी में समोद निवास करते थे।
सर राल्फ एक बड़े भारी जागीदार थे। इस नगर में वे सबसे बड़े धनी समझे जाते थे। क्योंकि उनका विवाह एक ऐसी युवती से हुआ था जो अद्वितीय रूप सुन्दरी ही न थी वरन् दहेज में अपने पिता के यहाँ से एक भारी जागीर लाई थी । सच तो यह है कि पति की अपेक्षा पत्नी की स्वतन्त्र संपत्ति कई गुनी अधिक थी। धन और रूप सौंदर्य के कारण ही नहीं वरन् सद्गुणों के कारण भी पत्नी अपने पति की प्राण बल्लभा बनी हुई थी। धन, स्वास्थ्य और प्रेम तीनों की प्रचुरता के कारण वह दंपत्ति स्वर्ग सुख का उपयोग करने लगा। दिन बीतते गये। श्रीमती राल्फ ने एक पुत्र प्रसव किया। उसके जन्मोत्सव का बड़ा भारी उत्सव हुआ। आनन्द की सीमा और अधिक विस्तृत हो गयी। बालक एस्टिनइ की चाँद सी भोली मूर्ति माता पिता के हृदयों में एक गुदगुदी पैदा करने लगी।
प्रकृति के कुछ ऐसे कठोर नियम हैं जिनके अनुसार सुख दुख में परिवर्तन होता ही रहता है। आज एक है तो कल दूसरा। समय की गति के अनुसार राल्फ को भी ऐसी ही विपत्ति सहनी पड़ी। उनकी पत्नी अबोध शिशु को बिलखता छोड़ कर सुरपुर सिधार गई।
वर्षों तक राल्फ विधुर जीवन बिताते रहे उन्होंने बालक के लालन पालन में अधिक ध्यान दिया। पर घटनाचक्र की प्रगति तो देखिये । पड़ोस की एक दरिद्र युवती मिस इथेला से राल्फ की चार आंखें हुई। आखिर वह एक दिन पत्नी ही तो बन बैठी। राल्फ ने इस सुन्दरी से विवाह करते समय बड़े बड़े सुख स्वप्न देखे किन्तु कालान्तर में भ्रम साबित हुए। इथेला सुन्दरी तो अवश्य थी पर उसके अन्दर कनक घट में विष रस भरा हुआ था। अपने क्रूर स्वभाव के कारण पति का निरन्तर जी जलाने लगी। यों तो उसके भी एक लड़का हुआ उसका फिलिप नाम रखा गया, फिलिप का जन्मोत्सव भी शाही ठाठ बाठ से हुआ पर पत्नी के दुर्व्यवहार का रोष उसके पुत्र पर उतरा। राल्फ फिलिप को उतना नहीं चाहते थे जितना कि एस्स्टिन को। यह भेद भाव इथेला से भी छिपा न रहा। यह मर्माहत सर्पिणी की तरह पति पर सदैव नाना प्रकार के प्रहार करने लगी।
यह सब भी जल्दी ही समाप्त नहीं हुआ। कोई बीस वर्ष यों ही बीत गये। इथेला 40 वर्ष की हो चुकी थी और राल्फ 60 वर्ष के। एसिस्टन 22 वर्ष का था और फिलिप उससे तीन वर्ष छोटा । राल्फ अपने इस परिवार को छोड़कर परलोक सिधार गये । जागीर का अधिक भाग पूर्व पत्नी का था इसलिए वह कानून की दृष्टि से एसिस्टन को ही मिला। राल्फ की जायदाद दोनों लड़को को आधी आधी हो गई। इस प्रकार फिलिप की अपेक्षा एसिस्टन कोई दस गुना अधिक धनी हुआ।
इथेला और फिलिप से यह सहन नहीं हुआ ईर्ष्या से उनका हृदय जल उठा। चाँदनी जैसी सुन्दर मिशफिल शिया नामक एक किशोरी के साथ एसिस्टन पाणिग्रहण होना उसके पिता निश्चित कर गये थे। यह बालिका इतनी सुन्दर थी कि उसे फूलों की रानी कहकर पुकारा जाता था। फिलिप हसरत भरी निगाहों से उसे देखा करता और उच्छ्वास भर कर रह जाता कि हाय! ‘फूलों की रानी क्या मेरे भाग्य में नहीं है।
इथेला बड़ी ही क्रूरकर्मा थी। उसने पुत्र के मनोभावों को ताड़ लिया और एक बड़ी ही निर्दय मंत्रणा तैयार कर ली। काँटे को हटाकर सारा सुख सौभाग्य प्राप्त करने के लिए फिलिप व्याकुल हो उठा। एक दिन वह निर्धारित मंत्रणा कार्यरूप में परिणित हो गई। दूसरे दिन घोषित कर दिया गया कि एसिस्टन बिना कुछ कहे सुने कहीं चला गया। कहाँ गया।? क्यों गया? यह प्रश्न सबके मस्तिष्क में गूँज रहे थे पर उत्तर कुछ नहीं था। मुद्दतों खोज बीन होती रही, पर परिणाम क्या होना था, एसिस्टन कहीं था थोड़े ही जो मिल जाता वह तो अन्तरिक्ष के छोर पर पहुँच चुका था।
ढूँढ़ खोज के बाद जब निराशा हो गई तो अदालत ने यह फैसला किया कि एसिस्टन की जायदाद फिलिप के नाम कर दी जाय। अपार धन सम्पत्ति का फिलिप स्वामी हुआ। विपत्ति की तरह सम्पत्ति भी अकेली नहीं आती वह भी अपना कुछ उपहार साथ लाती है। फिलिप को एसिस्टन की प्रेमिका फिलिशिया के साथ पाणिग्रहण का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो गई और अधिकारारुढ़ इन्द्र की भाँति गर्वोन्मत्त होकर ऐश्वर्य का उपभोग करने लगा।
फिलिप को शिकार का बहुत शौक था वह अपनी पत्नी और मित्रों के साथ घोड़ों पर शिकार के लिए जाया करता था। उस दिन भी इसी प्रकार का प्रमोद दिवस था। अचानक सब घुड़सवार एक हिरन के पीछे दौड़े जा रहे थे। अचानक फिलिप का ध्यान पीछे की ओर गया उसने देखा कि एसिस्टन घोड़े पर बैठा हुआ दौड़ता आ रहा है। हैं! एसिस्टन!! यहाँ!!! फिलिप के हाथ से घोड़े की लगाम छुट गई। फिलिशिया का ध्यान भी उधर गया वह भी अपने पूर्व प्रेमी को देखकर सन्न रह गई। सवारों को रुकना पड़ा। घोड़े अस्थिर हो गये। वे बेतहाशा डर रहे थे। पार्टी के सब लोगों ने देखा कि एसिस्टन घोड़े पर सवार है और उंगली का इशारा करके एक जगह को दिखा रहा है-”देखो ! यही तो वह जगह है।” फिलिप मूर्च्छित होकर गिर पड़ा फिलिपशिया थर थर काँप रही थी। साथ के शिकारी कुत्ते उस संकेतित स्थान पर दौड़े और सूँघ सूँघ कर पंजों से खोदने लगे। एसिस्टन की छाया मूर्ति वहाँ से हटी नहीं वरन् बराबर उस स्थान की ओर इशारा करती रही। सवारों को वह स्थान खोद कर देखने के लिए विवश होना पड़ा। देखा तो उसमें एसिस्टन की लाश दबी हुई थी। उसको कत्ल करके मारा गया था।
जैसे तैसे सब घर लौटे। झुण्ड के झुण्ड दर्शक उस वन्य प्रदेश में एसिस्टन की दबी हुई लाश को देखने पहुँचे। इथेली इस घटना के बाद पागल हो गई वह सड़कों में गलियों में चिल्ला कर बताती फिर रहीं है कि किस प्रकार एसिस्टन की निर्दय हत्या उसने की। फिलिप उस मूर्छा से नहीं उठा और एक सप्ताह के भीतर उसकी मृत्यु हो गई।
हार्डविक हाल जो एक समय इन्द्र का अखाड़ा बना रहता था। आज श्मशान की शान्ति में डूबा हुआ रो रहा है।