
गो दुग्ध ही व्यवहार कीजिए।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(श्री द्वारिकाप्रसाद जी गुप्त, गया)
डॉ. एस. के. आप्टे, मि. वाटसन मालकोम और पैटसन, मि. स्मिथ साहब ऐसे ऐसे अन्वेषकों द्वारा रचित पुस्तकों का मनन करने से पता चलता है कि-”मानव जीवन को स्वस्थ, नीरोग मेधावी और पुरुषार्थी बनाने के लिये फलाहार, शाकाहार और माँसाहार आदि जितने भी प्रकार के भोजन हैं, उसमें शाकाहार का स्थान मध्यम होते हुए भी गो-दुग्ध अमृत तुल्य पौष्टिक पेय पदार्थ है। भारत के प्राचीन रसायन तत्व विशेषज्ञों के विश्लेषण द्वारा यह प्रमाणित हो चुका है, कि जिस प्रकार स्त्री अर्थात् माता का दूध ‘बाल जीवन और प्रत्येक ऋतु तथा प्रत्येक दशा में पथ्य योग्य, मधुर, शीतल, हलका, दीपन, पाचन, धातु-वर्द्धक, रुचिकारक, तृप्तिकारक एवं रुधिर विकारों का रहने वाला, पित्तनाशक सात्म्य और जीवन देने वाला होता है। ठीक उसी प्रकार गाय के दूध में रासायनिक पदार्थों की अधिकता होने तथा स्त्रियों की भाँति गर्भ धारण कर 9-10 मास में प्रसव करने के कारण। इससे बढ़ कर शारीरिक एवं मानसिक शक्ति प्रदान करने वाली संसार में कोई दूसरा प्राणी नहीं है और इसके दूध से बढ़कर दूसरा कोई पुष्टिकर पेय पदार्थ नहीं है, क्योंकि यह शीघ्र पचने वाला, रक्तशोधक, शुक्र जनक, शीतल, मीठा रसायन, वमन विरेचन, वस्तिक्रिया के समान ओज बढ़ाने वाला, उन्माद, मूर्च्छा, हृदयरोग, कुष्ठ रोग आदि अनेक रोगों से मुक्त कर शरीर को पुष्ट और वर्ण को सुन्दर बनाने वाला है। आधुनिक वैज्ञानिकों में डॉ. एस. के. आप्टे, पूना कृषि कालेज के प्रोफेसर राय बहादुर डी. एन. सहश्रबुद्धे ने भी अपने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया है, कि गो-दुग्ध मानव समाज के लिये बहुमूल्य पदार्थ तो है ही, बालकों के लिये तो यह अमृत है, क्योंकि बालकों के बौद्धिक-विकास के लिये स्त्रियों के दूध को छोड़कर संसार में गो-दुग्ध से बढ़कर कोई अन्य पदार्थ नहीं है। कुछ लोग भैंस के दूध को अधिक महत्व देते हैं, किन्तु भैंस के दूध की अपेक्षा गोदुग्ध में चिकनाई, केसीन (दूध की सफेदी) और विटामिन (खाद्य-प्राण) विशेष परिमाण में होते हैं, जिससे बच्चे और बड़े भी सुगमता या शीघ्रता से पचा नहीं सकते हैं। बच्चा यदि किसी प्रकार पचा भी ले, तो उसे दस्त का रोग अवश्य हो जायगा। यही नहीं, बल्कि चिकनाई में जो क्षार-नमक (एसिड) का भाग होता है वह शरीर के उस लवण का भाग शोषण कर लेता है जो हड्डियों के निर्माण के लिए अत्यावश्यक है। लवण का भाग सोख लेने के किरण बालकों को सूखे की बीमारी हो जाती है। बाजारों में भैंस का दूध अधिक मात्रा में मिलने से बालक के माता-पिता अपने बच्चों को यही दूध पिलाते हैं, जिसके फलस्वरूप बालक दस्त रोग से पीड़ित होकर अधिकाधिक संख्या में काल कवलित हो जाते हैं, यदि माता-पिता के सौभाग्य से बच्चा जीवित भी रह गया तो वह नाना प्रकार के रोगों से ग्रसित रहता है और निर्बल शरीर धारण कर अपना जीवन व्यतीत करता है। ऐसी दशा में यदि विचार पूर्वक देखा जाय तो बालकों के लिये क्या, मनुष्य मात्र के लिये गो-दुग्ध ही अमृत और सभी अवस्थाओं में व्यवहार करने योग्य है।