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Magazine - Year 1944 - Version 2

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बें बें करने से मुख का ग्रास खो जाता है।

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(श्री स्विट मार्सडन)

अंग्रेजी की एक कहावत है कि “मेंढ़ा जितनी बार बें बें करता है वह उतनी ही बार अपने मुँह के ग्रास खो देता है।” यह बात उन लोगों पर लागू होती है। जो अपने भाग्य को दोष दिया करते है। अपनी अयोग्यता और दीनता का रोना रोया करते है। जितनी ही बार ऐसे दुर्बलता सूचक विचार किये जाते हैं। उतना ही उनके संस्कार मन पर मजबूती से जमते हैं और कार्यकारिणी शक्ति में घटोत्तरी होती जाती है।

विचारों में एक प्रकार की चुम्बक शक्ति है जो अपने समान पदार्थों को आकर्षित करती है। अगर आप दीनता, दुर्भाग्य और आधि-व्याधि के विचारों में डूबे रहें तो यही चीजें किसी न किसी प्रकार प्राप्त हो जावेगी। यह हो नहीं सकता कि जैसे कुछ आप विचार करें उनके विपरीत परिस्थितियाँ प्राप्त हों। विचार बीज है और परिस्थिति उसका फल है।

यात्री का मुँह जिधर होता है, उधर ही उसकी यात्रा बढ़ती है। यदि कायरता और दरिद्रता की ओर बढ़ती जाती है। यदि कायरता और दरिद्रता की ओर आपका मुँह है तो इसी दिशा में लगातार बढ़ते जाओगे। आशंकायें अक्सर मूर्तिमान हो जाती हैं जिन्हें असफलता की, विपत्ति की, तंगी की आशंका लगी रहती है देखा गया कि अक्सर वैसी ही परिस्थितियाँ उनके सामने आ खड़ी होती हैं। इसके विपरित साहसी और आत्मविश्वासी लोग निरंतर विजय के पथ पर बढ़ते चले जाते हैं।

कमजोरी, दुर्भाग्य और आशंका पूर्ण बुरे विचारों को मन में मत आने दो इनसे लाभ कुछ नहीं हानि अधिक है। स्मरण रखिए मेंढ़ा कितनी बार बें बें करेगा। उतनी ही बार अपने मुख का ग्रास खोवेगा। आप जितना ही दुर्भाग्य का रोना रोवेंगे उतनी ही बार अपने सौभाग्य के अवसर खोवेंगे।

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