
गंगा जी का वैज्ञानिक महत्व
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गंगा के जल में कुछ ऐसे रासायनिक पदार्थों का मिश्रण है जिससे उसके द्वारा समय-समय पर आश्चर्यजनक परिणाम उपस्थित होते हैं। गंगा जल वर्षों तक रखा रहने पर भी खराब नहीं होता है। बल्कि खराब पदार्थ गंगा में पड़कर अपना बुरा प्रभाव खो बैठते हैं। हरिद्वार के गंगातट पर खासकर ब्रह्मकुण्ड में लाखों मन हड्डियाँ डाली जाती है। इस कुँड में से उन हड्डियों के निकालने का कुछ प्रबन्ध नहीं है। किन्तु गंगा जल के प्रभाव से वहाँ हड्डियों का निशान भी नहीं बचता सब गलकर पानी हो जाती हैं। इस पर भी वह गंगाजल डाक्टरी परीक्षा से शुद्ध ही साबित होता है। संक्रामक रोगों के रोगियों की हड्डियाँ अपने विष से गंगाजल को दूषित नहीं कर पाती वरन् स्वयं ही निर्विष हो जाती हैं।
वैद्यक ग्रन्थों का मत है कि अजीर्ण, पुराना बुखार, तपेदिक, पेचिश, दमा, पर्म रोग मस्तक शूल आदि रोगों के लिए गंगाजल का सेवन बहुत ही लाभदायक है। स्वास्थ्य को सबल बनाने की और संक्रामक कीटाणुओं को नाश करने की शक्ति है। कुष्ठ रोगियों को गंगा किनारे रखने का प्रयोजन यह है कि वहाँ की जलवायु से कुष्ठ अच्छा हो जाय। इतना तो निश्चित है कि गंगाजल के व्यवहार से कोढ़ की बढ़ोतरी रुक जाती है। बर्फ का शुद्ध जल गंगा में आता है यह तो है, इसके अतिरिक्त जिन पर्वतीय स्थानों में होती हुई वह बहती है उन भागों में लाभदायक रासायनिक पदार्थों की खानें तथा जड़ी बूटियों के जंगल हैं यह सब चीजें गंगाजल में मिलकर उसमें जादू जैसे गुणों को समावेश कर देती है। चाँदी और सोने का कुछ भाग गंगाजल में पाया जाता है जो कि तन्दुरुस्ती बढ़ाने के लिए बहुत ही उपयोगी है। गंगाजल ऐसा शोधक और जन्तु नाशक है कि आज कल किनारे के शहरों की सारी गंदगी उसी में डाली जाती है तो भी उसकी शुद्धता में अन्तर नहीं आता। सैकड़ों नदी नाले रास्ते में मिलते जाते हैं, तो भी गंगा में मिलकर वह सब पानी गंगा के समान ही गुणकारी हो जाता है। डॉक्टर नेलसन ने लिखा है। कि कलकत्ता से चलने वाले जहाज हुगली नदी से गंगाजल लेकर चलते हैं और यह पानी लंदन तक खराब नहीं होता लेकिन लंदन से जहाजों में जो टेम्स नदी का पानी भरा जाता है वह बम्बई पहुँचने से पहले ही खराब हो जाता है
फ्रांस के डॉक्टर डी हेटेल ने अपने वैज्ञानिक प्रयोगों से सिद्ध करके दिखाया है कि गंगाजल में क्षयों, संग्रहणों और विशूचिका जैसे कठिन रोगों को अच्छा करने के शक्ति है तथा बिगड़े हुए घाव और फोड़े उससे अच्छे हो सकते हैं। इन डॉक्टर महोदय ने गंगाजल के संमिश्रण से एक बैक्टीरियाफाज” (क्चद्गष्ह्लशह्द्बशश्चद्धड्डद्दद्ग) नामक औषधि बनाई है जो ऐसे ही कठिन रोगों में प्रयोग की जाती है।
अमेरिका का एक यात्री मार्क टूबेने भारत आया था उनने लिखा है कि - जब हम आगरा पहुँचे तो एक आश्चर्यजनक वैज्ञानिक घोषणा सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। वह घोषणा यह थी कि - संक्रामक बीमारियों के कीड़ों को नाश करने वाला सबसे प्रधान द्रव गंगाजल है यह घोषणा ध्रुव सत्य थी।
सरकारी वैज्ञानिक विभाग के कार्यकर्ता मि.हेनकेन ने अनेक प्रकार के गंदे तथा संक्रामक रोगों से भरे हुए पानी को विभिन्न नदियों के पानी में डालकर अपना परीक्षण किया। उनने देखा कि गंगाजल में कुछ ही घंटे के अन्दर वे समस्त कीटाणु नष्ट हो गये। किन्तु दूसरी नदियों के जल में वे कीटाणु असाधारण गति से बढ़ने लगे। सन् 1924 में जर्मनी के प्रमुख वैज्ञानिक डॉक्टर जे. आलिवर भारत आये थे उन्होंने यहाँ की सभी नदियों के जलों की परीक्षा की। अपने परीक्षण की विस्तृत रिपोर्ट उन्होंने न्यूयार्क के इंटरनेशनल मेडिकल गजट में छपाई थी। उन्होंने गंगा के बारे में लिखा था कि गंगाजल संसार के सब जलों से स्वच्छ, पवित्र, कीटाणु नाशक तथा स्वास्थ्यकर है। योरोप के जल विशेषज्ञ डॉक्टर ई.एफ.केहियान भारत आये थे उन्होंने अपने परीक्षण का परिणाम बताते हुए लिखा है कि-गंगाजल अत्यंत स्वच्छ तथा पवित्र है। इसमें रक्त बढ़ाने की शक्ति है। रोगियों को इसके द्वारा एक विचित्र मानसिक शान्ति प्राप्त होती है यही कारण है कि भारतवासी किसी व्यक्ति के मरते समय उसके मुँह में गंगाजल डालते हैं ताकि मानसिक शान्ति के साथ रोगी की मृत्यु हो। कभी-कभी तो ऐसी आश्चर्यजनक घटनाएँ देखी जाती हैं कि गंगाजल के प्रयोग से मृत व्यक्ति जीवित हो उठे (विजयनगर थर्ड डायनिस्टी 1935) से पता चलता है कि विजय नगर के राजा कृष्ण राय जब वे मृतप्राय थे तो उनको गंगाजल दिया गया और उसके प्रभाव से वे अच्छे हो गये।
गंगाजल की विशेषता और महानता के संबंध में दुनिया को अभी बहुत थोड़ी बातें मालूम हुई हैं परन्तु जैसे-जैसे उसके गुण और लाभों का पता चलता जायगा, संसार भर को गंगाजी की महिमा उसी प्रकार स्वीकार करनी पड़ेगी जैसे कि आस्तिक हिन्दू लोग करते हैं।