
छोटे कार्यों में महानता का प्रदर्शन
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
यूनान देश के थ्रोंस प्रान्त के अब्डेरा नगर में एक अनाथ बालक बड़ी तत्परतापूर्वक विद्याध्ययन करता था। वह नित्य जंगल से लकड़ियाँ काटकर लाता और बाजार में बेचकर अपना पेट भरता था।
एक दिन एक भला आदमी उधर से निकला उसने देखा कि लकड़ियों का गट्ठा बड़ी सुन्दरता और कलापूर्ण ढंग से बंधा हुआ है। भला आदमी उसे देखने के लिए ठहर गया और लड़के के शऊर की परीक्षा लेने के लिए उससे कहा-इस गट्ठे को खोल कर तुम फिर से बाँधों में देखना चाहता हूँ। लड़के ने अपना गट्ठा खोलकर लकड़ियाँ बखेर दी और फिर उन्हें उसी तरह चुनकर कला पूर्ण ढंग से बाँधा। भले आदमी पर इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। क्योंकि लड़के के अन्दर “छोटे काम को भी पूरी दिलचस्पी और कलापूर्ण ढंग से करने” के संस्कार थे। ऐसा शऊर और संस्कारों वाले मनुष्य ही संसार में महापुरुष हुआ करते हैं।
भले आदमी ने उस लड़के को अपने साथ ले लिया और उसकी सारी शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध स्वयं किया। यह लड़का बड़ा होने पर यूनान का महान दार्शनिक पैथागोरस कहलाया और वह भला आदमी जिसने एक ही दृष्टि में बालक के अन्दर छिपे हुए देवत्व को पहचान लिया था वह था यूनान का विश्व विख्यात तत्वज्ञानी डेमोक्रीटस।
डेमोक्रीटस जिस गुण पर मुग्ध हुआ था वह गुण देखने में साधारण था पर वास्तव में महानता का बीज उसी के अन्दर छिपा हुआ है। जो मनुष्य अपने काम को पूरी दिलचस्पी से कलापूर्ण ढंग से इस प्रकार करता है उसी व्यक्ति के कार्य आदर्श और प्रशंसनीय होते हैं। जो छोटे काम में अपनी महानता की छाप लगाता है दुनिया उसी को महत्व प्रदान करती है।