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Magazine - Year 1944 - Version 2

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वर्तमान से मूल्यवान कोई समय नहीं

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(डॉक्टर रामचरण महेन्द्र एम.ए.डी.लिट्.) एफ .बी.टी (लंदन)

कतिपय सज्जन कहा करते हैं कि क्या बताएँ समय ही ऐसा खराब है कि हम कोई शुभ कार्य प्रारम्भ नहीं कर सकते। जब उपयुक्त काल आयेगा हम आध्यात्मिक उन्नति का कार्य करेंगे। ऐसे व्यक्ति आयु पर्यन्त कुछ नहीं कर पाते। प्रबल इच्छा की न्यूनता के कारण उनकी शक्तियाँ उत्कृष्ट मार्ग पर अग्रसर नहीं होती।

यदि तुम वास्तव में कोई उत्तम कार्य करना चाहते हो तो समय, का रोना न रोते रहो। समय तुम्हारी परिस्थिति, दुनिया की उलझनें तो यों ही चलती रहेंगी और तुम सोते-सोते ही पूर्ण आयु समाप्त कर डालोगे। समय अति अल्प है और तुम्हें कार्य अत्यधिक करना है। वायुवेग से तुम्हारा अमूल्य जीवन कम हो रहा है अपव्यय करने का समय नहीं है।

मुक्ति से बढ़कर संसार का अन्य कोई अभीष्ट नहीं तथा उसकी प्राप्ति के निमित्त वर्तमान काल से उत्तम अन्य कोई समय नहीं। जो समय व्यतीत हो गया सो सदैव के लिए हाथ से निकल गया। भविष्य के विषय में किसे ज्ञात है। जो कुछ करना है, आज ही कर लेना चाहिए। आगे की परिस्थिति की कौन जाने। आज हमें जो सुविधाएँ हैं किसे मालूम कल वे रहें न रहें।

उत्तम कार्य के लिए प्रत्येक अवसर ही सुअवसर में परिणत कर देने की क्षमता रखती है। हमें उत्तम अवसरों की प्रतीक्षा में बैठे-बैठे व्यर्थ समय ना नष्ट करना चाहिए प्रत्युत साधारण काल को ही उत्तम अवसर में परिणत कर लेना चाहिए। समय पर चूक जाने से आयु पर्यन्त पछताना पड़ता है।

प्रियवर जागृत हो जाइये। आपने अपना बहुत सा समय नष्ट कर दिया। अब अल्प काल को लेकर साधन में आरुढ़ हो जाये। जीवन तो अनित्य क्षणभंगुर है। किस क्षण परवाना आ जाय कौन कह सकता है। गाफिल पड़ते रहने से जो समय की पूँजी तुम्हारे पास अवशेष है वह भी व्यर्थ बरबाद हो जायगी। एक-एक क्षण बहुमूल्य है। उफ यह बेशकीमती दिन किस वायु वेग से उड़े जा रहे हैं। देखते देखते मिनट, घंटे दिन, वर्ष समाप्त हुए जा रहे हैं।

सुबह होती है शाम होती है।

यों ही उम्र तमाम होती है॥

सुनो महात्मा कबीर पुकार-पुकार कर चेतावनी दे रहे हैं। यथार्थ समय आ उपस्थित हुआ है। देखो। इसे नष्ट न करो -

कहता हुँ कह जात हूँ कहाँ बजाऊँ ढोल।

स्वास खाली जात है तीन लोक का मोन॥ कबीर

विचार कीजिए व्यर्थ की हाहा-हूहू में नष्ट कर देने के लिए आपके पास कौन सा वक्त शेष रहा है। दिन रात आलस्य, मोह, ताशबाजी में खराब कर देने के लिये अब कौन से क्षण पड़े हैं इधर-उधर की ठिठोली, दूसरों की खराबियाँ निकालने या मजेदारियाँ करने के लिए अब कहाँ टाइम है।

“आज तो नहीं कर सके कल से अमुक काम प्रारम्भ करेंगे।” इस प्रकार “कल” पर टालने वाले व्यक्ति मरते समय अत्यन्त पश्चाताप करते हैं और कुछ नहीं कर पाते। व्यर्थ गंवाये हुए समय के पश्चाताप में ही उनके प्राण पखेरू उड़ जाते है।

आपके आठ घंटे सोने में व्यतीत हो जाते हैं। फिर दो तीन घंटे दोनों समय स्नान, शौचादि से निवृत्ति में निकल जाते हैं। कुछ मित्रों से गपशप में निकल जाते हैं। कठिनाई से आप अपने ऑफिस का काम कर पाते हैं वहाँ से हड़बड़ाते हुए गृह वापिस लौटते है। फिर चाय पीने सुस्ताने में कुछ समय निकल जाता है। आप कहते हैं “आध्यात्मिक उन्नति के लिए अवकाश प्राप्त नहीं होता फिर देखा जायगा।”

प्रियवर, व्यर्थ के तर्क देकर वास्तविक सत्य पर पर्दा न डालो। तुम स्वयं ही आपने मित्र हो और स्वयं ही अपने शत्रु। यदि विवेकपूर्ण दृष्टि से चलो तो यथेष्ट समय निकाल सकते हो। सूर्य के चढ़ आने पर उठने के स्थान पर जल्दी उठो। अधिक वार्तालाप, गपशप, चहलकदमी, आलस्य, परछिद्रान्वेषण इत्यादि से समय निकालो। समय की पाबंदी सुशीलता का चिन्ह है।

तुम अपने दिनभर के कार्यक्रम की आलोचना करो। क्या खान-पान, वस्त्राभूषण पदार्थ संग्रह, शृंगार इत्यादि शरीर के क्षुद्र विषयों में तुम अपना बहुमूल्य समय व्यतीत करते हो? अपने अन्तःकरण का अन्तःदर्शन करो। क्या ऊँचा उठने और इन क्षुद्रताओं से वैराग्य प्राप्त करने की उत्कृष्ट भावना तुम्हारे मनोमन्दिर में प्रविष्ट होकर तूफान नहीं मचाती? तुम्हारे मित्र तेजी से उन्नति के पथपर अग्रसर होते चले जा रहे हैं और तुम अड़ियल अश्व की भाँति जहाँ के तहाँ निष्क्रिय पड़े सड़ते रहे हो? एकान्त में बैठकर अपनी आत्मा को टटोलो। वहीं से तुम्हें आन्दोलन की प्रेरणा प्राप्त होगी।

हे व्यथित आत्मा। इतना समय व्यर्थ करने पर अब जो समय शेष है उसे कृपण की भाँति कार्य में व्यतीत कर। प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व जाग्रत होकर अपने हृदयस्थ आत्मा द्वारा निर्देशित मार्ग पर नियमित रूप से आरुढ़ हो। तेरे अणु-अणु में पवित्रता हो। तेरे रोम-रोम में शान्ति का निवास हो। तेरे हृदय में परमपिता का साक्षात्कार हो। आन्तरिक प्रदेश में दृढ़ संकल्प हो और तू प्रत्येक क्षण अखण्ड आनन्द का अनुभव करते हुए अग्रसर हो तो वास्तविक जीवन का रसास्वादन कर सकता है।

एक-एक पैसा एकत्रित करने से निर्धन धनवान बनता है; एक-एक क्षण का विचार रखने वाला सिद्धि प्राप्त कर लेता है। आत्मसाक्षात्कार के अनुभव समय का हिसाब-किताब ठीक रखने वाला ही प्राप्त कर सकता है। व्यर्थ नष्ट होते हुए क्षणों को उद्योग में व्यय करने वाला साधक प्रतिभा प्राप्त करता है। हमें उत्तम अवसरों की प्रतीक्षा में न बैठे रहना चाहिए। शुभ कार्य के निमित्त प्रत्येक समय ही सुअवसर है। शुभ भावना साधारण समय को उत्तम अवसर में परिणत करने की क्षमता रखती है। तुम मोह निद्रा से जागृत हो कार्य में प्रवृत्त हो जाओ।

जेपीयर पान्ट मारगन की उक्ति है कि “मुझे एक घंटा एक सहस्र रुपये के अनुरूप प्रतीत होता है।” अह! इस दिशा में हम कितने अमीर हैं समय की कितनी सम्पत्ति हमारे पास पड़ी है। काश, हम उसका सद्प्रयोग सीख सकते? इस महापुरुष के कथनानुसार अत्यन्त अल्प मात्रा में मनुष्य समय का वास्तविक मूल्य अंकित होंगे। समय के प्रताप से अनभिज्ञ व्यक्ति ही क्रान्त एवं निर्धन दृष्टिगोचर होते हैं। कदाचित सुखी एवं दुःखी व्यक्ति में यही अन्तर है कि एक तो समय का सदुपयोग करता है किन्तु द्वितीय उसे व्यर्थ बरबाद कर देता है।

तुम कौन सी श्रेणी में हो। सोचो और उत्तर दो। यदि तुम समय व्यर्थ करते हो और व्यर्थ की दलीलें पेश करते हो तो संसार में कौन तुम्हें सद्मार्ग प्रदर्शन कर सकता है। तुम्हारे मन में इधर-उधर भ्रमण करने की आदत बन गई है, एकाग्र नहीं होता। तुम्हारी निष्फलता का मूल कारण एक से अधिक कामों में लगकर व्यर्थ समय बरबाद करना हो सकता है किन्तु इस दशा में स्वयं तुम्हीं मनः निग्रह कर सकते हो। तुम्हीं भ्रमित मन को मध्य बिन्दु में संलग्न कर सकते हो। एक कार्य करते समय अन्य प्रकार के विचार तुम्हें अस्त-व्यस्त न करें इसकी कुँजी तुम स्वयं हो। स्मरण रखो अधिकाँश पुरुष एकाग्रता के अभाव से मानसिक शक्तियों को बिखरी रखकर अधिक समय व्यर्थ खो दिया करते हैं। एकाग्रता में महान शक्ति अन्तर्निहित है। उसी के द्वारा तुम समय बचा सकते हो।

तुम जिस वस्तु की आकाँक्षा करते हो उसी को लेकर कर आत्मा में प्रविष्ट हो जाओ उसी पर चित्त केन्द्रित करो। उसी के अनुसार सोचो, विचारो, कल्प स्रष्टि करो। ज्यों-ज्यों तुम समय शक्तियों का संतुलित प्रकाश इस उद्देश्य पर गिराओगे समय तो बचेगा ही, साथ ही तुम्हारा इच्छित पदार्थ स्वयं आकर्षित होकर तुम्हारे समीप आवेगा। बलवान मनुष्य की दृढ़ इच्छाशक्ति प्रकृति समान अस्तित्व में सजीव तत्व है। मनुष्य इच्छा से बना हुआ है। इच्छा के अनुरूप रुचि, रुचि अनुरूप कार्य और कार्य के अनुरूप फल प्राप्त करता आया है।

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