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Magazine - Year 1944 - Version 2

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संगीत विश्व का प्राण है।

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सामूहिक संगीत का महत्व और भी अधिक है। एक साथ मिलकर जब कई व्यक्ति साथ-साथ गाते हैं तो उन सब लोगों का स्वर प्रवाह एवं आन्तरिक उल्लास, मिलकर एक ऐसी तरंग शृंखला उत्पन्न करता है जो उस वातावरण में मिलकर सबको उल्लसित कर देते हैं। जैसे थोड़ी-थोड़ी लकड़ी बहुत लोग इकट्ठी करके होली जमा करते हैं और फिर उसे जलाकर सब लोग एक बड़ी भारी अग्नि ज्वाला जलने का तमाशा देखते हैं और एक बड़े पैमाने पर गर्मी प्राप्त करते हैं। अगर सब लोगों ने पृथक-पृथक अपनी थोड़ी-थोड़ी लकड़ियों को जलाया होता तो उससे हर एक को जरा सी आग की लपट मिलती किन्तु सामूहिक प्रयत्न से हर एक को अपने निजी श्रम की अपेक्षा कई गुना लाभ उठाने का अवसर मिलता है। इसी प्रकार सामूहिक संगीत के द्वारा साथ-साथ गाने बजाने वालों को अपने प्रयत्न की अपेक्षा कई गुना अधिक लाभ मिल जाता है। जुलूसों में सामूहिक रूप से गीत गाये जाते हैं। झण्डाभिवादन, परेड, प्रार्थना, मंगलाचरण आदि अवसरों पर भी सामूहिक गान होते हैं, इसका फल सबको कई गुना प्राप्त होता है।

भगवन्नाम संकीर्तन करने में बड़ा आनन्द आता है। यहाँ तक कि लोग आत्म विभोर हो जाते हैं, नृत्य आदि करने लगते हैं। यह सामूहिक स्वर लहरी का प्रवाह है। आदेशपूर्ण एवं उत्तेजनात्मक ढंग से विशिष्ट भावनाओं के साथ एक छोटी ललित शब्दों वाली पदावली को बार-बार दुहराना संकीर्तन कहलाता है इस प्रक्रिया के द्वारा नाड़ी संस्थान में एक लहर उठने लगती है। गाना गाने वालों और सुनने वालों के सिर तान के साथ-साथ हिलने लगते हैं। सर्प भी तान से तरंगित होकर फन को लहराने लगता है। संकीर्तन की प्रक्रिया से नाड़ी संस्थान में लहरें उठती हैं और उससे प्रभावित होकर मन भी लहराने लगता है। इस प्रकार की तरंगावली शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। उससे कई लाभ होते हुए देखे भी गये हैं।

दूसरों का संगीत सुनते रहने की अपेक्षा यह अधिक लाभदायक है कि स्वयं भी गान वाद्य में कुछ लाभ लिया जाय। गाने से फेफड़े और स्वर-यंत्र मजबूत होते हैं ऐसे करने से तपेदिक आदि फेफड़ों की बीमारी होने का डर नहीं रहता। स्त्रियों के लिये भी गायन, वाद्य वैसा ही उपयोगी है जैसा कि पुरुषों के लिये। मृगी, बन्ध्यापन, मूर्छा, सिरदर्द, प्रभृति बीमारियों से संगीत प्रिय महिलाएँ बची रहती है। अर्ग्ध दिन, तीज-त्यौहार, शादी-त्यौहार के बहाने कुछ न कुछ गाते बजाते रहना स्त्रियों के लिये हिन्दु सभ्यता के अंतर्गत एक बहुत ही अच्छी प्रथा है।

यों तो गाना रोना सबको आता है पर कलापूर्ण ढंग से गाना बजाना सीखना दूसरी बात है। इसे ही संगीत कहते हैं। यह संगीत सब किसी के लिये लाभदायक है। कुत्सित, अश्लील और विषय विकार भरे गीतों को सर्वथा त्याग करके सुरुचिपूर्ण ऊँचा उठाने वाले गीतों को गाना और सम्भव हो तो कोई बाजा बजाना सीखने का हर मनुष्य को प्रयत्न करना चाहिये। क्योंकि इससे सरसता एवं स्वस्थता की वृद्धि होती है जोकि मनुष्य जीवन के लिये आवश्यक है।

संगीत का प्रयोग फेफड़े, गले, कंठ, तालु, जबड़े, और आमाशय का अच्छा व्यायाम है। रक्त संचार, क्षयी आदि का भय नहीं रहता। रंज, उदासी, चिन्ता आदि के भयानक कुप्रभावों से सहज ही बचाव हो जाता है। इस प्रकार के एक नहीं संगीत से अनेकों लाभ हैं। निस्सन्देह संगीत विश्व का प्राण है। इस प्राण शक्ति को ग्रहण करने का हमें यथाशक्ति प्रयत्न करते रहना चाहिये।

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