
सर्प विष का सुगम इलाज
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(पं. शिवदत्तजी ओझा)
बरसात के दिनों में आमों में अक्सर सर्प-दंश की दुर्घटनायें हो जाती हैं। ऐसी दशा के समय, जहाँ कोई इलाज प्राप्त न हो, वहाँ नीचे लिखी बातें सहायक होंगी :–
काटने के तीन प्रकार - (1) अचानक जोर के साथ साँप के शरीर पर पाँव पड़ जावे जिससे उसकी हड्डी माँस दब कर कुचल जावें और साँप क्रोधित होकर काट लेवे। उसके दाँत अलग-अलग लगे हुए दिखाई दें, दांतों के भले प्रकार गड़ जाने से विष भी रक्त में अच्छी तरह मिल जावे और इन्द्रियाँ बेकार हो जावें। यह विष मारक होता है
(2) त्वचा में लाल-काली-पीली लकीर-सी मालूम हों और थोड़ा-सा रक्त भी निकले-यह अल्प विष होता है।
(3) कुछ-कुछ दाँत भी गड़े हुए मालूम हों, थोड़ा रक्त भी निकला हो परन्तु साँप को जहर छोड़ने का मौका न मिला हो यानी डरा हुआ हो या किसी को काट चुका हो, या रोगी हो इत्यादि-इत्यादि-यह विष मारक नहीं होता।
तात्कालिक उपाय- मनुष्य जीवन में अभाग्यवश ऐसे भी मौके आ सकते हैं, इसलिए मनुष्य को चाहिए कि मोटे-मोटे आरंभिक उपायों को याद रखो। नहीं तो कभी-कभी छोटी-छोटी भूल से जीवन खतरे में पड़ जाता है। साँप के काटते ही फौरन एक ऊपर बहुत मजबूत बन्द लगा देना चाहिये। अनन्तर जल्दी से जल्दी किसी योग्य वैद्य या डॉक्टर अथवा सर्प-विष-चिकित्सक के पास पहुँचना चाहिये। परन्तु किसी के कहने से भी बन्द को हरगिज नहीं खोलना चाहिये। अगर कोई सुयोग्य चिकित्सक समीप न हो तो नीचे लिखे हमारे प्रयोगों को काम में लाइए, भगवान कुशल करेंगे :–
विषनाशक प्रयोग- तम्बाकू के पत्ते जल में पीस कर पिलाने से दस्त और कैडडडड होकर सर्प विष रोगी को आराम हो जाता है।
1- सत्यानाशी के बीज और काली मिर्च पानी में पीसकर पिलाने से सब जहर दस्त के रास्ते निकल जाता है और रोगी बच जाता है।
2- इन्द्रायण के बीज एक तोला, मिर्च स्याह 9 नग 5 तोले पानी में पिलाने से सब जहर दस्त के रास्ते निकल जाता है।
3- रीठे को पानी में मलकर हर समय पिलाते रहो जब तक कि वमन होता रहे, सब जहर निकाल देता है। यह दवा त्रिपाक का काम देती है।
4- आक के दूध में तर करके सुखाई हुई आरने उपले की राख एक तोला, नौसादर 3 माशा, स्याह फिल-फिल (कालीमिर्च) 3 नग, सब को पीस कर हुलास किसी नलकी के द्वारा नाक में फूँकने से रोगी को छींकें आती हैं और मूर्छित रोगी होश में आ जाता है।
5- जंगलों में राम चना की बेल होती है, इसके पत्तों को मुँह में चबाकर अर्क चूसने से सर्पविष बिल्कुल नष्ट हो जाता है। इसी बेल को खाकर नेवला, साँप के टुकड़े-टुकड़े कर देता है।
6- जल के साथ विष्णकुकाँता और तोरई की जड़ को पीस हुलास सुँघाने से सर्प काटा रोगी आरोग्य हो जाता है।
7- दही, शहद, पीपल, अदरक, गोला, मिर्च, कूट और सेंधा नमक ये वस्तुयें समान भाग में मिलाकर सेवन करने से तक्षक या बामकी से काटा हुआ मनुष्य यमालय से भी लौट आता है।
8- कुटकी और तालमूली को जल के साथ कूटकर पिलाने से सर्प-विष नष्ट हो जाता है।
10- गौ-मूत्र में सोमराजी के बीजों को पीसकर पिलाने से विष दूर हो जाता है। इस औषधि के सेवन से स्थावर, जंगम दोनों विषों का नाश हो जाता है। यह औषधि विष संजीवन है।
अपराजिता बूटी की जड़ घी में मिलाकर सेवन करने से चर्मगत सर्प विष, दूध के साथ सेवन करने से रक्त गत विष, कुडे के चूर्ण सहित उसका सेवन करने से माँस गत विष, हल्दी के साथ सेवन करने से अस्थि गत विष, और चाँडाली की जड़ के साथ सेवन करने से शुक्रगत विष, काकली के साथ सेवन करने से मेदाँग गत विष, पीपल के चूर्ण के साथ खाने से मब्जा गत विष दूर होता है। अतएव शरीर विष संयुक्त होने पर अपराजिता की जड़ प्रयोग करना मुनासिब है। सर्प-दंशित रोगी के सिर पर जल डालने से भी विशेष आराम होता है। सर्प-दंषित रोगी को सोने नहीं देना चाहिए।