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Magazine - Year 1944 - Version 2

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रोने से काम न चलेगा

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(ले. दर्शन शास्त्री श्री चन्द्रकिशोरजी तिवारी)

दुनिया के तमाम नवयुवकों पर दृष्टिपात करने से जान पड़ता है कि किसी देश का नौजवान हमारे देश के युवकों की भाँति उदासीन नहीं है। उसके जीवन का कार्यक्षेत्र अपने देश के बाहर भी है। वह निरन्तर उन्नति के मार्ग पर बढ़ने के लिये प्रयत्न करता रहता है और अपनी समस्याओं को सुलझाने की स्वयं जिम्मेदारी समझता है। वह दुनिया के सामने मस्तक उठा कर चलने को अपना जीवन समझता है। परन्तु तुम आज अपनी शक्ति और कर्त्तव्य को भूलकर बेबसी का रोना ही रो रहे हो।

ईश्वर ने मनुष्य को सम्पूर्ण योग्यतायें और शक्तियाँ देकर इस संसार में स्वच्छन्दतापूर्वक जीवन बिताने के लिये भेजा है। परमात्मा कभी नहीं चाहता कि उसकी एक सन्तान सिंहासन पर बैठे और उसकी एक संतान दर-दर ठोकरें खाये। पिता को अपने सभी बच्चे प्यारे होते हैं। वह सभी को सुखी देखना चाहता है। अगर तुम दुखी हो, तो परमात्मा का अपराध नहीं है वरन् तुम स्वयं अपने हाथों अपने पैर में कुल्हाड़ी मार रहे हो। ईश्वर ने हमें स्वस्थ शरीर और शक्तिशाली मन, स्वतंत्रतापूर्वक सुखमय जीवन बनाने के लिये दिया है, अपना अधिकार प्राप्त करने और उन्नति करने के लिये दिया है। रोने, झीखने और हाय-हाय करने के लिये नहीं दिया है। ऐसा सर्व सम्पन्न शरीर और मन देने का तात्पर्य ही यही है कि मनुष्य सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करें।

परमात्मा को दी हुई शक्तियों का जो सदुपयोग करते हैं वह सर्व सुख सम्पन्न होते हैं और जो व्यक्ति अपनी शक्तियों को भूलकर उनका दुरुपयोग करते हैं उन्हें जीवन में दुःख भोगना पड़ता है उन्हें जिन्दगी भर रोते ही बिताना है।

तुम अपने समीप के उन अनेक व्यक्तियों को देखो जो सुख और आनन्द में मग्न दिखाई देते हैं। कोई धनवान है कोई बुद्धिमान है, कोई आरोग्य है कोई ज्ञानवान है, एवं किसी को सुख के अनुकूल सभी साधन प्राप्त हैं। क्या इन व्यक्तियों को उपरोक्त सम्पत्तियाँ मार्ग में पड़ी मिल जाती है? अथवा भीख माँगने से? रास्ते में अन्धों को बटेर जैसी कोई वस्तु भले ही मिल जाय परन्तु भीख में रोटी के टुकड़े से अधिक देने वाला कोई नहीं है।

युवकों, क्या तुम जीवन को सुखी बनाना चाहते है? क्या तुम अपनी समस्याओं को हल करना चाहते हो? क्या तुम अपने जीवन को प्रभावशाली और महत्वपूर्ण जीवन बनाना चाहते हो? तो आओ! अपनी आत्मा के अन्दर छिपी हुई महान शक्तियों को पहचानो और उनका सद्उपयोग करने के लिये तत्पर हो जावो। तुम्हारी आत्मा के अन्दर शक्तियों का भण्डार है। तुम्हें अब किसी के सामने अपनी शूद्रता, दीनता, दुख, शोक तथा पीड़ाओं का रोना न रोना चाहिये। निश्चय करो कि तुम्हारे अन्दर ज्ञान का दिव्य सूर्य उदय हो चुका है और तुम समस्त विघ्न बाधाओं, बन्धनों और रुकावटों को तोड़कर आत्मा की प्रबल शक्ति की ओर बढ़ रहे हो, तुम महान हो सरताजों के सरताज हो? तुम निर्भय हो बलवान, अटूट शक्तिशाली हो इसे न भूलो, दुनिया की ऐसी कोई रोने गिड़गिड़ाने की आदत को त्याग दो। अपने अस्तित्व को समझो। दुनिया में कोई ताकत नहीं जो तुम्हें सुख, शान्ति स्वतन्त्रता से वंचित कर सके। आज से ही अपनी आत्मा की आज्ञा मानना आरम्भ कर दो। अपनी शक्तियों का सदुपयोग करना शुरू कर दो। इसे न भूलो- “जिस प्रकार दुनिया के अधिकाँश व्यक्ति स्वच्छन्दतापूर्वक सुखी जीवन व्यतीत करते हैं उसी प्रकार तुम्हें भी परमात्मा के राज्य में स्वच्छन्दता पूर्वक जीवन बिताने का अधिकार है”।

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