
गायत्री की अद्भुत शक्ति
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(श्री मन्त्र योगी)
विगत अंक में “गायत्री अनुष्ठान की सिद्धि” शीर्षक लेख में हमने सवा लक्ष जप की विधि विस्तारपूर्वक बताई थी, इस विधि के साथ ठीक प्रकार यदि जप किया जाय तो उससे ऐसे चमत्कारी फल प्राप्त होते हैं जिन्हें देखकर अचम्भे से दंग रह जाना पड़ता है। कई प्रकार की ऐसी आपत्तियाँ जिनसे छुटकारा मिलना कठिन दिखाई देता है, गायत्री माता की कृपा से निवारण होते देखा गया है। वर्दवान के एक सम्पन्न महानुभाव सन् 38 में एक बड़े पेचीदा अभियोग में फँसे हुए थे, ऐसा अनुमान था कि भारी राजदंड भुगते बिना छुटकारा न मिलेगा उन्होंने हमारे बताये अनुसार गायत्री का अनुष्ठान किया, तदुपरान्त मुकदमे का फैसला हुआ यह फैसला ऐसा संतोषजनक था कि वे महानुभाव स्वयं आश्चर्यान्वित हुए और उस दिन से गायत्री पर असाधारण श्रद्धा करने लगे।
नाडियाद (गुजरात) के एक सज्जन के घर में कई वर्षों से बीमारी का प्रकोप था, तीन मृत्युएं एक साल के अन्दर हो चुकी थीं, आये दिन कोई न कोई चारपाई पर गिरा रहता था, उन्होंने गायत्री की शरण ली दस हजार गायत्री प्रति दिन के हिसाब से उन्होंने जप किये, तब से यह चौथा वर्ष चल रहा है उनके घर में कोई भी बीमार नहीं पड़ा। बारी साल (बंगाल) के एक प्रसिद्ध व्यापारी के घर में उनकी विधवा लड़की तथा पतोहू को भूतोन्माद था, भूत−प्रेतों का बड़ा उपद्रव उनके घर में मचा रहता था, अनेक प्रकार के उपचारों में काफी परिश्रम किया जा चुका था किन्तु कोई उचित इलाज न निकलता था, हमने उन्हें गायत्री की उपासना करने की सलाह दी परिणाम बहुत अच्छा निकला। भूत बाधा के सारे उत्पात उनके घर से चल गये।
एक रानी साहिबा का भतीजा कुछ अर्ध विक्षिप्त सा हो चला था, बार-बार घर छोड़कर चला जाता था, महीनों अज्ञातवास में निकालकर घर वापिस आता था, सारा परिवार उसकी इस दशा के कारण चिन्ता ग्रस्त रहता था, हमारी सलाह के अनुसार रानी साहिब ने चालीस दिन का अनुष्ठान स्वयं किया जिसका फल बहुत ही अच्छा निकला, उनके भतीजे की मानसिक दशा सुधरने लगी और थोड़े ही दिनों में वह पुनः प्रबुद्ध होकर अपना साधारण और स्वाभाविक जीवन व्यतीत करने लगा। टिहरी का एक विद्यार्थी मैट्रिक की परीक्षा में दो बार फेल हो चुका था। स्मरण शक्ति उसकी बहुत ही कमजोर थी। उसे एक हजार गायत्री प्रतिदिन जपने के लिए विधान बताया गया उसने निष्ठापूर्वक जप किया और उस वर्ष प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ। अहमदाबाद के एक म्युनिसपल कर्मचारी को अपने विभाग के मुहल्ले के तथा बिरादरी के कई शत्रुओं का एक साथ सामना करना पड़ रहा था, इन शत्रुओं द्वारा उसे कई बार बड़ी-बड़ी चोटें पहुँचाई जा चुकी थीं और आगे और हानि करने का षड़यन्त्र चल रहा था, जब उसने गायत्री का आश्रय लिया तो शत्रुओं को मुँह की खानी पड़ी, उन्हें नुकसान पहुँचाने की बजाय खुद नुकसान उठाना पड़ा।
उदयपुर के एक मुकदम जो निस्संतान रहने के कारण सदा बहुत चिन्तित रहते थे, गायत्री के प्रसाद से 49 वर्ष की आयु में पुत्र प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण करने में सफल हुए। तरकाना (सिन्ध) का एक छोटा दुकानदार गायत्री की कृपा से इन चार पाँच वर्षों में ही अच्छी सम्पत्ति का स्वामी बन गया है, व्यापार में उसे काफी लाभ हुआ। गुरुदासपुर (पंजाब) के एक खत्री महानुभाव आठ महीने से जीर्ण ज्वर से पीड़ित थे डॉक्टर और वैद्यों ने उन्हें तपेदिक बताया था, उन्होंने चारपाई पर पड़े-पड़े गायत्री का मानसिक जप आरम्भ किया और उस दुस्साध्य बीमारी से छुटकारा पा लिया।
मण्डला (सी.पी.) डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के भूतपूर्व चेयरमैन पं. शंभुप्रसादजी मिश्र गायत्री के चमत्कारों पर मुग्ध हैं, उन्हें अनेक बार गायत्री की महिमा के बड़े महत्वपूर्ण अनुभव हुए हैं। उनके अनुभवों को पाठक अगले किसी अंक में लेख रूप में पढ़ेंगे। गढ़वाल के महात्मा गोविन्दानन्दजी भयंकर विषधर सर्पों के काटे हुए रोगियों को अच्छा करने में प्रसिद्ध हैं उन्होंने हमें बताया था कि गायत्री मन्त्र द्वारा ही वे सर्प विष की चिकित्सा करते हैं। बिच्छू का विष भी गायत्री मन्त्र द्वारा उतर जाता है। पागल कुत्ते और सियारों का विष गायत्री द्वारा मंत्रित पानी पिलाकर समस्तीपुर के रईस शोभनशाहु जी उतार देते हैं। आधाशीशी, मस्तिक शूल, कमलवाव और जहरीले फोड़ों को अच्छा करने वाले वाँकुरा के विजयदत्तजी का कथन है कि गायत्री से बढ़कर सर्वशक्ति मान मंत्र और दूसरा कोई नहीं हैं में इसी की सहायता से अनेक पीड़ितों को स्वास्थ्य लाभ कराने में समर्थ होता हूँ। बालकों की पसली चलना, मूर्च्छा, तन्द्रा, भय, आवेश, स्त्रियों को मृगी आदि में भी गायत्री द्वारा आशातीत लाभ होते देखा गया है। यदि किसी आपत्ति के आने की आशंका हो तो पहले से ही गायत्री की शरण लेनी चाहिए देखा गया है कि ऐसा करने से अधिकाँश विपत्तियाँ टल जाती हैं। इसी प्रकार दुस्साध्य और कठिन कार्यों को पूरा करने के लिये भी गायत्री माता की सहायता बड़ी महत्वपूर्ण सिद्ध होती है। बहुत करके बिगड़े काम बन जाते हैं और पर्वत जैसी कठिनाई राई जैसी सरल हो जाती है।
ऊपर की पंक्तियों में जो कुछ लिखा गया है वह कही सुनी बातें नहीं है वरन् प्रत्यक्ष अनुभव है अनेकों बार बिगड़ी को बनाने में गायत्री की अद्भुत शक्ति की परीक्षा कर लेने के पश्चात ही पाठकों के सामने अपने अनुभवों का कुछ अंश प्रकाशित करने में हम समर्थ हो रहे हैं। इस संबंध में एक बात ध्यान रखने की है वह यह कि किराये की पूजा से गायत्री का प्रसन्न होना कठिन है। पंडित पुरोहित को दक्षिणा देकर उससे पूजा पाठ करा लेना यह किराये की उपासना है। इससे जो लाभ मिलता है वह स्वयं की हुई साधना की तुलना में बहुत ही तुच्छ है। अपने काम के लिए आप ही साधना करनी चाहिए। अदृष्ट शक्तियाँ हृदयगत भावों को परखती हैं और उस भाव शृंखला के अनुरूप ही फल देती हैं। अपने कार्य के लिए जितनी तीव्र इच्छा, निष्ठा, एकाग्रता और आराधना स्वयं की जा सकती है उतनी किराये के व्यक्ति द्वारा कदापि नहीं हो सकती इसलिए इतना अच्छा फल भी दूसरों द्वारा की हुई पूजा से हरगिज नहीं मिल सकता। अपने कार्य के लिए आप ही साधना करनी चाहिए, जिनके मन में तीव्र इच्छा है वे ही सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
ऐसा समझना बड़ी भारी भूल होगी कि मन्त्र-तन्त्र मिथ्या है, इनमें कुछ शक्ति नहीं हैं। सर ओलिवर लाज, मेडम ब्लेटेस्की, सर कोनन डायल, डॉक्टर ब्रूस, मि. लेडवीटर प्रभृति उच्चकोटि के मनोविज्ञान शास्त्र के पण्डितों ने यह प्रमाणित किया है कि मन्त्रों की उपासना और साधना से जो चमत्कारी फल प्राप्त होते हैं वे मन शास्त्र की वैज्ञानिक विधि के आधार पर ही होते हैं। निष्ठा, विश्वास, एकाग्रता और तीव्र इच्छा इन चारों का एक स्थान पर केन्द्रीकरण करने से एक वैसा ही अदृश्य तेज उत्पन्न होता है जैसा कि आतिशी शीशे के द्वारा सूर्य की किरणें एक स्थान पर केन्द्रित कर देने से अग्नि उत्पन्न हो जाती है। गायत्री की शब्द रचना-अक्षर शास्त्र के अनुसार बड़ी अद्भुत है वेद की वह माता है, आदि काल से लेकर अब तक करोड़ों-करोड़ उच्च आत्माओं ने इस मन्त्र का असीमित और अनन्य श्रद्धा के साथ जप किया है ऐसे ही अनेक कारणों से एक तो गायत्री मन्त्र स्वयं ही बहुत शक्तिपूर्ण सत्ता बन गया है, दूसरे जब उसे उच्च मनोभावों के साथ सविधि सिद्ध किया जाता है तो एक ऐसी तेजस्वी ब्रह्म शक्ति पैदा होती है जो असफलताओं का निवारण और सफलताओं का वरदान देने में पूर्ण तथा समर्थ होती है। गायत्री द्वारा प्राप्त हुए फल किसी अन्य सत्ता द्वारा दिया हुआ पुरस्कार नहीं है वरन् अपनी निजी शक्ति द्वारा एक प्रकार की अध्यात्म मल्ल विद्या का पुरुषार्थ है। पुरुषार्थी व्यक्तियों को लक्ष्मी मिलती है और साधकों को सिद्धि प्राप्त होती है, वह बिलकुल साधारण और स्वाभाविक बात है, इसमें आश्चर्य और अविश्वास की कोई बात नहीं है।
गायत्री की चालीस दिन की उपासना की एक बहुत लाभदायक विधि अगले अंक में लिखेंगे।