
स्वास्थ्य और नैतिकता
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शारीरिक स्वास्थ्य का भी नैतिक और मानसिक उन्नति से घनिष्ठ सम्बन्ध है। जिसका शरीर ठीक नहीं, उसकी नीति और मन भी बहुधा ठिकाने नहीं रहता। जिस पुरुष के अवयवों का ठीक प्रयोग नहीं होता, उसका शरीर रुग्ण और कमजोर बना रहता है और कुछ नहीं तो उस पुरुष को महाकष्ट होते हैं। कमजोर शरीर वाले में शारीरिक शक्ति कम रहती है और मानसिक शक्ति भी कम हो जाती है। वह साहस के कार्य नहीं कर सकता। उसका प्रत्येक रोगी को अनुभव है। वह लोभ, क्रोध इत्यादि रिपुओं को भी नहीं दबा सकता। रोगी मनुष्य खाने-पीने और भोग-विलास की बातों में लालची हो जाता है। मानसिक शक्ति कम होने के कारण वह इनसे जल्द दब जाता है और वह उनके आधीन हो जाता है। यही बात बुद्धि की भी है। बुद्धि का विकास मस्तिष्क के विकास पर अवलम्बित है। यदि शरीर ठीक नहीं होता तो मस्तिष्क भी ठीक नहीं होता, क्योंकि रुधिर संचारण सब जगह होता रहता है। यदि रुधिर की दशा ठीक नहीं तो मस्तिष्क किस प्रकार ठीक रह सकता है धीरे-धीरे उसकी बुद्धि क्षीण होने लगती है, इसका भी प्रत्येक रोगी को अनुभव है। बुढ़ापे में स्मरण शक्ति कमजोर होती है इसका यही कारण है। शारीरिक क्षीणता पैदा होने से बुद्धि भी अवश्य क्षीण हो जाती है। प्रत्येक वृद्ध पुरुष यही बात बतलाता है। इसलिए जिस किसी को अपने आपको क्षीण होने से बचाना है उसे मेहनत करने से न हिचकना चाहिए।