सार्वजनिक धर्म क्या है?
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(जोजफ मेदिनी)
ईश्वर ने तुमको इस पृथ्वी पर रखा है और तुम अपने करोड़ों सजातीयों से घिरे हुए हो जिनके हृदय तुम्हारे हृदय से बल पाते हैं, जिनकी उन्नति या अवनति तुम्हारी उन्नति व अवनति के साथ और जिनका जीवन तुम्हारे जीवन के साथ मिला हुआ और बंधा हुआ है। एकान्त वास के भय और दुःख से बचाने के लिए ईश्वर ने तुमको ऐसी इच्छायें दी हैं जिनको तुम एकाँकी अपनी शक्ति से पूरा नहीं कर सकते और जो हमेशा तुमको अपने साथियों के साथ मिलकर रहने की प्रेरणा देती हैं जिनके कारण तुम अन्य प्राणियों से अधिक महत्व रखते हो। ईश्वर ने तुम्हारे आस पास ऐसे प्राकृतिक दृश्य स्थापित किये हैं जो स्वाभाविक सुन्दरता तथा विचित्रता से युक्त हैं।
ईश्वर ने तुम्हारे हृदय में कई प्रकार की सहानुभूति और संवेदना शक्ति उत्पन्न की हैं जिसे तुमसे दूर नहीं किया जा सकता। वह शक्ति दुःखित मनुष्यों पर दया करने के रूप में, सुखी को देखकर प्रसन्न होने के रूप में, अत्याचारियों पर क्रोध करने के रूप में, सत्य की खोज में रहने के रूप में, सच्चाई को मनुष्य जाति पर प्रकट करने वाले के प्रति सहानुभूति के रूप में प्रकट होती है। ये सब प्रति सहानुभूति के रूप में प्रकट होती है। ये सब मानवीय उद्देश्य के चित्र हैं जिनको ईश्वर ने तुम्हारे हृदय पट पर चित्रित कर दिया है। परन्तु तुम इनको स्वीकार नहीं करते बल्कि उलटा खण्डन करते हो।
यदि संसार में तुम्हारे आने का यह प्रयोजन नहीं है कि तुम अपने कर्तव्य की सीमा में और अपने हस्तगत साधनों के अनुसार ईश्वर की इच्छा को पूर्ण करो या फिर और कौन सा मतलब है? तुम्हारा मनुष्य जाति की एकता में जो ईश्वर की एकता का सुनिश्चित परिणाम है, विश्वास रखने का क्या फल है? यदि तुम उसकी सिद्धि के लिए उस अनुचित भेदभाव और विरोध को जो अभी तक मनुष्य जाति के भिन्न भिन्न समुदायों में भिन्नता और पृथकता का कारण है, दूर करने का यत्न नहीं करते।
यह भूमि हमारा कर्मक्षेत्र है, हमें यह उचित नहीं कि हम इसे बुरा कहें बल्कि उसे पवित्र बनाना हमारा कर्त्तव्य है।
ईश्वर ने तुमको जीवन इसलिए दिया है कि तुम उसको मनुष्य जाति के हित में लगाओ और अपनी व्यक्तिगत शक्तियों को जातिगत शक्तियों के विकास का साधन बनाओ। जिस प्रकार एक बीज अपनी जाति की उन्नति के लिए अपने को खपा देता है उसी प्रकार तुम भी अपनी जातीय उन्नति के लिए स्वार्थ त्याग कर अपने को खपा दो। तुम्हारा धर्म है कि तुम अपने आपको तथा दूसरों को शिक्षा दो, स्वयं योग्य बनने तथा दूसरों को योग्य बनाने का यश करो।
यह सच है कि ईश्वर तुम्हारे भीतर है किन्तु वह पृथ्वी भर के सब मनुष्यों का आत्मा है। ईश्वर उन सब जातियों के जीवन में है जो हो चुकी हैं, हैं अथवा होंगी। उसकी सत्ता और उसके नियमों तथा अपने कर्त्तव्यों के विषय में जो सिद्धान्त मनुष्य जाति ने निश्चित किये हैं पिछली जातियाँ क्रमशः उनका संशोधन करती चली आई हैं और आगे की जातियाँ भी क्रमशः उसी तरह संशोधन करती चली जायेंगी। जहाँ कहीं ईश्वरीय सत्ता अपना प्रकाश करें, तुम्हारा धर्म है कि वही उसकी पूजा करो उसकी ज्योति चमकाओ। सारा विश्व उसका मन्दिर है और इस मन्दिर को अपवित्र करने का पाप उस मनुष्य के माथे पर रहेगा जो उसकी पवित्र इच्छा के विरुद्ध संसार में कोई काम होता हुआ देखकर चुप बैठा रहेगा।
यह कहना ठीक नहीं है कि हम निर्दोष हैं, दूसरे यदि पाप करते हैं तो इसमें हमारा क्या दोष? जब तू अपने सामने या अपने पास पाप होता हुआ देखते हो और उसके विरुद्ध चेष्टा नहीं करते हो, तो तुम अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं करते हो, क्या तुम सत्य और न्याय का अपने को उपासक कह सकते हो, जबकि तुम देखते हो कि तुम्हारे सजातीय भ्राता पृथ्वी के किसी अन्य भाग में भ्रान्ति या अज्ञान में पड़े अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं और तुम उनको उठाने के लिए कोई सहारा नहीं देते।
तुम्हारे सजातीय भाइयों की नित्य आत्माओं में ईश्वर का प्रकाश धुँधला हो गया है। ईश्वर की इच्छा तो यह थी कि उसकी उपासना उसकी आज्ञा पालन द्वारा की जावे, परन्तु तुम्हारे आस पास उसके कानून को तोड़ा जा रहा है और उसकी अन्यथा व्याख्या की जा रही है। उन लाखों मनुष्यों को मनुष्योचित अधिकारों से वंचित किया जा रहा है और तुम चुपचाप बैठे हो। क्या इस पर भी तुम यह कहने का साहस कर सकते हो कि तुम उस पर विश्वास करते हो।
हमारा कर्त्तव्य है कि इस मनुष्य जाति को सिखलावें कि सम्पूर्ण मनुष्य जाति एक अंगी के समान हैं और हम सब उसके अंग हैं अतएव उस अंगी की पुष्टि और वृद्धि के लिए परिश्रम करना और उसके जीवन की अधिक उपयोगी और उद्यमी बनाना हम सबका पवित्र कर्त्तव्य है उन आत्माओं को भी उन्नत और पवित्र बनाना हमारा काम है जो स्वयं उन्नति और पवित्रता के विरोधी हैं। मनुष्य जाति के परस्पर मेल मिलाप से ही इस पृथ्वी पर ईश्वर की इच्छा पूरी हो सकती है। इसलिए हम सबको यहाँ एक ऐसी एकता स्थापित करना है जो सर्व साधारण को उन्नत करने वाली हो, जो भिन्न भिन्न भागों में विभक्त मनुष्यों को एकता में लाने वाली हो, और कुटुंब तथा देश दोनों को इस उच्चतम और पवित्र उद्देश्य के लिए प्रेरित और प्रवृत्त करे।
जिस प्रकार ईश्वर के नियम और उसकी दया सम्पूर्ण मनुष्यों के लिए है उसी प्रकार तुम्हारे वचन और कर्म भी मनुष्य मात्र के लिए होने चाहिए। तुम किसी भी देश विशेष में रहते हो किन्तु जहाँ कहीं ऐसा व्यक्ति मिले जो सत्य न्याय धर्म के लिए लड़ रहा हो, तुम उसको अपना भाई समझो। चाहे कहीं पर किसी मनुष्य को भूल, अन्याय, अत्याचार, के कारण कष्ट पहुँच रहा हो, वह तुम्हारा भाई है। स्वाधीन हो या पराधीन तुम सब भाई हो, तुम्हारी जड़ एक है। एक ईश्वरीय नियम के तुम सब अधीन हो और एक ही अभीष्ट स्थान पर तुम सबको पहुँचना है। अतएव तुम्हारा धर्म और तुम्हारे कर्म एक होने चाहिए। यह मत कहो कि मनुष्य जाति असंख्य और असीम है और हम अल्प एवं निर्बल हैं। ईश्वर बल को नहीं देखता, भाव को जाँचता है। मनुष्य जाति को प्यार करो। जब तुम कोई काम अपने कुटुम्ब या देश की सीमा में आबद्ध होकर करने लगो तो पहले अपनी आत्मा से पूछो कि यदि यही काम जिसे कि मैं करने लगा हूँ, सारे मनुष्य करते और सब मनुष्यों के लिये किया जाता तो यह मनुष्य जाति के लिए हितकर होता या अनिष्ट कर। यदि तुम्हारी आत्मा तुम्हें बतलाये कि अनिष्ट कर होगा तो कदापि उसका अनुष्ठान न करो, चाहे तुम्हें यह भी विश्वास हो कि इस कर्म का परिणाम तुम्हारे देश या कुटुम्ब के लिए शीघ्र हितकारी होगा।
तुम सब सार्वजनिक धर्म के उपासक बनो, जातीय ऐक्य और समता का उपदेश करो, जिसको आजकल सिद्धान्त रूप से तो माना जाता है किन्तु आचरण से नहीं। जहाँ कहीं और जितना तुम ऐसा कर सकते हो, ऐसा ही करो। इससे अधिक न ईश्वर तुम से चाहता है और न मनुष्य आशा कर सकता है। किन्तु मैं तुम्हें बतलाता हूँ कि यदि तुम दूसरों को ऐसा न बना सको और केवल आप ही ऐसे बन जाओ तब भी तुम मनुष्य जाति की सेवा करते हो। ईश्वर शिक्षा की सीढ़ियों को नापता है, वह मनुष्य जाति को धर्मात्माओं की संख्या और अभिरुचि के अनुसार बढ़ने देता है और जब तुम में धर्मात्मा परोपकारी अधिक होंगे तो ईश्वर जो तुम्हें गिनता है, अपने आप तुम्हें बतलायेगा कि तुम्हें क्या करना चाहिए।
----***----

