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Magazine - Year 1954 - Version 2

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गुण, स्वभाव और आदतें

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(पं. रामदयाल जी पाराशर, तिलहर)

मनुष्य के व्यक्तित्व का मूल्याँकन करते समय उसकी आदतों को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। जिस मनुष्य की जैसी आदतें हैं, जैसा स्वभाव है, वैसा ही उसका मूल्याँकन किया जाता है। विद्या, बुद्धि, चतुरता, रौब, दाब आदि का भी मनुष्य जीवन में अपना स्थान है परन्तु उन सबसे ऊपर मनुष्य का रहन-सहन का तरीका, स्वभाव, दृष्टिकोण एवं कार्य करने की गतिविधि ही है।

निरर्थक आडम्बर, शान शौकत, अकड़, बनावट शेखीखोरी, टीपटाप में अनेक व्यक्ति अपना मन बहुत लगाते हैं। वे दूसरों के सामने अपने को अमीर या बड़ा आदमी साबित करने के लिए उन बेहूदे तौर-तरीकों को अपनाते हैं जो अमीर होते हुए भी वास्तविक अमीरों तक को विज्ञ लोगों की दृष्टि में गिरा देते हैं। फिर ये नकली अमीर और नकली जेन्टलमैन अपने मन के बादशाह भले ही बने फिरें दूसरों की दृष्टि में वे छिछोरे, ओछे एवं निकम्मे ही जंचते हैं। ऐसे लोग दूसरों का आदर, सद्भाव एवं सहयोग प्राप्त नहीं कर सकते फलस्वरूप वे कोई बड़ी उन्नति भी नहीं कर पाते।

बनावट के नहीं, अच्छे गुणों से, रचनात्मक आदतों से, व्यवहार वादी स्वभाव से कोई मनुष्य दूसरों के मन में अपना स्थान बना सकता है। और उसी आधार पर साँसारिक सुविधाएँ एवं उन्नतियाँ प्राप्त कर सकते हैं। जो लोग छोटे से बड़े बने हैं उनमें अन्य विशेषताओं के साथ साथ उपरोक्त तीन बातें अवश्य रही हैं, गुणों, आदतों और स्वभाव की विशेषताएँ जिनके अन्दर न होगी उनकी अन्य योग्यताएँ कोई महत्वपूर्ण प्रयोजन सिद्ध न कर सकेंगी।

एक बार अमेरिका के एक बड़े व्यापारी को कुछ ऐसे कर्मचारियों की आवश्यकता हुई जो उसके कारोबार को चलाने में सहायता करें। वेतन भी उन्हें पर्याप्त मिलने वाला था। उम्मीदवारों की अर्जियाँ माँगी गई। हजारों अर्जियाँ आई। चुनाव के लिये प्रार्थी लोग बुलाये गये। व्यापारी ने सभी से भेंट की। किसी की सूरत देखते ही ना का जवाब मिल गया। किसी से थोड़ी देर पूछताछ की गई, किसी को एक दो दिन काम दिखाने के लिए बुलाया गया। किसी को तुरन्त ही नियुक्त पत्र दे दिया गया।

उस व्यापारी का एक मित्र भी उस समय मौजूद था, उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि चुनाव में सबकी एक सी परीक्षा न लेकर किसी को तुरन्त नियुक्त किसी को तुरन्त इनकारी, किसी को काम सिखाने की नीति क्यों अपनाई गई। उसने अपने मित्र से इसका कारण एकान्त में पूछा। व्यापारी ने उत्तर दिया कि- “मैं किसी की विद्या चतुरता और दिखावट को नहीं उसके गुणों और आदतों को महत्व देता हूँ। जो लोग अपने सजाव, शृंगार, शान-शौकत, ऐंठ, अकड़, रौब-दाब पर अधिक ध्यान देते हैं, बातें बहुत करते हैं। अधिक मीठी या शेखी भरी बातें करते हैं वे हाथ पैर कम चलाते हैं, परिश्रम उनसे होता नहीं, काम करने में हेठी समझते हैं, जिन्हें अपनी बनावट का ही अधिक ध्यान रहता है उनके मस्तिष्क को दूसरे कामों की व्यवस्था बनाने के लिए अवकाश ही नहीं मिलता। इसलिये मैं ऐसे कर्मचारी नियुक्त करता हूं जो सादगी से रहने वाले, परिश्रमी, जिम्मेदारी के प्रति जागरुक और अव्यवस्था को हटा कर व्यवस्था बनाने में रुचि रखते हैं।”

व्यापारी ने अपने मित्र को बताया कि जो उम्मीदवार बहुत ठाठ-बाट की पोशाक पहिन कर, बढ़िया बाल काट कर, सजधज कर आये थे उन्हें देखते ही इनकार कर दिया गया। क्योंकि ऐसे लोग निकम्मे, कामचोर, बातूनी एवं फिजूल खर्चीले होते हैं, ऐसे लोगों को नौकर रखा जाय तो उनकी देखा-देखी और लोग भी ऐसी ही आदतें सीख सकते हैं और काम में अव्यवस्था उत्पन्न हो सकती है। इसलिए बढ़े ठाठ-बाट के व्यक्ति को मैं भूल कर भी नौकर नहीं रखता। जो लोग सादा पोशाक में थे, जिम्मेदारी एवं दृढ़ता की भावना जिनके चेहरों से टपकती है वास्तव में रखने योग्य होते हैं। ये उम्मीदवार बहुत देर प्रतीक्षा गृह में बैठे रहे थे, मैं छिप कर यह देखता रहा कि इनमें से बैठे-बैठे कौन क्या कर रहा है। जो लोग प्रतीक्षालय की वस्तुओं को इधर-उधर अस्त-व्यस्त कर रहे हैं, जहाँ-तहाँ सिगरेट की राख और दियासलाइयों की तीलियाँ पटक रहे थे, कुर्सियों पर बेढंगे तरीके से बैठे थे, उन्हें बेढंगा आदमी समझकर मैंने पहले ही अस्वीकृत कर दिया था क्योंकि इनकी यह आदतें हर काम में अव्यवस्था फैलावेंगी एक उम्मीदवार जो प्रतीक्षा गृह की वस्तुओं की अव्यवस्था दूर करने और वस्तुओं को यथा स्थान लगाने, गन्दगी को हटाने और शोभा बढ़ाने के प्रयत्नों में लगा रहा वह मुझे सबसे अधिक पसन्द आया। उसे मन में प्रत्यक्ष भेंट होने से पूर्व ही मैंने नौकरी की स्वीकृत दे दी थी। यद्यपि वह शिक्षा की दृष्टि से उतना अच्छा नहीं है, फिर भी उसकी आदतें मेरे कारोबार के लिए उच्च शिक्षा की अपेक्षा लाभदायक होगी”

अपने व्यापारी मित्र की तथ्य पूर्ण बात सुनकर वह व्यक्ति बहुत प्रभावित हुआ। सचमुच उसके सभी सहयोगी और कर्मचारी अच्छी आदतें वाले थे, चुनाव की इस सावधानी से ही धनी व्यापारी गरीबी से उन्नति करता हुआ करोड़पति बना था। वह सदैव इस बात का प्रतिवादन करता था कि जीवन को उन्नतिशील बनाने के लिए और कोई वस्तु उतनी आवश्यक नहीं है जितनी (1) आदतों, (2) स्वभावों और (3) गुणों की उत्तमता की। अमेरिका का वह करोड़पति व्यापारी जिस निष्कर्ष पर पहुँचा था वह निष्कर्ष हम सभी के लिए समान रूप से तथ्य पूर्ण है। चाहे किसी को नौकरी करनी हो, चाहे खेती, चाहे कोई अमीर हो या चरवाहा, पण्डित हो या निरक्षर सभी के लिए यह बात सत्य है कि वह बेकार की बातों और आदतों में पड़ता है तो अच्छी आदतें पैदा करने के लिए अवकाश ही नहीं मिलेगा और वह उस महान योग्यता से वंचित रह जायगा जो किसी को बड़ा आदमी, अमीर, नेता, विद्वान सफल मनोरथ, प्रतिष्ठित, सत्ताधारी, कलाकार आदि के प्रतिष्ठित स्थानों तक पहुँचाती है। परिश्रमी, समय की एक घड़ी भी बर्बाद न करने वाले, अपने मस्तिष्क को रचनात्मक दिशा में लगाये रखने वाले, अव्यवस्था को क्षण भर के लिए भी सहन न करने वाले व्यक्ति की आदतें ही वह सम्पत्ति है कि सफलता उनके पीछे-पीछे चलेगी।

जो लोग आधे मन से काम करते हैं, अपनी वस्तुओं को यथा स्थान रखना नहीं जानते, जिन्हें हर काम में सफाई और सौंदर्य उत्पन्न करना नहीं आता वे फूहड़ लोग- जिस स्थान पर भी बैठेंगे वहाँ गन्दगी और दरिद्रता को आमन्त्रित करते रहेंगे। ऐसे लोगों के आस-पास का वातावरण सदा हानि, घाटा, दरिद्रता, क्लेश, आलस्य अवसाद, चिन्ता और परेशानी से भरा रहेगा। जिस प्रकार राहु, केतु या शनि की ग्रह दशा में मनुष्य दुख दरिद्र से ग्रसित हो जाता है वैसे ही अव्यवस्था, फूहड़पन, एवं बेकार कामों में शक्ति खर्च करना यह तीन आदतें भी दुर्भाग्य की जननी है। जहाँ यह तीनों रहेंगी वहाँ प्रतिकूल ग्रह दशा की भाँति असफलता एवं दुख दरिद्रता का वातावरण छाया रहेगा।

स्मरण रखिए- अच्छी आदतें, अच्छे स्वभाव अच्छे गुण ही साँसारिक जीवन में उन्नति एवं सफलता प्रदान करने वाली महत्व पूर्ण वस्तुएँ हैं। इनसे वंचित रहना दुख दारिद्र को प्रत्यक्ष आमन्त्रण देने के समान है।

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