
इसको करकर भाग्य न तुम मुझको भरमाओ (Kavita)
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कभी हारता और अगर मैं कभी जीतता
यह अवसर है कह कर मुझको मत बहकाना,
पूर्ण शक्ति संकलन, संतुलन जय देता है
हार भली विधि शक्ति न अपनी अजमा पाना,
मुझसे ही तुम मेरी भूलें नहीं छिपाओ!
इसको कह कर भाग्य न तुम मुझको भरमाओ!
बार बार लहरों का पत्थर से टकराना
उसका दृढ़ निश्चय है कोई भाग्य नहीं है,
चट्टानों का टूट-टूट पानी हो जाना
संघर्षों पर जय है कोई भाग्य नहीं है,
सतत साधना के प्रतिफल को यों न भुलाओ!
इसको कहकर भाग्य न तुम मुझको भरमाओ!
अगर भाग्य में शक्ति बिना खेतों के हल के
और कृषक के बिना सयल हाथों को पाये,
वीतराग शैया पर पड़े हुए मानव के-
फैले मुख में गेहूँ के दाने भर जाये
दिला शरण, तुम राह मरण की मत दिखलाओ!
इसको कहकर भाग्य न तुम मुझको भरमाओ!
पार्थ न मेरा गीता की भी बाट निहारे
पाँचजन्य की करने बैठे नहीं प्रतीक्षा
धैर्य अनेकों बार अभी तक जग ने परखा भी
पर होगी मेरी पद-गति की आज परीक्षा,
पथ प्रशस्त मत करो, कोटिशः शूल बिछाओ!
इसको कह कर भाग्य न तुम मुझको भरमाओ!
*समाप्त*
(ले.-श्री शिवशंकर मिश्र एम. ए.)
(ले.-श्री शिवशंकर मिश्र एम. ए.)