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Magazine - Year 1954 - Version 2

Media: TEXT
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केवल थोड़ा सा-

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(श्री सावित्री देवी जी फिल्जोर)

रोग में ग्रस्त बालक शय्या पर पड़ा है। वह कहता है “नहीं अम्मा आज तो वैद्यजी मुझे भोजन के लिये खासतौर से मना कर गये हैं, यह कह गये हैं कि आज तुम कुछ नहीं खाना क्योंकि वह तुम्हारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचायेगा।” किन्तु पास खड़ी अम्मा भोजन भरी थाली हाथ में लिये कह रही है, नहीं बेटा “थोड़ा-सा तो खा लो, और कुछ नहीं खाता तो थोड़ी सी खीर ही खा ले। हाय! क्या बच्चा दिन भर भूखा ही रहेगा ?

एक विचित्र अवस्था आ पड़ने पर सत्यव्रती कह रहा है, नहीं भाइयों, सत्य का महाव्रत पालन करने की वह महिमा तुम कुछ नहीं जानते हो, मैं और क्या कहूँ।’ किन्तु अन्य सब लोग कहते हैं कि “थोड़ा सा” एक बार झूठ बोलने में भला क्या नुकसान है, एक बार तो धर्मराज युधिष्ठिर ने भी झूठ बोला था, “थोड़ा सा” झूठ न बोलने से बना बनाया काम सारे का सारा बिगड़ जायेगा।

-बड़े प्रलोभन का समय है, जबकि यती कह रहा है “भाग जाओ” तुम्हारा मेरे सामने कुछ काम नहीं है। क्या तुम्हें मालूम नहीं कि मैं कौन हूँ ? किन्तु चारों तरफ डोलती फिरती हुई मोहिनी मुरतें अपनी चेष्टाओं द्वारा कह रही हैं कि अरे थोड़ा सा आनन्द एक बार लेकर देख, फिर चाहे छोड़ देना ‘थोड़ा सा केवल थोड़ा सा’।

-प्रकृति देवी की गोद में पला हुआ एक युवक इस बाजारी दुनिया में नया-नया आया है। स्थान-स्थान पर उसे मित्र-सलाहकार मिलते हैं- अरे थोड़ा सा माँस अवश्य खाना चाहिये, इससे शरीर में ताकत आती है हानि तो बहुत खाने से होती है। मित्र ! मद्य का “थोड़ा सा” सेवन तो अवश्य करना चाहिये, इससे दिल प्रसन्न रहता है। “थोड़ा सा” मसाला, चटनी, चूर्ण खाना तो आवश्यक है। डॉक्टर लोग भी ऐसा कहते हैं। इनके बिना भोजन पच ही नहीं सकता। भोजन के बाद धूम्रपान (सिगरेट) (तंबाकू) बड़ा ही उपयोगी है। सारा दिन पीने को कौन कहता है। थोड़ा सा भोजन के बाद।

बिच्छू कहता है कि मुझे केवल ‘थोड़ा सा’ केवल अपने पतले डंक की नोक भर धरने को स्थान अपने शरीर में दे दो, बस शेष सारे शरीर को मैं कुछ नहीं कहता।

-आग लगाने वाला कहता है कि ‘थोड़ी सी’ एक चिनगारी अपने छप्पर के एक कौने में लगाने दो मैं और कुछ नहीं माँगता।

-पाप भाव कहता है कि मुझे अपने हृदय में थोड़ा सा स्थान दे दो मैं वहाँ कौन में एक ओर चुपचाप बैठा रहूँगा, करूंगा कुछ नहीं।

-चतुर शासक कहता है कि तुम केवल थोड़ा सा एक पैसा भर अपनी अमुक वस्तु पर कर लगा लेने दो अधिक कुछ नहीं।

-विदेशी व्यापारी आकर कहते हैं कि तुम अपने विशाल देश के एक किनारे से परे थोड़ी सी भूमि हमें दे दो केवल एक कोठी बनाने की जगह।

-मैंने आज ऐसी वस्तुएं न खाने का व्रत किया था, किन्तु अमुक आदमी यह खोये का लड्डू रख गया है, इसे न खाऊँगा। किन्तु जब वह दे ही गया है तो इसे बिलकुल न खाना ठीक नहीं इसलिए थोड़ा सा खा लूँ थोड़ा-थोड़ा करके वह सारे के सारे लड्डू खा लिये।

-मैंने तो मद्य तो बहुत दिनों से छोड़ दी है किंतु आज यह दुकान सामने आ गयी है लाऊं तो थोड़ी सी एक प्याला पी लिया थोड़ी-थोड़ी करते-करते इसके पास जो पैसे थे उसने अपनी जेब खाली कर दी और घर को चल दिया।

-मुझे पेचिश हो रही है इसलिए इमली की चाट मुझे खानी तो नहीं चाहिए किन्तु थोड़ा सा इमली का पानी चावलों में डाल लेता हूँ। थोड़ी देर में चार- पाँच चम्मच और डाल लिये, फिर यह कहते हुए कि चाहे मैं मरु या जीऊं सारी कुण्डी ही उठा कर पी डाली।

-रात के दो बजे घड़ी का अलार्म बज रहा है कि एक मनुष्य को कहीं बाहर जाना है, जब वह उठा तो कहने लगा कि अभी तो दो ही बजे हैं मुझे तो चार बजे जाना है। थोड़ा सा और सो लूँ केवल दस-पन्द्रह मिनट। वह सो जाता है और साढ़े चार बजे आँख खुलती है।

-उस धोखा देने वाले ने जो कि आज संसार में किसी पर विश्वास नहीं कर सकता, और जिसके लिए झूठ बोलना सच की तरह बिलकुल साधारण हो गया है प्रारम्भ में केवल एक बार ही थोड़ा सा झूठ बोलकर लोगों को धोखा दिया था।

-वह विशूचिका रोग कि जिसमें बड़ा हृष्ट-पुष्ट शरीर दो घण्टों में छटपटा कर ठण्डा हो गया। प्रारम्भ में थोड़ा सा दिखाई भी न देने वाली क्षुद्र से क्षुद्र कीटाणु के रूप में था।

-यह जो पाप वृक्ष जो कि आज ऊंचे और दूर दूर तक फैली हुई विशाल शाखाओं में दृढ़ खड़ा है प्रारम्भ में ‘थोड़ा सा’ केवल एक नन्हें से बीज के रूप में था।

-थोड़े से की उपेक्षा करने वाले को क्या पता था कि इस थोड़े में से सारे जहाज में पानी भर जायगा और इतना सामान तथा हजारों यात्री देखते-देखते समुद्र में लीन हो जायेंगे।

-‘थोड़ी सी’ (केवल पाँच मिनट की) देर करने वाले सेनापति को क्या मालूम था कि इससे उसके महाराज की सदा के लिए पराजय हो जायेगी और सारे संसार का इतिहास बदल जायगा।

-माता को क्या मालूम था आज ‘थोड़ी सी’ केवल एक पुस्तक की चोरी पाठशाला से कर लाने वाला उसका पुत्र एक दिन चोरी में फाँसी चढ़ेगा।

-अनजान को क्या मालूम था कि केवल थोड़ी सी रत्ती भर विष पड़ जाने से सारा भोजन विषैला हो जायगा और जो इसको ‘थोड़ा सा’ ग्रहण करने मात्र से वह मर जायगा।

-यह बड़ा दुर्जन है, इससे मिलने के लिए गुरुजी ने रोका था। किन्तु कभी-कभी ‘थोड़ी सी’ बातचीत कर लेने में क्या हानि है। कुछ दिनों के बाद दिल कहता है कि जब मित्रता ही की है तो इनकी सभी बातों में ‘थोड़ा-थोड़ा’ सम्मिलित होना चाहिए नहीं तो मित्रता कैसी? थोड़ा-थोड़ा करके ही वह स्वयं भी कुछ दिनों में पक्का दुर्जन बन जाता है।

-हर एक कार्य में ‘थोड़ा सा’ से ही प्रारम्भ होता है। प्रारम्भ में थोड़ी सी अंगुली पकड़ते-पकड़ते पहुँचा पकड़ा जाता है और मनुष्य सर्वथा ‘थोड़ा’ के अधीन हो जाता है।

-वह आग कि जिसमें सारा नगर जल गया प्रारम्भ में ‘थोड़ी सी’ केवल एक चिनगारी के रूप में थी। वह व्रण जिसका कि विष सारे शरीर में फैलकर प्राण चले गये, प्रारम्भ में ‘थोड़ी सी’ एक फुन्सी के रूप में था।

-वह आपस की लड़ाई जिसके महायुद्ध में असंख्यों प्राणी नष्ट हुए, और सम्पूर्ण संसार को धक्का पहुँचा प्रारम्भ में ‘थोड़ी सी’ केवल एक कटु वचन के रूप में पैदा हुई थी।

-उस वीर्य नाश करने वाले ने, जोकि आज गले सड़े शरीर में पड़ा हुए आंखें दिखा रहा है, और जिसे कि कुछ दिनों की दुनिया में नैराश्यता के सिवाय और कुछ नहीं दिखाई देता प्रारम्भ में केवल एक बार ‘थोड़े से’ काम विचार ने उधर मुँह उठाया था।

-ऊंची पहाड़ी पर सुख से खड़े हुए प्राणी को क्या पता था कि पास की बेरों से लदी झाड़ी पर मुँह मारने के लिए केवल एक पग थोड़ा सा नीचे की ओर उठाने में वह खाई में जा गिरेगा और सब हड्डियाँ चकनाचूर हो जायेंगी।

-यह थोड़ा सा बहुत भयंकर वस्तु है, कभी इसको थोड़ा सा समझ कर उपेक्षा मत करना। केन्द्र से च्युत होते ही थोड़ा या बहुत सारे भूमण्डल से सम्बन्ध बिगड़ जाता है। गुरुता केन्द्र से अतिरिक्त किसी भी अन्य स्थान पर वस्तु को सम्हाला नहीं जा सकता। वह स्थान फिर वहाँ से थोड़ी दूर हो या बहुत। इसी प्रकार संसार व्यापी नियमों की सत्य रेखाओं से ‘थोड़ा सा’ भी हटने से हमारा सम्बन्ध बिगड़ जाता है और हम उसकी महान रक्षा से तत्क्षण वंचित हो जाते है।

-अतः प्रश्न तो किसी काम के बिलकुल ही कर डालने में या न करने में है, थोड़ा करने या बहुत करने में नहीं, और फिर यदि सुई की नोंक से एक बार भी थोड़ा सा छिद्र बना दिया गया तो उससे निकलने वाली धारा कुछ ही क्षणों में बढ़कर एवं भयंकर प्रवाह बहाने वाले मार्ग के रूप में आ जाती है। थोड़ा कभी थोड़ा रह नहीं सकता।

-एक बार भी चस्का लग जाने पर उसे कौन छोड़ सकता है? एक बार धारा में पड़ जाने पर फिर कौन वापिस लौट सकता है इसलिये विचारने और सम्हालने का समय तभी है जबकि प्रलोभन ‘थोड़ा- थोड़ा सा’ कहता हुआ हमें गड्ढे में डालने के लिए पास आता है। उस समय कम से कम यह तो सोच लेना चाहिये कि जब मैं इस थोड़े से को नहीं रोक सकता तो क्या बढ़ जाने पर रोक सकूँगा।

-अब की बार यदि फिर कभी वह ‘थोड़ा सा’ आवे तो कड़क कर कह देना गम्भीर स्वर में नहीं, कभी नहीं, बिलकुल नहीं। क्या मैं इतना तुच्छ हूँ कि ‘थोड़ा-सा’ की बहकावट में आऊँगा। यह मेरे दृष्टिपात के भी योग्य नहीं है। मुझ में जगत जननी जगत गुरु सर्वशक्तिमान गायत्री माता की महाशक्ति प्रभावित हो रही है, मैं अगाध अटल हूँ। क्या मैं इस ‘थोड़े से’ से हिल जाऊँगा। यह थोड़ा सा है ऐसा कह कर इसे अस्वीकार कर दो, लात मार दो दूर फेंक दो।

-किन्तु यह आश्चर्य है कि हमें प्रलोभन के समय ही यह ‘थोड़ा सा’ याद आता है।

-अच्छे कामों में हम ‘थोड़ा सा’ ‘थोड़ा सा’ नहीं करते हम ‘थोड़ा सा’ प्रतिदिन सत्संग क्यों न करें, थोड़ा-थोड़ा पढ़ने में प्रवृत्त हों यहाँ भी थोड़े से को कभी तुच्छ न समझना चाहिये। एक-एक धूलिकण से हिमालय जैसे पहाड़ खड़े हुए हैं।

एक-एक बूँद से महासागर भरे हैं। एक-एक पल से मिलकर यह अनन्त काल बना है। एक-एक परमाणु से जुड़ कर यह विश्व ब्रह्माण्ड खड़ा है। एक-एक सत् कर्मों के पुण्यों से महात्माओं की चरित्र मालाएँ गूँथी गई है। एक पग ऊपर रखने से उससे उच्च इन्द्रासन तक पहुँच गये है। यही दशा है जहाँ ‘थोड़ा सा’ थोड़ा करके जितना बढ़ाया जाये उतना ही ‘थोड़ा है’। यही इसी ‘थोड़ा सा’ के सिद्धान्त का उचित प्रयोग है। जिसके करते सहज में परम अभीष्ट प्राप्त किया जा सकता है।

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