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Magazine - Year 1954 - Version 2

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प्रतिकूलता में प्रेरणा

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(प्रो. मोहनलाल वर्मा एम.ए. एल.एल.बी.)

प्रतिकूल प्रसंग, बुरा स्वास्थ्य, विरोधी परिस्थितियाँ, गरीबी, और कष्टों के काँटों में प्रायः महापुरुषों की शक्तियाँ विकसित हुई है। अनेक व्यक्तियों की गुप्त शक्तियाँ चेतना की ऊपरी सतह में न होकर प्रायः निम्न स्तरों में छिपी पड़ी रहती है। इन छुपी हुई गुप्त शक्तियों को विकसित करने के लिए मामूली झकोरों या मनः हलचलों से काम नहीं चलता। उनके लिए गहरे झटके, गहरी खोज लगानी होती है।

कुछ व्यक्ति स्वर्ण की उन खदानों की तरह हैं, जिनमें बहुत गहरा खोदने से सोना उपलब्ध होता है। जब मजदूर खोदना प्रारम्भ करता है, तो ऊपरी मिट्टी सख्त प्रतीत होती है, कंकड़ पत्थर आते-जाते है। खोदना फिर भी जारी रहता है। अन्ततः वे सोने के उन गुप्त केन्द्रों में आ जाते हैं, जो इधर-उधर खान के अन्तराल में अलक्षित पड़े हुए थे। मामूली चंचल प्रकृति का व्यक्ति थोड़ा सा खोद कर निराश हो सकता था किन्तु सतत् उद्योगी मजदूर अन्ततः उन छुपी हुई स्वर्ण कणिकाओं तक पहुँच ही जाता है। आपके मन के गुप्त प्रदेशों में छुपी हुई बौद्धिक, मानसिक अथवा आत्मिक शक्तियाँ ऐसे ही निचले मनः-स्तरों में निवास करती हैं। प्रतिकूलता के गहरे झटके, मन, शरीर, बुद्धि इत्यादि सबको आमूल झकझोर देने वाले तूफान प्रायः इन शक्तियों को जाग्रत कर देते हैं।

स्वेट मार्डन साहब ने इन छुपी हुई गुप्त शक्तियों की तुलना उन फौलादी टुकड़ों, गोलियों या लोहे के छोटे-छोटे बेढंगे कणों से की है, जिन्हें हम लापरवाही से योंही बच्चों के खेलने के लिए फेंक दिया करते हैं। लेकिन इन्हीं लोहे के टुकड़ों को एकत्रित कर जब हम बम बनाते है, तो इनसे अद्भुत शक्ति का प्रादुर्भाव होता है, और इनसे बड़े मकान, चट्टान तथा पर्वत तक उखड़ जाते है। इसी प्रकार मानसिक एवं बौद्धिक शक्तियों के प्रादुर्भाव के लिए जीवन के विकट क्षण, विषम परिस्थितियाँ, कठिन विरोध आते हैं। और महान व्यक्तियों की गुप्त शक्तियों को प्रतिकूलता में भी जाग्रत कर देते हैं।

कुछ व्यक्ति जागते हुए भी सोते हुए व्यक्तियों के समान लापरवाह, भूले हुए, अर्द्धनिद्रित जैसे होते हैं। वे कभी अपने मन बुद्धि या आत्मा के गुप्त खजाने को ढूंढ़ने की चेष्टा नहीं करते यहाँ तक कि कोई कड़ा विरोध या प्रतिकूलता आकर उन्हें झकझोर जाती है। उनकी संचित शक्तियाँ इतनी गहरी पड़ी रहती हैं, कि मामूली प्रेरणा या प्रोत्साहन से कुछ भी नहीं होता। जब उनका विरोध होता है अथवा मजाक उड़ाया जाता है, मानहानि होती है, गालियाँ पड़ती है, तो उनकी दृढ़ता, इच्छा शक्ति या गुप्त साहस यकायक जाग्रत हो जाता है। चाणक्य इस प्रकार के व्यक्ति का एक उदाहरण है। खिल्ली उड़ाये जाने पर उन्होंने दृढ़तापूर्वक प्रतिशोध लेने की प्रतिज्ञा की और उसी के लिए सतत् उद्योग करते रहे। अन्त में उन्होंने एक राज्य की नींव उखाड़ डाली। दृढ़ संकल्प उत्पन्न होते ही ऐसे व्यक्तियों की उन्नति प्रारम्भ हो जाती है और कुछ काल की साधना के उपरान्त वे अपनी महानता खोज लेते है।

मैं एक ऐसे निर्धन विद्यार्थी को जानता हूँ जो धनवान विद्यार्थियों के उपहास का विषय थे। जब वे प्रथम बार कालेज में प्रविष्ट हुए तो उनकी गरीबी, गँवारुपन और अस्त-व्यस्त हालत को देखकर अन्य सब उन्हें चिढ़ाते थे किन्तु कुछ ही दिनों के उपरान्त उनके चरित्र की सचाई, परिश्रम शीलता और बुद्धि की कुषाग्रता का ऐसा प्रभाव फैला कि पूरी कक्षा उनका लोहा मानने लगी। फीस तक के लिए रुपया चन्दा किया गया। वर्ष भर उनके साथियों ने उन्हें भोजन कराया। ट्यूशन करते रहे, पाँव में कभी जूता न रहा, जाड़ों भर ठिठुरते रहे, किन्तु परीक्षा में नम्बर सदैव अच्छे आये। आज वे एक उच्च सरकारी पद पर हैं और अच्छा वेतन पा रहे हैं। उन्होंने विरोध में भी सदा अपनी उच्चतम शक्तियों को जामत रखा है।

इनसे कभी-कभी बातचीत होती है तो वे बताया करते हैं कि जितना भी अधिक उनका मजाक उड़ाया गया, उतना ही वे आगे बढ़े, उतनी ही दृढ़ता से उन्होंने परिश्रम किया, विद्यार्थी काल में भी वे महत्वाकाँक्षा को सदा आगे बढ़ाते रहे।

एक व्यापारी से बातचीत करने पर विदित हुआ कि अपने दीर्घ जीवन में उन्हें व्यापार में जो भारी सफलता प्राप्त हुई है उसका गुर कठोर परिश्रम और सतत् संघर्ष रहा है। वे अब आसानी से प्राप्त हो जाने वाली सफलताओं से डरते हैं। यदि बिना परिश्रम सतत् संघर्ष और कठोर विरोध के बिना कुछ प्राप्त हो जाता है तो वे उसमें कही न कहीं कोई न्यूनता या अस्थायीपन जरूर देखते हैं। वे साधारण सफलताओं से संतुष्ट नहीं होते क्योँकि उन्हें उनमें आनन्द प्राप्त नहीं होता। न उस आनन्द को अधिक महत्व देते हैं जो बिना एक कठोर संघर्ष के उपरान्त प्राप्त होता है।

इतिहास में हमें अनेक व्यक्तियों के उदाहरण उपलब्ध हैं, जिन्होंने अपने शारीरिक विकार अथवा किसी न्यूनता की क्षतिपूर्ति अपने बौद्धिक एवं आश्चर्य चकित करने वाले मानसिक गुणों की वृद्धि करके की है। लड़कियाँ जो कुरूप थी, या अतिसाधारण सौंदर्य की थी, अपने अद्भुत गुण विकसित कर सकी हैं। उनके मन में कमजोरी के ऊपर विजय प्राप्त करने की तीव्र उत्कण्ठा थी, जो उनसे निरन्तर यह कठोर परिश्रम कराती रही। एक प्रसिद्ध अंग्रेज जन्म से ही बिना हाथ पाँव के रहे, किन्तु उनका मस्तिष्क इतना अद्भुत, इतना शक्तिशाली था कि एक आगन्तुक ने उससे प्रभावित होकर उन्हें एक उच्च पद पर नियुक्त किया और वे एक बड़ी फर्म के मैनेजर का कार्य सम्हालते रहे। मस्तिष्क की कुशाग्रता के सम्मुख उनका हाथ पाँव विहीन होना बेमानी रहा।

अपने आपको शारीरिक दृष्टि से भरा पूरा पाने के कारण हममें से अनेक व्यक्ति अतिसाधारण शक्तियों या साधारण से परिश्रम मात्र से सन्तुष्ट हो जाते हैं, गहरे में सोती हुई गुप्त शक्तियाँ जाग्रत ही नहीं हो पाती। इन व्यक्तियों के मामूली बने रहने की यही दर्दनाक कहानी है।

एक प्रसिद्ध कहानी में एक साधारण सी स्त्री के गुम सामर्थ्य के विकास की कहानी इस प्रकार कही गई है। वह साधारण स्थिति के एक क्लर्क की पत्नी थी। एक दिन एक धनी से किसी उत्सव में सम्मिलित होने के लिए एक हार माँग लाई। संयोग से हार खो गया। उसका ऋण उतारने के लिए उसने कठोर परिश्रम किया। निरन्तर 15 वर्ष तक कार्य करती रही। अन्ततः जब ऋण चुकाने का समय आया तो ज्ञात हुआ कि हार नकली था। उस युवती के आश्चर्य, विस्मय परिश्रम का अनुमान कीजिए। लेकिन एक बात दिन की तरह स्पष्ट थी। वह था उसका कठोर अनवरत परिश्रम, जिसने उसे एक साधारण स्थिति से उठाकर असाधारण शक्तियों वाली स्त्री बना दिया। जब किसी भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष कारण से मनुष्य एक निश्चित दिशा में परिश्रम पर जुट जाता है, तो निश्चय ही उसकी अगाध शक्तियों का भण्डार खुल जाता है।

कुछ व्यक्ति कभी अपनी शक्तियाँ नहीं खोज पाते, कभी अपने गुप्त सामर्थ्यों को नहीं खोजते। जब तक कि उन्हें विरोध और असफलता प्राप्त होती है। उनकी संचित शक्तियाँ इतने गहरे में रहती हैं कि साधारण धक्के या झटके से जाग्रत नहीं होती। जब उन्हें कोई असाधारण चोट पहुँचती है, मानहानि अथवा धक्का-सा लगता है, गाली दी जाती है, तो न जाने किस गुप्त प्रदेश से अद्भुत शक्ति जाग्रत होकर चेतना के ऊपरी स्तर पर आ जाती है। चाणक्य इसका एक उदाहरण है। मानहानि की चोट लगने पर उसकी गुप्त शक्तियों का विकास हुआ और उसने राज्यों की उलट-पलट की।

यदि अब्राहम लिंकन एक साधारण परिवार में जन्म न लेकर किसी अमीर के विलास महल में जन्म लेते, और मन लगाकर एकाग्रता पूर्वक अध्ययन न करते, तब वे कैसे अमेरिका के राष्ट्रपति बन पाते? गरीबी को दूर करने के लिए उन्होंने भरसक चेष्टाएं की दृढ़ संकल्प से मन लगाकर एकाग्रता पूर्वक कार्य किया। अन्ततः परिश्रम के बल पर विजयी हुए। प्रतिकूलताओं से सतत् संघर्ष कर वे अन्त में उच्चतम पद पर प्रतिष्ठित हुए। यदि आराम तलबी में अमीर बच्चों के साथ रहते, तो कौन उनके कार्य, अध्यवसाय अथवा परिश्रम का महत्व सूचित करता।

मनुष्य स्वभावतः आलसी और आरामतलब जीव है। वह कठोर परिश्रम से दूर भागता है। जब तक उसके सामने कोई विशेष कारण, कोई लाभ अथवा निकट भविष्य में होने वाला फायदा नहीं होता, तब तक वह कार्य में पूरी तरह नहीं जुटता, उसकी शक्तियों का भी पूर्व विकास नहीं हो पाता। चेतना के ऊपरी स्तर की शक्तियाँ ही काम में आती रहती है।

अमीर व्यक्ति का बालक, जिसको घोर संघर्ष की आवश्यकता ही प्रतीत नहीं होती, उतना कठोर संघर्ष नहीं कर पाता, जितना एक निर्धन व्यक्ति का बालक करता है। गरीब को सदा समाज में अपनी स्थिति उच्चतर श्रेष्ठतर, बनाने की इच्छा रहती है। यही उसे आगे धकेला करती है। एक अमीर ढीले-ढाले लड़के की तुलना आप एक मजबूत दृढ़ प्रतिज्ञ निर्धन व्यक्ति से कीजिए जो प्रतिकूलताओं के विरोध में निरन्तर अग्रसर होता चलता है। एक कमजोर है, दूसरा शक्ति का आत्म पिण्ड। संसार में आपको अनेक ऐसे व्यक्ति मिलेंगे जिनके विकास, उन्नति और अभिवृद्धि की मूल धारणा प्रतिकूलताएं ही रही हैं।

जेता शत्रु न विचषणिः।

अथ 10/47/10

प्रभु ही सब शत्रुओं को जीतने वाले और उनके द्रष्टा हैं।

कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समा।

यजु 40/2

मनुष्य इस संसार में कर्म करता हुआ ही सौ वर्ष जीने की इच्छा करें।

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