
धर्म का श्रेष्ठ स्वरूप
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(पं0 तुलसीराम शर्मा, वृन्दावन। )
इन्द्रियाणि प्रमाथीनिबुद्धया संयम्ययत्नतः।
सर्वतो निष्ठतिष्णूनि पितावाला निवात्मजान्॥
-महाभारत श0 प्र0 2450। 3
जैसे पिता अपने नादान बच्चों को काबू में रखते हैं उसी प्रकार मनुष्य को बुद्धि के बल से अपनी प्रमथनशील इन्द्रियों को बलपूर्वक संयम करना चाहिये।
मनसश्चेन्द्रियाणाँ चाप्यैकाग्रं परमं तपः। तज्जायः सर्व धर्मेयम्यः सधर्मः परउच्यते ॥4॥
मन और इन्द्रियों को असनमार्ग से हटा कर उन्हें उचित मार्ग पर लाना ही परम तपस्या है। यही सब धर्मों से बड़ा और समस्त धर्मों से श्रेष्ठ है ॥4॥
दमं निःश्रेय संप्राहुवृद्धा निश्चित दर्शिनः।
ब्राह्मणस्य विशेषेण दमोधर्मः सनातनः॥7॥
—म॰ भा0, शाँ0अ॰ 160
धर्म निर्णयकार वृद्ध पुरुष इन्द्रिय निग्रह को ही कल्याण का कारण कहा करते हैं। विशेष करके ब्राह्मण के विषय में इन्द्रिय निग्रह ही सनातन धर्म है॥7॥
दमात्तस्य क्रिया सिद्धिर्यथावदुपलभ्यते।
दमोदनं तथा यज्ञानधीतंचाति वर्तते ॥8॥
दम का सेवन करने वाले ब्राह्मण की समस्त क्रियायें यथार्थ रूप से सफल होती हैं। दान, यज्ञ और वेदाध्ययन से भी बढ़कर उत्तम दम माना गया है ॥8। ।
दमेन सदृशं धर्मं नान्यं लोकेषु शुश्रुम।
दमोहि परमोलोके प्रशस्तः सर्वधर्मिणाम्॥10॥
लोक में इन्द्रिय निग्रह के समान दूसरा धर्म और कुछ भी नहीं है। लोक में सब कर्मों के बीच इन्द्रिय निग्रह ही परम श्रेष्ठ है॥10॥
अदान्तः पुरु षः क्लेशम भीक्ष्णंप्रतिपद्यते।
अनर्था् श्चबहूनन्यान् प्रसृजत्यात्म दोषजान्। ॥13॥
इन्द्रिय निग्रह हीन पुरुष सदा क्लेश भोग करते हुए अपने दोष के कारण से ही बहुत से अनर्थों में फंसते हैं॥13॥
आश्रमेषुचतुर्ष्वाहुर्दमवोत्तमंव्रतम् ॥14॥
चारों आश्रमों के बीच दम (इंद्रियां निग्रह) ही उत्तम व्रत है॥14॥
नैषज्ञान वताशक्यस्तपसा नैवचेज्यया।
सम्प्राप्तुमिन्द्रियाणन्तु संयमें नैवशक्यते॥9॥
—म॰ भा0, शाँ0 अ॰ 280
यह परमात्मा केवल शास्त्र ज्ञान से नहीं मिलता न तपस्या से, न यज्ञ से, हाँ, इन्द्रियों को संयम में (अनुचित विषयों से हटाना) रखने से मिल सकता है॥9॥
आपदाँ कथितः पन्था इन्द्रियाणमसयंयमः।
तजजयः सम्पदाँ मार्गो ये नेष्टंतेन गम्यताम्॥
—सुभाषित रत्न भाणडागार
इन्द्रियों को काबू में न रखना विपत्ति को मार्ग है। काबू में रखना सम्पत्ति का स्थान है जो अच्छा लगे उसी रास्ते से चलिये।
नैषज्ञानवता शाक्यस्तपसानैवचेज्यया।
सम्प्राप्तुमिन्द्रियाणान्तु संयमेनैवशक्यते॥9॥
—मा0 भा0, र्शा0 280
यह परमात्मा केवल शास्त्र ज्ञान से नहीं मिलता न तपस्या से, न यज्ञ से, हाँ इन्द्रियों को संयम में (अनुचित विषयों से हटाना ) रखने से मिल सकता है॥9॥