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Magazine - Year 1961 - Version 2

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Language: HINDI
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विचारणीय और मननीय

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अन्ध परम्परा

एक बार एक विवाह के समय जब वहाँ बहुत मिष्ठान पकवान बन रहे थे, तब घर की पालतू बिल्ली ने बहुत ऊधम मचाया। हर चीज में मुँह डाल देती और झूठा कर देती। की मालकिन ने उसे पकड़ कर नाँद के नीचे बन्द कर दिया। फिर वह काम में लग गई। कई कई रोज काम में व्यस्त रहने के कारण उसे बिल्ली को निकालने की बात याद न रही और वह उसी में दब कर मर गई।

बारात जब लौट कर आई और बहू ने घर में प्रवेश किया उस समय घर-मालकिन को बिल्ली की याद आई। उसे निकाला गया को मरी मिली। उसे फिकवाया गया। नई बहू यह सब देख रही थी। उसने समझ लिया कि इस घर की यही परम्परा है। बाद में जब उसके बच्चा हुआ और उसके बड़े होने पर जब बरात गई और नई बहु आई तो उसने भी एक बिल्ली पकड़ कर नाँद के नीचे बन्द की और जब वह मर गई तो ठीक उसी समय जब नई वधू ने घर में प्रवेश किया- उस बिल्ली को बाहर फिकवाया। जो उसने देखा था। उसे कुल परम्परा समझा और उसी का पालन करने में अपना धर्म या कल्याण समझा।

आजकल ऐसी ही अनेक अन्ध परम्पराएँ चल रही हैं। इन्हें ही “सनातनधर्म” मानने लगे हैं।

सत्य का प्रभाव

एक लड़का जंगल के मार्ग से कही दूर देश जा रहा था। रास्ते में उसे चोर मिले। चोरों ने उसे पकड़ लिया, उसकी तलाशी ली, पर उसके पास कुछ भी न निकला। जब उसे चोर छोड़ रहे थे तब उनने कहा तेरे पास कुछ हो बता। लड़के ने कहा मेरे पास बीस रुपये हैं। चोरों ने तलाशी ली पर कुछ न मिला। उसने समझा लड़का ठिठोली कर रहा है, झूठ बोल रहा है, वे उसे बुरा भला कहने लगे।

लड़के ने कहा मैं कभी झूठ नहीं बोलता। मेरी माता ने सिखाया था कि कितनी ही विपत्ति आने पर भी झूठ न बोलना। मेरे कोट के अस्तर में बीस रुपये सिले हुए हैं। लड़के ने अस्तर उधेड़ा और रुपये चोरों के आगे रख दिये। उनने अपने को धिक्कारा और उसी दिन से चोरी करना छोड़ कर वे भी सचाई का जीवन बिताने लगे।

सत्यवक्ता बालक का भी उतना प्रभाव पड़ना है जितना असत्यवादी बड़े-बड़े प्रवचनकर्ता भी उत्पन्न नहीं कर सकने।

धन का नहीं त्याग का मान है

एक धनी व्यक्ति बड़ा कंजूस था। अपने लिये तो बहुत खर्च करता पर किसी शुभ कार्य में कभी एक पैसा भी न देता था। इसलिये सब लोग उनका निरादर करते थे। कही उन्हें आदर ने मिलता था एक दिन उनने यह दुःख अपनी स्त्री से कहा। स्त्री बहुत समझदार थी। उस दिन पोटली उन्हें दी और कहा इसे कथा पर चढ़ा देना, आज ही आपकी आदर मिलेगा। यह आदर की पोटली है।

वे कथा में गये और पोटली वहाँ चढ़ा दी। उसमें सौ रुपये थे। लालाजी की उदारता को देख कर सब लोग आश्चर्य में पड़ गये। उनको खूब प्रशंसा हुई। वे पीछे बैठे हुये थे सो वहाँ से उठाकर आगे अच्छा आसन पर बिठाया। वे बहुत प्रसन्न हुए और घर आकर कहने लगे-इसीलिए मैं धन संग्रह किया करता हूँ। स्त्री ने बात काटकर कहा-यह धन का नहीं त्याग का आदर था। धन तो आपके पास पहले भी था पर कभी आदर न मिला। पर आज जब कुछ त्याग किया तो इतना सम्मान मिला। यश और आदर प्राप्त करने के लिए त्याग की आवश्यकता होती है।

मान धनी होने से से नहीं कुछ त्याग करने से मिलता है।

ईश्वर हृदय परखता है

हजरत मूसा ने एक दिन ग्रीष्म ऋतु में एक बूढ़े गड़रिये को ईश्वर की प्रार्थना करते देखा-वह कह रहा था-हे परमात्मन्, मैं आपको ढूँढ़ पाता तो आपकी वैसी अच्छी सेवा करता। आपके बालों में कंघी करता, आपके जूते साफ करता, आपके कमरे में झाडू लगाता और नित्य अपनी बकरियों का दूध शहद डालकर पिलाता।”

यह सुनकर मूसा को बड़ा क्रोध आया और बड़े कटु शब्दों में उसकी भर्त्सना करते हुए कहा-मूर्ख जवान को बन्द कर, अल्लाह निराकार है उसकी शान में ऐसी बातें न कह जैसी इनसानों के लिए कहा जाता है।”

बेचारे गड़रिये की किस्मत टूट गई। उसका धर्मावेश नष्ट हो गया। अपनी अल्यक्षता पर उसने सिर धुन डाला और हतोत्साह होकर घर चला गया।

इस पर अल्लाह न मूसा से कहा-तूने मेरी प्रतिष्ठा की रक्षा करने के बहाने मेरे एक उपासक को दुखी कर क्यों भगा दिया? ऐ जल्दवाज! मैंने तुझे शिक्षा देने भेजा था। मुझे जो सबसे अधिक नापसन्द है वह है-बिलगाव और परित्याग। सबसे बुरी बात है किसी को बलपूर्वक किसी मार्ग पर चलवाना। मैंने सृष्टि इसलिए पैदा नहीं की कि उनसे अपनी प्रशंसा या प्रार्थना कराऊँ। वरन सृष्टि का उद्देश्य यह था कि जीव मुझसे मिलने की महत्ता को समझ सके। यदि कोई उपासक बचपन की ड़ड़ड़ड़ से प्रार्थना करे तो इसमें क्या हर्ज है? मैं तो केवल हृदय परखता हूँ कि उसमें कितना सच्चा प्रेम है।

यमराज की चार सूचनाएँ

एक मनुष्य की यमराज से दोस्ती हो गई। उसने कहा-मेरी मृत्यु तो अवश्य होगी पर आप कृपा कर मुझे समय से पहले सूचना दे देना ताकि आने से पूर्व घर के सब कामों को निपटा लूँ। यम न कहा-मैं एक नहीं चार बार सूचना दूँगा पर वह इशारों से ही होगा। मैं बातचीत कह कर सूचना नहीं दे सकता। उस मनुष्य ने कहा-अच्छा इशारों से ही सही।

एक दिन यमदूत उसे लेने आ पहुँचे। चलना पड़ा। जाकर यमराज से उसने शिकायत की कि आपने वचन दिया था कि पूर्व सूचना देंगे। फिर आपने उसे पालन क्यों नहीं किया?

यमराज ने कहा-हमने चार बार सन्देश भेजा। एक बार तब जब तुम्हारे बाल काले से सफेद हुए। दूसरी बार तब जब दाँत उखड़े। तीसरी बार तब जब-आँखों की ज्योति क्षीण हुई। चौथी बार तब जब बीमारियों ने घेरा। तुम चार सूचनाओं का तात्पर्य न समझ कर उन पर लीपा पोती करते रहे। बालों पर खिजाव लगाया। मुँह में नकली दाँत लगवाए, आँखों पर चश्मा चढ़ाया और दवादारू लेकर बीमारी को झुठलाते रहे। पर यह सब कब तक चलता! मेरी चारों चेतावनी समय पर पहुँची। तुमने ध्यान ही नहीं दिया, इसका मैं क्या करू ।

वृद्धावस्था आने पर परलोक की तेयारी में लगना ही बुद्धिमत्ता हैं।

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