
अखण्ड ज्योति के सम्बन्ध में
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परमपूज्य आचार्य जी के अज्ञातवास काल में मुझे अखण्ड ज्योति का सम्पादन कार्य अपने दुर्बल कन्धों पर वहन करना पड़ा। उस अवधि में जो त्रुटियाँ रही होगी पाठक ने उन्हें उदारतापूर्वक सहन किया है। इसे मैं स्वजनों की आत्मीयता उदारता एवं अथवा सौभाग्य ही मानती हूँ।
अज्ञातवास से पूर्व आचार्य जी की भावनाएँ स्थायी रूप से किसी निविड़ वन में एकान्त साधना करने की थी, वे अपने लौटने का स्वल्प सा ही आश्वासन हमें देकर गये थे और अधिक संभावना अपने न लौटने की ही बनाकर गये थे। पर उनकी मार्ग दर्शक शक्ति ने भी दस वर्ष तक और भी कुछ महत्त्वपूर्ण सेवाएँ उन्हें सौंप दी है और तब तक मथुरा रहकर ही शेष साधना करने का आदेश दिया है। तदनुसार उन्हें अब इधर ही रहना है यह समाचार हम सबके लिए बड़ा प्रसन्नता की है कि उनके प्रत्यक्ष सान्निध्य के लाभ से वंचित न रहना पड़ेगा।
सदा की भाँति व अखंड ज्योति का कार्य भार भी अगले महीने से स्वयं ही सभी लोग यद्यपि पिछले दिनों भी उनके विचारों भावनाओं की प्रति ध्वनि ही पत्रिका के पृष्ठ पर गूँजती रही है पर आग तो वे स्वयं ही इस पुनीत माध्यम से हम सबका मार्ग दर्शन करेंगे
अब तक अखण्ड ज्योति साधारण पत्र पत्रिकाओं के ढंग से सम्पादित ही तो रही है उसमें विभिन्न विषयों पर विभिन्न लेख छपते रहे है। अब आगे उसमें वही सब छपेगा जो आचार्यजी अपने परिजनो को सिखाना उचित समझेंगे। अखण्ड ज्योति अब श्रम विकास के व्यवहारिक मार्ग दर्शन की पत्रिका रहेगी और उसमें प्राय सभी लेख आचार्यजी द्वारा लिखित एवं संगृहीत होंगे। अज्ञातवास से लौटने पर पत्रिका ने कुछ इसी प्रकार की मोड़ भी लिया है।
आत्म सुधार, आत्म निर्माण आत्म-विकास का कुछ चर्चा गत अंक में हुई है। अब इसका व्यवहारिक मार्ग दर्शन आगे होगा। इस मार्ग पर जिनके भी कदम उठेंगे वे आज की अपेक्षा कल निश्चित रूप से बाह्य और आन्तरिक जीवन को अधिक प्रगति शील एवं सुख शान्तिमय अनुभव करेंगे, यह निश्चित है। जब कि व्यायाम करने वाले स्वास्थ्य का, स्कूल जाने वाले विद्वता का लाभ प्राप्त करते है, तो साधना करने वालों को जीवन के सर्वांगीण विकास का लाभ भी मिलना ही चाहिए।
आगामी अंक से इसी प्रकार का शिक्षण अखंड ज्योति करेगी। दस वर्षीय एक शिक्षण योजना पूज्य आचार्यजी ने बनाई है। प्रथम वर्ष में हम सबको क्या साधना करनी चाहिए, इसका सविस्तार शिक्षण अक्टूबर अंक में होगा। प्रतिवर्ष इसी महीने आगामी वर्ष की शिक्षा कक्षा बदली जाया करेगी। जिनने गत वर्ष के शिक्षण को सफलता पूर्वक पूर्ण किया है व आग की साधना को पूरा करने तक उसमें संलग्न रहेंगे। आशा यह की जाती है कि प्रस्तुत दश वर्षीय साधना क्रम यदि कोई श्रद्धा आर निष्ठा पूर्वक अपनाये रहता है तो वह पूर्णता के निकट ही जो पहुँचेगा।
अब तक पाठक अखण्ड ज्योति को हलकी दृष्टि से पढ़ते रहे है। उन्हें अब पत्रिका की एक एक पंक्ति ध्यान पूर्वक पढ़ना चाहिए। अपनी स्त्री, बच्चों और कुटुम्बियों को पढ़ाने या सुनाने की व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे वे भी उसका लाभ ले सके। साधना जप तप मात्र की ही नहीं कहते वरन स्वाध्याय और सत्संग भी उसके प्रधान अंग है। अखंड ज्योति को स्मृति रूप से पढ़ना इस अंग की एक अनिवार्य आवश्यकता है। जिन लोगों की आचार्यजी के प्रति व उनके मिशन के प्रति कुछ भी आस्था है उन्हें ड़ड़ड़़ड़ उस आस्था का परिचय अखंड ज्योति नियमित रूप से पढ़ते रहकर देना चाहिए।
कुछ बातें पाठको से और भी कहनी है। (1) महीन में अखंड ज्योति प्रत्येक सदस्य के लिए दो बार जाँचकर भेजी जाती है। कोई अंग न मिले तो डाकखाने की गड़बड़ी समझकर उसी महीने खबर चाहिए ताकि दूसरी प्रति भेजी जा सके। कई दिन बाद अंक न मिलने की सूचना मिलने पर उसे भेजने में कठिनाई होती है 2- पता बदलवाना हो तो (1) पुराना पूरा पता दे (2) नया पूरा पता और (3) ग्राहक नम्बर पर ही बातें लिखनी चाहिए। ग्राहक संख्या बहुत से केवल नया पता लिख देने मात्र से पता बदलना संभव नहीं होता।
(3) चन्दा समाप्त होने पर मनी-आर्डर से 3) भेज देने चाहिए। वी० पी० बिना मंगाये नहीं भेजी जाती। इससे अधिक देने पड़ते है। जो बिलकुल ही व्यर्थ का अपव्यय है।
(4) हर पत्र में अपना पूरा पता शुद्ध अक्षरों में लिखना चाहिये तथा व्यक्तिगत पत्र व्यवहार में जवाबी पत्र भेजने चाहिए। इन मोटी चार बातों का ध्यान रखा जाय तो जो व्यवस्था संबंधी शिकायतें होती है उनमें से अधिकांश का सहज समाधान हो जायेगा।
पूज्य गुरुदेव के अज्ञातवास काल में सम्पादन तथा व्यवस्था सम्बन्धी जो त्रुटियाँ रही है उनके लिए स्वजनों से एक बार पुनः क्षमा प्रार्थना करते हुए विदा लेती हूँ।
-भगवती देवी शर्मा