• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • दया, धर्म का मूल
    • महात्मा महान आत्मा वाला पुरुष
    • आत्म बल कैसे बढ़े
    • भुजायें सोने की खान है
    • श्रद्धा ही जीवन है
    • त्याग करें, पर किसका
    • लक्ष्मी का निवास
    • महान बालक कासाविआन
    • सच्ची ईश्वर भक्ति का आधार
    • हम चरित्र को महत्व दें
    • लक्ष्मी जी का निवास
    • अन्धकार में प्रकाश उत्पन्न करने वाले- शंकराचार्य
    • वशीकरण विद्या
    • सामूहिक चेतना की आवश्यकता
    • Quotation
    • युग-दृष्टा राजर्षि गोखले
    • तीन उम्मीदवार
    • जनसंख्या वृद्धि की समस्या
    • Quotation
    • करुणामूर्ति माता टेरीजा
    • स्वर्ग
    • वर्ण व्यवस्था का स्वरूप और लक्ष्य
    • आश्रम-धर्म की उपयोगिता और आवश्यकता
    • आदर्श और संकल्प के प्रतीक-महर्षि कर्वे
    • जार्ज वाशिंगटन
    • नारी की महानता को समझें
    • सच्चे पुरोहित-रविशंकर महाराज
    • Quotation
    • बढ़ते हुये बाल अपराध
    • Quotation
    • अन्ध दम्पत्ति-नेमेथ
    • ख्वाजा हसन
    • संत समागम
    • हम सेवा भावी बनें
    • मधु-संचय
    • मधु-संचय (Kavita)
    • अन्ध-विश्वास का इन्द्रजाल
    • Quotation
    • जीवेम् शरदः शतम्
    • सच्चे साधक नहीं होते
    • अपना संगठन कार्य इसी मास पूरा किया जाय
    • जीवन निगम की त्रिविध शिक्षा
    • सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए
    • VigyapanSuchana
    • बुझता दीपक
    • बुझता दीपक (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • दया, धर्म का मूल
    • महात्मा महान आत्मा वाला पुरुष
    • आत्म बल कैसे बढ़े
    • भुजायें सोने की खान है
    • श्रद्धा ही जीवन है
    • त्याग करें, पर किसका
    • लक्ष्मी का निवास
    • महान बालक कासाविआन
    • सच्ची ईश्वर भक्ति का आधार
    • हम चरित्र को महत्व दें
    • लक्ष्मी जी का निवास
    • अन्धकार में प्रकाश उत्पन्न करने वाले- शंकराचार्य
    • वशीकरण विद्या
    • सामूहिक चेतना की आवश्यकता
    • Quotation
    • युग-दृष्टा राजर्षि गोखले
    • तीन उम्मीदवार
    • जनसंख्या वृद्धि की समस्या
    • Quotation
    • करुणामूर्ति माता टेरीजा
    • स्वर्ग
    • वर्ण व्यवस्था का स्वरूप और लक्ष्य
    • आश्रम-धर्म की उपयोगिता और आवश्यकता
    • आदर्श और संकल्प के प्रतीक-महर्षि कर्वे
    • जार्ज वाशिंगटन
    • नारी की महानता को समझें
    • सच्चे पुरोहित-रविशंकर महाराज
    • Quotation
    • बढ़ते हुये बाल अपराध
    • Quotation
    • अन्ध दम्पत्ति-नेमेथ
    • ख्वाजा हसन
    • संत समागम
    • हम सेवा भावी बनें
    • मधु-संचय
    • मधु-संचय (Kavita)
    • अन्ध-विश्वास का इन्द्रजाल
    • Quotation
    • जीवेम् शरदः शतम्
    • सच्चे साधक नहीं होते
    • अपना संगठन कार्य इसी मास पूरा किया जाय
    • जीवन निगम की त्रिविध शिक्षा
    • सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए
    • VigyapanSuchana
    • बुझता दीपक
    • बुझता दीपक (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1964 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


नारी की महानता को समझें

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 25 27 Last
नारी पुरुष की पूरक सत्ता है। वह मनुष्य की सबसे बड़ी ताकत है। उसके बिना पुरुष का जीवन अपूर्ण है। नारी उसे पूर्ण करती है। मनुष्य का जीवन अन्धकारयुक्त होता है तो स्त्री उसमें रोशनी पैदा करती है। पुरुष का जीवन नीरस होता है तो नारी उसे सरस बनाती है। पुरुष के उजड़े हुए उपवन को नारी पल्लवित बनाती है।

इसलिए शायद संसार का प्रथम मानव भी जोड़े के रूप में ही धरती पर अवतरित हुआ था। संसार की सभी पुराण कथाओं में इसका उल्लेख है। हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथ मनुस्मृति में उल्लेख है-

द्विधा कृत्वाऽऽत्मनो देहमर्धेन पुरुषोऽमवत्।

अर्धेन नारी तस्याँ स दिराजम सृजत्प्रभुः॥

‘उस हिरण्यगर्भ ने अपने शरीर के दो भाग किए। आधे से पुरुष और आधे से स्त्री का निर्माण हुआ।’

इस तरह के कई आख्यान हैं जिनसे सिद्ध होता है कि पुरुष और नारी एक ही सत्ता के दो रूप हैं और परस्पर पूरक हैं। फिर भी कर्त्तव्य, उत्तरदायित्व और त्याग के कारण नारी कहीं महान है पुरुष से। वह जीवन यात्रा में पुरुष के साथ नहीं चलती वरन् उसे समय पड़ने पर शक्ति और प्रेरणा भी देती है। उसकी जीवन यात्रा को सरस, सुखद, स्निग्ध और आनन्दपूर्ण बनाती है नारी, पुरुष की शक्तियों के लिए उर्वरक खाद का काम देती है। महादेवी वर्मा ने नारी की महानता के बारे में लिखा है-

‘नारी केवल माँस पिण्ड की संज्ञा नहीं है, आदिम काल से आज तक विकास पथ पर पुरुष का साथ देकर उसकी यात्रा को सफल बनाकर, उसके अभिशापों को स्वयं झेलकर और अपने वरदानों से जीवन में अक्षय शक्ति भर कर मानवी ने जिस व्यक्तित्व, चेतना और हृदय का विकास किया है उसी का पर्याय नारी है।’

इसमें कोई सन्देह नहीं कि नारी धरा पर स्वर्गीय ज्योति की साकार प्रतिमा है। उसकी वाणी जीवन के लिए अमृत स्रोत है। उसके नेत्रों में करुणा, सरलता और आनन्द के दर्शन होते हैं। उसके हास्य में संसार की समस्त निराशा और कड़ुवाहट मिटाने की अपूर्व क्षमता है। नारी सन्तप्त हृदय के लिए शीतल छाया है। वह स्नेह और सौजन्य की साकार देवी है। आचार्य चतुरसेन शास्त्री के शब्दों में ‘नारी पुरुष की शक्ति के लिए जीवन सुधा है। त्याग उसका स्वभाव है, प्रदान उसका धर्म, सहनशीलता उसका व्रत और प्रेम उसका जीवन है।’

कवीन्द्र रवीन्द्र ने नारी के हास में जीवन निर्झर का संगीत सुना है। जयशंकर प्रसाद ने कहा है-

नारी केवल तुम श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में।

पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में॥

संसार के सभी महापुरुषों ने नारी में उसके दिव्य स्वरूप के दर्शन किये हैं जिससे वह पुरुष के लिए पूरक सत्ता के ही नहीं वरन् उर्वरक भूमि के रूप में उसकी उन्नति, प्रगति एवं कल्याण का साधन बनती है। स्वयं प्रकृति ही नारी के रूप में सृष्टि के निर्माण, पालन-पोषण संवर्धन का काम कर रही है। नारी के हाथ बनाने के लिए हैं बिगाड़ने के लिए नहीं। परिस्थिति वश-स्वभाव वश नारी कितनी ही कठोर बन जाय किन्तु उसकी वह सहज-कोमलता कभी ओझल नहीं हो सकती जिसके पावन अंक में संसार को जीवन मिलता है। प्रेमचन्द के शब्दों ‘नारी पृथ्वी की भाँति धैर्यवान् शान्त और सहिष्णु होती है।’

नारी की प्रकट कोमलता, सहिष्णुता को पुरुष ने कई बार उसकी निर्बलता का चिन्ह मान लिया है और इसलिए उसे अबला कहा है। किन्तु वह यह नहीं जानता कि कोमलता, सहिष्णुता के अंक में ही मानव जीवन की स्थिति संभव है। क्या माँ के सिवा संसार में ऐसी कोई हस्ती है जो शिशु की सेवा, उसका पालन-पोषण कर सके। संसार में जहाँ-जहाँ भी चेतना साकार रूप में मुखरित हुई है उसका एक मात्र श्रेय नारी को ही है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि नारी समाज की निर्मात्री शक्ति है, वह समाज का धारण, पोषण करती है संवर्धन करती है।

नारी अपने विभिन्न रूपों में सदैव मानव जाति के लिए त्याग, बलिदान, स्नेह, श्रद्धा, धैर्य, सहिष्णुता का जीवन बिताती है। माता-पिता के लिए आत्मीयता, सेवा की भावना जितनी पुत्री में होती है उतनी पुत्र में नहीं होती। पराये घर जाकर भी पुत्री अपने माँ-बाप से जुदा नहीं हो सकती। उसमें परायापन नहीं आता, उसके हृदय में वही सम्मान, सेवा की भावना भरी रहती है जैसी बचपन में थी। भाई-बहिन का नाता कितना आदर्श, कितना पुण्य-पवित्र है। भाई-भाई परस्पर जुदा हो सकते हैं एक दूसरे का अहित कर सकते हैं किन्तु भाई-बहिन जीवन पर्यन्त कभी विलग नहीं हो सकते। बहन जहाँ भी रहेगी अपने भाई के लिए शुभ कामनायें, उसके भले के लिए प्रयत्न करती रहेगी। माँ तो माँ ही है। पुत्र की हित चिन्ता, उसका भला, लाभ हित सोचने वाली माँ के समान संसार में और कोई नहीं है। संसार के सब लोग मुँह मोड़ लें किन्तु एक माँ ही ऐसी है जो अपने पुत्र के लिए सदा सर्वदा सब कुछ करने के लिए तैयार रहती है।

पत्नी के रूप में नारी मनुष्य की जीवन संगिनी ही नहीं होती वह सब प्रकार से पुरुष का हित-साधन करती है। शास्त्रकार ने भार्या को छः प्रकार से पुरुष के लिए हित-साधक बतलाया है-

कार्य्येषु मन्त्री, करणेषु दासी, भोज्येषु माता, रमणेषु रम्भाः

धर्मानुकूला, क्षमाया धरित्री, भार्या च षड्गुण्यवती च दुर्लभा॥

‘कार्य में मंत्री के समान सलाह देने वाली, सेवादि में दासी के समान काम करने वाली, भोजन कराने में माता के समान पथ्य देने वाली, आनन्दोपभोग के लिए रम्भा के समान सरस, धर्म और क्षमा को धारण करने में पृथ्वी के समान-क्षमाशील ऐसे छः गुणों से युक्त स्त्री सचमुच इस विश्व का एक दुर्लभ रत्न है।’

राम के जीवन से सीता को निकाल देने पर रामायण पीछे नहीं रहता। द्रौपदी, कुन्ती, गाँधारी आदि का चरित्र काल देने पर महाभारत की महान गाथा कुछ नहीं रहती, पाण्डवों का जीवन संग्राम अपूर्ण रह जाता है। शिवजी के साथ पार्वती, कृष्ण के साथ राधा, राम के साथ सीता, विष्णु के साथ लक्ष्मी का नाम हटा दिया जाय तो इनके लीला, गाथा चरित्र अधूरे रह जाते हैं।

प्राचीन काल से नारियाँ घर गृहस्थी को ही देखती नहीं आ रही, समाज, राजनीति, धर्म, कानून, न्याय सभी क्षेत्रों में वे पुरुष की संगिनी ही नहीं रही वरन् सहायक, प्रेरक भी रही हैं। उन्हें समाज में पूजनीय स्थान दिया गया है। महाराज मनु ने तो अपनी प्रजा से कहा था।

‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवताः।’

जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। क्योंकि समाज में नारी को समान, पूज्य-स्थान देकर जब उसे पुरुष का सहयोगी, सहायक बना लिया जाता है तो ही समृद्धि, यश, वैभव बढ़ते हैं, जिससे सुख, शाँति, आनन्दपूर्ण जीवन बिताया जा सकता है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि नारी का सहयोग मानव जीवन में उन्नति, प्रगति, विकास के लिए आवश्यक है, अनिवार्य है। वह समाज उन्नति नहीं कर सकता, जहाँ स्त्री जो मानव-जीवन का अर्द्धांग ही नहीं एक बहुत बड़ी शक्ति है, को सामाजिक अधिकारों से वंचित कर उसे लुँज-पुँज एवं पद-दलिता बना कर रखा जाता है।

आवश्यकता इस बात की है कि हम नारी को समाज से वही प्रतिष्ठा दें, जिसकी आज्ञा हमारे ऋषियों ने, मनीषियों ने दी है। उसे जीवन के सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ावें। हम देखेंगे कि नारी अबला, असहाय न रहकर शक्ति सामर्थ्य की मूर्ति बनेगी। वह जीवन यात्रा में हमारे लिए बोझा न रहकर हमारी सहायक, सहयोगिनी सिद्ध होगी। तब हमें उसके भविष्य के संबंध में चिन्तित न होना पड़ेगा। वह अपनी रक्षा करने में स्वयं समर्थ होगी। अपना निर्वाह करने में समर्थ होगी। हमारे सामाजिक जीवन की यह एक बहुत महत्वपूर्ण माँग है कि सदियों से घर बाहर दीवारी में गंदे पर्दे, बुर्के की ओट में छिपी हुई पराश्रिता, परावलम्बी, अशिक्षित, अन्धविश्वास ग्रस्त, संकीर्ण स्वभाव नारी को वर्तमान दुर्दशा से उभारें। उसे समानता, स्वतंत्रता की मानवोचित सुविधा प्रदान करें। उसे शिक्षित, स्वावलम्बी, सुसंस्कृत एवं योग्य बनावें। तभी वह हमारे विकास में सहायक बन सकेगी। भारतीय संस्कृति को गौरवान्वित करने में योग दे सकेगी।

First 25 27 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • दया, धर्म का मूल
  • महात्मा महान आत्मा वाला पुरुष
  • आत्म बल कैसे बढ़े
  • भुजायें सोने की खान है
  • श्रद्धा ही जीवन है
  • त्याग करें, पर किसका
  • लक्ष्मी का निवास
  • महान बालक कासाविआन
  • सच्ची ईश्वर भक्ति का आधार
  • हम चरित्र को महत्व दें
  • लक्ष्मी जी का निवास
  • अन्धकार में प्रकाश उत्पन्न करने वाले- शंकराचार्य
  • वशीकरण विद्या
  • सामूहिक चेतना की आवश्यकता
  • Quotation
  • युग-दृष्टा राजर्षि गोखले
  • तीन उम्मीदवार
  • जनसंख्या वृद्धि की समस्या
  • Quotation
  • करुणामूर्ति माता टेरीजा
  • स्वर्ग
  • वर्ण व्यवस्था का स्वरूप और लक्ष्य
  • आश्रम-धर्म की उपयोगिता और आवश्यकता
  • आदर्श और संकल्प के प्रतीक-महर्षि कर्वे
  • जार्ज वाशिंगटन
  • नारी की महानता को समझें
  • सच्चे पुरोहित-रविशंकर महाराज
  • Quotation
  • बढ़ते हुये बाल अपराध
  • Quotation
  • अन्ध दम्पत्ति-नेमेथ
  • ख्वाजा हसन
  • संत समागम
  • हम सेवा भावी बनें
  • मधु-संचय
  • मधु-संचय (Kavita)
  • अन्ध-विश्वास का इन्द्रजाल
  • Quotation
  • जीवेम् शरदः शतम्
  • सच्चे साधक नहीं होते
  • अपना संगठन कार्य इसी मास पूरा किया जाय
  • जीवन निगम की त्रिविध शिक्षा
  • सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए
  • VigyapanSuchana
  • बुझता दीपक
  • बुझता दीपक (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj