
मधु-संचय (Kavita)
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जन-जन में भगवान है!
इसीलिए जन-जन की सेवा पूजा स्वयं महान है!!
दुःखी तुम्हारे हारे आये,
अपना दुःख तुम को बतलाये,
जो कुछ बने सहारा दो तुम,
क्योंकि उपेक्षा दीन-हीन की प्रभु का ही अपमान है!
जन-जन में भगवान है!!
शोक ग्रस्त हों जो भी भाई,
उनके हित बनकर सुखदाई,
तुम अपना कर्त्तव्य निभाओ,
पुण्य लाभ का अवसर पाओ,
दुःखियों का आशीष तुम्हारे लिये सुखद वरदान है!
जन-जन में भगवान है!!
-विद्यावती मिश्र
एकाकी रहने वाले का,
जीवन भी क्या टिक पायेगा।
बिना किसी का सम्बल पाये,
बिना मोल का बिक जायेगा।
अमर बनाना यदि अपने को,
औरों को भी गले लगाओ।
अपनी कुशल चाहने वाले,
औरों की भी कुशल मनाओ॥
जिससे क्लेश मिले औरों को,
वह तो कोई धर्म नहीं है।
जिससे हानि किसी जन को हो,
वह तो कोई कर्म नहीं है॥
अपना ही हित सदा न देखो,
परहित में भी ध्यान लगाओ।
अपनी कुशल चाहने वाले,
औरों की भी कुशल मनाओ॥
सबको उत्तम पन्थ मिले तुम,
ऐसे सुन्दर दीप जलाओ।
अपनी कुशल चाहने वाले,
औरों की भी कुशल मनाओ।
-गोमती प्रसाद पाण्डेय ‘कुमुदेश’
तुम मुझे इसके लिए चाहे करो बदनाम,
क्यों न कितने बुरे मेरे धरो तुम नाम,
दण्ड भी चाहे कठिन तुम दो मुझे इतना,
डूब जाए आँसुओं में, हर सुबह हर शाम,
पर यही अपराध में हर बार करता हूँ-
आदमी हूँ, आदमी से प्यार करता हूँ।
-नीरज
काट कण-कण देह जिसकी दुर्ग का निर्माण होता,
एक तिल हटने न पाता भूमि में ही प्राण खोता।
जय-पराजय-यश कीर्ति यश भी छोड़ करके कामनाएं,
रात-दिन निश्चल-अटल चुपचाप गढ़ का भार होता।
शोक में रोता नहीं और हर्ष में हंसता नहीं जो,
राष्ट्र की दृढ़ नींव का पाषाण बनता है वही तो।
-अज्ञात
अनेकों प्रश्न ऐसे हैं, जो दुहराये नहीं जाते।
बहुत उत्तर भी ऐसे हैं जो बतलाये नहीं जाते॥
इसी कारण अभावों का, सदा स्वागत किया मैंने।
कि घर आए हुए, मेहमान लौटाये नहीं जाते॥
हुआ क्या आँख से आँसू, अगर बाहर नहीं निकले।
बहुत से गीत भी ऐसे हैं, जो गाये नहीं जाते॥
बनाना चाहता हूँ स्वर्ग, तक सोपान सपनों का।
मगर चादर से ज्यादा, पाँव फैलाये नहीं जाते॥
-बलबीरसिंह ‘रंग‘
जो कभी गिरता नहीं भगवान है वह।
और जो गिरकर उठे इंसान है वह॥
किन्तु जो गिरकर कभी फिर उठ न पाए
आदमी के रूप में हैवान है वह॥
-विनोद रस्तोगी
कदमों ने सीखा है चलना, रुकना सीख न पाए।
शूल-शृंग-तूफान मिले, पर हमसे जीत न पाए॥
जीवन के हर नए मोड़ पर, आकर्षण भी आए।
अनदेखे ही बढ़ता आया, वे भी मोह न पाए॥
जिससे जितना बने, हमारा पथ तम मयकर जाओ।
अरी, आपदाओं विपदाओं ! स्वागत है, तुम आओ॥
रामस्वरूप खरे बी.ए.