• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • अन्तःकरण की आवाज सुनो और उसका अनुकरण करो
    • प्रार्थना को दैनिक जीवन में प्रमुख स्थान मिले
    • आत्म-शक्ति का अकूत भंडार
    • श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं
    • Quotation
    • भारतीय संस्कृति मानवता का वरदान
    • वसुधैव कुटुम्बकम्
    • जीवन एक वरदान है इसे वरदान की तरह जियें
    • सुन्दरता बढ़ाइए पर साथ ही आन्तरिक पवित्रता भी
    • Quotation
    • निग्रहीत मन की अपार सामर्थ्य
    • सर्वनाशी क्रोध
    • धन का सही उपार्जन और सही उपयोग ही उचित है।
    • Quotation
    • दैनिक जीवन में विनीत बने रहिए
    • जीवन को स्वस्थ, सार्थक एवं सुखी बनाइये
    • भारत के लिए सर्वस्व अर्पण करने वाली ‘बहिन निवेदिता’
    • हमारी वीरता अक्षुण्ण रहनी चाहिये
    • मधु-संचय
    • मधु-संचय (Kavita)
    • आदर्श गुरु शिष्य परम्परा फिर जागे ?
    • सुखी न भयउँ ‘अभय’ की नाईं
    • घर छोड़कर भागना पाप है।
    • काम में लगन भी हो और भावना भी
    • कर्ज से छुटकारा पाना ही ठीक है।
    • युग निर्माण आन्दोलन की प्रगति
    • हमारा निमन्त्रण दूसरों तक पहुँचाइए
    • धर्म मंच से युग-निर्माण का प्रेरणाप्रद साहित्य
    • उद्बोधन!
    • उद्बोधन (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login





Magazine - Year 1965 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


जीवन एक वरदान है इसे वरदान की तरह जियें

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 7 9 Last
मनुष्य के जीवन में देवत्व और असुरत्व का संग्राम प्रतिक्षण चलता रहता है। इस अंतर्मन्थन में जिस शक्ति की प्रबलता होती है वैसे ही परिणाम मनुष्य को प्राप्त होते हैं। सुख-दुख, प्रेम-वैर, राग-द्वेष, प्रिय-अप्रिय, आशा-निराशा और पाप-पुण्य के द्वन्द्वयुद्ध में जो पक्ष विजयी होता है उस के प्रतिफल इस जीवन में, और अन्य लोकों में संस्कार रूप में प्राप्त होते हैं। देवत्व मनुष्य की सुख-सुविधाओं और विकास में योग देता है; असुरत्व से मनुष्य का जीवन दुःख, क्लेश और कठिनाइयों में ग्रसित होकर तड़पता रहता है। इस निर्णय का अधिकार मनुष्य को ही है कि वह देवत्व का समर्थन करे या दनुजत्व को अपने जीवन का उद्देश्य बनाये।

प्राकृतिक नियमानुसार प्रत्येक अच्छी वस्तु कुछ कठिनाई से मिलती है। देवत्व श्रेष्ठ है किंतु उसके लिए जो त्याग और तपश्चर्या का मूल्य चुकाना पड़ता है वह निःसंदेह कठिन है। सुखोपभोग के लिये तो हमारे सभी अंग, हमारा मन, चित्त, प्राण और इन्द्रियाँ सभी व्याकुल और लालायित हैं परन्तु दुःख पाने की बारी आती है तो मुँह मोड़ लेते हैं। कठिनाइयों से हाथ सिकोड़ लेने की आदत है हमारी, इसीलिए दुर्बलताओं से हर क्षण घिरे रहते हैं। सुख-दुःख में समान रूप से विद्यमान हैं। जिस तरह ही दुःख संसार हमें प्रिय नहीं है उसी तरह सदैव सुख की भी कल्पना नहीं की जा सकती। फिर भी सुख इस संसार में अधिक है किंतु वे प्राप्त उन्हीं को होते हैं कठिनाइयों से संघर्ष करने का जिनका स्वभाव हो जाता है। दुःखरूपता का पर्दा हटाये बिना अंतर की आँखें नहीं खुलती, न ही किसी तरह की श्रेष्ठता मनुष्य के जीवन में आती है।

सुख की अभिलाषा है भी पूर्णतया आध्यात्मिक स्वर्ग में असंख्य सुखों की प्राप्ति होती है और नरक दुःखों का घर है, इसका समर्थन करते हुये महापुरुषों ने भी स्पष्ट किया है कि सुख की आकाँक्षा ही मनुष्य का सही उद्देश्य है। पुण्य और पाप-पुण्य में प्रवृत्ति और पाप से बचने में मनुष्य का बहुत कुछ लक्ष्य सुखासक्ति और दुःख विरक्ति ही है। सामाजिक संगठन और लोक सदाचार के संरक्षण का भी यह सर्वोत्तम उपाय है। नैतिक दृष्टि से स्वर्ग की अभिलाषा मनुष्य की मूलभूत आकाँक्षा मान लें तो भी कोई हर्ज नहीं किंतु यह बात जान लेना चाहिये कि जिस सुख की अभिव्यक्ति यहाँ की जाती है वह शाश्वत, सत्य और चिरन्तन होना चाहिए। साँसारिक सुखों के प्रति आसक्ति, मोह, लालसा मनुष्य मात्र की सहज दुर्बलता है। इस सुख के लिए मनुष्य असंयम, पाप और अत्याचार ही बढ़ाता है जिससे यहाँ का सारा जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। ऐसे सुख की भर्त्सना की गई है।

साँसारिक सुखों को ही यदि मानव-जीवन का लक्ष्य मानते हैं तो भावी दुःख की आशंका से प्रतिक्षण परेशान रहना पड़ता है। सुख की कामनायें जितना बढ़ेंगी अभाव उतने ही अधिक दिखाई देंगे। परिणामस्वरूप यह संसार दुःखों का ही आगार दिखाई देगा। इससे लोग निरन्तर विक्षुब्ध, गतचेतन, निरुपाय और विक्षिप्त से दिखाई देंगे। आश्रयहीन होकर मनुष्य का जीवन पूर्णतया दुःखमय बन जाय यदि मनुष्य दुःखों से घबड़ाने लगे। अशाँत-जीवन में सुख हो भी नहीं सकते। फिर मृत्यु की समस्या जो उसके साथ जुड़ी हुई है उसके कारण तो वह और भी कातर, भयभीत और दुःखी बना रहता है। यहाँ जरूर कोई न कोई हमारी भूल है। निश्चय ही हम इस संसार और यहाँ की परिस्थितियों का गलत अर्थ लगा रहे हैं तभी तो सारा जीवन दुःख, कष्ट और अभाव से घिरा हुआ दिखाई दे रहा है।

भूल यही है जो मनुष्य पदार्थ प्रेमी है। साँसारिक पदार्थ भी किसी सीमा तक ही सुख दे सकते हैं। अधिक परिमाण में सुख की लालसा ही दुःख का कारण बन जाती है। इतनी-सी भूल ही तूल बन जाती है और यह जीवन अभिशाप-सा दिखाई देने लगता है।

शरीर और उसके सुख क्षणिक हैं, नाशवान हैं किंतु “हम जो हैं-वह विशुद्ध तत्व रूप आत्मा हैं।” शरीर और आत्मा में भेद रखने की आवश्यकता पूरी न करने से ही साँसारिक सुखों में भ्रम पैदा होता है। यह विवेक दृश्य और उसके कारण पदार्थ का चिन्तन करने से आता है। आत्म-ज्ञान का उदय होते ही परिस्थितियाँ बदलती हैं और सुख का सही स्वरूप हमारे आगे परिलक्षित होने लगता है।

इस संसार में आत्म-ज्ञानी पुरुष ही पूर्ण सुखी हो सकते हैं क्योंकि उनके विचार स्थिर और कर्म सात्विक होते हैं। शेष व्यक्ति तो सचमुच दुःखों की ओर ही बढ़ रहे दिखाई देते हैं।

ग्रीक के प्रसिद्ध साहित्यकार कवि सोफोक्लिज ने लिखा है “संसार का सबसे दुःखी प्राणी मनुष्य ही है। उसका यहाँ से लौट जाना ही श्रेयस्कर है।” प्रसिद्ध कवि शेली और इलियड तथा आडेसी जैसी अमर कृतियों के निर्माता मनीषी होमर ने भी मानवीय जीवन को बड़े निराश शब्दों में व्यक्त किया है। वस्तुतः इस संसार को यदि सही रूप में न देख पाये तो यह संसार अधिकाँश सुखों की मृगमरीचिका और दुःखों से ओत-प्रोत ही दिखाई देता है।

स्पष्ट है कि सुख-दुःख मनुष्य की भावनाओं से सम्बद्ध है। भावनायें जब तक साँसारिक वस्तुओं से लिपायमान रहती हैं तब तक संसार ही सत्य लगता है। जब भावना स्तर ऊँचा उठाकर समष्टिगत चिन्तन के क्षेत्र में प्रविष्ट होते हैं तो एक अनिर्वचनीय आनन्द की स्थिति हमें प्राप्त होती हैं। भोग और विलास से मनुष्य की यह आध्यात्मिक क्षुधा मिटती नहीं। राजा बृहद्रथ, विश्वामित्र, ययाति और बाजिश्रवा के महान् ज्ञानी पुत्र नचिकेता आदि ने वैभव त्याग के द्वारा साँसारिक सुखों की निस्सारता को अपने चरित्र, त्याग और तपमय जीवन के द्वारा प्रमाणित किया था। तप के ही आत्मा का उत्थान संभव है। संसार को सही रूप से समझने के लिये उसमें भोग नहीं ढूंढ़ना चाहिए। हम दृष्टा बनकर जियें-प्रत्येक अच्छी-बुरी चीज पर विचार करना सीखें। उस स्तर से सोचने का प्रयास करें जिसमें बैठकर शारीरिक और आत्मिक विश्लेषण खुल कर किया गया हो। इस तरह की जिज्ञासा-वृत्ति से ही सही निष्कर्ष पर पहुँचना संभव हो सकेगा।

देवताओं के बारे में ऐसी कल्पना की जाती है कि वे अपरिमित शक्ति और अनन्त सामर्थ्य वाले होते हैं उनकी प्रत्येक कामनायें पूर्ण होती हैं। वे अपनी शक्ति से किसी भी दीन-दुःखी का उपकार कर सकते हैं। हिंदू दर्शनों में यही स्थिति आत्म-ज्ञानी पुरुषों की व्यक्त की गई है। आज की वैज्ञानिक मान्यताओं ने भी इस बात को सिद्ध कर दिया है कि व्यक्त-दृश्य की अपेक्षा अव्यक्त-अदृश्य- अर्थात् चेतन तत्व की शक्ति अतुलित ही है। मनुष्य आत्म-शोधन के द्वारा अपने देवत्व को विकसित करते हुये यह शक्ति और सामर्थ्य स्वयं भी प्राप्त कर सकता है। इसके लिए - सच्चे सुख के लिए अन्तःकरण में उत्कट भाव होना चाहिये ताकि पूर्णता के मार्ग में जो कठिनाइयाँ आती हैं उन्हें सहन करने की शक्ति आ जाय।

असुरों से सभी घृणा करते हैं क्योंकि उनकी भावनाओं में स्वार्थपरता और भोग लालसा इतनी प्रबल होती है कि वे इसके लिए दूसरों के अधिकार, सुख और सुविधायें छीन लेने में कुछ भी संकोच नहीं करते। उनके पास रहने वाले भी दुःखी रहते हैं व्यक्तिगत बुराइयों के कारण उनका निज का जीवन तो अशाँत होता ही है। दुःख की यह अवस्था किसी के लिए भी अभीष्ट नहीं है।

हम सुख भोगने के लिए इस संसार में आए हैं। दुःखों से हमें घृणा है। पर सुख के सही स्वरूप को भी तो समझना चाहिए। इन्द्रियों के बहकावे में आकर जीवन-पथ से भटक जाना मनुष्य जैसे बुद्धिमान प्राणी के लिए श्रेयस्कर नहीं लगता। इससे हमारी शक्तियाँ पतित होती हैं। अशक्त होकर भी क्या कभी सुख की कल्पना की जा सकती है? भौतिक शक्तियों से सम्पन्न व्यक्ति का इतना सम्मान होता है कि सभी लोग उसके लिये छटपटाते हैं फिर आध्यात्मिक शक्तियों की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। देवताओं को सभी नत मस्तक होते हैं क्योंकि उनके पास शक्ति का अक्षय-कोष माना जाता है। हम अपने देवत्व को जागृत करें तो वैसी ही शक्ति की प्राप्ति हमें भी हो सकती है। तब हम सच्चे सुख की अनुभूति भी कर सकेंगे और हमारा मनुष्य का जीवन सार्थक होगा। हमें असुरों की तरह नहीं देवताओं की तरह जीना चाहिये। देवत्व ही इस जीवन का सर्वोत्तम वरदान है हमें इस जीवन को वरदान की तरह ही जीना चाहिए।

First 7 9 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • अन्तःकरण की आवाज सुनो और उसका अनुकरण करो
  • प्रार्थना को दैनिक जीवन में प्रमुख स्थान मिले
  • आत्म-शक्ति का अकूत भंडार
  • श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं
  • Quotation
  • भारतीय संस्कृति मानवता का वरदान
  • वसुधैव कुटुम्बकम्
  • जीवन एक वरदान है इसे वरदान की तरह जियें
  • सुन्दरता बढ़ाइए पर साथ ही आन्तरिक पवित्रता भी
  • Quotation
  • निग्रहीत मन की अपार सामर्थ्य
  • सर्वनाशी क्रोध
  • धन का सही उपार्जन और सही उपयोग ही उचित है।
  • Quotation
  • दैनिक जीवन में विनीत बने रहिए
  • जीवन को स्वस्थ, सार्थक एवं सुखी बनाइये
  • भारत के लिए सर्वस्व अर्पण करने वाली ‘बहिन निवेदिता’
  • हमारी वीरता अक्षुण्ण रहनी चाहिये
  • मधु-संचय
  • मधु-संचय (Kavita)
  • आदर्श गुरु शिष्य परम्परा फिर जागे ?
  • सुखी न भयउँ ‘अभय’ की नाईं
  • घर छोड़कर भागना पाप है।
  • काम में लगन भी हो और भावना भी
  • कर्ज से छुटकारा पाना ही ठीक है।
  • युग निर्माण आन्दोलन की प्रगति
  • हमारा निमन्त्रण दूसरों तक पहुँचाइए
  • धर्म मंच से युग-निर्माण का प्रेरणाप्रद साहित्य
  • उद्बोधन!
  • उद्बोधन (kavita)
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj