
Quotation
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
आशावाद आस्तिकता है, सिर्फ नास्तिक ही निराशावादी हो सकता हैं। आशावादी ईश्वर से डरता हैं, विनय पूर्वक उसे अपनी पुकार सुनाता हैं और भीतरी पुकार के अनुसार बरतता हैं। वह मानता हैं कि ईश्वर जो करता हैं, अच्छे के लिये ही करता हैं।
-महात्मा गाँधी
सन्त सुकरात पराकाष्ठा तक सादे रहते थे। उनकी आवश्यकतायें बहुत कम थीं। वे कहा करते थे कि आवश्यकता रहित व्यक्ति देवताओं का मित्र होता है, सदा सम्पन्नता अनुभव करता और कभी दुःखी नहीं होता। अधिक आवश्यकताएं मानसिक दरिद्रता की द्योतक है। मनुष्य को इनसे बचकर रहना चाहिये। मनुष्य को धन वैभव तथा मान-सम्मान की लालसा पर लज्जा आनी चाहिये जबकि वह सत्य और ज्ञान का साक्षात्कार करके अपनी आत्मा को पवित्र बनाने की चिन्ता बिल्कुल नहीं करता।
उनके अनोखे चरित्र, विचित्र वेश-भूषा और नूतन विचारधारा ने लगभग समस्त एथेन्स वासियों को अपना भक्त बना लिया था। जन-साधारण एथेन्स के शासक से भी अधिक सुकरात का सम्मान करते थे। एथेन्स के युवक तो उनके मुख से जीवन के नवीन संवाद सुनकर उनके महान भक्त बन गये। उनकी यह लोकप्रियता देखकर एथेन्स के प्रतिक्रियावादी तथा शासक वर्ग भयभीत हो गये। उन्हें ऐसा लगने लगा कि यदि सुकरात का यही प्रभाव बना रहा और तरुण वर्ग उसके प्रभाव में रहा तो एक दिन वह एथेन्स की सत्ता उलट सकता है। पापात्मा व्यक्तियों ने सन्त सुकरात के विरुद्ध षडयंत्र करना शुरू कर दिया।
उनके गुर्गे तथा किराये के टट्टू उस जन-हितैषी तथा निस्पृह सन्त को तरह-तरह से त्रास देने लगे। वे उनका उपहास उड़ाते, उन पर ईंट, पत्थर, धूल, मिट्टी तथा कीचड़ फेंकते। उनके उपदेशों में विघ्न डालते और ताली बजा-बजाकर उन्हें पागल पुकारते। किन्तु मूर्ख मनुष्यों की इन हरकतों से उस वीतराग सन्त पर कोई प्रतिक्रिया न होती। व शान्त भाव से अपना उपदेश देते रहते अथवा अपने रास्ते चले जाते। न तो उन्हें क्रोध आता और न वे किसी का विरोध अथवा प्रतिरोध किया करते थे।
एथेन्स की जनता ने दुष्टों की इन अनुचित कार्यवाहियों का विरोध करना चाहा। युवकों ने संघर्ष की तैयारी कर ली। किन्तु सुकरात ने उन सबको यह कह कर शान्त कर दिया कि जो कुछ वे करते हैं, यदि हम सब भी वही सब कुछ करने लगे तो हम में और उनमें, भले और बुरे में क्या अन्तर रह जायेगा? यदि कोई गधा तुम्हारे लात मारे तो क्या बदले में तुम भी उसके लात मारोगे? उनकी कार्यवाहियों से उत्तेजित न होना ही हमारी जीत है। हमारी सहिष्णुता ही उनकी हार तथा उनके किये का पूरा-पूरा दण्ड है। हम जितने ही शान्त रहेंगे वे उतने ही अशान्त होंगे।
विरोधी जब इस प्रकार संत सुकरात को परास्त न कर सके तो उन्होंने राज सत्ता को भड़का कर उन्हें राज द्रोही घोषित करा दिया। सुकरात को बन्दी बना लिया गया। उनके शिष्यों ने उन्हें भाग जाने के लिये अनेक बार व्यवस्था बनाई, किन्तु उन्होंने भागने से स्पष्ट इनकार करते हुये कहा-तुम मुझे भागने को कहते हो। किन्तु मैं भाग कर कायरता का परिचय नहीं दूँगा। मुझे मृत्यु दण्ड मिलेगा, इसे मैं अच्छी प्रकार जानता हूँ। मुझे मृत्यु की किंचित चिन्ता नहीं है। मैं आत्मा की अमरता में पूर्ण विश्वास करता हूँ।