• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • धर्म न तो अवैज्ञानिक है और न अनुपयोगी
    • परमात्मा की प्राप्ति सच्चे प्रेम द्वारा ही सम्भव है
    • Quotation
    • ज्ञान ही मनुष्य की वास्तविक शक्ति
    • ज्ञानी-जन
    • हमारी जीवन नीति आदर्शवाद से प्रेरित हो
    • विराट्-ब्रह्म का भावनात्मक पार-दर्शन
    • Quotation
    • भूगोल बदल रहा है तो इतिहास भी बदलेगा
    • चन्द्रलोक को प्राप्त होता है
    • आत्मा का अस्तित्व-अमान्य न किया जाय
    • सम्पत्तियाँ नहीं, विभूतियाँ श्रेयस्कर हैं
    • मानव शरीर एक सर्वांगपूर्ण यंत्र है
    • मैं किसे प्यार करूं
    • अदृश्य लोक के निवासी-हमारे अदृश्य सहायक
    • मनुष्य शरीर की एक रहस्यमय शक्ति- कुण्डलिनी
    • क्षणिक सुख
    • प्रेम साधना द्वारा आन्तरिक उल्लास का विकास
    • आदर
    • ‘उपयोगितावाद’ हमें हिप्पी बनाकर छोड़ेगा
    • विवेक की विजय
    • लोकान्तर आवागमन- एक तथ्य, एक सत्य
    • अन्तरिक्ष अपने अन्दर भी है
    • भविष्य-दर्शन का विज्ञान
    • आत्म-विश्वास से अदृश्य दर्शन
    • हम धैर्य और साहस के साथ ही आगे बढ़ें
    • निर्भीकता
    • जीवन-शक्ति का अजस्र स्रोत- संगीत
    • दैवी-शक्ति द्वारा गुप्त रहस्यों का उद्घाटन
    • निश्छल आत्मा स्वयमेव देव-शक्ति
    • गर्भस्थ शिशु का इच्छानुवर्ती निर्माण
    • Quotation
    • गायत्री का देवता सविता पर एक वैज्ञानिक दृष्टि
    • अपनों से अपनी बात-
    • मुझे यह कभी नहीं स्वीकार
    • मुझे यह कभी नहीं स्वीकार (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • धर्म न तो अवैज्ञानिक है और न अनुपयोगी
    • परमात्मा की प्राप्ति सच्चे प्रेम द्वारा ही सम्भव है
    • Quotation
    • ज्ञान ही मनुष्य की वास्तविक शक्ति
    • ज्ञानी-जन
    • हमारी जीवन नीति आदर्शवाद से प्रेरित हो
    • विराट्-ब्रह्म का भावनात्मक पार-दर्शन
    • Quotation
    • भूगोल बदल रहा है तो इतिहास भी बदलेगा
    • चन्द्रलोक को प्राप्त होता है
    • आत्मा का अस्तित्व-अमान्य न किया जाय
    • सम्पत्तियाँ नहीं, विभूतियाँ श्रेयस्कर हैं
    • मानव शरीर एक सर्वांगपूर्ण यंत्र है
    • मैं किसे प्यार करूं
    • अदृश्य लोक के निवासी-हमारे अदृश्य सहायक
    • मनुष्य शरीर की एक रहस्यमय शक्ति- कुण्डलिनी
    • क्षणिक सुख
    • प्रेम साधना द्वारा आन्तरिक उल्लास का विकास
    • आदर
    • ‘उपयोगितावाद’ हमें हिप्पी बनाकर छोड़ेगा
    • विवेक की विजय
    • लोकान्तर आवागमन- एक तथ्य, एक सत्य
    • अन्तरिक्ष अपने अन्दर भी है
    • भविष्य-दर्शन का विज्ञान
    • आत्म-विश्वास से अदृश्य दर्शन
    • हम धैर्य और साहस के साथ ही आगे बढ़ें
    • निर्भीकता
    • जीवन-शक्ति का अजस्र स्रोत- संगीत
    • दैवी-शक्ति द्वारा गुप्त रहस्यों का उद्घाटन
    • निश्छल आत्मा स्वयमेव देव-शक्ति
    • गर्भस्थ शिशु का इच्छानुवर्ती निर्माण
    • Quotation
    • गायत्री का देवता सविता पर एक वैज्ञानिक दृष्टि
    • अपनों से अपनी बात-
    • मुझे यह कभी नहीं स्वीकार
    • मुझे यह कभी नहीं स्वीकार (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1968 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


विराट्-ब्रह्म का भावनात्मक पार-दर्शन

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 6 8 Last
एक बार देवी कौशल्या ने शिशु राम को स्नान कराया। पलने में बालक को पौढ़ा कर स्वयं स्नान किया। पूजा की, नैवेद्य चढ़ाया। फिर पाकशाला गईं। वहाँ बालक राम को भोजन करते देखा तो वह सशंकित हो उठीं। राम को पलने में छोड़ आई हूँ, वह यहाँ कैसे? तब वह पुनः पलने के पास आईं। वहाँ राम सानन्द सोये थे। दो स्थानों पर एक ही बालक। कौशल्या घबरा गई। तब-

देखराबा मातहिं निज अद्भुत रूप अखंड। रोम रोम प्रति लगो कोटि कोटि ब्रह्माँड॥

अगनित रवि शशि सिव चतुरानन। बहुगिरि सरित सिंधु महिकानन॥

काल कर्म गुन ग्यान सुभाऊ। सोउ देखा जो सुना न काऊ॥

भगवान का यह विराट् स्वरूप देखकर कौशल्या भयभीत हो उठीं। उन्होंने स्तुति की हे प्रभो! वह ज्ञान दो वह प्रकाश दो कि मैं शारीरिक सुख, स्वार्थ, अहंता, मोहमाया की भावनाओं के विरत होकर धर्मपरायण बनूँ और अन्त में आपको प्राप्त करूं।

एक बार कौरवों पाण्डवों में युद्ध का बनौवा बन गया। दोनों सेवायें महाभारत के लिये समुपस्थित हो गईं। अर्जुन ने दोनों सेनाओं के मध्य खड़े होकर देखा कि इस युद्ध में मुझे अपने ही भाई, बन्धु, पिता, साले, श्वसुर से युद्ध करना है तो उसका धैर्य जाता रहा, उसने अन्याय और अनीति के आगे हार मानकर गाँडीव फेंक दिया। न्याय के लिये युद्धरत होने, कर्म करने की दृढ़ता नष्ट हो गई।

अर्जुन का वह नपुँसक रूप देखकर भगवान् कृष्ण ने अपना विराट् स्वरूप दिखाया-

पश्यमे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्त्रशः। नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतानि च॥

पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा। बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत॥ -गीता 11। 6,7

अर्थ- हे अर्जुन! मेरे सैकड़ों हजारों नाना प्रकार के और अनेक वर्ण तथा आकृति वाले अलौकिक रूपों को देख, मुझ में ही 12 आदित्य, 8 वसु और 11 रुद्रों को दोनों अश्विनी कुमार और 49 मरुद्गणों को देख। जो पहले कभी नहीं देखा वह भी देख।

अर्जुन ने देखा-

यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतंगा- विशन्ति नाशाय समृऊवेगाः।

तथैव नाशाय विशन्ति लोका- स्तवान्ति वस्त्राणि समृद्धवेगा॥ - 11।29

अर्थात्- जिस तरह पतंगा अज्ञानवश होकर नष्ट होने के लिये प्रज्ज्वलित अग्नि में कूद जाता है, वैसे ही सारा संसार भगवान् के शरीर में नष्ट हो रहा है।

परमात्मा के मुख में अत्यन्त विराट् विश्व का दिग्दर्शन कर अर्जुन की मोह निद्रा टूटी और उसने धर्म के लिये युद्ध करना स्वीकार किया।

एक थे, काकभुसुण्डि जी! उन्हें सर्वज्ञानी होने का दम्भ था। अपनी ही बात उन्हें सत्य लगती, पराई नहीं। ऐसे व्यक्ति को शास्त्र और उपनिषद् क्या ज्ञान दे सकते हैं, जो अपने को आप परिपूर्ण माने बैठा हो?

एक दिन उन्हें आशंका हुई मनुष्य शरीर में ब्रह्म का अवतरण कैसे हो सकता है। वे अवध आये। राम की परीक्षा लेने। फिर काकभुसुंडि के ही शब्दों में -

मोहि बिलोकि राम मुसुकाहीं- बिहंसत तुरत गयऊ मुख माहीं॥

उदर माझ सुनु अंडज राया। देखेऊँ बहु ब्रह्मांड निकाया॥

कोटिन्ह चतुरान गौरीसा। अगनित उडगन कवि रजनीसा॥

अगणित लोकपाल जम काला। अगनित भूधर भूमि विसाला॥

सागर सरि सर विपिन अपारा। नाना भाँति सृष्टि विस्तारा॥

जो नहिं देखा नहिं सुना, जो मनहू न समाइ। सो सब अद्भुत देखेऊं बरनिं कवनि विधि जाइ॥

“जो कुछ ब्रह्मांड में है वह सब पिंड (शरीर) में है” यदि शास्त्रकार का यह कथन है सत्य है तो उपरोक्त घटनायें भी सत्य होंगी। पर बुद्धि इन बातों को ग्रहण नहीं करती। पेट में आकाश-पाताल, सूर्य-चन्द्रमा के दर्शन कुछ असम्भव-सा लगता है, यदि भगवान् कृष्ण का यह कथन -

न तु माँ शक्यते द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा। दिंव्यं ददामिं वे चक्षुः पश्य में योगमैश्वरम्॥ - 11। 8

अर्थ- हे अर्जुन! तू मुझे (मेरे विराट् स्वरूप को) इन प्राकृत आंखों से नहीं देख सकता, इसलिये मैं तुझे दिव्य चक्षु प्रदान करता हूँ, उससे तू मेरे विस्तार प्रभाव और योग शक्ति को देख।

इस दिव्य चक्षु का दूसरा नाम ज्ञान भी हो सकता है। मनुष्य के अन्तःकरण में यदि दम्भ न हो कुछ जानने लिये उसकी जिज्ञासा मृत न हुई हो तो वह प्रत्येक पदार्थ का विश्लेषण करके देख सकता है और संसार के निर्माण एवं व्यवस्था की विचित्र किन्तु नियमबद्ध परम्परा को जान और समझ सकता है। संसार में भारी हलचल हो रही है, जिसे हमारी आंखें देख नहीं पातीं। लोगों का जीवन बहुत संकीर्ण हो गया। ज्ञान वाली आँख फूट गई, जिससे सर्वत्र अज्ञान ही अज्ञान, मोह ही मोह, भ्रम, माया, कामना-वासना और स्वार्थ की परिस्थिति बढ़ रही है। मनुष्य इस संकीर्णता में कीट-पतंगों का सा गन्दा ओर गलीज लड़ाई-झगड़े वाला संघर्ष और अशाँति वाला जीवन बिताता है। वह दिव्यता नहीं आ पाती, जो जीवन में प्रेम, विश्वास, आत्म-भाव, विश्व-बन्धुत्व, न्याय धर्म, शील, सच्चरित्रता जागृत कर दे। यह आनन्द, सन्तोष एवं शाँतिप्रद स्थित भी उपलब्ध हो सकती है पर हमें पहले विराट परमात्मा का दर्शन करना होगा और अपने आपको उसका एक लघु घटक, अणुमात्र, प्रतिनिधि मानना होगा।

अब इस कार्य को विज्ञान ने बहुत कुछ सरल कर दिया है। भगवान् ने जिस तरह कौशल्या, काकभुसुण्डि और अर्जुन, यशोदा आदि को अपने विराट्स्वरूप के दर्शन कराये उसी तरह के दर्शन आज भी कराये जा सकते हैं।

एक दर्शन रूस के यूरी गैगरिन ने किया। अभी कुछ ही दिन पूर्व मृत्यु से पहले उन्होंने अन्तरिक्ष यात्रा पर अपने संस्मरण लिखे हैं, वह उस विराट् ब्रह्म की कल्पना से कम नहीं हैं। गैगरिन लिखते हैं।

“मैं पृथ्वी से बहुत ऊपर उठ चुका था। मुझे पृथ्वी पीले आकार का एक चन्द्रमा जैसी लग रही थी। कल्पना भी न की थी कि जिस पृथ्वी पर करोड़ों रंग बिरंगे वस्त्राभूषण धारण किये हुए मनुष्य रहते हैं, अरबों, मीलों रहे वृक्ष वन-पर्वत, नदियाँ बह रही हैं, वह ऊपर से एक नन्हा-सा पिण्ड मात्र लगेगी। इसके बाद मैंने एक दिन में ही 17 बार सूर्योदय के दर्शन किये। एक दिन में 17 बार पृथ्वी के चक्कर लगाने के कारण 17 बार सूर्य पृथ्वी के पीठ में गया, तब रात हो जाती थी, जितनी देर सूर्य का प्रकाश यान पर पड़ता रहता था, उतनी देर दिन रहता था। विशाल नील-गगन में खरबों नक्षत्रों के बीच अपनी तुलना करता था तो ऐसा लगता था, इस संसार की तुलना में मेरा अस्तित्व ऐसा ही है, जैसे सारी धरती की तुलना में चींटी के सिर का सौवाँ भाग।”

जोड़ी में अन्तरिक्ष यात्रा करने वाले मिचेल कौंलिंस और जानयंग के संस्मरण पढ़िये-

उड़ते ही गये, उड़ते ही गये, ऊपर और ऊपर दिल धड़कते जा रहे थे, फिर भी हम उस ऊँचाई तक पहुँचे, जहाँ उस दिन तक पृथ्वी का कोई भी जीवित प्राणी नहीं पहुँचा था। 474 मील की ऊँचाई तक हम पहुँचे थे, 71 घन्टे की उड़ान में पृथ्वी के 43 चक्कर लगाये।”

शेपर्डग्रिशम, करपेन्टर, निकोलार्थव पोपोविच, शीरा, कूपर, फियोकिस्तोव, योगोरोव, कोमोरोव, तेरेस्कोवा बोर-मैन, जेम्स स्टेफोर्ड आदि अन्तरिक्ष यात्रियों से कोई पूछे तो वे यही कहेंगे कि इन यात्राओं से सिद्ध हो चुका है कि संसार बड़ा विराट् और विलक्षण है, उसमें मनुष्य क्या सारे धरती-वासियों की स्थिति ऐसी ही है जैसे हिमालय पर्वत पर रहने वाली एक छोटी सी दीमक।

यात्री सरेनान ने ब्रह्मांड को बहुत उन्मुक्त अवस्था में देखा है। ये यान से अलग होकर 128 मिनट तक शून्य अन्तरिक्ष में विचरण करते रहे। उनका कथन है- वहाँ से पृथ्वी इतनी सुन्दर दीखती थी, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, उस दर्शन का आनन्द इतना अधिक था कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता उसे तो अंतःचेतना ही अनुभव कर रही है। यंग को भी इसी तरह का अनुभव तब हुआ जब उन्हें अपने यान से निकलकर एगेना से वह डिब्बा उठाकर लाना था, जिसमें चन्द्रमा की खोदी हुई मिट्टी थी।

यह दर्शन तो अभी सूर्य-चन्द्रमा और पृथ्वी या अधिक से अधिक शुक्र मंगल तक ही सीमित हैं, हमारे सौर मंडल में ही कई खरब नक्षत्र हैं, सूर्य उन सबको लेकर कृत्तिका की ओर बढ़ रहा है। कृत्तिका के पास अपना कई सौर मंडलों का अलग परिवार है, वह अपने परिवार सहित अभिजित की ओर बढ़ रहा है। कहते हैं सृष्टि की व्यवस्था के लिये सात सत्ता केन्द्र हैं सृष्टि के अन्दर के सब सितारे जो क्रमोन्नति से बड़े बड़े जंगलों के मध्य बिन्दु है, उनमें से हरएक इन्हीं सात सत्ता केंद्रों में से किसी न किसी के साथ सम्बन्ध रखता है। ये सितारे चैतन्य ईश्वर का कोई न कोई अंश है।

इस परिभ्रमण में बेशुमार सृष्टियाँ हैं। हर सृष्टि में अनेक सूर्य होते हैं। इनका संचालन सूर्य-मंडल का स्वामी (सोलर लॉगस ) करता है। सूर्य मंडल में वह शक्ति हैं, जिसकी ईश्वर में कल्पना की जाती है। वह सम्पूर्ण सूर्य-मंडल में व्यापक है और मंडल भर में कोई ऐसी वस्तु नहीं जिसमें वह न हो। वह हर वस्तु में है और हर वस्तु उसमें है।

लास एन्जिल्स (अमरीका) में एक प्रदर्शनी में काँच के 6 फुट के गोले के रूप में मनुष्य के एक रोम का आकार ब्रह्मांड-सा प्रतीत होता था, इसमें ब्रह्मांड के अणु थे, इसके द्वारा वैज्ञानिकों ने साबित किया था कि मनुष्य पिंड में अगणित जीवित परमाणु निवास करते हैं। उन परमाणुओं के लिये मनुष्य देह एक प्रकार से ब्रह्मांड जैसी ही है।

ब्रह्मांडों की हलचल और भी भीषण और कौतूहलवर्द्धक है। बुध 88 दिन में सूर्य की ओर 88 दिन में ही अपनी परिक्रमा करता है, 3000 मील व्यास का बुध सूर्य से 36 लाख मील दूर है। शुक्र का व्यास 7600 मील और दूरी 67 लाख मील है, वह सूर्य की 225 दिन में और अपनी 30 दिन में परिक्रमा करता है। पृथ्वी मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और प्लूटो क्रमशः 7900, 4200, 87000, 71500, 3600 लाख मील व्यास के हैं और ये क्रमशः सूर्य से 93, 142, 483, 886, 1783 और 3671 मील दूर हैं। सूर्य की परिक्रमा में इन्हें 3561।4 दिन, 687 दिन, 12 वर्ष, साढ़े 29 वर्ष, 84 वर्ष, 165 वर्ष और 248 वर्ष समय लग जाता है। इनमें कई अपनी धुरी पर बहुत तेज घूमते हैं, पृथ्वी 23 घंटा 56 मिनट पर धूमती है, मंगल 24 घन्टा 36 मिनट, बृहस्पति का भारी व्यास होते हुए भी वह कुल 9 घन्टा 50 मिनट में अपना चक्कर पूरा कर लेता है।

किसी शाँत और एकान्त स्थान में बैठने को मिले जहाँ से यह सब दृश्य देखने को मिल सकते हों तो मनुष्य वस्तुतः विराट् ब्रह्म के दर्शन की अनुभूति कर सकता है। यह देखकर, सुनकर, समझकर उसे माया, मद, मोह, अहंकार रह जाता होगा तो उस जैसा क्षुद्र प्राणी इस संसार में दूसरा न होगा।

First 6 8 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • धर्म न तो अवैज्ञानिक है और न अनुपयोगी
  • परमात्मा की प्राप्ति सच्चे प्रेम द्वारा ही सम्भव है
  • Quotation
  • ज्ञान ही मनुष्य की वास्तविक शक्ति
  • ज्ञानी-जन
  • हमारी जीवन नीति आदर्शवाद से प्रेरित हो
  • विराट्-ब्रह्म का भावनात्मक पार-दर्शन
  • Quotation
  • भूगोल बदल रहा है तो इतिहास भी बदलेगा
  • चन्द्रलोक को प्राप्त होता है
  • आत्मा का अस्तित्व-अमान्य न किया जाय
  • सम्पत्तियाँ नहीं, विभूतियाँ श्रेयस्कर हैं
  • मानव शरीर एक सर्वांगपूर्ण यंत्र है
  • मैं किसे प्यार करूं
  • अदृश्य लोक के निवासी-हमारे अदृश्य सहायक
  • मनुष्य शरीर की एक रहस्यमय शक्ति- कुण्डलिनी
  • क्षणिक सुख
  • प्रेम साधना द्वारा आन्तरिक उल्लास का विकास
  • आदर
  • ‘उपयोगितावाद’ हमें हिप्पी बनाकर छोड़ेगा
  • विवेक की विजय
  • लोकान्तर आवागमन- एक तथ्य, एक सत्य
  • अन्तरिक्ष अपने अन्दर भी है
  • भविष्य-दर्शन का विज्ञान
  • आत्म-विश्वास से अदृश्य दर्शन
  • हम धैर्य और साहस के साथ ही आगे बढ़ें
  • निर्भीकता
  • जीवन-शक्ति का अजस्र स्रोत- संगीत
  • दैवी-शक्ति द्वारा गुप्त रहस्यों का उद्घाटन
  • निश्छल आत्मा स्वयमेव देव-शक्ति
  • गर्भस्थ शिशु का इच्छानुवर्ती निर्माण
  • Quotation
  • गायत्री का देवता सविता पर एक वैज्ञानिक दृष्टि
  • अपनों से अपनी बात-
  • मुझे यह कभी नहीं स्वीकार
  • मुझे यह कभी नहीं स्वीकार (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj