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Magazine - Year 1970 - Version 2

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भारतीय-दर्शन का विस्तार व वैज्ञानिक विश्लेषण-[3]

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आत्मा का पन्ना जितना जटिल है, रहस्यपूर्ण है, उतना ही रुचिकर भी है। वह एक कला, एक विद्वान, एक शक्ति और पूर्णता का अध्याय है, उसे जान लेने और प्राप्त कर लेने के बाद साधारण मनुष्य भी असाधारण क्षमताओं से सम्पन्न हो जाता है।

विज्ञान यह बताता है कि शब्द को, आकार ही नहीं भावनाओं और स्वप्नों को भी विद्युत-चुम्बकीय शक्ति प्रवाह में हजारों-लाखों मील दूर तक दौड़ाया जा सकता है। टेलीफोन, टेलीग्राफ, टेलीविजन, रेडियो, टेलस्टार, लेजर आदि यंत्र उसी की पुष्टि करते हैं। अब प्रकाश के बारे में यह जाना गया है कि वह इस शक्ति प्रवाह में भी हस्तक्षेप करके उसे घटा-बढ़ा सकता है। फोटो इलेक्ट्रिक सेल एक प्रकार का वाल्व जैसा यंत्र होता है, जिसमें प्रकाश की किरणें डालने से विद्युत-धारा का मान घटाया या बढ़ाया जा सकता है। ऑटोमेटिक (स्वचालित) पंखे, रेडियो, घड़ियाँ और दरवाजों के खुलने तथा बन्द होने में इसका उपयोग इन दिनों हो रहा है, चोर घंटी (बरगलर अलार्म) भी इसी आधार पर बनी है। एक ऐसा यंत्र जो प्रकाश किरणों के बीच में पड़ने को अनुभव करता है। और घंटी बजाने लगता है, उसी को बरगलर अलार्म कहते हैं, इससे चोर के आने का पता चल जाता है।

एक्स किरणें प्रकाश कणों की भेदन शक्ति का परिचय देती हैं। प्रकाश की अत्यन्त सूक्ष्म और दिव्य सत्ता में यह गुण और भी विलक्षण पाये जाते हैं, इनमें विश्व के किसी भी भाग में होने वाली हलचल के रेखा-चित्र और आकार बनते-बिगड़ते रहते हैं, यदि हम उनका नियंत्रण आत्मा के प्रकाश के रूप में कर सकने की स्थिति में हों तो जो कुछ भी यन्त्रों के द्वारा आश्चर्यजनक देखा, सुना और प्राप्त किया जा सकता है, वह सब आत्म-चेतना द्वारा बिना किसी यन्त्र के प्राप्त किया जा सकता है।

स्वामी रामतीर्थ ने एक घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है-भारत में राम का एक मित्र था जो कि बड़ा धर्मनिष्ठ था। एक बार उसकी आँख बन्द करके उसे एक स्थान पर ले जाया गया। उसके सामने गणित की एक पुस्तक रखी गई। इस पुस्तक को उसने पहले कभी नहीं देखा था, फिर भी वह आँख बन्द किये ही उसे पढ़ता चला गया। इस पुस्तक में कुछ ऐसे नाम और गणित के चिन्ह थे, जिन्हें वह व्यक्ति नहीं जानता था तो भी उन सबको उसने एक कागज पर लिखकर बता दिया कि इस स्थान पर ऐसा अंकित है। उस व्यक्ति में विचारों को पढ़ने की भी क्षमता थी। सच बात तो यह है कि वैज्ञानिक कोई नई वस्तु बनाता ही नहीं, वह तो जो कुछ भी मस्तिष्क में है उसे उतार भर देता है, ज्ञान की स्वामी आत्मा स्वयं ही भूत, भविष्यत् सब का ज्ञाता है। क्या दूर क्या पास उसे जानने के लिये किसी भी बाह्य उपकरण की आवश्यकता नहीं। पर सामान्य स्थिति में हम उस पवित्रता को निखार नहीं पाते, जिसमें यह सिद्धियाँ सन्निहित हैं। आत्मा के ऊपर चढ़ा अज्ञानान्धकार हमें भटकाता रहता है और हम मानवेत्तर प्राणियों जैसा निकृष्ट जीवन जीते रहते हैं।

भारतीय दर्शन की तीसरी मान्यता यह है कि आत्मा सम्पूर्ण शक्तियों की स्वामी है। स्थूल रूप से इन्द्रियों की जितनी क्षमता है, वह सारी सूक्ष्म रूप से लाखों गुना अधिक आत्मा की शक्ति के रूप में विद्यमान है।

आज तक पदार्थ को ही शक्ति का मूल-स्रोत माना जाता रहा है, पर अब जो तथ्य प्रकाश में आये, उनसे यह पता चलता है कि चेतना पदार्थ को भी नियंत्रित और हस्तान्तरित कर सकती है। 7 दिसम्बर 1969 के साप्ताहिक हिन्दुस्तान (रहस्य रोमाँच) अंक में महामहोपाध्याय गोपीनाथ कविराज का एक लेख “विपुल प्रकृति और सृष्टि-प्रक्रिया का रहस्य” छपा है उसमें विद्वान लेखक ने बताया है कि आत्मा प्रत्येक समय प्रत्येक वस्तु से परिपूर्ण है, वह अवश्य वस्तुओं को भी किसी भी समय कहीं भी प्रकट कर सकती है। परमहंस स्वामी विशुद्धानन्द जी का उदाहरण देते हुए आप लिखते हैं- वह बोले देखो यह मेज पर किस वस्तु का फूल रखा है। मैंने कहा गन्ष फूल (मेरी गोल्ड)। इसके बाद वे उस फूल को हाथ में लेकर हिलाने लगे। उन्होंने बताया अब मैं आत्म-शक्ति से इस फूल में गुलाब के फूल के परमाणु आकर्षित करता हूँ। थोड़ा ही देर में उन्होंने हाथ खोलकर दिखाया तो वस्तुतः फूल गुलाब के रूप और गन्ध में बदल चुका था। फिर इसी फूल को उन्होंने जवापुष्प में बदल दिया। उन्होंने बताया इस प्रकार सृष्टि के किसी भी स्थान के कैसे भी परमाणुओं को मनोमय शक्ति द्वारा आकर्षित कर लेने की क्षमता आत्मा में है। हम अज्ञानवश अपनी ही क्षमताओं का उपयोग नहीं कर पाते अन्यथा कोई भी व्यक्ति अभावपूर्ण स्थिति में नहीं जन्मा अज्ञान ही शक्ति और अभाव है, यदि हम अपने आत्म-प्रकाश को जागृत कर लें तो हमारे लिये संसार में सब कुछ आनन्द ही आनन्द, मंगल ही मंगल है।

अभी तक इन बातों पर विश्वास करने वाला अन्धश्रद्धालु कहा जाता था पर विज्ञान ने कहा-वस्तुतः यह अन्ध श्रद्धा नहीं, सृष्टि का एक विलक्षण सत्य है। रूस के ‘रसायन संश्लेषण संस्थान’ ने प्लाज्मोट्रान’ नामक एक ऐसी युक्ति का अविष्कार किया है, जिसकी सहायता से अनेक रसायन पदार्थ का निर्माण एक सेकेंड के दस हजारवें हिस्से से भी कम समय में किया जा सकेगा। प्लाज्मा रसायन उद्योग पर तीव्र प्रभाव पड़ने का अनुमान है। उससे चौबीस घन्टे में इतना पदार्थ तैयार किया जा सकेगा, जो कई वर्षों तक भी खाने से न चुकेगा। भारत-वर्ष में कई अलौकिक और रहस्यमय भोजों की कथायें प्रचलित हैं, वह उसी विज्ञान पर आधारित हैं।

यह घटनायें भारतीय दर्शन के आत्म-विज्ञान को सत्य सिद्ध करती हैं, वहाँ लोगों की आत्मा जैसी अलभ्य वस्तु को प्राप्त करने की प्रेरणा भी देती हैं। यों यह विद्यायें योग से उपलब्ध होती हैं पर इन्हें गृहस्थ के कर्तव्यों का पालन करते हुए भी सीखा और समझा जा सकता है। स्वामी विशुद्धानन्द स्वयं गृहस्थ थे। उनका जन्म 14 मार्च 1856 को हुआ, 11 जुलाई 1937 को अपने मृत्यु दिवस तक का उनका सारा ही जीवन आत्म-तत्व की शोध में लगा। श्री पं. गोपीनाथ जी को उन्हीं की कृपा से आत्म-ज्ञान हुआ।

आत्मा के अस्तित्व को मानने के बाद तीसरी मान्यता हिन्दू-दर्शन की यही है कि मनुष्य अपनी भौतिक इच्छायें और महत्वाकाँक्षाओं की पूर्ति करता हुआ भी आत्मकल्याण की आवश्यकता को सर्वोपरि माने और उसके लिये निरन्तर प्रयत्नशील रहे। इस प्रयत्न में लगाया हुआ समय और साधन उसे भौतिक लाभों की अपेक्षा कहीं अधिक महत्वपूर्ण लाभ दे सकते हैं, यह ऊपर के कथानकों से साफ अभिव्यक्त है। व्यक्ति-पदार्थ पर स्वाधीन नियन्त्रण प्राप्त कर लें, सर्वदृष्टा और सर्वशक्तिमत्ता प्राप्त कर लें, इसकी तुलना में कोई भी बड़े से बड़ा पद, यश और वैभव भी नगण्य एवं तुच्छ ही कहा जा सकता है।

पदार्थ की तरह काल भी आत्मा में ही समाहित है। समय कोई वस्तु नहीं वरन् वह आत्मा का विस्तार मात्र है, इसलिये यदि कोई आत्मा का मूलोच्छेद कर लेता है तो वह समय की सीमाओं और प्रतिबन्धों को तोड़ लेता है। उसके लिये भूत भी वर्तमान है और भविष्यत् भी। वह आगे-पीछे का सब कुछ देख सकता है। सन 1924 में एक महान गृहस्थ योगी श्री रामचन्द्र ने अतीन्द्रिय स्थिति में एक पुस्तक ‘सत्य का उदय- (रियेलिटी एट डान) लिखी थी, उसमें उन्होंने लिखा था कि- इंग्लैंड का भाग्य दुर्भाग्यपूर्ण रहेगा, इसका दक्षिणी भाग समुद्र में धँस जायेगा। लन्दन के बीचों-बीच एक ज्वालामुखी छिपे तौर से काम कर रही है, वह थोड़े समय में ज्वालामुखी के रूप में फूट पड़ेगी।

यह बात तब हँसी की समझी गई, किन्तु जब पिछले दिनों जून 29 को साइन्स जनरल में भूगर्भ शोधों के हवालों से यही सूचना दी गई तो लोग आश्चर्यचकित रह गये। साइन्स जनरल में लिखा है- उत्तरी वेल्स के दक्षिण में यार्कशायर तक पूरा ब्रिटेन धीरे-धीरे इंग्लिश चैनल और उत्तरी सागर में डूबता जा रहा है, जबकि देश के उत्तरी क्षेत्र का आधा भाग और स्काटलैंड धीरे-धीरे समुद्र से उठते जा रहे हैं। पत्र ने यह भी दावा किया है कि 1500 वर्षों के अन्दर लन्दन के कुछ जिले तो समुद्र के गर्भ में विलीन हो जायेंगे।

यह जानकारियाँ कई बार इससे भी अधिक सामयिक और रोमाँचकारी होती हैं, तब पता चलता है कि अवश्य ही जीवन प्रवाह के रूप में कोई ऐसी सत्ता काम कर रही है, जो भूत, भविष्य के पल-पल को जानती है। उदाहरण के लिये कुछ दिन पहले रायबरेली की एक बालिका और एक राहगीर में कुछ कहा-सुनी हो गई। राहगीर एक धार्मिक व्यक्ति था। बालिका ने उसे गालियाँ दीं और कहा- “तू मर जा” वह सज्जन हँसे और बोले बेटी- “मेरी मृत्यु को तो अभी समय है पर मुझे दुख है, आज का दिन तेरे जीवन का अन्तिम दिन है। इसे विधि की विडम्बना कहें या आत्मा की विलक्षण क्षमता बालिका शाम को कुएँ पर पानी भरने गई वहाँ उसका पाँव फिसल गया और कुएँ में गिरकर उसकी मृत्यु हो गई।

यह अनेक घटनायें और प्रमाण यह बताते हैं कि हम कोई नगण्य शरीर और इन्द्रियों के परकोटे मात्र नहीं हैं, यह शरीर तो एक दुर्ग है, जिसमें महान वैभवशाली आत्मा निवास करती है, जो उसकी सान्निध्यता प्राप्त करता है, यह आत्मा उसे महामंत्री, सेनापति, प्रजापति और अलौकिक शक्तियों का स्वामी बना देती है।


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