
समस्त मानवीय गलतियाँ अहंकार से उत्पन्न होती हैं
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बल, बुद्धि, विद्या, जन, बन, रूप-रंग किसी भी क्षेत्र में क्यों न हो, अभिमान मनुष्य को मिटा देता है। विद्या की अभिमानी विद्योतमा को मूर्ख पति पाकर पश्चाताप करना पड़ा। विशेषताओं के साथ जो बुद्धिमान व्यक्ति विनम्रता, नगण्यता का समन्वय बनाए रहते हैं उनका कभी पतन नहीं होता और वे दिन-दिन उन्नति के शिखर पर चढ़ते चले जाते हैं। न्यूटन अपने समय का महान विद्वान एवं वैज्ञानिक था। उसकी प्रसिद्धि देश-देशान्तरों में फैली थी। किन्तु उसकी विद्या के साथ विनय का समन्वय था इसी नीति के कारण वह दिन-दिन और भी अधिक उन्नति करता हुआ सफलता के चरम शिखर पर पहुँचा और आज तक संसार में सम्मान के साथ याद किया जाता है। एक बार कुछ मित्रों ने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा- ‘आपने तो पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है।’ निरभिमानी न्यूटन इससे फूल नहीं उठा और न उसने गर्वपूर्वक इस उक्ति को स्वीकार किया। बल्कि उसने कहा- ‘मेरे सामने ज्ञान का अथाह समुद्र फैला पड़ा है जिसके किनारे के कुछ रज कण ही मैं उठा पाया हूँ।’ इसे कहते हैं विद्या के साथ विनय का समन्वय। यही तो वह गुण है, जिसको ग्रहण कर मनुष्य क्रम-क्रम से उन्नति करता हुआ देवत्व तक प्राप्त कर लेता है। उन्नति का अधिकारी निरभिमान व्यक्ति ही होता है, अभिमानी नहीं।
अहंकार का एक नाम मद भी है। मद का अर्थ है नशा। अहंकार का नशा चढ़ते ही मनुष्य मद्यपों की भाँति मतवाला हो जाता है। उसकी विभिन्न क्रियायें, चेष्टाएं और भावनाएं असंयत एवं असंतुलित हो जाती हैं। उसकी बुद्धि पर अज्ञान का अन्धकार छा जाता है और तब वह न करने योग्य कामों में प्रवृत्त होने लगता है। ऐसी मदहोशी में यदि वह अपने सम्मान को सुरक्षित रखना चाहता है तो उसकी यह चाह सफल नहीं हो सकती। अभिमान उसे अपकृत्य करने के लिए प्रेरित करेगा ही। उसका प्रभाव दूसरों पर पड़ेगा ही। कोई एक दो, चार-छः लोग उसे क्षमा कर देंगे, किन्तु अन्ततः कोई न कोई माई का लाल मिल ही जायेगा जो उसका सारा अहंकार और सारा नाश उतार ही देगा। यह एक ईश्वरीय विधान है इसमें व्यवधान नहीं पड़ सकता। संसार में आज तक किसी घमण्डी का सिर ऊंचा नहीं रहा, उसे नीचा होना ही पड़ता है। इसलिए इसी में बुद्धिमानी है और इसी में कल्याण है कि मनुष्य शक्ति, सम्पत्ति, साधन, समर्थन, सहायक अथवा विद्या, बुद्धि, रूप-रंग, सफलता एवं उपलब्धि आदि किसी भी बात पर घमण्ड न करे। सब कुछ पाकर भी उसे सच्चा, शालीन, सभ्य, सुशील तथा विनम्र बना रहना चाहिये। अहंकार मनुष्य जीवन के लिए विषैला सर्प है। प्रश्रय पाते ही यह दंश करता है और फिर मनुष्य की कैसी दशा हो सकती है। इसके सैंकड़ों उदाहरणों से संसार का इतिहास भरा पड़ा है? इसलिए इस जल बुद्बुद् की तरह क्षण भंगुर जीवन की परछाइयों की तरह बनने बिगड़ने वाली विभूतियों पर न तो कभी अभिमान करिए और न बेहोश ही होइए।
=कोटेशन= समस्त मानवीय गलतियाँ अहंकार से उत्पन्न होती हैं, अहंकार न रहे तो संसार स्वर्ग बन जाय। -रस्किन
अहंकार का एक नाम मद भी है। मद का अर्थ है नशा। अहंकार का नशा चढ़ते ही मनुष्य मद्यपों की भाँति मतवाला हो जाता है। उसकी विभिन्न क्रियायें, चेष्टाएं और भावनाएं असंयत एवं असंतुलित हो जाती हैं। उसकी बुद्धि पर अज्ञान का अन्धकार छा जाता है और तब वह न करने योग्य कामों में प्रवृत्त होने लगता है। ऐसी मदहोशी में यदि वह अपने सम्मान को सुरक्षित रखना चाहता है तो उसकी यह चाह सफल नहीं हो सकती। अभिमान उसे अपकृत्य करने के लिए प्रेरित करेगा ही। उसका प्रभाव दूसरों पर पड़ेगा ही। कोई एक दो, चार-छः लोग उसे क्षमा कर देंगे, किन्तु अन्ततः कोई न कोई माई का लाल मिल ही जायेगा जो उसका सारा अहंकार और सारा नाश उतार ही देगा। यह एक ईश्वरीय विधान है इसमें व्यवधान नहीं पड़ सकता। संसार में आज तक किसी घमण्डी का सिर ऊंचा नहीं रहा, उसे नीचा होना ही पड़ता है। इसलिए इसी में बुद्धिमानी है और इसी में कल्याण है कि मनुष्य शक्ति, सम्पत्ति, साधन, समर्थन, सहायक अथवा विद्या, बुद्धि, रूप-रंग, सफलता एवं उपलब्धि आदि किसी भी बात पर घमण्ड न करे। सब कुछ पाकर भी उसे सच्चा, शालीन, सभ्य, सुशील तथा विनम्र बना रहना चाहिये। अहंकार मनुष्य जीवन के लिए विषैला सर्प है। प्रश्रय पाते ही यह दंश करता है और फिर मनुष्य की कैसी दशा हो सकती है। इसके सैंकड़ों उदाहरणों से संसार का इतिहास भरा पड़ा है? इसलिए इस जल बुद्बुद् की तरह क्षण भंगुर जीवन की परछाइयों की तरह बनने बिगड़ने वाली विभूतियों पर न तो कभी अभिमान करिए और न बेहोश ही होइए।
=कोटेशन= समस्त मानवीय गलतियाँ अहंकार से उत्पन्न होती हैं, अहंकार न रहे तो संसार स्वर्ग बन जाय। -रस्किन