• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • शक्ति-स्रोत की सच्ची शोध
    • प्यास जो बुझ न सकी
    • Quotation
    • प्रेम का परिष्कार-पेड़-पौधों से भी प्यार
    • Quotation
    • प्राणिमात्र से प्रेम करो
    • पदार्थ से पृथक् आत्म-चेतना का अस्तित्व
    • Quotation
    • वेद और विज्ञान-ब्रह्माँड विकास का तुलनात्मक अनुसंधान
    • Quotation
    • व्यर्थ की कल्पना
    • इष्ट की उपासना का मर्म
    • मेरी सम्पत्ति
    • हमारी प्रगति उत्कृष्टता की दिशा में हो।
    • Quotation
    • Quotation
    • वह प्रकाश क्या सूक्ष्म शरीर था?
    • हम भूत और भविष्य भी जान सकते हैं।
    • कितना आकर्षक, कितना बलवान
    • कर्मफल हाथों-हाथ
    • अद्भुत प्रकृति के अद्भुत रहस्य
    • परमात्मा के अपार दान की समझ
    • क्रोधात् जयेत अक्रोधेन
    • जैसा हूँ वैसा ही रहता हूँ
    • दान का लक्ष्य यश नहीं आत्म-सन्तोष हो।
    • Quotation
    • श्री हरिनारायण आप्टे
    • अंडा खाइये और लकवा बुलाइये
    • Quotation
    • शारीरिक शक्ति से बृहत्तर-इच्छा शक्ति
    • Quotation
    • श्री रफी अहमद किदवई
    • हंसिये जी खोलकर-स्वस्थ रहिये जीवन भर
    • धुआँ एक मारता है; एक जिन्दगी देता है।
    • Quotation
    • दूषित वायु का प्रतिफल
    • अहंकार के सर्प दंश से सदा बचे रहिए।
    • समस्त मानवीय गलतियाँ अहंकार से उत्पन्न होती हैं
    • स्वर्ग की विशेषता
    • सत्यमेव जयते
    • हकीम लुकमान
    • जन्म से मृत्यु तक अविराम- काम ही काम
    • अवसर का चित्र
    • दो शव
    • संगीत कला विहीनः साक्षात् पशु पुच्छ हीन
    • भजन तो वही है
    • धर्म व विज्ञान में सामंजस्य अनिवार्य
    • Quotation
    • भारतीय संस्कृति का मर्म और स्वरूप
    • Quotation
    • जीवन में धार्मिकता का समावेश कर
    • विधवा नास्ति अमंगलम्
    • हम राजनीति में भाग क्यों नहीं लेते?
    • ज्ञान यज्ञ करना है (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • शक्ति-स्रोत की सच्ची शोध
    • प्यास जो बुझ न सकी
    • Quotation
    • प्रेम का परिष्कार-पेड़-पौधों से भी प्यार
    • Quotation
    • प्राणिमात्र से प्रेम करो
    • पदार्थ से पृथक् आत्म-चेतना का अस्तित्व
    • Quotation
    • वेद और विज्ञान-ब्रह्माँड विकास का तुलनात्मक अनुसंधान
    • Quotation
    • व्यर्थ की कल्पना
    • इष्ट की उपासना का मर्म
    • मेरी सम्पत्ति
    • हमारी प्रगति उत्कृष्टता की दिशा में हो।
    • Quotation
    • Quotation
    • वह प्रकाश क्या सूक्ष्म शरीर था?
    • हम भूत और भविष्य भी जान सकते हैं।
    • कितना आकर्षक, कितना बलवान
    • कर्मफल हाथों-हाथ
    • अद्भुत प्रकृति के अद्भुत रहस्य
    • परमात्मा के अपार दान की समझ
    • क्रोधात् जयेत अक्रोधेन
    • जैसा हूँ वैसा ही रहता हूँ
    • दान का लक्ष्य यश नहीं आत्म-सन्तोष हो।
    • Quotation
    • श्री हरिनारायण आप्टे
    • अंडा खाइये और लकवा बुलाइये
    • Quotation
    • शारीरिक शक्ति से बृहत्तर-इच्छा शक्ति
    • Quotation
    • श्री रफी अहमद किदवई
    • हंसिये जी खोलकर-स्वस्थ रहिये जीवन भर
    • धुआँ एक मारता है; एक जिन्दगी देता है।
    • Quotation
    • दूषित वायु का प्रतिफल
    • अहंकार के सर्प दंश से सदा बचे रहिए।
    • समस्त मानवीय गलतियाँ अहंकार से उत्पन्न होती हैं
    • स्वर्ग की विशेषता
    • सत्यमेव जयते
    • हकीम लुकमान
    • जन्म से मृत्यु तक अविराम- काम ही काम
    • अवसर का चित्र
    • दो शव
    • संगीत कला विहीनः साक्षात् पशु पुच्छ हीन
    • भजन तो वही है
    • धर्म व विज्ञान में सामंजस्य अनिवार्य
    • Quotation
    • भारतीय संस्कृति का मर्म और स्वरूप
    • Quotation
    • जीवन में धार्मिकता का समावेश कर
    • विधवा नास्ति अमंगलम्
    • हम राजनीति में भाग क्यों नहीं लेते?
    • ज्ञान यज्ञ करना है (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1970 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


प्रेम का परिष्कार-पेड़-पौधों से भी प्यार

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 3 5 Last
संभव है संसार के किसी और भाग में भी अब ऐसे गुलाब के पौधे हों जिनमें काँटे न हों, बेर हों पर उनमें भी काँटे न हों, कुमुदिनी हो पर दिन में भी खिलती हो, अखरोट के वृक्ष हों जो 32 वर्ष की अपेक्षा 16 वर्ष में ही अपनी सामान्य ऊँचाई से भी बड़े होकर अच्छे फल देने लगते हों। पर वे होंगे अमेरिका के कैलिफोर्निया में विशेष रूप से तैयार किये गये पौधों की ही सन्तान। कैलिफोर्निया में यह पौधे किसी वनस्पति शास्त्री या किसी ऐसे शोध-संस्थान द्वारा तैयार नहीं किये गये। उसका श्रेय एक अमेरिकन सन्त लूथर बरबैंक को है, जिन्होंने अपने संपूर्ण जीवन में प्रेम योग का अभ्यास किया और यह सिद्ध कर दिया कि प्रेम से प्रकृति के अटल सिद्धाँतों को भी परिवर्तित किया जा सकता है। यह पौधे और कैलिफोर्निया का लूथर बरबैंक का यह बगीचा उसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

एक बार एक सज्जन इस बाग से एक बिना काँटों वाला ‘सेहुँड़’ लेने गये ताकि उसे अपने खेत के किनारे-किनारे थूहड़ के रूप में रोप सकें। अमेरिका क्या सारी दुनिया भर में संभवतः यही वह स्थान था जहाँ सेहुँड़ बिना काँटों के थे। बाग का माली खुरपी लेकर डाल काटने चला तो दूर से ही लूथर बरबैंक ने मना किया, बोले- आपसे काटते नहीं बनेगा। लाओ, मैं काट देता हूँ। यह कहकर खुरपी उन्होंने अपने हाथ में ले ली और बोले-माना कि यह पौधे हैं, इनमें जीवन के लक्षण प्रतीत नहीं होते तथापि यह भी आत्मा हैं और प्रत्येक आत्मा प्रेम की प्यासी भावनाओं की भूखी होती है। हम संसार को कुछ नहीं दे सकते, तो प्रेम और करुणाशील भावनाएं तो प्रदान कर ही सकते हैं। कदाचित मनुष्य इतना सीख जाये तो संसार में सुख-शाँति का पारावार न रहे।

बरबैंक सेहुँड़ के पास बैठकर खुरपी से सेहुँड़ की डाल काटते जाते थे, पर उनकी उस क्रिया में भी कितनी आत्मीयता और ममत्व झलकता था यह देखते ही बनता था, जैसे कोई माँ अपने बच्चे को कई बार दण्ड भी देती है पर परोक्ष में उसका हित और मंगल भाव ही उसके हृदय में भरा रहता है, वैसे ही बरबैंक सेहुँड़ को काटते जाते थे और भावनाओं का एक सशक्त स्पंदन भी प्रवाहित करते जाते थे- ऐ पौधे! तुम यह न समझना कि हम तुम्हें काट कर अलग कर रहे हैं। हम तो तुम्हारे और अधिक विस्तार की कामना से विदा कर रहे हैं। यहाँ से चले जाने के बाद भी तुम मुझसे अलग नहीं होगे। तुम मेरे नाम के साथ जुड़े हो, तुम मेरी आत्मा के अंग हो। माना लोक-कल्याण के लिये तुम्हें यहाँ से दूर जाना पड़ रहा है, पर तुम मेरे जीवन का अभिन्न अंग हो। जहाँ भी रहोगे हम तुम्हें अपने समीप ही अनुभव करेंगे-ऐसी भावनाओं के साथ बरबैंक ने सेहुँड़ की दो-तीन डालें काट दीं और आगन्तुक को दे दीं, आगन्तुक उन्हें ले गया। इस तरह से बाग की सैंकड़ों पौध सारी दुनिया में फैली और बरबैंक के नाम से विख्यात होती गईं।

यह कोई गल्प-कथा नहीं वरन् एक ऐसा तथ्य है जिसने सारे योरोप के वैज्ञानिकों को यह सोचने के लिये विवश कर दिया कि क्या सचमुच ही भावनाओं के द्वारा पदार्थ के वैज्ञानिक नियम भी परिवर्तित हो सकते हैं?

जिस तरह भारतवर्ष में इन दिनों नेहरू गुलाब, शास्त्री गेहूँ आदि नामों से पौधों अन्नों की विशेष नस्लें कृषि विशेषज्ञ वैज्ञानिक अनुसंधान से तैयार कर रहे हैं उसी प्रकार बरबैंक पोटेटो (आलू), बरबैंक स्क्वैश, बरबैंक चेरी, बरबैंक रोज, बरबैंक वालनट (अखरोट) आदि सैंकड़ों पौधों, फलों, सब्जियों तथा अन्नों की नस्लें बरबैंक के नाम से प्रचलित हैं। इन्हें बरबैंक ने तैयार किया यह सत्य है पर किसी वैज्ञानिक पद्धति से नहीं, यह उससे भी अधिक सत्य है। यह सब किस तरह संभव हुआ उसका वर्णन स्वयं लूथर ने अपने शब्दों में ‘दि ट्रेनिंग आफ ह्यूमन प्लान्ट’ नामक पुस्तक में निम्न प्रकार लिखा है। यह पुस्तक न्यूयार्क की सेंचुरी कं. से 1922 में प्रकाशित हुई है। लूथर लिखते हैं-

‘आत्म-चेतना के विकास के साथ मैंने अनुभव किया कि संसार का प्रत्येक परमाणु आत्मामय है। जीव जन्तु ही नहीं वृक्ष-वनस्पतियों में भी वही एक आत्मा प्रभासित हो रहा है-यह जानकर मुझे बड़ा कौतूहल हुआ। मैं वृक्षों की प्रकृति पर विचार करते-करते इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इनमें जो काँटे हैं वह इनके क्रोध और रुक्षता के संस्कार हैं। संभव है लोगों ने इन्हें सताया, कष्ट दिया, इनकी आकाँक्षाओं की ओर ध्यान नहीं दिया। इसीलिये ये इतने सुन्दर फूल-फल देने के साथ ही काँटे वाले भी हो गये।

यदि ऐसा है तो क्या इन्हें प्रेम और दुलार देकर सुधारा भी जा सकता है? ऐसा एक कौतूहल मेरे मन में जागृत हुआ। मैं देखता हूँ कि सारा संसार ही प्रेम का प्यासा है। प्रेम के माध्यम से किसी के भी जीवन में परिवर्तन और अच्छाइयां उत्पन्न की जा सकती हैं, तो यह प्रयोग मैंने पौधों पर करना प्रारंभ किया।

गुलाब का एक छोटा पौधा लगाया तब उसमें एक भी काँटा नहीं था। मैं उसके पास जा बैठता, मेरे अन्तःकरण से भावनाओं की शक्त तरंगें उठतीं और पास के वातावरण में विचरण करने लगतीं। मैं कहता मेरे प्यारे बच्चे, मेरे गुलाब, लोग फूल लेने इस दृष्टि से नहीं आते कि तुम्हें कष्ट दें। वैसे भी तो तुम्हारा सौंदर्य, तुम्हारी सुवास विश्वकल्याण के लिये ही है। जब दान और संसार की प्रसन्नता के लिये उत्सर्ग ही तुम्हारा ध्येय है तो फिर यह काँटे तुम क्यों उगाते हो। तुम अपने काँटे निकालना और लोगों को अकारण कष्ट देना भी छोड़ दो, तो फिर देखना कि संसार तुम्हारा कितना सम्मान करता है। अपने स्वभाव की इस मलिनता और कठोरता को निकाल कर एक बार देखो तो सही कि यह सारा संसार ही तुम्हें हाथों ही हाथों उठाने के लिये तैयार है या नहीं।

गुलाब से मेरी ऐसी बातचीत प्रतिदिन होती। भावनायें अन्तःकरण से निकलें और वह खाली चली जायें, तो फिर संसार में ईश्वरीय अस्तित्व को मानता ही कौन? गुलाब धीरे-धीरे बढ़ने लगा। उसमें सुडौल डालियाँ फूटीं, चौड़े-चौड़े पत्ते निकले और पाव-पाव भर के हंसते-इठलाते फूल भी निकलने लगे, पर उसमें क्या मजाल कि एक भी काँटा आया हो। आत्मा को आत्मा प्यार से कुछ कहे और वह उसे ठुकरा दे- ऐसा संसार में कहीं हुआ नहीं, फिर भला बेचारा नन्हा-सा पौधा ही अपवाद क्यों बनता। उसने मेरी बात सहर्ष मान ली और मुझे सन्तोष हुआ कि मेरे बाग का गुलाब बिना काँटों का था।

अखरोट का धीरे-धीरे बढ़ना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। मैंने उसे पानी उतना ही दिया, खाद उतनी ही दी निकाई और गुड़ाई में भी कोई अन्तर नहीं आने दिया, फिर ऐसी क्या भूल हो गई, जो अखरोट 32 वर्ष में ही बढ़ने की हठ ठान बैठा। मैंने समझा इसे भी किसी ने प्यार नहीं दिया।

मैंने उसे सम्बोधित कर कहा-मेरे बच्चे! तुम्हारे लिये हमने सब जुटाया, क्या उस कर्त्तव्यपरायणता में जो तुम्हारे प्रति असीम प्यार भरा था, उसे तुम समझ नहीं सकते। तुम मेरे बच्चे के समान हो, तुम्हें मैं अलग अस्तित्व दूँ ही कैसे? हम तुम एक ही तो हैं। आज माना कि दो रूपों में खड़े हैं, पर एक दिन तो यह अन्तर मिटेगा ही। क्या हम उस आत्मीयता को अभी भी स्थायित्व प्रदान नहीं कर सकते? तुम उगो और जल्दी उगो, ताकि संसार में अपने ही तरह की और जो आत्मायें हैं, उनकी कुछ सेवा कर सकें।

First 3 5 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • शक्ति-स्रोत की सच्ची शोध
  • प्यास जो बुझ न सकी
  • Quotation
  • प्रेम का परिष्कार-पेड़-पौधों से भी प्यार
  • Quotation
  • प्राणिमात्र से प्रेम करो
  • पदार्थ से पृथक् आत्म-चेतना का अस्तित्व
  • Quotation
  • वेद और विज्ञान-ब्रह्माँड विकास का तुलनात्मक अनुसंधान
  • Quotation
  • व्यर्थ की कल्पना
  • इष्ट की उपासना का मर्म
  • मेरी सम्पत्ति
  • हमारी प्रगति उत्कृष्टता की दिशा में हो।
  • Quotation
  • Quotation
  • वह प्रकाश क्या सूक्ष्म शरीर था?
  • हम भूत और भविष्य भी जान सकते हैं।
  • कितना आकर्षक, कितना बलवान
  • कर्मफल हाथों-हाथ
  • अद्भुत प्रकृति के अद्भुत रहस्य
  • परमात्मा के अपार दान की समझ
  • क्रोधात् जयेत अक्रोधेन
  • जैसा हूँ वैसा ही रहता हूँ
  • दान का लक्ष्य यश नहीं आत्म-सन्तोष हो।
  • Quotation
  • श्री हरिनारायण आप्टे
  • अंडा खाइये और लकवा बुलाइये
  • Quotation
  • शारीरिक शक्ति से बृहत्तर-इच्छा शक्ति
  • Quotation
  • श्री रफी अहमद किदवई
  • हंसिये जी खोलकर-स्वस्थ रहिये जीवन भर
  • धुआँ एक मारता है; एक जिन्दगी देता है।
  • Quotation
  • दूषित वायु का प्रतिफल
  • अहंकार के सर्प दंश से सदा बचे रहिए।
  • समस्त मानवीय गलतियाँ अहंकार से उत्पन्न होती हैं
  • स्वर्ग की विशेषता
  • सत्यमेव जयते
  • हकीम लुकमान
  • जन्म से मृत्यु तक अविराम- काम ही काम
  • अवसर का चित्र
  • दो शव
  • संगीत कला विहीनः साक्षात् पशु पुच्छ हीन
  • भजन तो वही है
  • धर्म व विज्ञान में सामंजस्य अनिवार्य
  • Quotation
  • भारतीय संस्कृति का मर्म और स्वरूप
  • Quotation
  • जीवन में धार्मिकता का समावेश कर
  • विधवा नास्ति अमंगलम्
  • हम राजनीति में भाग क्यों नहीं लेते?
  • ज्ञान यज्ञ करना है (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj