• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • निरन्तर देता है, वह निर्बाध पाता है
    • पूर्णता-प्राप्ति
    • गर न हुई दिल में मए इश्क की मस्ती
    • भगवान को भूलने की गलती
    • पदार्थ से शक्ति की ओर, अणु से विराट् की ओर
    • जीवन प्रवाह-अनादि से अनन्त तक
    • मदद की स्थिति में हूँ
    • अद्वैत आत्मा की अद्वैत अनुभूतियाँ
    • पेड़ पर एक बन्दर बैठा
    • छुरे की धार पर नचिकेता चलेगा
    • कवि इकबाल
    • कर्म-योग संबंधी भ्रान्तियाँ और उनका निराकरण
    • कर्त्तव्य-पालन की दृढ़ता
    • शाक भाजी खाइये-अपनी बढ़ाइये
    • शरीर में एक और शरीर-प्राण-शरीर
    • साधन की कसौटी
    • शक्ति, प्रकाश और ब्रह्म ज्ञानदाता-अग्निदेवता
    • कर्मण गहनोगतिः
    • भावातिरेकता बढ़ने न दें
    • धरती माता को पागलों से केवल यज्ञ बचायेंगे
    • आत्मा की खेती
    • मन्त्र विद्या का वैज्ञानिक आधार
    • दस अक्षरों ने महाभारत रचाया
    • मृत्यु के बाद भी मनुष्य जीवित रहता है।
    • पिंजरा छोड़ दो, उड़ जाओ
    • बन्धन-मुक्ति
    • ईश्वर ही है मुक्ति दाता
    • सत्य बनाम तथ्य
    • खलीफा उमर
    • ऊपर जाने की जल्दी हो तो सिगरेट पियें
    • काश हम सहयोग व सहकारिता का महत्व समझते
    • गाँधी जी की रक्षा का दायित्व
    • अविवेक के कारण दुर्गति
    • आध्यात्मिक काम विज्ञान- 5
    • सफलता का श्रेय
    • विज्ञान और धर्म में समन्वय अनिवार्य
    • आज के पुण्य से कल की प्राप्ति
    • अपनों से अपनी बात
    • परिजन इन सात प्रयत्नों में आज से ही जुट जाये
    • सारी दुनिया नासमझ है।
    • दायें बायें हाथ
    • विदाई की घड़ी
    • विदाई की घड़ी (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • निरन्तर देता है, वह निर्बाध पाता है
    • पूर्णता-प्राप्ति
    • गर न हुई दिल में मए इश्क की मस्ती
    • भगवान को भूलने की गलती
    • पदार्थ से शक्ति की ओर, अणु से विराट् की ओर
    • जीवन प्रवाह-अनादि से अनन्त तक
    • मदद की स्थिति में हूँ
    • अद्वैत आत्मा की अद्वैत अनुभूतियाँ
    • पेड़ पर एक बन्दर बैठा
    • छुरे की धार पर नचिकेता चलेगा
    • कवि इकबाल
    • कर्म-योग संबंधी भ्रान्तियाँ और उनका निराकरण
    • कर्त्तव्य-पालन की दृढ़ता
    • शाक भाजी खाइये-अपनी बढ़ाइये
    • शरीर में एक और शरीर-प्राण-शरीर
    • साधन की कसौटी
    • शक्ति, प्रकाश और ब्रह्म ज्ञानदाता-अग्निदेवता
    • कर्मण गहनोगतिः
    • भावातिरेकता बढ़ने न दें
    • धरती माता को पागलों से केवल यज्ञ बचायेंगे
    • आत्मा की खेती
    • मन्त्र विद्या का वैज्ञानिक आधार
    • दस अक्षरों ने महाभारत रचाया
    • मृत्यु के बाद भी मनुष्य जीवित रहता है।
    • पिंजरा छोड़ दो, उड़ जाओ
    • बन्धन-मुक्ति
    • ईश्वर ही है मुक्ति दाता
    • सत्य बनाम तथ्य
    • खलीफा उमर
    • ऊपर जाने की जल्दी हो तो सिगरेट पियें
    • काश हम सहयोग व सहकारिता का महत्व समझते
    • गाँधी जी की रक्षा का दायित्व
    • अविवेक के कारण दुर्गति
    • आध्यात्मिक काम विज्ञान- 5
    • सफलता का श्रेय
    • विज्ञान और धर्म में समन्वय अनिवार्य
    • आज के पुण्य से कल की प्राप्ति
    • अपनों से अपनी बात
    • परिजन इन सात प्रयत्नों में आज से ही जुट जाये
    • सारी दुनिया नासमझ है।
    • दायें बायें हाथ
    • विदाई की घड़ी
    • विदाई की घड़ी (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1971 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


छुरे की धार पर नचिकेता चलेगा

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 9 11 Last
आर्य श्रेष्ठ! आचार्य मही ने यम से विनीत निवेदन किया- नचिकेता कुमार ही तो है, उसके साथ इतनी कठोरता मुझसे देखी नहीं जाती। दस माह बीत गये नचिकेता ने गौ-दधि और जौ की सूखी रोटियों के अतिरिक्त कुछ खाया नहीं, अन्य स्नातक और स्वयं मेरे बच्चे भी रस युक्त, स्वाद युक्त भोजन करते हैं फिर नचिकेता के साथ ही यह कठोरता क्यों?

यमाचार्य ने हंसकर कहा- देवी! तुम नहीं जानती आत्मा को, ब्रह्म को प्राप्त करने का उपाय ही यही हैं साधना को ‘समर’ कहते हैं युद्ध में तो अपना प्राण भी संकट में पड़ सकता कोई आवश्यक नहीं कि विजय ही उपलब्ध हो। अभी तो न चकेता का अन्न संस्कार ही कराया गया है। ब्रह्म विराट् है, अत्यन्त पवित्र है, अग्नि रूप है। शरीर समर्थ न होगा तो नचिकेता उसे धारणा कैसे करेगा। छोटी सी लकड़ी दस मन बोझ नहीं उठा सकती टूट जाती है पर तपाई दबाई और पिटी हुई उतनी बड़ी लोहे की छड़ पचास मन भार उठा लेती है। नचिकेता का यह अन्न संस्कार उसके अन्नमय कोश के दूषित मलखरण, रोग और विजातीय द्रव्य निकाल कर उसे आत्मा केक साक्षात्कार योग्य शुद्ध और उपयुक्त बना देगा। छुरे की धार पर चलने के समान कठिन है पर नचिकेता साहसी और प्रबल आत्म जिज्ञासु है ऐसा व्यक्ति ही यह साधना कर सकता है।

गुरु माता के विरोध की अपेक्षा भी नचिकेता का अन्न संस्कार यमाचार्य ने एक वर्ष चलाया। और उसके बाद उन्होंने नचिकेता को प्राणायाम के अभ्यास प्रारम्भ कराये। प्राणाकर्षण, लोम-विलोम सूर्य वेधन उज्जयी और नाड़ी शोधन आदि प्राणायाम के अभ्यास कराते हुए कुछ दिन बीते उसके प्रभाव से नचिकेता के मुख मंडल पर कांति तो बढ़ी पर उसका आहार निरन्तर घटता ही चला गया। गुरुमाता यह देखकर पुनः दुःखी हुई और बोली-स्वामी ऐसा न करो- नचिकेता किसी और का पुत्र है कठोरता अपने बच्चों के साथ बरती जा सकती है औरों के साथ नहीं।

यमाचार्य फिर हँसे और बोले-भद्रे! शिष्य अपने पुत्र से बढ़कर होता है, नचिकेता के हृदय में तीव्र आत्मा जिज्ञासायें हैं वह वीर और साहसी बालक आत्म-कल्याण की, साधनाओं की हर कठिनाई झेलने में समर्थ है इसीलिये हम उसे पंचाग्नि विद्या सिखा रहे हैं। आर्यावर्त की पीढ़ियाँ कायर और कमजोर न हो जायें और यह आत्म विद्या लुप्त न हो जाये इस दृष्टि से भी नचिकेता को यह साधना कराना श्रेयस्कर ही है। माना कि उसका आहार कम हो गया है पर प्राण स्वयं ही आहार है। आत्मा-अग्नि रूप है, प्राण और प्रकाशवान् हैं, वह प्राणायाम से पुष्ट होती है, इसी से उसे हर पौष्टिक आहार मिलते हैं मनोमय कोश के नियन्त्रण के लिये ‘प्राणायाम” कोश का यह परिष्कार आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है।

एक वर्ष प्राण-साधन में बीता। नचिकेता को अब यमाचार्य ने मन के हर संकल्प को पूरा करने का अभ्यास कराया। नचिकेता सोता तब अचेतन मन की पूर्व जन्मों की स्मृति स्वप्न पटल पर उमड़ती उसमें कई ऐसे पापों की क्रियायें भी होती जिन्हें प्रकट करने में आत्मा-ग्लानि होती है, नचिकेता को वह सारी बातें बतानी पड़ती, गुरुमाता ने उससे भी नचिकेता को बचाने का यत्न किया पर यमाचार्य ने कहा- आत्मा-ग्लानि और कुछ नहीं पूर्व जन्मों के पापों के संस्कार मात्र हैं जब तक मन नितान्त शुद्ध नहीं हो जाता तब तक आत्म-बेधन का मनोबल कहाँ से आयेगा। मन की गांठें खोलने का इससे अतिरिक्त कोई उपाय भी तो नहीं है कि साधक अपनी इस जन्म की सारी की सारी गुप्त से गुप्त बातों को प्रकट कर अपने कुसंस्कार धोये स्वप्नों में परिलक्षित होने वालों में पूर्व जन्मों के पापों को भी उसी प्रकार बताये और उनकी शुद्धि का प्रायश्चित करे।

मनोमय कोश की शुद्धि के लिये नचिकेता को कृच्छ चान्द्रायण से लेकर गोमय, गौमूत्र सेवन करने तक की सारी प्रायश्चित साधनायें करनी पड़ीं। उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही साधना की कठोरता को देखकर गुरुमाता का हृदय करुणा रही साधना की कठोरता को देखकर गुरुमाता का हृदय करुणा से सिसक उठता पर यमाचार्य जानते थे कि आत्मा की ग्रन्थियाँ तोड़कर उसे प्रकट करने का समर कितना कष्ट साध्य है अतएव वे नचिकेता को तपाने में तनिक भी विचलित न हुए।

तीन वर्ष बीत गये, नचिकेता ने जीवन का कोई भी सुख नहीं जाना शरीर को उसने शुद्ध कर लिया पर शरीर क्षीण हो गया, प्राणों पर नियन्त्रण की विद्या उसने सीख ली, पर उससे मन क्षीण हो गया, मनोमय कोश को उसने जीत लिया पर उससे यश-क्षीण होता जान पड़ा। संकल्प विकल्प मुक्त नचिकेता अब इस स्थिति में था कि अपने मन को ब्रह्मरंध्र में प्रवेश कराकर सूक्ष्म जगत के विज्ञानमय रहस्यों की खोज करे और आत्मा तक पहुँचकर उसे सुभित करे, जगाये और प्राप्त करे। मन को दबाकर क्रमशः आज्ञा चक्र का भेदन करते हुए विद्या रूपिणी महाकाली की हलकी झाँकी होती तो उस विराट् रूप को देखकर नचिकेता का मन काँप जाता। पर दूसरे ही क्षण एक पुकार अन्तः करण से आती, मन और यह भौतिक सुख नचिकेता! यदि मिल भी गये तो इन्द्रियाँ उनका रसास्वादन कितने दिन तक कर सकती हैं तू तो उस अक्षर, अनादि आत्मा का वरण कर। पूर्णमासी का दिन, बसन्त-ऋतु-चार वर्ष से निरन्तर उग्र तप कर रहे नचिकेता का शरीर बिलकुल क्षीण पड़ गया था आज का दिन उसके जीवन में विशेष महत्व रखता है। मूलाधार स्थित कुण्डलिनी को जागृत करने की तिथि आज ही है। एक प्राण को दूसरे प्राण में समेटता हुआ नचिकेता मूलाधार तक जा पहुँचा उसने अपने संकल्प की चोट की उस आद्य शक्ति पर, चिर निद्रा में विलीन कुण्डलिनी पर उसका कुछ असर न हुआ इस पर नचिकेता ने तीव्र पर तीव्र प्रहार किये। चोट खाई हुई काल-रूपिणी महा सर्पिणी फुंसकार मारकर उठीं और उसने नचिकेता के मन को, स्थूल भाव को चबा डाला, जला डाला। नचिकेता आज मन न रहकर आत्मा हो गया, उसकी लौकिक-भौतिक वासनायें पूरी तरह जल गई वह ऋषि हो गया यह संवाद सारे संसार में छा गया। नचिकेता के यश की विमल पताका सारे संसार में लहराने लगी।

अब वह ब्रह्मा प्राप्ति के समीप था, ब्रह्म से वह किसी भी क्षण मिल सकता था तथापि अपने देश, अपने धर्म, अपनी महान् संस्कृति के उत्थान का संकल्प लेकर नचिकेता वहाँ से चल पड़ा और नव निर्माण के महान् कार्य में जुट गया। उसने इन पंचाग्नि विद्या का सारे संसार में प्रसार कर अमर साधक का श्रेय प्राप्त किया।

First 9 11 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • निरन्तर देता है, वह निर्बाध पाता है
  • पूर्णता-प्राप्ति
  • गर न हुई दिल में मए इश्क की मस्ती
  • भगवान को भूलने की गलती
  • पदार्थ से शक्ति की ओर, अणु से विराट् की ओर
  • जीवन प्रवाह-अनादि से अनन्त तक
  • मदद की स्थिति में हूँ
  • अद्वैत आत्मा की अद्वैत अनुभूतियाँ
  • पेड़ पर एक बन्दर बैठा
  • छुरे की धार पर नचिकेता चलेगा
  • कवि इकबाल
  • कर्म-योग संबंधी भ्रान्तियाँ और उनका निराकरण
  • कर्त्तव्य-पालन की दृढ़ता
  • शाक भाजी खाइये-अपनी बढ़ाइये
  • शरीर में एक और शरीर-प्राण-शरीर
  • साधन की कसौटी
  • शक्ति, प्रकाश और ब्रह्म ज्ञानदाता-अग्निदेवता
  • कर्मण गहनोगतिः
  • भावातिरेकता बढ़ने न दें
  • धरती माता को पागलों से केवल यज्ञ बचायेंगे
  • आत्मा की खेती
  • मन्त्र विद्या का वैज्ञानिक आधार
  • दस अक्षरों ने महाभारत रचाया
  • मृत्यु के बाद भी मनुष्य जीवित रहता है।
  • पिंजरा छोड़ दो, उड़ जाओ
  • बन्धन-मुक्ति
  • ईश्वर ही है मुक्ति दाता
  • सत्य बनाम तथ्य
  • खलीफा उमर
  • ऊपर जाने की जल्दी हो तो सिगरेट पियें
  • काश हम सहयोग व सहकारिता का महत्व समझते
  • गाँधी जी की रक्षा का दायित्व
  • अविवेक के कारण दुर्गति
  • आध्यात्मिक काम विज्ञान- 5
  • सफलता का श्रेय
  • विज्ञान और धर्म में समन्वय अनिवार्य
  • आज के पुण्य से कल की प्राप्ति
  • अपनों से अपनी बात
  • परिजन इन सात प्रयत्नों में आज से ही जुट जाये
  • सारी दुनिया नासमझ है।
  • दायें बायें हाथ
  • विदाई की घड़ी
  • विदाई की घड़ी (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj