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Magazine - Year 1972 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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ब्रह्माण्ड में कान लगाइये मनोवाँछित खबरें पाइये

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उस समय की बात है जब सिकन्दर पंजाब की सीमा पर आ पहुँचा था एक दिन, रात को उसने अपने पहरेदारों को बुलाया और पूछा - यह गाने की आवाज कहाँ से आ रही है? पहरेदारों ने बहुत ध्यान लगाकर सुनने की कोशिश की पर उन्हें तो झींगुर की भी आवाज सुनाई न दी। भौचक्के पहरेदार एक दूसरे का मुँह देखने लगे, बोले-महाराज! हमें तो कहीं से भी गाने की आवाज सुनाई नहीं दे रही।

दूसरे दिन सिकन्दर को फिर वही ध्वनि सुनाई दी, उसने अपने सेनापति को बुलाकर कहा-देखो जी! किसी के गाने की आवाज से मेरी नींद टूट जाती है। पता तो लगाना यह रात को कौन गाता है। सेनापति ने भी बहुतेरा ध्यान से सुनने का प्रयत्न किया किन्तु उसे भी कहीं से कोई आवाज सुनाई नहीं दी। मन में तो आया कि कह दें आपको भ्रम हो रहा है पर सिकन्दर का भय क्या कम था, धीरे से बोला - महाराज! बहुत प्रयत्न करने पर भी कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा, लेकिन अभी सैनिकों को आपकी बताई दिशा में भेजता हूँ अभी पता लगाकर लाते हैं कौन गा रहा है।

चुस्त घुड़सवार दौड़ाये गये। जिस दिशा से सिकन्दर ने आवाज का आना बताया था-घुड़सवार सैनिक उधर ही बढ़ते गये बहुत पास जाने पर उन्हें एक ग्रामीण के गाने का स्वर सुनाई पड़ा पता चला कि वह स्थान सिकन्दर के राज प्रासाद से 10 मील दूर है। इतनी दूर की आवाज सिकन्दर ने कैसे सुन ली सैनिक-सेनापति सभी इस बात के लिये स्तब्ध थे। ग्रामीण एक निर्जन स्थान की झोंपड़ी से गाता था और आवाज इतना लम्बा मार्ग तय करके सिकन्दर तक पहुँच जाती थी। प्रश्न है कि सिकन्दर इतनी दूर की आवाज कैसे सुन लेता था दूसरे लोग क्यों नहीं सुन पाते थे? सेनापति ने स्वीकार किया कि सचमुच ही अपनी ज्ञानेन्द्रियों को सन्तुष्ट करना केवल वही सत्य है नहीं कहा जा सकता है अतीन्द्रिय सत्य भी संसार में है उन्हें पहचाने बिना मनुष्य जीवन की कोई उपयोगिता नहीं।

दूर की आवाज सुनना विज्ञान के वर्तमान युग में कोई बड़े आश्चर्य की बात नहीं है ‘रेडियो डिटेक्शन एण्ड रेन्जिग‘ अर्थात् ‘राडार’ नाम जिन लोगों ने सुना है वे यह भी जानते होंगे कि यह एक ऐसा यंत्र है जो सैंकड़ों मील दूर से आ रही आवाज, आवाज ही नहीं वस्तु की तस्वीर का भी पता दे देता है। हवाई जहाज उड़ते हैं तब उनके आवश्यक निर्देश, संवाद और मौसम आदि की जानकारियाँ ‘राडार’ द्वारा ही भेजी जाती हैं और उनके संदेश राडार द्वारा ही प्राप्त होते हैं। बादल छाये हैं, कोहरा घना हो रहा है, हवाई पट्टी में धुआँ छाया है राडार की आँख उसे भी बेध कर देख सकती है और जहाज को रास्ता बताकर उसे कुशलतापूर्वक हवाई अड्डे पर उतारा जा सकता है। छोटे राडार 150 मील तक की आवाज सुन सकते हैं। जापान ने 500 मील तक की आवाज सुन सकने वाले राडार बनाये हैं। अमेरिका के पास तो ऐसे भी राडार है जो ‘ह्यूस्टन’ के चन्द्र वैज्ञानिकों को चन्द्रमा में उतरे हुए यात्रियों तक से बातचीत करा देते हैं। राडार यंत्र की इस क्षमता पर और उसकी खोज व निर्माण करने वाले वैज्ञानिकों के बुद्धि कौशल पर जितना ही आश्चर्य किया जाय कम है।

किसी विज्ञान जानने वाले विद्यार्थी से यह बात कही जाये तो वह हँस कर कहेगा भाई साहब इसमें आश्चर्य की क्या बात-साधारण सा रेडियो-तरंगों का सिद्धान्त है। जब ध्वनि लहरियाँ किसी माध्यम से टकराती हैं तो वे फिर वापस लौट आती हैं उस स्थान वस्तु आदि का पता दे देती हैं। हवाई जहाज की ध्वनि को रेडियो तरंगों द्वारा पकड़ कर यह पता लगा लिया जाता है कि वे किस दिशा में कितनी दूरी पर हैं। यह कार्य प्रकाश की गति अर्थात् 186000 मील प्रति सैकिण्ड की गति से होता है। रेडियो तरंगों की भी यही गति होती है तात्पर्य यह है कि यदि उपयुक्त संवेदनशीलता वाला राडार जैसा कोई यन्त्र हो तो बड़ी से भी बड़ी दूरी की आवाज को सेकेंडों में सुना जा सकता है। देखा जा सकता है। प्रकाश से भी तीव्रगामी तत्वों की खोज ने तो अब इस सम्भावना को और भी बढ़ा दिया है और अब सारे ब्रह्माण्ड को भी कान लगा कर सुने जाने की बात को भी कोई बड़ा आश्चर्य नहीं माना जाता।

मुश्किल इतनी ही है कि कोई भी यंत्र इतने संवेदनशील नहीं बन पाते कि दशों दिशाओं से आने वाली करोड़ों आवाजों में से किसी भी पतली से पतली आवाज को जान सकें और भयंकर से भी भयंकर निनाद में भी टूटने-फूटने के भय से बची रहें। राडार इतना उपयोगी है पर इतना भारी भरकम कि उसे एक स्थान पर स्थापित करने में वर्षों लग जाते हैं। सैकड़ों फुट ऊँचे एण्टीना, ट्रान्समीटर, रिसीवर, बहुत अधिक कम्पन वाली (सुपर फ्रीक्वेन्सी) रेडियो ऊर्जा, इंडिकेटर, आस्मीलेटर, माडुलेटर, सिंकोनाइजर आदि अनेकों यंत्र प्रणालियाँ मिलकर एक राडार काम करने योग्य हो पाता है। उस पर भी अनेक कर्मचारी काम करते हैं, लाखों रुपयों का खर्च आता है, तब कहीं वह काम करने योग्य हो पाता है। कहीं बिजली का बहुत तेज धमाका हो जाये तो यह ‘राडार’ बेकार भी हो जाते हैं और जहाज यदि ऐसे हों जो अपनी ध्वनि को बाहर फैलने ही न दें तो ‘राडार’ उनको पहचान भी नहीं सके। यह सब देखकर इतने भारी मानवीय प्रयत्न और मानवीय बुद्धि कौशल तुच्छ और नगण्य ही दिखाई देते हैं।

दूसरी तरफ एक दूसरा राडार-मनुष्य का छोटा सा कान एक सर्वशक्तिमान कलाकार-विधाता की याद दिलाता है जिसकी बराबरी का राडार संभवतः मनुष्य कभी भी बना न पाये। कान हलकी से हलकी आवाज को भी सुन और भयंकर घोष को भी बर्दास्त कर सकते हैं। प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि कानों की मदद से मनुष्य लगभग 5 लाख आवाजें सुनकर पहचान सकता है जबकि राडार का उपयोग अभी तक सीमित ही है।

कान के भीतरी भाग में, जो संदेशों को मस्तिष्क में पहुँचाने का काम करता है 30500 रोयें पाये जाते हैं। यह रोयें जिस श्रवण झिल्ली से जुड़े होते हैं वह तो 1/25000000000000000 इंच से भी छोटा अर्थात् इलेक्ट्रानिक माइक्रोस्कोप से भी मुश्किल से दिखाई दे सकने वाला होता है। वैज्ञानिकों का भी अनुमान है कि इतने सूक्ष्म व संवेदनशील यंत्र को बनाने में मनुष्य जाति एक बार पूरी तरह सभ्य होकर नष्ट हो जाने के बाद फिर नये सिरे से जन्म लेकर विज्ञान की दिशा में प्रगति करे तो ही हो सकती है (अर्थात् मानवीय क्षमता से परे की बात है) इस झिल्ली का यदि पूर्ण उपयोग संभव हो सके तो संसार की सूक्ष्म से सूक्ष्म हलचलों को, लाखों मील दूर की आवाज को भी ऐसे सुना जा सकता है मानों वह यहीं कहीं अपने पास ही हों या पास बैठे मित्र से ही बातचीत हो रही हो महर्षि पातञ्जलि ने लिखा है-

श्रोभाकाशयोः संबंध संयाद्दिव्यं श्रोत्रम्

(पयो सूत्र 40)

अर्थात् - श्रवणेन्द्रिय (कानों) तथा आकाश के संबंध पर संयम करने से दिव्य ध्वनियों को सुनने की शक्ति प्राप्त होती है।

यह बात अब विभिन्न प्रयोगों से भी सिद्ध हो गई है। सामान्यतः हम 6 फुट की दूरी की आवाज का भी अधिकतम 1/3000000वाँ हिस्सा ही सुन पाते हैं शेष कितनी ही मंद ध्वनि क्यों न हो वायुभूत हो जाती है संसार के प्रत्येक पदार्थ से ऊर्जा विद्यमान है और चूँकि कोई भी स्थान ऊर्जा से रिक्त नहीं अतएव प्रत्येक ध्वनि कुछ ही समय में सारे ब्रह्माण्ड में उसी प्रकार फैल जाती है जिस प्रकार जल में फेंके गये कंकड़ से उत्पन्न लहरें जहाँ तक जल होता है वहाँ तक चली जाती हैं।

न्यूजर्सी अमेरिका की बेल टेलेफोन प्रयोगशाला के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने एक ऐसे ‘भवन’ का निर्माण किया जो पूरी तरह शब्द प्रूफ था अर्थात् उसके अन्दर बैठने वाले को बाहर की कैसी भी कोई भी ध्वनि सुनाई नहीं पड़ सकती थी। वैज्ञानिकों को अनुमान था कि उस समय निस्तब्ध, नीरवता का आभास होगा पर जब एक व्यक्ति को प्रयोग के तौर पर उसके अन्दर बैठाया गया तो उसे यह सुनकर अत्यंत आश्चर्य हुआ कि विचित्र प्रकार की ध्वनियाँ उसके कानों में गूँजने लगी।

एक ध्वनि किसी के सीटी बजाने की थी, एक ध्वनि प्रेस मशीन चलने की तरह धड़-धड़ की थी, एक ध्वनि चट-चट चटखने की सी। पहले तो वह व्यक्ति डरा पर पीछे ध्यान देने पर मालूम हुआ कि सीटी की आवाज नसों में दौड़ने वाले रक्त प्रवाह की ध्वनि थी। आमाशय में पाचन रसों की चट-चट और हड्डियों की कड़कड़ाहट की ध्वनियाँ भी अलग-अलग सुनाई पड़ने लगीं मानो शरीर न हो पूरा कारखाना ही हो।

सामान्यतः यह ध्वनि हर व्यक्ति के शरीर से होती है पर अपने कानों की बाह्यमुखी संवेदनशीलता और एकाग्रता की कमी के कारण कोई भी उन्हें सुन नहीं पाता। पर यदि अभ्यास किया जाये और सूक्ष्म कानों की शक्ति जगाई जा सके अनन्त ब्रह्माण्ड में होने वाली हलचल पृथ्वी के चलने की आवाज, सौर घोष, उल्काओं की टक्कर के भीषण निनाद मन्दाकिनियों के बहने का स्वर, जीव जन्तुओं के कलरव सब कुछ किसी भी स्थान में बैठकर उसी प्रकार सुने जा सकते हैं जिस प्रकार बेल टेलेफोन, लैबोरेटरी के प्रयोग के समय।

योगी पातञ्जलि ने लिखा है- ‘ततः प्रतिभ श्रावण जायन्ते’ अर्थात् ‘स्वार्थ संयम के अभ्यास से प्रतिभ अर्थात् भूत और भविष्य ज्ञान दिव्य और दूरस्थ शब्द सुनने की सिद्धि प्राप्त होती है।’ योग विभूति में लिखा है-

‘शब्दार्थ प्रत्ययानामितरेताध्यासात् संकरस्त- स्प्रतिभाग संयमात् सर्व भूतरुतज्ञानम्’।17॥

अर्थात् शब्द अर्थ और ज्ञान के अभ्यास से अभेद भासता है और उसके विभाग में संयम करने से सभी प्राणियों के शब्दों में निहित भावनाओं का भी ज्ञान होता है।’ -यह सूत्र सिद्धान्त सूक्ष्म कर्णेन्द्रिय की महान महत्ता का प्रतिपादन करते हैं और बताते हैं कि जब तक मनुष्य के पास ऐसा क्षमता सम्पन्न शरीर है उसे भौतिक शक्तियों की ओर आकर्षित होने की आवश्यकता नहीं सिकन्दर 10 मील तक सुन सकता था योगी तो अपने कान लगाकर सारे ब्रह्माण्ड को सुन सकता है। यह बात अब विज्ञान भी स्वीकार करता है कान की बनावट की नकल करके वैज्ञानिक ऐसे राडार बनाने के प्रयत्न में हैं जो शुक्र मंगल और उससे आगे की भी गतिविधियों का पता लगा सकें। यह संभव हो जायगा पर कान का मुकाबला बेचारे यंत्र क्या कर सकेंगे। कानों से तो सारे ब्रह्माण्ड को सुना जा सकता है।

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