
मनुष्य का सूत्र संचालन क्या अदृष्ट से होता है?
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प्रकृति के अद्भुत रहस्यों में से कुछ को मनुष्य ने एक छोटी सीमा तक जाना है और उनको वैज्ञानिक शोधों एवं यन्त्र उपकरणों के माध्यम से उपयोग में लाकर लाभ भी उठाया है। आदिम कालीन मनुष्य का ज्ञान स्वल्प था-अन्य जीव-जन्तुओं की जानकारी कम है इसलिए उन्हें वे लाभ नहीं मिल पाये जो आज का अन्वेषक मनुष्य प्राप्त करके सुविधा साधन उपलब्ध कर रहा है।
प्रकृति का भण्डार इतना विशाल है कि उसे जितना खोजा जा सके उतना ही कम है।
भौतिक विज्ञान से बढ़कर चेतना विज्ञान है। जड़ शक्तियों की तुलना में चेतना शक्तियों की क्षमता एवं उत्कृष्टता का बाहुल्य स्वीकार करना ही पड़ेगा। इस दिशा में और भी खोज होनी चाहिए। अध्यात्म विज्ञान की शोध में ही हमारी दिलचस्पी और तत्परता और भी अधिक होनी चाहिए। प्राचीनकाल में ऋषि तपस्वियों ने बहुत कुछ खोज की थी पर वह उस समय भी परिस्थितियों के अनुकूल थी। उन शोधों के बाद अब कुछ ढूँढ़ना शेष नहीं रहा ऐसी बात नहीं है। फिर प्राचीन काल की उपलब्धियाँ भी तो लुप्त हो गईं। ऐसी दशा में उस दिशा में हमें वैज्ञानिक आत्म विज्ञान की शोधों में नये सिरे से तत्पर होना चाहिए।
मनुष्य का कर्तृत्व उसकी सफलताओं का कारण है यह तथ्य सर्वविदित है। पर यह मान्यता भी असीम है। इसके साथ एक कारण और भी जुड़ा हुआ प्रतीत होता है-निर्धारित नियति। भले ही वह अपने ही पूर्व सञ्चित कर्मों का फल ही हो या उसका संचालन किसी अदृष्ट से संबंधित हो।
संख्या के साथ व्यक्ति विशेष संबंध क्यों होता है? यह तो नहीं कहा जा सकता, पर होता अवश्य देखा गया है। घटनाओं पर आश्चर्य करना भर पर्याप्त नहीं, इसके आधार को भी जानना चाहिए। जिससे उस नियति शृंखला के अनुकूल चलकर लाभान्वित होना और प्रतिकूलता से बच निकलना सम्भव हो सके।
विश्व-विख्यात चित्रकार अल्मा-टाडमा के जीवन में “17” की संख्या का महत्व एक बड़े जादू की तरह था-यह बात वे स्वयं स्वीकार करते हुए बताया करते थे-”मैं 17 वर्ष की उम्र का था तब 17 तारीख को ही अपनी प्रिय पत्नी से मिला। मेरे पहले मकान का नम्बर 17 था और जब दुबारा मकान बनवाने की बात आई तो बहुत प्रयत्न करने पर भी वह 17 अगस्त से पहले प्रारम्भ नहीं हो सका। नवम्बर की 17 तारीख थी जब मैंने नूतन-गृह में प्रवेश किया। अपने लिये जब “सेन्ट जोन्स वुड में चित्रकारी के लिए कमरा लिया तो वह भी 17 नम्बर ही निकला।’
निःसन्देह “अक्षरों” की महत्ता बहुत अधिक है पर लगता है संसार का नियमन संख्या द्वारा हो रहा है। तभी तो कई बार ऐसे विचित्र साँख्यिकी संयोग उपस्थित हो जाते हैं कि गैलीलियो जैसे वैज्ञानिक तक को यह मानना पड़ा था कि संसार गणित की भाषा में बोल रहा है-विधाता संसार का हिसाब-किताब संख्या में रखता है। इस तथ्य की पुष्टि में सुप्रसिद्ध भविष्यवक्ता और ज्योतिषी कीरो ने आश्चर्यजनक घटनायें अपनी पुस्तक “फीरोज बुक ऑफ नम्बर्स में संकलित की हैं-प्रस्तुत घटनायें अधिकाँश उस पुस्तक का ही अंश हैं।”
ए0बी0 फ्रेंच के जीवन की घटनाओं में 7 संख्या का महत्व बताते हुए कीरो लिखते हैं कि - “उनका जन्म 7 वें महीने की 7 तारीख को हुआ था। अपनी 7 वर्ष की उम्र में वे कभी बीमार नहीं हुए। 7वीं कक्षा तक वे कभी फेल नहीं हुये। अपने विवाह के लिये उन्होंने 7वीं लड़की को चुना और यह एक विस्मय की बात थी कि उस लड़की के लिये भी फ्रेंच 7वें ही लड़के थे। उनके जीवन की अधिकाँश घटनायें 7 के ही साथ घटित हुई।
उनके एक चाचाजी थे उनकी धर्मपत्नी एक बार रेल यात्रा कर रही थी। रेलगाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। जिस डिब्बे में बैठी थीं उसका नम्बर 8631 था, एक बार लाटरी खरीदी उसका नं0 8631 था। उसमें कुछ नहीं निकला, एक बार स्वयं भी एक ट्रक की चपेट में आ गये संयोग से उसका भी नम्बर 8631 ही था। उनके चार पुत्र हुये चारों मर गये। उन लड़कों की मृत्यु क्रमशः 8, 6, 3 और 1 वर्ष की आयु में हुई और इन संख्याओं को मिलाने से फिर वही 8631 संख्या बनती है जिसने दुर्भाग्य की दृष्टि से जीवन भर उनका पीछा नहीं छोड़ा।
लोगों का अनुमान है कि 13 की संख्या अशुभ होती है किन्तु कीरो की दृष्टि में यह कोई तर्क संगत बात नहीं है उन्होंने अनेक उदाहरणों द्वारा यह सिद्ध किया है कि 13 की संख्या को जहाँ अशुभ माना जाता है वहाँ वह कितने ही लोगों के जीवन की सौभाग्यदायक संख्या सिद्ध हुई। उत्तरी बर्टन यार्क्स के डॉ0 रुड के जीवन में 13 की संख्या दुर्भाग्य सूचक के रूप में आई। 13 वर्ष की आयु में वे बीमार पड़े। 13 दिन तक घोर कष्ट में रहे। 13 तारीख को ही हृदय की बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई। गाँव के क्लब में जिसमें वे कुल 13 सप्ताह रहे, उन्हें फण्ड में उनकी मृत्यु के समय कुल 13 शिलिंग शेष थे। उनकी मृत्यु का दिन उनके सबसे छोटे बच्चे की 13 वीं वर्षगाँठ थी। उनके अन्तिम संस्कार के लिये 13 सौ मील की यात्रा करनी पड़ी। अन्तिम संस्कार के समय कुल 13 सदस्य उपस्थित हुये उनके परिवार के सदस्यों की संख्या भी 13 ही थी। उनके बड़े लड़के को नेवी में नौकरी मिली और साथ में जो नम्बर मिला वह भी 13 ही था। जिस जहाज में काम करना था उसका नम्बर भी 13 ही था। रुड का नाम फूवाह था जो कि बाइबिल के 13वें छन्द में आता है। उनकी मृत्यु के समय शोक सम्वेदना के जो तार आये उनकी संख्या भी 13 ही थी।
यह तो थी दुर्भाग्य की बात-13 जिसके साथ सौभाग्य जुड़ा हुआ है। डेनवर कोलराडो के धनाढ्य उद्योगपति शेरमैन का जन्म 13 तारीख को हुआ। सगाई 13 तारीख को हुई और विवाह भी 13 जून 1913 को हुआ उनकी पत्नी का जन्मदिन भी 13 ता0 का ही था। उनके विवाहोत्सव में भी कुछ 13 ही अतिथि थे। उन्हें जो फूल भेंट किये गये उनकी संख्या भी 13 थी। 13 की संख्या उनके जीवन में सदैव लाभदायक रही।
संख्या की विचित्रता का संसार बड़ा व्यापक है जन्म, मृत्यु और जीवन काल की घटनाओं को ध्यानपूर्वक देखें तो पता चलता है कि हर व्यक्ति के जीवन में जोड़, बाकी, गुणा, भाग काम करता है और यही तथ्य इस बात का प्रमाण है कि प्रकृति जड़ नहीं है वरन् उसमें एक मस्तिष्कीय प्रक्रिया हर क्षण, हर घड़ी काम कर रही है।
इस तथ्य का प्रतिपादन संख्याओं की-गणित की यह विचित्रता प्रकट करती है। फ्रान्स के प्रथम सम्राट हेनरी 14 मई 1029 को सिंहासन पर बैठे जबकि वहाँ के आखिरी सम्राट का नाम भी हेनरी ही था 14 मई 1610 को उनकी हत्या कर दी गई थी। जिस तारीख को एक को सिंहासन मिला उसी को दूसरी 14 मई को मृत्यु का उपहार। इस बीच वहाँ के अन्य सभी राजाओं के जीवन में 14 की संख्या का सदैव महत्व बना रहा। हेनरी 14वें का पूरा नाम हेनरी डिबारबन था पूरे नाम में 14 अक्षर होते हैं। 14वीं शताब्दी में 14वीं 10 वर्षीय काल सारणी (डिकेड) में ईसा के जन्म में 14 वर्ष बाद हेनरी चतुर्थ का जन्म 14 वर्ष बाद हेनरी चतुर्थ का जन्म 14 मई को ही हुआ। सन् 1553 में जन्म हुआ यह सब अक्षर जोड़ने से भी 14 की ही संख्या आती है। 14 मई को ही हेनरी द्वितीय ने फ्राँस का राज्य विस्तार किया था। हेनरी चतुर्थ की पत्नी का जन्म भी 14 मई को हुआ। हेनरी तृतीय को 14 मई के दिन युद्ध के मोर्चे पर जाना पड़ा। हेनरी चतुर्थ ने आयवरी का युद्ध 14 मार्च 1590 को जीता। 14 मई 1590 में उनकी फौज की पेरिस के फाक्सवर्ग में हार हुई नवम्बर मास की 14 तारीख ही थी जिस दिन फ्रान्स के 16 बड़े व्यक्तियों ने हेनरी चतुर्थ की सेवा करते-करते मर जाने की ऐतिहासिक प्रतिज्ञा की थी। इसी के ठीक 2 वर्ष बाद 14 नवम्बर को फ्रान्स की पार्लियामेन्ट ने एक कानून पास कर पापलबुल को हेनरी के स्थान पर सत्ताधिकारी चुना। 14 दिसम्बर 1599 को सवाय के ड्यूक ने अपने आपको हेनरी को आत्मसमर्पण किया। 14 तारीख ही थी जिस दिन लार्ड डफिन ने लुई 13वें के रूप में बैपतिस्मा ग्रहण किया।
14 मई 1643 को हेनरी चतुर्थ के पुत्र लुई 13वें की मृत्यु हुई। लुई 14वें 1643 में सिंहासन पर बैठे इन चारों संख्याओं का योग भी 14 ही होता है। उन्होंने 77 वर्ष (7+7=14) तक का जीवन जिया और 1715 में मृत्यु हुई। यह चारों अक्षर जोड़ने पर भी 14 की ही संख्या आती है। लुई 15 वें ने कुल 14 वर्ष राज्य किया। इस प्रकार फ्रान्स के सिंहासन पर 14 का महत्व सदैव बना रहा।
जर्मनी के शासक चार्ल्स चौथे का विश्वास था कि उनके जीवन में चार की संख्या सौभाग्य सूचक है। उनने अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में चार को महत्व दिया। वह चार रंग की पोशाकें पहनते थे और दिन में चार बार पहनते थे। चार प्रकार का भोजन, चार मेजों पर दिन में चार बार करते थे, चार प्रकार की शराब पीते थे, उनके अंगरक्षक चार थे, बग्घी में चार पहिये, और चार ही घोड़े जुतते थे। उनके राज्य में चार गवर्नर नियुक्त थे, चार सेनापति, चार ड्यूक और कप्तान भी चार ही थे। उनके चार महल थे उनमें चार-चार ही दरवाजे थे। हर महल में चार-चार कमरे, हर कमरे में चार-चार खिड़कियाँ थी और यह एक संयोग ही था कि मृत्यु के समय चार डॉक्टर उपस्थित थे उन्होंने चार बार “गुड बाय” कहा और ठीक चार-बजकर चार मिनट पर इस संसार से विदा हो गये।