
हिम समाधि बनाम योग समाधि
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क्षति पूर्ति का एक तरीका सोचा जा रहा है - हिम समाधि। बर्फ की तरह यदि जीवित मनुष्य शरीर को जमा दिया जाय तो उसका क्षरण क्रम उतने समय तक रुका रह सकता है और थके हुए जीवाणु विश्राम पाकर पुनः सशक्त हो सकते है। इस प्रकार मौत और बुढ़ापे का मुकाबला किया जा सकता है। यह भी एक सम्भावना वैज्ञानिकों के दिमाग में है। इस दिशा में एक आशा की किरण उस समय झलकी जब हिम समाधि में मरे हुए एक रूसी ट्रैक्टर ड्राइवर को मृत्यु से वापिस लौटा कर जीवित बनाया गया। सन 1960 में वह ड्राइवर बर्फीले तूफान में गिर पड़ा और वहीं अकड़ गया। काफी समय बाद उसे अस्पताल पहुँचाया जा सका। उस निर्जीव दीखने वाले शरीर पर प्रयत्न किया गया और वह पुनः जीवित हो उठा। यह एक आकस्मिक घटना थी। इसी आधार पर अन्य प्रयोग चले। रूसी शरीर वैज्ञानिकों में से ए॰ कुल्यास्की, एफ0आन्द्रीपेफ, और प्रो0वी0 नैगोबकी ने हिम समाधि के कितने ही प्रयोग अनेक जीवों पर किये हैं और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि थके हुए अशक्त शरीरों को कुछ समय इस प्रकार का पूर्ण विश्राम दिया जा सके तो उसकी थकी हारी कोशिकाएं नये उत्साह से नव जीवन प्रारम्भ कर सकती हैं और बुढ़ापे को आगे धकेलने में सफलता मिल सकती है।
जो कार्य हिम समाधि से किया जा सकता है उसका एक दूसरा तरीका किसी प्रकार शरीर को सुषुप्तावस्था में पहुँचा देना भी हो सकता है। चेतन मस्तिष्क तो रात में सो लेता है पर उससे थोड़ी सी थकान ही उतरती है। असली काम तो अचेतन को करना पड़ता है वह बिना सुस्ताये अहर्निशि कार्यरत रहता है। न करे तो रक्ताभिषरण श्वास प्रश्वास, आकुञ्चन प्रकुञ्चन जैसी शरीर को जीवित रखने वाली क्रियाएं ही बन्द हो जायं। अचेतन के कार्य बन्द कर देने का ही दूसरा नाम मृत्यु है। इस अचेतन की थकान ही बुढ़ापे के रूप में सामने आती है और वह थकता निरन्तर काम करने से है। बीच में यदि उसे विश्राम मिल जाता तो जरूर वह भी रात में सोने वाले चेतन मस्तिष्क की तरह नई स्फूर्ति से काम कर सकने में जुट सकता था और मौत बुढ़ापे का संकट बहुत हद तक टल सकता था। देखा गया है कि हिम प्रयोगों की सुषुप्तावस्था में हृदय की गति एक मिनट में तीन बार और साँस तीन मिनट में एक बार तक मन्द हो जाती है। यदि यह स्थिति हिम समाधि के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार उत्पन्न की जा सके तो उससे भी वैसा ही लाभ हो सकता है।
मंगल और बृहस्पति ग्रहों पर भेजे जाने वाले अन्तरिक्ष यात्रियों के बारे में यही सोचा गया है कि इतनी दूर जाने और लौटने में जो लम्बी अवधि लगेगी उसमें मौत बुढ़ापे का ही नहीं, अन्न जल का प्रबन्ध करना भी अशक्य हो जायगा। उसका उपाय नियत समय पर सुषुप्तावस्था करना और नियत समय पर जाग्रत कर देने की प्रक्रिया का अपनाया जाना ही हो सकता है। ‘प्रोफाइल्स आफ द फ्यूचर’ पुस्तक के लेखक डॉ0 आर्थर क्लार्क का कथन है कि सुषुप्तावस्था उत्पन्न करने के सरल तरीके इस शताब्दी का अन्त होने तक ढूँढ़ निकाले जा सकेंगे।
गुण सूत्रों को बदलने की- डी0एन0ए॰ में हेर-फेर करके मानवी जोन्स का स्वरूप ही बदल देने की बात सोची जा रही है। मानव सत्ता का वर्तमान शारीरिक और मानसिक ढाँचा बदल कर उसे अधिक समय तक जीवित रखने की सम्भावना पर भी वैज्ञानिक क्षेत्रों में विचार चल रहा है। अगले दिनों उसे भी प्रयोग क्षेत्र में कार्यान्वित किया जाने वाला है।
कैलीफोर्निया विश्व विद्यालय के मनोविज्ञान प्राध्यापक डॉ0 जेम्स वेडफोर्ड की मृत्यु कुछ समय पूर्व 73 वर्ष की आयु में हुई है। उन्होंने अपनी संपत्ति की वसीयत यह की है कि उनके मृत शरीर को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयोग किये जायं। पूर्ण सफलता भले ही न मिले पर उससे आगे का रास्ता खुला तो भी एक बड़ी बात होगी।
उनकी घोषित मृत्यु के बाद डाक्टरों ने उनके मस्तिष्क और हृदय के कोषों को कृत्रिम रीति से जीवन दिया और लाश को नाइट्रोजन घोल में जमा दिया। उस 220 डिग्री सेण्टीग्रेड तापमान वाले एक बक्से में सुरक्षित रखा गया है। समयानुसार उस पर अन्य प्रयोग किये जाएंगे।
लाइफ एक्स टेनशन सोसाइटी (जीवन वृद्धि संस्थान) के वैज्ञानिक सदस्य इस आधार पर विभिन्न प्रयोग कर रहे हैं कि कोष विघटन प्रक्रिया को रोकने के लिए शरीर को अति शीत से जमा दिया जाय। इससे कोष विश्राम प्राप्त करके- विघटन के विनाश प्रवाह से छुटकारा पाने में समर्थ हो जायेंगे। इसके उपरान्त उन्हें नव जीवन जैसी गति विधि अपनाने के लिए भी सधाया जा सकेगा।
इस प्रयोग के संदर्भ में कुछ चूहे 5 डिग्री सेण्टीग्रेड ताप पर जमाये गये। जमने पर वे काँच की तरह कड़े हो गये। जिनका कोई अंग कड़क से टूट सकता था। इसके बाद भी उन्हें सामान्य ताप देकर पुनः जीवित किया जा सका। कुत्ते और बिल्लियों पर भी यह प्रयोग किये गये और 203 दिन बाद उन्हें पुनर्जीवित किया गया। इस जमाने वाली प्रक्रिया में एक प्रमुख कठिनाई यह है कि ऑक्सीजन के अभाव में मृत्यु के तुरन्त बाद ‘जीवन कोष’ विघटित होने लगते हैं। अर्ध मृत व्यक्ति पर प्रयोग कैसे किया जाय? मृत्यु और जमाव के समय में न्यूनतम अन्तर रहे तभी प्रयोग की सफलता सम्भव होगी।
यही प्रक्रिया भारतीय योग साधना में सविकल्प और निर्विकल्प समाधि के नाम पर प्रतिपादित की गई है। जो कार्य वैज्ञानिक तापमान घटाकर यान्त्रिक पद्धति से करना चाहते हैं वह प्रयोजन समाधि अवस्था में बिना किसी झंझट के पूरा हो जाता है। संकल्प बल की सामर्थ्य संसार में अद्भुत है। मनोबल की तुलना यन्त्र बल नहीं कर सकता। विशेषतया अपने शरीर के सम्बंध में - अपने संकल्प के प्रभाव का आश्चर्य जनक परिणाम तो असंदिग्ध ही है। स्व संकेत साधना के अनुसार पाश्चात्य देशों में रोग निवारण से लेकर अपरोक्षानुभूति तक के प्रयोग सफलता पूर्वक सम्पन्न किये जा रहे हैं। योग साधना का तो मूल आधार ही वह है। स्व संकेतों द्वारा - आत्म सम्मोहन की प्रक्रिया अपनाकर समाधि स्थिति उत्पन्न की जा सकती है। इस प्रयोग में भी लगभग वही स्थिति पैदा हो जाती है जो ‘हिम समाधि ‘ द्वारा उत्पन्न की जायगी। समाधि स्थिति में शरीर के जीवाणुओं को विश्राम मिल जाता है और अचेतन मन की निरन्तर काम करते रहने की थकान दूर होती है। जिस प्रकार रात को सो लेने पर सवेरे ताजा मस्तिष्क और स्फूर्तिवान शरीर नये उत्साह से काम करता है ठीक उसी प्रकार समाधि अवस्था में शारीरिक और मानसिक विश्राम की व्यवस्था बन जाती है और उससे जगने के बाद नया स्फूर्तिवान शरीर एवं मन लेकर एक प्रकार से नया जीवन ही आरंभ किया जाता है।
औषधि उपचार में जो कायाकल्प प्रयोग किये जाते हैं उनमें शारीरिक जीवाणुओं को ही विश्राम मिलता है। मानसिक विश्राम के लिए उसमें कोई व्यवस्था नहीं होती पर समाधि अवस्था में हिम समाधि जैसी स्थिति बन जाती है। और मन की भाग दौड़ बन्द हो जाने के कारण उसे भी नई शक्ति संचय कर लेने का अवकाश मिल जाता है। हिम समाधि में मन का स्तर जैसा कुछ था वैसा ही बना रहता है और उठने के बाद सक्रियता एवं चेतनता तो आ जाती है पर स्तर वही पुराना बना रहता है समाधि में मन को जब विश्राम दिया जाता है तो उसे उच्च कोटि के संकल्पों से भर कर तुरीयावस्था में भेजा जाता है। विश्राम अवधि में वह उन्हीं संकल्पों में डूबा रहता है और जब उठता है तो उसी रंग में रँगा हुआ- बदला हुआ होता है।
हिम समाधि में सुलाये हुए व्यक्ति को जगाने के लिए- इस विद्या के कुशल वैज्ञानिकों का सहयोग आवश्यक है किन्तु समाधि में जिस समय के जागरण के लिए संकल्प दिया गया था, ठीक उसी समय अपने आप जागृत अवस्था आ जाती है। हिम समाधि के प्रयोग और अन्वेषण में जितना प्रयत्न किया जा रहा है। उससे आधा भी यदि समाधि शोध के लिए लगता है तो मनुष्य जाति को कृत-कृत्य हो जाने का अवसर मिलता।